दिक्साधन की अनेक विधियों का अध्ययन करके यह पाया है कि मानव व्यवहार हेतु दिशाओं का ज्ञान होना परमावश्यक है। प्राचीन काल से ही दिशाओं के साधन व उनके स्वरूप को समझने के लिए इनका सटीक ज्ञान प्रमुखतः सूर्य के माध्यम से ही किया जाता रहा है। जहां एक तरफ शंकुच्छाया के माध्यम से दिशाओं का प्रतिपादन एकदम वैज्ञानिक है। वहीं वर्तमान काल के वैज्ञानिक युग में दिशाओं के परिज्ञान हेतु मात्र दिक्सूचक यन्त्र का प्रयोग किया जाता है। जो कभी-कभी पूर्णतया शुद्ध परिणाम नहीं देते हैं। अतः हम निष्कर्ष के रूप में कह सकते हैं कि दिक्ज्ञान के लिये हमारी शास्त्रीय प्राचीन विधियां अधिक उपयुक्त एवं तर्कसंगत हैं। | दिक्साधन की अनेक विधियों का अध्ययन करके यह पाया है कि मानव व्यवहार हेतु दिशाओं का ज्ञान होना परमावश्यक है। प्राचीन काल से ही दिशाओं के साधन व उनके स्वरूप को समझने के लिए इनका सटीक ज्ञान प्रमुखतः सूर्य के माध्यम से ही किया जाता रहा है। जहां एक तरफ शंकुच्छाया के माध्यम से दिशाओं का प्रतिपादन एकदम वैज्ञानिक है। वहीं वर्तमान काल के वैज्ञानिक युग में दिशाओं के परिज्ञान हेतु मात्र दिक्सूचक यन्त्र का प्रयोग किया जाता है। जो कभी-कभी पूर्णतया शुद्ध परिणाम नहीं देते हैं। अतः हम निष्कर्ष के रूप में कह सकते हैं कि दिक्ज्ञान के लिये हमारी शास्त्रीय प्राचीन विधियां अधिक उपयुक्त एवं तर्कसंगत हैं। |