Changes

Jump to navigation Jump to search
→‎आदर्श विद्यार्थी: लेख संपादित किया
Line 10: Line 10:  
श्रीमदू भगवदू गीता में कहा है<ref>श्रीमद भगवद गीता 4.34  </ref> -<blockquote>तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया ।। 4.34 ।।</blockquote><blockquote>अर्थात्‌ ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रणिपात करना चाहिये, प्रश्न पूछने चाहिये और सेवा करनी चाहिये ।</blockquote>प्रणिपात करना चाहिये अर्थात्‌ विनयशीलता होनी चाहिये । विनम्रता होनी चाहिये । वेशभूषा, भाषा, हलचल और व्यवहार में विनम्रता प्रकट होती है । विनम्र होने से ही ज्ञान ग्रहण किया जा सकता है। परिप्रश्न का अर्थ है उत्सुकता, अर्थात्‌ जानने के लिए किए गए प्रश्न । भारतीय परंपरा में जिज्ञासा अर्थात्‌ जानने की इच्छा और उसके लिये पूछे गये प्रश्न ही ज्ञानसरिता के प्रवाह का उद्गम है । साथ ही साथ सेवा भी ज्ञानप्राप्ति के लिए आवश्यक है । ज्ञान देने वाले के प्रति नम्रता के साथ साथ उसकी सक्रिय सेवा भी जरुरी है ।
 
श्रीमदू भगवदू गीता में कहा है<ref>श्रीमद भगवद गीता 4.34  </ref> -<blockquote>तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया ।। 4.34 ।।</blockquote><blockquote>अर्थात्‌ ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रणिपात करना चाहिये, प्रश्न पूछने चाहिये और सेवा करनी चाहिये ।</blockquote>प्रणिपात करना चाहिये अर्थात्‌ विनयशीलता होनी चाहिये । विनम्रता होनी चाहिये । वेशभूषा, भाषा, हलचल और व्यवहार में विनम्रता प्रकट होती है । विनम्र होने से ही ज्ञान ग्रहण किया जा सकता है। परिप्रश्न का अर्थ है उत्सुकता, अर्थात्‌ जानने के लिए किए गए प्रश्न । भारतीय परंपरा में जिज्ञासा अर्थात्‌ जानने की इच्छा और उसके लिये पूछे गये प्रश्न ही ज्ञानसरिता के प्रवाह का उद्गम है । साथ ही साथ सेवा भी ज्ञानप्राप्ति के लिए आवश्यक है । ज्ञान देने वाले के प्रति नम्रता के साथ साथ उसकी सक्रिय सेवा भी जरुरी है ।
   −
नम्रता मन का भाव है । जिज्ञासा बुद्धि का गुण है और सेवा शरीर का कार्य है । इस प्रकार विद्यार्थी शरीर, मन, बुद्धि तीनों से ही ज्ञान प्राप्त करने के लिए लायक बनता है । विद्यार्थी के व्यवहार के लिए एक सुभाषित है {{Citation needed}}-
+
नम्रता मन का भाव है । जिज्ञासा बुद्धि का गुण है और सेवा शरीर का कार्य है । इस प्रकार विद्यार्थी शरीर, मन, बुद्धि तीनों से ही ज्ञान प्राप्त करने के लिए लायक बनता है । विद्यार्थी के व्यवहार के लिए एक सुभाषित है {{Citation needed}}-<blockquote>काकचेष्टा बको ध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च ।</blockquote><blockquote>अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणम्‌ ।।</blockquote><blockquote>अर्थात्‌ ज्ञानप्राप्ति की पात्रता रखनेवाले विद्यार्थी के पाँच लक्षण हैं -</blockquote>
 
  −
'''काकचेष्टा बको ध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च ।'''
  −
 
  −
'''अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणम्‌ ।।'''
  −
 
  −
अर्थात्‌ ज्ञानप्राप्ति की पात्रता रखनेवाले विद्यार्थी के
  −
 
  −
पाँच लक्षण हैं -
   
# वह कौए की तरह तत्पर होता है । उसकी दृष्टि से कुछ भी छूटता नहीं है ।
 
# वह कौए की तरह तत्पर होता है । उसकी दृष्टि से कुछ भी छूटता नहीं है ।
# वह मछली पकडने के लिए एकाग्र बगुले के समान एकाग्रता का धनी है ।
+
# वह मछली पकडने के लिए एकाग्र बगुले के समान एकाग्रता का धनी होता है ।
# उसकी निद्रा धान जैसी है अर्थात्‌ जरा सी आहट में वह जग जाता है । वह कम खाने वाला होता है ।
+
# उसकी निद्रा श्वान जैसी होती है अर्थात्‌ जरा सी आहट में वह जग जाता है ।  
 
# वह कम खाने वाला होता है।  
 
# वह कम खाने वाला होता है।  
 
# वह घर की मोहमाया में फँसता नहीं है ।
 
# वह घर की मोहमाया में फँसता नहीं है ।
Line 29: Line 21:  
* नित्य ॐकार उच्चारण , मंत्रपठन, ध्यान, आसन, प्राणायाम आदि का अभ्यास कर प्राणशक्ति बढानी चाहिये और \ और नियंत्रित चाहिये और मन को एकाग्र और नियंत्रित करना चाहिये ।
 
* नित्य ॐकार उच्चारण , मंत्रपठन, ध्यान, आसन, प्राणायाम आदि का अभ्यास कर प्राणशक्ति बढानी चाहिये और \ और नियंत्रित चाहिये और मन को एकाग्र और नियंत्रित करना चाहिये ।
 
* नित्य स्वाध्याय, नित्य सेवा और आदरयुक्त व्यवहार से चित्त को शुद्ध बनाना चाहिये ।  
 
* नित्य स्वाध्याय, नित्य सेवा और आदरयुक्त व्यवहार से चित्त को शुद्ध बनाना चाहिये ।  
इन सब का पालन करने वाले को ही विद्या प्राप्त  होती है और उत्तम फल प्राप्त होता है । आज के समय में भी यदि परिवार और विद्यालयों में विद्यार्थियों में इन गु्णों का आग्रह रखा जाता है और विद्यार्थी को इनमें शिक्षित करने में प्रेरणा, मार्गदर्शन और सहयोग दिया जाता है तो - हमारे विद्यालय सही अर्थ में ज्ञानसाधना केन्द्र बन सकते है  
+
इन सब का पालन करने वाले को ही विद्या प्राप्त  होती है और उत्तम फल प्राप्त होता है । आज के समय में भी यदि परिवार और विद्यालयों में विद्यार्थियों में इन गु्णों का आग्रह रखा जाता है और विद्यार्थी को इनमें शिक्षित करने में प्रेरणा, मार्गदर्शन और सहयोग दिया जाता है तो - हमारे विद्यालय सही अर्थ में ज्ञानसाधना केन्द्र बन सकते है
    
=== विद्यार्थियों की शरीर सम्पदा ===
 
=== विद्यार्थियों की शरीर सम्पदा ===

Navigation menu