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सुधार जारि
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वस्तुतः क्षितिज पर जहां नित्य हमें सूर्योदय होता दिखाई देता है वह पूर्व दिशा तथा जहां नित्य सूर्य अस्त होता दिखाई देता है उसे हम पश्चिम के नाम से जानते हैं। इसमें दिग्ज्ञान की व्यावहारिक उपयोगिता भी दृष्टिगोचर हो रही है। अतः इसी पूर्व व पश्चिम बिन्दु को अच्छे से जानने के लिये हमारे आचार्यों के द्वारा अनेक विधियों का प्रतिपादन किया गया है।  
 
वस्तुतः क्षितिज पर जहां नित्य हमें सूर्योदय होता दिखाई देता है वह पूर्व दिशा तथा जहां नित्य सूर्य अस्त होता दिखाई देता है उसे हम पश्चिम के नाम से जानते हैं। इसमें दिग्ज्ञान की व्यावहारिक उपयोगिता भी दृष्टिगोचर हो रही है। अतः इसी पूर्व व पश्चिम बिन्दु को अच्छे से जानने के लिये हमारे आचार्यों के द्वारा अनेक विधियों का प्रतिपादन किया गया है।  
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==विदिशा निर्णय==
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===विदिशा निर्णय===
 
<blockquote>आग्नेयी पूर्वदिग्ज्ञेया दक्षिणादिक् च नैरृती। वायवी पश्चिम दिक् स्यादैशानी च तथोत्तरा॥</blockquote>अर्थात् अग्निकोण की गणना पूर्वदिशा में, वायव्य कोण की पश्चिम दिशा में, नैरृत्य कोण की दक्षिण दिशा में तथा ईशान कोण की गणना उत्तर दिशा में जानना चाहिये।
 
<blockquote>आग्नेयी पूर्वदिग्ज्ञेया दक्षिणादिक् च नैरृती। वायवी पश्चिम दिक् स्यादैशानी च तथोत्तरा॥</blockquote>अर्थात् अग्निकोण की गणना पूर्वदिशा में, वायव्य कोण की पश्चिम दिशा में, नैरृत्य कोण की दक्षिण दिशा में तथा ईशान कोण की गणना उत्तर दिशा में जानना चाहिये।
 
===दिशा विचार===
 
===दिशा विचार===
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== दिक्साधन की आधुनिक विधि ==
 
== दिक्साधन की आधुनिक विधि ==
वर्तमान में दिक् साधन हेतु प्राचीन विधियों के साथ-साथ कुछ आधुनिक विधियां भी प्रयोग में हैं। वस्तुतः सर्वविदित है कि वर्तमान काल यंत्रप्रधान काल है अतः लगभग हर कार्य यन्त्रों के द्वारा करने का प्रयास हो रहा है।
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वर्तमान में दिक् साधन हेतु प्राचीन विधियों के साथ-साथ कुछ आधुनिक विधियां भी प्रयोग में हैं। वस्तुतः सर्वविदित है कि वर्तमान काल यंत्रप्रधान काल है अतः लगभग हर कार्य यन्त्रों के द्वारा करने का प्रयास हो रहा है। इसलिये यह स्वाभाविक है कि दिक्साधन हेतु भी यंत्रों का सहारा लिया है। इसलिये वर्तमान काल में प्राचीन विधियों के द्वारा दिक्साधन करने की विविध प्रक्रियाओं से बचकर केवल कुतुबनुमा जिसको कम्पास (Compass) के नाम से जानते हैं, का प्रयोग करते हैं। कम्पास के द्वारा दिक्साधन बहुत सरल तरीके से कर लिया जाता है। इसमें चुम्बक का प्रयोग होता है। अतः उत्तरीध्रुव के पास चुम्बकीय ध्रुव, ऊर्जा से भरपूर एक क्षेत्र विशेष है जिसका सम्पूर्ण पृथ्वी पर प्रभाव पड़ता है। ये उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर सतत चलने वाली चुम्बकीय तरंगे हैं जो मानव मन मस्तिष्क व समस्त शरीर तथा जीव जगत पर अपना प्रभाव डालती है। इसी आधार पर दिक्सूचक यन्त्र का आविष्कार किया गया था।
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इस यन्त्र द्वारा हम सरलता से उत्तर दिशा का पता कर सकते हैं। हमें यदि एक दिशा का पता लग जाता है तो हम बाकी अन्य दिशाओं का भी पता लगा सकते हैं। जैसे उत्तर दिशा का पता लगते ही हम उत्तराभिमुख होकर खडे होगे तो उत्तर से ९०॰ अंश दायीं तरफ पूर्व व ९०॰ अंश बायीं तरफ पश्चिम हो जाएगी तथा उत्तर से ठीक १८०॰ अंश दूरी पर दक्षिण दिशा आयेगी। इस प्रकार हम चारों दिशाओं का ज्ञान कम्पास द्वारा कर सकते हैं।
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वस्तुतः इस चुम्बकीय दिक्सूचक यन्त्र का आधार पृथ्वी का घूर्णन है क्योंकि पृथ्वी के घूर्णन से एक प्रकार का चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। यह चुम्बकीय क्षेत्र उत्तर से दक्षिण की तरफ सदा प्रवाहित रहता है। इसलिये हम उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी ध्रुव के नाम से इस चुम्बकीय ऊर्जा क्षेत्र को समझते आ रहे हैं परन्तु अभी नई शोध से पता चला है कि ये दोनों चुम्बकीय ऊर्जा क्षेत्र भी स्थिर नहीं है तथा लगभग ४० से ५० किलोमीटर की गति से प्रतिवर्ष खिसक रहा है, अतः दिक्सूचक यन्त्र से गलती होना भी स्वाभाविक हैं। अतः यह यन्त्र आधुनिक तो  है परन्तु इससे दिक्साधन करने में दोष आ सकता है अतः यह यन्त्र आधुनिक तो है परन्तु इससे दिक्साधन करने में दोष आ सकता है अतः हमारी प्राचीन शास्त्रीय विधियों का प्रयोग करते हुए हम अगर दिक्साधन करते हैं तो सही रहेगा क्योंकि इन पद्धतियों में शंकु की छाया से दिशा ज्ञान किया जाता है। दोनों विधियों से किया गया दिक्साधन उपयुक्त और सटीक होगा।
    
== प्राचीन व आधुनिक दिक्साधन विधियों में अन्तर ==
 
== प्राचीन व आधुनिक दिक्साधन विधियों में अन्तर ==
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