− | भारतीय धार्मिक जीवन में पूजा को विशिष्ट स्थान प्रदान किया गया है। | + | भारतीय धार्मिक जीवन में पूजा को विशिष्ट स्थान प्रदान किया गया है। पूजा के विविध साधनों- स्तुति, प्रार्थना, मन्त्रजप, तप, स्वाध्याय, कथा, कीर्तन, यज्ञ, मनन, चिन्तन आदि से मानव में जो भी अभाव अनुभव करता है, उसको प्राप्त कर लेता है।<ref>अर्चना सिंह, प्राचीन भारत में शक्ति पूजा,(शोध गंगा) सन् २००७, वी०बी०एस० पूर्वाञ्चल विश्वविद्यालय, अध्याय- १, (पृ०१२)।http://hdl.handle.net/10603/180127 </ref>पूजा विधि के माध्यम से बहिरंग क्रियाओं का दीर्घकाल तक निरन्तर अभ्यास करते हुये मानसिक क्रिया का अन्तरंग योग में समावेश करवाते हुये लय अवस्था की प्राप्ति करवाने में पूजा विधि का महत्वपूर्ण योगदान है।<blockquote>पूजा कोटि समं स्तोत्रं, स्तोत्र कोटि समो जपः। जप कोटि समं ध्यानं, ध्यान कोटि समो लयः॥</blockquote>पूजा विधि के मुख्य पाँच अंग हैं- अर्चन, स्तुति, जप, ध्यान और लय। जिस प्रकार से योग शास्त्र में यम-नियमादि अंगों का यथाविधि अभ्यास करने के पश्चात् ध्यान का अभ्यास किया जाता है एवं ध्यान की अन्तिम अवस्था को ही समाधि कहते हैं। उसी प्रकार पूजा विधि में लय अवस्था के पूर्व अर्चन, स्तुति, जप और ध्यान का निरन्तन धारावाहिक चिन्तन किया जाता है। जैसे- बहिरंग क्रियाओं के माध्यम से पूजा एवं स्तोत्र पाठ मन को अंतरंग योग साधना के प्रति प्रेरित करते हैं। पूजा विधि में मन के अभ्यस्त होने के उपरांत जो क्रियाऐं पूजा में साक्षात् की गईं वह सभी स्तोत्र पाठ स्तुतिके माध्यम से मानसिक की जाती हैं। अनन्तर मन्त्रजप के माध्यम से मन में मन्त्र और मन्त्र में मन के द्वारा अंतरंग एवं बहिरंग योग का समावेश होता है। पूजा के तृतीय अंग जप में अभ्यस्त होने के उपरांत चतुर्थ अंग ध्यान योग का अभ्यास करते हुये सर्वोत्कृष्ट और पूजा का अंतिम अंग लय योग की प्राप्ति में पूजा विधि का क्रमशः अभ्यास के साथ योग का समन्वय अतीव महत्वपूर्ण है। |
− | पूजा के विविध साधनों- स्तुति, प्रार्थना, मन्त्रजप, तप, स्वाध्याय, कथा, कीर्तन, यज्ञ, मनन, चिन्तन आदि से मानव में जो भी अभाव अनुभव करता है, उसको प्राप्त कर लेता है।<ref>अर्चना सिंह, प्राचीन भारत में शक्ति पूजा,(शोध गंगा) सन् २००७, वी०बी०एस० पूर्वाञ्चल विश्वविद्यालय, अध्याय- १, (पृ०१२)।http://hdl.handle.net/10603/180127 </ref> | |
− | जिस प्रकार से योग शास्त्र में यम-नियमादि अंगों का यथाविधि अभ्यास करने के पश्चात् ध्यान का अभ्यास किया जाता है एवं ध्यान की अन्तिम अवस्था को ही समाधि कहते हैं। उसी प्रकार पूजा विधि में लय अवस्था के पूर्व अर्चन, स्तुति, जप और ध्यान का निरन्तन धारावाहिक चिन्तन किया जाता है।<blockquote>पूजा कोटि समं स्तोत्रं, स्तोत्र कोटि समो जपः। जप कोटि समं ध्यानं, ध्यान कोटि समो लयः॥</blockquote> | |
| + | पूजा संस्कृत भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ है सम्मान, श्रद्धा, आराधना और उपासना आदि। ईश्वर की सेवा करने की भेंट, प्रेम से और बिना उसके प्रति अपनी भक्ति की घोषणा करें ऐसा करने से आपको आंतरिक शांति और सुख की भावना प्राप्त होती है। ईश्वर की पूजा करते समय मन में एकाग्रता और लक्ष्य के प्रति ध्यान हुआ करता है जिससे चिंतन के द्वारा चिंतित लक्ष्य की प्राप्ति सुलभ हो जाती है एवं मन और आत्मा में शांति की प्राति होती है। |