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- दोनों दृष्टियों में सामंजस्य बिठाने के क्या मार्ग हैं ?
 
- दोनों दृष्टियों में सामंजस्य बिठाने के क्या मार्ग हैं ?
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आत्मतत्त्व, परमात्मतत्त्त और आध्यात्मिकता को समझना अध्ययन करने की आधारभूमि है । वर्तमान प्रणाली ऐसी है कि हम अध्यात्म और आध्यात्मिकता को दार्शनिक रूप में ही समझते हैं, योग, उपासना, पूजा, मोक्ष आदि के साथ उसे जोडते हैं, अन्य शास्त्रों और विद्याओं के साथ समान स्तर पर रखकर अध्यात्मविद्या या अध्यात्मशास्र का अध्ययन करते हैं। वास्तव में भारतीयता और आध्यात्मिकता पर्यायी संज्ञायें बनती हैं । आध्यात्मिकता सभी प्रकार के अध्ययन और विमर्श का आधार बनने से ही भारतीय बन सकती हैं। अतः इस विषय को स्वतंत्र अध्ययन का विषय बनाना चाहिये ।
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आत्मतत्त्व, परमात्मतत्त्त और आध्यात्मिकता को समझना अध्ययन करने की आधारभूमि है । वर्तमान प्रणाली ऐसी है कि हम अध्यात्म और आध्यात्मिकता को दार्शनिक रूप में ही समझते हैं, योग, उपासना, पूजा, मोक्ष आदि के साथ उसे जोडते हैं, अन्य शास्त्रों और विद्याओं के साथ समान स्तर पर रखकर अध्यात्मविद्या या अध्यात्मशास्त्र का अध्ययन करते हैं। वास्तव में भारतीयता और आध्यात्मिकता पर्यायी संज्ञायें बनती हैं । आध्यात्मिकता सभी प्रकार के अध्ययन और विमर्श का आधार बनने से ही भारतीय बन सकती हैं। अतः इस विषय को स्वतंत्र अध्ययन का विषय बनाना चाहिये ।
    
विमर्श के लिये भी हमारे दो क्षेत्र हैं । एक विमर्श है अपनों से, अर्थात्‌ भारतीय जीवनदृष्टि के अनुसार अध्ययन करने वालों के साथ, भारतीय जीवनदृष्टि को आधाररूप में स्वीकार कर चलने वालों के साथ । इसमें हमारी पद्धति
 
विमर्श के लिये भी हमारे दो क्षेत्र हैं । एक विमर्श है अपनों से, अर्थात्‌ भारतीय जीवनदृष्टि के अनुसार अध्ययन करने वालों के साथ, भारतीय जीवनदृष्टि को आधाररूप में स्वीकार कर चलने वालों के साथ । इसमें हमारी पद्धति

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