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==== मनुष्य शरीर विशेष है ====
 
==== मनुष्य शरीर विशेष है ====
भगवानने मनुष्य को शरीर दिया है । मनुष्य की तरह अन्य सभी प्राणियों को भी शरीर दिया है परन्तु मनुष्य और अन्य प्राणियों में बहुत बडा अन्तर है। मनुष्य एकमेकाद्वितीय ऐसा विशिष्ट प्राणी है । इसलिये मनुष्य के शरीर का भी विशेष विचार करना चाहिये । कुछ बिन्दु इस प्रकार हैं....
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भगवान ने मनुष्य को शरीर दिया है । मनुष्य की तरह अन्य सभी प्राणियों को भी शरीर दिया है परन्तु मनुष्य और अन्य प्राणियों में बहुत बडा अन्तर है। मनुष्य एकमेकाद्वितीय ऐसा विशिष्ट प्राणी है । इसलिये मनुष्य के शरीर का भी विशेष विचार करना चाहिये । कुछ बिन्दु इस प्रकार हैं:
 
# मनुष्य के शरीर में और अन्य प्राणियों के शरीर में एक खास अन्तर यह है  कि अन्य सभी प्राणियों का मेरुदण्ड भूमि के समान्तर होता है जबकि मनुष्य का भूमि से समकोण बनाता है । वह सीधा खडा रहता है। मनुष्य के समान पक्षी भी दो पैरों पर टिकते है परन्तु उनका मेरुदण्ड खडा नहीं होता । मनुष्य का मेरुदण्ड खडा होने से उसके व्यवहार में बहुत बडा अन्तर आता है । शरीर के सारे तन्त्र अलग ही पद्धति से काम करते हैं ।
 
# मनुष्य के शरीर में और अन्य प्राणियों के शरीर में एक खास अन्तर यह है  कि अन्य सभी प्राणियों का मेरुदण्ड भूमि के समान्तर होता है जबकि मनुष्य का भूमि से समकोण बनाता है । वह सीधा खडा रहता है। मनुष्य के समान पक्षी भी दो पैरों पर टिकते है परन्तु उनका मेरुदण्ड खडा नहीं होता । मनुष्य का मेरुदण्ड खडा होने से उसके व्यवहार में बहुत बडा अन्तर आता है । शरीर के सारे तन्त्र अलग ही पद्धति से काम करते हैं ।
 
# मनुष्य का शरीर एक अजब यंत्र है विश्व में मनुष्य ने अनेक प्रकार के यंत्र बनाये है। परन्तु मनुष्य के शरीर की तुलना कर सके ऐसा एक भी यंत्र नहीं बनाया जा सका है ।
 
# मनुष्य का शरीर एक अजब यंत्र है विश्व में मनुष्य ने अनेक प्रकार के यंत्र बनाये है। परन्तु मनुष्य के शरीर की तुलना कर सके ऐसा एक भी यंत्र नहीं बनाया जा सका है ।
# मनुष्य को सक्रिय मन, बुद्धि और अहंकार मिले हैं । इच्छाशक्ति, भावनाशक्ति, विचारशक्ति, विवेकशक्ति, निर्णयशक्ति, संस्कारशक्ति आदि इनकी शक्तियाँ हैं । अन्य किसी भी प्राणी में इनमें से एक भी शक्ति नहीं है । मनुष्य के इन सभी अंगों की शक्तियों को प्रकट होने के लिये शरीर ही साधन के रूप में काम में आता है । शरीर के बिना मन अपनी इच्छाओं या विचारों को, बुद्धि अपनी कल्पना या निर्माणशीलता को, अहंकार अपने कर्तृत्व को मूर्त स्वरूप नहीं दे सकते । ये स्वयं मूर्तरूप धारी नहीं हैं इसलिये इनकी शक्तियाँ भी स्वयं मूर्त नहीं हैं । वे शरीर के माध्यम से ही मूर्त रूप धारण कर सकती हैं । इसलिये शरीर को साधन कहा गया है, यंत्र कहा गया हैं ।
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# मनुष्य को सक्रिय मन, बुद्धि और अहंकार मिले हैं । इच्छाशक्ति, भावनाशक्ति, विचारशक्ति, विवेकशक्ति, निर्णयशक्ति, संस्कारशक्ति आदि इनकी शक्तियाँ हैं । अन्य किसी भी प्राणी में इनमें से एक भी शक्ति नहीं है । मनुष्य के इन सभी अंगों की शक्तियों को प्रकट होने के लिये शरीर ही साधन के रूप में काम में आता है । शरीर के बिना मन अपनी इच्छाओं या विचारों को, बुद्धि अपनी कल्पना या निर्माणशीलता को, अहंकार अपने कर्तृत्व को मूर्त स्वरूप नहीं दे सकते । ये स्वयं मूर्तरूप धारी नहीं हैं इसलिये इनकी शक्तियाँ भी स्वयं मूर्त नहीं हैं । वे शरीर के माध्यम से ही मूर्त रूप धारण कर सकती हैं। इसलिये शरीर को साधन कहा गया है, यंत्र कहा गया हैं ।
 
# इन सभी की शक्तियों को मूर्त रूप देने के लिये शरीर को प्राण से युक्त होना होता है । प्राण ही शरीर की उर्जा अर्थात्‌ कार्यशक्ति है ।  इस कारण से शरीर रूपी यंत्र मनुष्य की अमूल्य सम्पत्ति है। इस सम्पत्ति को प्राप्त करना, उसका रक्षण करना, उसकी शक्ति का संवर्धन करना और उस शक्ति का समुचित उपयोग करना हम सब का परम कर्तव्य है । शिक्षा को इस सम्पत्ति का रक्षण और वर्धन करने की चिन्ता करनी चाहिये ।
 
# इन सभी की शक्तियों को मूर्त रूप देने के लिये शरीर को प्राण से युक्त होना होता है । प्राण ही शरीर की उर्जा अर्थात्‌ कार्यशक्ति है ।  इस कारण से शरीर रूपी यंत्र मनुष्य की अमूल्य सम्पत्ति है। इस सम्पत्ति को प्राप्त करना, उसका रक्षण करना, उसकी शक्ति का संवर्धन करना और उस शक्ति का समुचित उपयोग करना हम सब का परम कर्तव्य है । शिक्षा को इस सम्पत्ति का रक्षण और वर्धन करने की चिन्ता करनी चाहिये ।
 
# शरीर सम्पत्ति को लेकर आज अनेक समस्‍यायें निर्माण हुई हैं। इनके विषय में जाग्रत होकर गम्भीरतापूर्वक विचार करना चाहिये ।  
 
# शरीर सम्पत्ति को लेकर आज अनेक समस्‍यायें निर्माण हुई हैं। इनके विषय में जाग्रत होकर गम्भीरतापूर्वक विचार करना चाहिये ।  
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# छोटी आयु में ही दाँत दुर्बल हो जाते हैं । हम लोगों ने दाँत से सुपारी तोडने के किस्से सुने हैं । अब दाँत से छीलना, गन्ना चूसना या छुहारा तोडकर खाना असम्भव सा है । चॉकलेट खाने से मेरे दाँत सड गये हैं ऐसा कहने में बच्चों को संकोच नहीं लगता । युवा होने तक दाँत निकालकर नकली दाँत पहनने की नौबत आ जाती है ।
 
# छोटी आयु में ही दाँत दुर्बल हो जाते हैं । हम लोगों ने दाँत से सुपारी तोडने के किस्से सुने हैं । अब दाँत से छीलना, गन्ना चूसना या छुहारा तोडकर खाना असम्भव सा है । चॉकलेट खाने से मेरे दाँत सड गये हैं ऐसा कहने में बच्चों को संकोच नहीं लगता । युवा होने तक दाँत निकालकर नकली दाँत पहनने की नौबत आ जाती है ।
 
# वजन कम होना, पाचनशक्ति दुर्बल होना, भूख कम होना, कम खाना आदि की मात्रा बढ गई है । पाचन की बीमारियाँ भी बढी है । इसके साथ किशोरवयीन लड़कियों की पतले रहने हेतु डायेटिंग करने और कम खाने का पागलपन बढ गया है ।
 
# वजन कम होना, पाचनशक्ति दुर्बल होना, भूख कम होना, कम खाना आदि की मात्रा बढ गई है । पाचन की बीमारियाँ भी बढी है । इसके साथ किशोरवयीन लड़कियों की पतले रहने हेतु डायेटिंग करने और कम खाने का पागलपन बढ गया है ।
# ग्यारह या बारह वर्ष के छात्र मुट्ठी में नरम वस्तु को भी दबा नहीं सकते, नारियेल पटककर तोड नहीं सकते, पत्थर से चटनी पीस नहीं सकते, आटा गूँध नहीं सकते । उनके हाथों में इतना दम ही नहीं है ।  
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# ग्यारह या बारह वर्ष के छात्र मुट्ठी में नरम वस्तु को भी दबा नहीं सकते, नारियल पटककर तोड नहीं सकते, पत्थर से चटनी पीस नहीं सकते, आटा गूँध नहीं सकते । उनके हाथों में इतना दम ही नहीं होता है ।  
 
# चलने की, भागने की, काम करने की क्षमता बहुत कम होती है । हमने उदयपुर के संग्रहालय में महाराणा प्रताप का भाला देखा है जो ४० सेर वजन का था । वे इस भाले को फैंक सकते थे । परन्तु आज के युवकों में ऐसी ताकत नहीं है । दो पीढ़ी पूर्व के विद्यार्थी गाँव से नगर में रोज पैदल चलकर विद्यालय आते थे जो पाँच से दस किलोमीटर दूरी पर होता था । आज के विद्यार्थी एक किलोमीटर भी नहीं चलते । चलने की मानसिकता भी नहीं होती और क्षमता भी नहीं ।
 
# चलने की, भागने की, काम करने की क्षमता बहुत कम होती है । हमने उदयपुर के संग्रहालय में महाराणा प्रताप का भाला देखा है जो ४० सेर वजन का था । वे इस भाले को फैंक सकते थे । परन्तु आज के युवकों में ऐसी ताकत नहीं है । दो पीढ़ी पूर्व के विद्यार्थी गाँव से नगर में रोज पैदल चलकर विद्यालय आते थे जो पाँच से दस किलोमीटर दूरी पर होता था । आज के विद्यार्थी एक किलोमीटर भी नहीं चलते । चलने की मानसिकता भी नहीं होती और क्षमता भी नहीं ।
बच्चे या तो दुबले पतले होते हैं या नहीं खाने के पदार्थ खाकर मोटे हो जाते हैं । दोनों ही अस्वास्थ्य की निशानी है । छोटी आयु में डायाबीटीज भी लग जाती है ।
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बच्चे या तो दुबले पतले होते हैं या नहीं खाने के पदार्थ खाकर मोटे हो जाते हैं । दोनों ही अस्वास्थ्य की निशानी है । छोटी आयु में मधुमेह भी लग जाती है ।
    
अर्थात्‌ शरीर में बल नहीं और स्वास्थ्य भी नहीं । ये दोनों चिन्ता के ही विषय हैं । यदि शरीर ही ठीक नहीं रहा तो वे जीवन में कौन सा बडा काम कर सकेंगे ? या सुख का अनुभव भी कैसे करेंगे ?
 
अर्थात्‌ शरीर में बल नहीं और स्वास्थ्य भी नहीं । ये दोनों चिन्ता के ही विषय हैं । यदि शरीर ही ठीक नहीं रहा तो वे जीवन में कौन सा बडा काम कर सकेंगे ? या सुख का अनुभव भी कैसे करेंगे ?

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