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कफ जन्य रोग चन्द्रमा और शुक्र के प्रभाव से होते हैं। चन्द्र और शुक्र दोनों ग्रहों की प्रकृति शीतल है। शीतव्याधि से २० प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। जिसकी चर्चा चिकित्सा शास्त्र में महर्षि चरक ने चरक संहिता के २०वें अध्याय में वर्णित किया है। इन रोगों के भी उपरोग अनेकों हैं। जिसकी चर्चा आयुर्वेद शास्त्र में विस्तार पूर्वक की गयी है। ये व्याधियाँ प्रसंगतः अधोलिखित रूप से यहाँ दी जा रही हैं-
 
कफ जन्य रोग चन्द्रमा और शुक्र के प्रभाव से होते हैं। चन्द्र और शुक्र दोनों ग्रहों की प्रकृति शीतल है। शीतव्याधि से २० प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। जिसकी चर्चा चिकित्सा शास्त्र में महर्षि चरक ने चरक संहिता के २०वें अध्याय में वर्णित किया है। इन रोगों के भी उपरोग अनेकों हैं। जिसकी चर्चा आयुर्वेद शास्त्र में विस्तार पूर्वक की गयी है। ये व्याधियाँ प्रसंगतः अधोलिखित रूप से यहाँ दी जा रही हैं-
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१. तृप्ति, २. तन्द्रा, ३. निद्राधिक्य, ४. स्तैमित्य, ५. गुरुगात्रता, ६. आलस्य, ७. मुखमाधुर्य, ८. मुखस्राव, ९. श्लेष्मोगिरण, १०. मलस्याधिक्य, ११. बलासक, १२. अपचन, १३. हृदयोपलेप, १४. कण्ठोपलेप, १५. धमनीप्रतिचय, १६. गलगण्ड, १७. अतिस्थौल्य, १८. शीताग्निता, १९. उदर्द, २०. श्वेतावगासता (मूत्र, नेत्र का श्वेत होना) ।
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* १. तृप्ति
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* २. तन्द्रा
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* ३. निद्राधिक्य
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* ४. स्तैमित्य
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* ५. गुरुगात्रता
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* ६. आलस्य
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* ७. मुखमाधुर्य
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* ८. मुखस्राव
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* ९. श्लेष्मोगिरण
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* १०. मलस्याधिक्य
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* ११. बलासक
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* १२. अपचन
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* १३. हृदयोपलेप
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* १४. कण्ठोपलेप
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* १५. धमनीप्रतिचय
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* १६. गलगण्ड
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* १७. अतिस्थौल्य
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* १८. शीताग्निता
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* १९. उदर्द
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* २०. श्वेतावगासता (मूत्र, नेत्र का श्वेत होना)।}}
    
इन तथ्यों के आधार पर चिकित्साशास्त्र और ज्योतिष शास्त्र का तादात्म्य सम्बन्ध है । इसीलिये चिकित्सा को ज्योतिष से जोड़कर कार्य किया जाय तो अधिकाधिक लाभ तथा नैरुज्यता प्रदान की जा सकती है । ग्रह और राशियाँ सभी त्रिदोष युक्त हैं । संस्कृत में लिङ्ग भेद प्रसंग में तीन लिङ्गों का वर्णन आया है । १. स्त्री लिङ्ग, २. पुलिङ्ग, ३. नपुंसक लिङ्ग। ग्रहों में भी बुध को नपुंसक कहा गया है । बुध जिस ग्रह के साथ रहता है वह उसी के अनुरूप फल प्रदान करता है । अतः बुध ग्रह के दाय काल में बुध की स्थिति तथा साहचर्य पर विचार कर रोगों के विषय में फलादेश करना चाहिए| वात-पित्त-कफ तीनों में ग्रह साहचर्य के अनुसार गुणदोष का ज्ञान कर बुध ग्रह की स्थिति जानकर फल कहना उचित होगा । बुध को न्यूट्रल कहा गया है । अतः गुण, स्वभाव का भी उसी के आधार पर निरूपण करना चाहिए।
 
इन तथ्यों के आधार पर चिकित्साशास्त्र और ज्योतिष शास्त्र का तादात्म्य सम्बन्ध है । इसीलिये चिकित्सा को ज्योतिष से जोड़कर कार्य किया जाय तो अधिकाधिक लाभ तथा नैरुज्यता प्रदान की जा सकती है । ग्रह और राशियाँ सभी त्रिदोष युक्त हैं । संस्कृत में लिङ्ग भेद प्रसंग में तीन लिङ्गों का वर्णन आया है । १. स्त्री लिङ्ग, २. पुलिङ्ग, ३. नपुंसक लिङ्ग। ग्रहों में भी बुध को नपुंसक कहा गया है । बुध जिस ग्रह के साथ रहता है वह उसी के अनुरूप फल प्रदान करता है । अतः बुध ग्रह के दाय काल में बुध की स्थिति तथा साहचर्य पर विचार कर रोगों के विषय में फलादेश करना चाहिए| वात-पित्त-कफ तीनों में ग्रह साहचर्य के अनुसार गुणदोष का ज्ञान कर बुध ग्रह की स्थिति जानकर फल कहना उचित होगा । बुध को न्यूट्रल कहा गया है । अतः गुण, स्वभाव का भी उसी के आधार पर निरूपण करना चाहिए।
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