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| परीक्षा नहीं है तो क्यों पढ़ाई करनी चाहिये यह प्रश्न स्वाभाविक बन गया है। परीक्षा में पूछा नहीं परीक्षा नहीं है तो क्यों पढ़ाई करनी चाहिये यह प्रश्न स्वाभाविक बन गया है। परीक्षा में पूछा नहीं जानेवाला है तो पढने की कोई आवश्यकता नहीं । गीता, ज्ञानेश्वरी, नरसिंह महेता, तुलसीदास, कबीर, मीरा या सूरदास की रचनायें परीक्षा के सन्दर्भ में ही पठनीय हैं, परीक्षा के अनुरूप ही पढ़ाई की जाती हैं, भक्ति या तत्त्वज्ञान का कोई महत्त्व नहीं है, रुचि का तो कोई प्रश्न ही नहीं ऐसी शिक्षकों की भी मानसिकता होती हैं । दस अंकों की ज्ञानेश्वरी, पचास अंकों की गीता, एक प्रश्नपत्र के कालीदास या भवभूति होते हैं । परीक्षा के परे उनका कोई महत्त्व नहीं । | | परीक्षा नहीं है तो क्यों पढ़ाई करनी चाहिये यह प्रश्न स्वाभाविक बन गया है। परीक्षा में पूछा नहीं परीक्षा नहीं है तो क्यों पढ़ाई करनी चाहिये यह प्रश्न स्वाभाविक बन गया है। परीक्षा में पूछा नहीं जानेवाला है तो पढने की कोई आवश्यकता नहीं । गीता, ज्ञानेश्वरी, नरसिंह महेता, तुलसीदास, कबीर, मीरा या सूरदास की रचनायें परीक्षा के सन्दर्भ में ही पठनीय हैं, परीक्षा के अनुरूप ही पढ़ाई की जाती हैं, भक्ति या तत्त्वज्ञान का कोई महत्त्व नहीं है, रुचि का तो कोई प्रश्न ही नहीं ऐसी शिक्षकों की भी मानसिकता होती हैं । दस अंकों की ज्ञानेश्वरी, पचास अंकों की गीता, एक प्रश्नपत्र के कालीदास या भवभूति होते हैं । परीक्षा के परे उनका कोई महत्त्व नहीं । |
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− | परास्नातक कक्षा में प्रथम वर्ष में उत्तीर्ण विद्यार्थी भी आगे नौकरी के लिये अथवा बढोतरी के लिये अनिवार्य नहीं है तो पीएचडी क्यों करना ऐसा सोचता | + | परास्नातक कक्षा में प्रथम वर्ष में उत्तीर्ण विद्यार्थी भी आगे नौकरी के लिये अथवा बढोतरी के लिये अनिवार्य नहीं है तो पीएचडी क्यों करना ऐसा सोचता है। |
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− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | उनके आदर्श चरित्र नटनटियाँ अथवा... परन्तु अहमदाबाद की ये दो युवतियाँ सबसे बेखबर अपनी
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− | क्रिकेटर होते हैं, वीरपुरुष विद्वान या तपस्वी नहीं । ही बातों में मस्त थीं । उनकी बातें होटेल, फैशन और
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− | २. जैसे जैसे अध्ययनकाल समाप्ति की ओर बढता है... बॉयफ्रेष्ड तक ही सीमित थीं । न उन्हें नीचे वालों की सुध
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− | अपने भावी जीवन की चिन्ता उन्हें घेरने लगती है।. थी, न कोलाहल की, न बाबरी की न राममन्दिर की ।
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− | अधथर्जिन हेतु नौकरी और गृहस्थी के लिये लडकी कैसे ये दोनों मेडिकल कोलेज के अन्तिम वर्ष में अध्ययन
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− | मिलेगी इसकी उलझन बढ़ती है । साथ ही मजे करने की. कर रही थीं, एक वर्ष के बाद डॉक्टर बनने वाली थी, समाज
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− | वृत्ति तो निरंकुश रहती ही है । इस मामले में लड़कियों की... के बौद्धिक वर्ग की सदस्य बननेवाली थी, किसी कार्यक्रम में
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− | अपेक्षा लड़कों की स्थिति अधिक विकट है । लड़के नौकरी . मंच पर अतिथि विशेष या अध्यक्ष बनने वाली थीं । समाज
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− | और विवाह दोनों के लिये इच्छुक होते हैं लड़कियाँ नौकरी के शिक्षित वर्ग का यह प्रातिनिधिक उदाहरण है ।
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− | के लिये तो इच्छुक रहती हैं परन्तु विवाह के लिये नहीं ।
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− | उन्हें विवाह से भी नौकरी का आकर्षण और महत्त्व अधिक
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− | ==== मानसिकता के जिम्मेदार कारण ====
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− | होता है । जितना अधिक पढ़ती हैं और अधिक कमाई युवकयुवतियों की यह मानसिकता अचानक नहीं बन
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− | करती है उतनी विवाह की आयु बढती जाती है और जाती, बचपन से ही विकसित होती है। विद्यालय की
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− | विवाह करने की, बालक को जन्म देने की इच्छा कम होती. व्यवस्था, अध्यापक और मातापिता इसके लिये जिम्मेदार
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− | जाती है । लड़कियों का संगोपन और शिक्षा ही इस प्रकार. होते हैं । कुछ बातें इस प्रकार हैं
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− | से होती है कि आर्थिक स्वतंत्रता, करियर, घरगृहस्थी के १, छोटी आयु से ही पढाई करना अथर्जिन के लिये
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− | प्रति अरुचि, घर के कामों के प्रति हेयता का भाव निर्माण होता है, पढ़ाई करना आनन्ददायक नहीं होता,
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− | होता है । लड़कियों की इस मानसिकता का समाज की अनिवार्य नहीं है तो कोई नहीं करेगा ऐसी बातें की
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− | स्थिरता और व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव होता है । जाती हैं ।
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− | जो विद्यार्थी गम्भीर अध्ययन करते हैं उनमें भी क्यों
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− | ज्ञाननिष्ठा कम और अर्थनिष्ठा ही अधिक होती है । अपने २... परीक्षा पका नह है तो क्यों गा की चाह पा मन
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− | विषय का प्रेम, ज्ञान के क्षेत्र में योगदान, अपने ज्ञान का जानेवाला * = an की कोई क्षा में पूछा नहीं
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− | अपने या समाज के जीवन विकास में उपयोग आदि बातें जानेवाला है नरसिंह ई आवश्यकता नहीं ।
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− | गीता, ज्ञानेश्वरी, नरसिंह महेता, तुलसीदास, कबीर,
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− | कम और अपना अर्थलाभ अधिक प्रेरक तत्त्व होता है । मीरा pnd aia sant
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− | ३. एक स्थिति का स्मरण आता है । घटना कुछ रा या सूरदास की रचनायें परीक्षा के सन्दर्भ में ही
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− | पुरानी है । दिल्ली से अहमदाबाद आनेवाली रेल में एक पठनीय हैं, परीक्षा के अनुरूप ही पढ़ाई की जाती हैं,
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− | डिब्बे में ऊपर की बर्थ पर दो युवतियाँ बैठी थीं । चौबीस भक्ति या तत्त्वज्ञान का कोई महत्व नहीं है, रुचि का
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− | घण्टे के सफर में सोने के लिये आठ घण्टे, खाने पीने का तो कोई प्रश्न ही नहीं ऐसी शिक्षकों की भी मानसिकता
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− | होती हैं । दस अंकों की ज्ञानेश्वरी, पचास अंकों की
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− | सामान लेने के लिये एकाध घण्टा और शौचालय में जाने i
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− | गीता, एक प्रश्नपत्र के कालीदास या भवभूति होते हैं ।
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− | हेतु एकाध घण्टा नीचे उतरीं । शेष समय वे एकदूसरी के
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− | साथ बातें ही कर रही थीं । नीचे लोग बातें कर रहे थे । परीक्षा के परे उनका कोई महत्त्व नहीं ।
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− | १९९२ का वर्ष था और बाबरी ढाँचा गिरकर एकाध सप्ताह परास्नातक कक्षा में प्रथम वर्ष में उत्तीर्ण विद्यार्थी
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− | ही बीता था । रेल में अनपढ़, ग्रामीण, थोडे पढे लिखे, भी आगे नौकरी के लिये अथवा बढोतरी के लिये
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− | महिला पुरुष सब बाबरी ध्वंस और राममन्दिर की ही चर्चा अनिवार्य नहीं है तो पीएचडी क्यों करना ऐसा सोचता
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− | कर रहे थे, वातावरण में गर्मी, जोश, उत्तेजना आदि सब थे है।
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| ३. परीक्षा में अंक प्राप्त करने हेतु रटना, लिखना, याद करना ही अध्ययन है ऐसा विद्यार्थियों का मानस माता-पिता और शिक्षकों के कारण बनता है । वे ही उन्हें ऐसी बातें समझाते हैं । अध्ययन की अत्यन्त यांत्रिक पद्धति रुचि, कल्पनाशक्ति, सूृजनशीलता आदि का नाश कर देती है । इसके चलते विद्यार्थियों में ज्ञान, ज्ञान की पवित्रता, विद्या की देवी सरस्वती, विद्या का लक्ष्य आदि बातें कभी आती ही नहीं है । ज्ञान के आनन्द का अनुभव ही उन्हें होता नहीं है । शिक्षित लोगों के समाज के प्रति, देश के प्रति कोई कर्तव्य होते हैं ऐसा उन्हें सिखाया ही नहीं जाता । परिणाम स्वरूप अपने ही लाभ का, अपने ही अधिकार का मानस बनता जाता है । | | ३. परीक्षा में अंक प्राप्त करने हेतु रटना, लिखना, याद करना ही अध्ययन है ऐसा विद्यार्थियों का मानस माता-पिता और शिक्षकों के कारण बनता है । वे ही उन्हें ऐसी बातें समझाते हैं । अध्ययन की अत्यन्त यांत्रिक पद्धति रुचि, कल्पनाशक्ति, सूृजनशीलता आदि का नाश कर देती है । इसके चलते विद्यार्थियों में ज्ञान, ज्ञान की पवित्रता, विद्या की देवी सरस्वती, विद्या का लक्ष्य आदि बातें कभी आती ही नहीं है । ज्ञान के आनन्द का अनुभव ही उन्हें होता नहीं है । शिक्षित लोगों के समाज के प्रति, देश के प्रति कोई कर्तव्य होते हैं ऐसा उन्हें सिखाया ही नहीं जाता । परिणाम स्वरूप अपने ही लाभ का, अपने ही अधिकार का मानस बनता जाता है । |
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| इस दृष्टि से निम्नलिखित प्रयास करने की आवश्यकता है... | | इस दृष्टि से निम्नलिखित प्रयास करने की आवश्यकता है... |
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− | १.विद्यालय में सभी स्तरों पर स्पर्धा निषिद्ध कर देनी चाहिये । स्पर्धा से संघर्ष, संघर्ष से हिंसा और हिंसा से विनाश की ओर गति होती है यह सर्वत्र लागू होने वाला सूत्र है ।
| + | विद्यालय में सभी स्तरों पर स्पर्धा निषिद्ध कर देनी चाहिये । स्पर्धा से संघर्ष, संघर्ष से हिंसा और हिंसा से विनाश की ओर गति होती है यह सर्वत्र लागू होने वाला सूत्र है । |
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− | २. उसी प्रकार से परीक्षा का महत्त्व अत्यन्त कम कर देना चाहिये । जहाँ अनिवार्य नहीं है वहाँ परीक्षा होनी ही नहीं चाहिये । परीक्षा से शिक्षा को मुक्त कर देने के बाद ही ज्ञान के आनन्द की सम्भावना बनेगी ।
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| + | उसी प्रकार से परीक्षा का महत्त्व अत्यन्त कम कर देना चाहिये । जहाँ अनिवार्य नहीं है वहाँ परीक्षा होनी ही नहीं चाहिये । परीक्षा से शिक्षा को मुक्त कर देने के बाद ही ज्ञान के आनन्द की सम्भावना बनेगी । |
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− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
| + | नीतिमत्ता, विश्वास, श्रद्धा, संस्कार, विनयशीलता, सदाचार आदि का अधिक महत्व प्रस्थापित करना चाहिए। |
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− | नीतिमत्ता, fae, wa, ६... समाज की व्यवस्था में अर्थ का सन्दर्भ ज्ञान के सन्दर्भ
| + | अध्यापन की पद्धति, गृहकार्य का स्वरूप, कार्यक्रमों का स्वरूप भी बदलना चाहिये । |
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− | संस्कार, विनयशीलता, सदाचार आदि का अधिक में बदलना चाहिये । तभी शिक्षा की स्थिति बदल
| + | शिक्षक स्वयं परिश्रम, नीतिमत्ता, सदाचार आदि के मामले में प्रेरक बन सकते हैं किंबहुना वे ही प्रेरक हैं । उनमें होगा तो विद्यार्थियों में आयेगा । |
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− | महत्त्व प्रस्थापित करना चाहिये । सकती है ।
| + | समाज की व्यवस्था में अर्थ का सन्दर्भ ज्ञान के सन्दर्भ में बदलना चाहिए। तभी शिक्षा की स्थिति बदल सकती है। |
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− | ¥. अध्यापन की पद्धति, गृहकार्य का स्वरूप, कार्यक्रमों मानसिकता में बदल किये बिना शिक्षा क्षेत्र समाज के
| + | मानसिकता में बदल किये बिना शिक्षा क्षेत्र समाज के लिए कल्याणकारी नहीं हो सकता अतः सभी सम्बंधित लोगों को मिलकर सही मानसिकता बनाने का प्रयास करना चाहिए। |
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− | का स्वरूप भी बदलना चाहिये । लिये कल्याणकारी नहीं हो सकता अतः सभी सम्बन्धित
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− | ५... शिक्षक स्वयं परिश्रम, नीतिमत्ता, सदाचार आदि के. लोगों को मिलकर सही मानसिकता बनाने का प्रयास करना
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− | मामले में प्रेरक बन सकते हैं किंबहुना वे ही प्रेरक. चाहिये ।
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− | हैं । उनमें होगा तो विद्यार्थियों में आयेगा ।
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| === विद्यार्थियों का मन:सन्तुलन === | | === विद्यार्थियों का मन:सन्तुलन === |
− | भय की मानसिकता है । तनाव, निराशा, हताशा, आत्मग्लानि, हीनताग्रन्थि,
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− | सरदर्द, चक्कर आना, चश्मा लगना, पेटदर्द, कब्ज आदि सब
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− | इस भय के ही विकार हैं । पढा हुआ याद नहीं होना,
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− | सिखाया जानेवाला नहीं समझना, सरल बातें भी कठिन
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− | लगना इसका परिणाम है । कुछ भी अच्छा नहीं लगता ।
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− | चौदह पन्द्रह वर्ष की आयु के विद्यार्थी आत्महत्या
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− | करते हैं यह बात अनेक बार सुनने को मिलती है।
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− | मनपसन्द लडकी या लडके से विवाह नहीं हो सकता
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− | इसलिये युवक या युवती आत्महत्या कर लेते हैं । कभी मँदे
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− | मनपसन्द लडकी दूसरे लडके के साथ रिश्ता बनाती है तब... दा उत्तेजना, उदासी अथवा थके माँदे रहना उसके लक्षण
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− | उस लडके की अथवा लडकी की हत्या कर दी जाती है । हैं । महत्त्वाकांक्षा समाप्त हो जाना इसका परिणाम है । यह
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− | अभी कुछ दिनों पूर्व जानने को मिला कि महानगर के एक... सब सह नहीं सकने के कारण या तो व्यसनाधीनता या तो
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− | प्रतिष्ठित विद्यालय के सातवीं कक्षा के विद्यार्थी के बस्ते में... आत्महत्या ही एकमेव मार्ग बचता है ।
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− | पिस्तोल है और वह अपनी माँ को और शिक्षिका को दूसरी ओर शास्त्रों की, बडे बुजुर्गों की, अच्छी
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− | मारना चाहता है । पुस्तकों की सीख होती है कि मनोबल इतना होना चाहिये
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− | यह आत्महत्या की मानसिकता प्रत्यक्ष आत्महत्या से .... कि मुसीबतों के पहाड टूट पडें तो भी हिम्मत नहीं हारना,
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− | अनेक गुना अधिक है । कठिन से कठिन परिस्थिति में भी धैर्य नहीं खोना, कितना
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− | पूर्व प्राथमिक और प्राथमिक की छोटी कक्षाओं के भी नुकसान हो जाय, पलायन नहीं करना, सामना करना
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− | बच्चे भयभीत हैं । गृहकार्य नहीं किया इसलिये शिक्षक और जीतकर दिखाना |
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− | डाटेंगे इसका भय, बस में साथ वाले विद्यार्थी चिढ़ायेंगे परिस्थितियों के दास बनकर नहीं, परिस्थितियों के
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− | इसका भय, नास्ते में केक नहीं ले गया इसलिये सब मजाक... स्वामी बनकर जीना चाहिये ।
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− | उडायेंगे इसका भय, प्रश्न का उत्तर नहीं आया इसका भय । आज सर्वत्र विपरीत वातावरण दिखाई देता है । धैर्य,
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− | बडी कक्षाओं में मित्र हँसेंगे इसका भय, परीक्षा में अच्छे... मनोबल, डटे रहने का साहस युवाओं में भी नहीं दिखाई
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− | अंक नहीं मिलेंगे तो मातापिता नाराज होंगे इसका भय, देता । पलायन करना, समझौते कर लेना, अल्पतामें ही
| + | ==== भय की मानसिकता ==== |
| + | तनाव, निराशा, हताशा, आत्मग्लानि, हीनताग्रन्थि, सरदर्द, चक्कर आना, चश्मा लगना, पेटदर्द, कब्ज आदि सब इस भय के ही विकार हैं । पढा हुआ याद नहीं होना, सिखाया जानेवाला नहीं समझना, सरल बातें भी कठिन लगना इसका परिणाम है । कुछ भी अच्छा नहीं लगता । |
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− | मेडिकल में प्रवेश नहीं मिलेगा इसका भय, मनपसन्द लडकी. सन्तोष मानना सामान्य बात हो गई है । यह अत्यन्त घातक
| + | चौदह पन्द्रह वर्ष की आयु के विद्यार्थी आत्महत्या करते हैं यह बात अनेक बार सुनने को मिलती है। मनपसन्द लडकी या लडके से विवाह नहीं हो सकता इसलिये युवक या युवती आत्महत्या कर लेते हैं । कभी मनपसन्द लडकी दूसरे लडके के साथ रिश्ता बनाती है तब उस लडके की अथवा लडकी की हत्या कर दी जाती है । अभी कुछ दिनों पूर्व जानने को मिला कि महानगर के एक. प्रतिष्ठित विद्यालय के सातवीं कक्षा के विद्यार्थी के बस्ते में पिस्तोल है और वह अपनी माँ को और शिक्षिका को मारना चाहता है । |
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− | होटेल में साथ नहीं आयेगी इसका भय । चारों ओर भय का... लक्षण है। जिसमें मन की शक्ति नहीं है वह कभी भी
| + | यह आत्महत्या की मानसिकता प्रत्यक्ष आत्महत्या से अनेक गुना अधिक है । |
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− | साम्राज्य है । यह सर्वव्यापी भय अनेक रूप धारण करता... अपना विकास नहीं कर सकता । | + | पूर्व प्राथमिक और प्राथमिक की छोटी कक्षाओं के बच्चे भयभीत हैं । गृहकार्य नहीं किया इसलिये शिक्षक डाटेंगे इसका भय, बस में साथ वाले विद्यार्थी चिढ़ायेंगे इसका भय, नास्ते में केक नहीं ले गया इसलिये सब मजाक उडायेंगे इसका भय, प्रश्न का उत्तर नहीं आया इसका भय । बडी कक्षाओं में मित्र हँसेंगे इसका भय, परीक्षा में अच्छे अंक नहीं मिलेंगे तो मातापिता नाराज होंगे इसका भय, मेडिकल में प्रवेश नहीं मिलेगा इसका भय, मनपसन्द लडकी होटेल में साथ नहीं आयेगी इसका भय । चारों ओर भय का.साम्राज्य है । यह सर्वव्यापी भय अनेक रूप धारण करता है। तनाव, निराशा, हताशा, आत्मग्लानि, हीनताग्रंथि, सरदर्द, चक्कर आना, चश्मा लगाना, पेटदर्द, कब्ज़ आदि सब इस भय के ही विकार हैं । पढा हुआ याद नहीं होना, सिखाया जानेवाला नहीं समझना, सरल बातें भी कठिन लगना इसका परिणाम है । कुछ भी अच्छा नहीं लगता । सदा उत्तेजना, उदासी अथवा थके माँदे रहना उसके लक्षण हैं । महत्त्वाकांक्षा समाप्त हो जाना इसका परिणाम है। यह सब सह नहीं सकने के कारण या तो व्यसनाधीनता या तो आत्महत्या ही एकमेव मार्ग बचता है। |
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| + | दूसरी ओर शास्त्रों की, बडे बुजुर्गों की, अच्छी पुस्तकों की सीख होती है कि मनोबल इतना होना चाहिये कि मुसीबतों के पहाड टूट पडें तो भी हिम्मत नहीं हारना, कठिन से कठिन परिस्थिति में भी धैर्य नहीं खोना, कितना भी नुकसान हो जाय, पलायन नहीं करना, सामना करना और जीतकर दिखाना । |
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| + | आज सर्वत्र विपरीत वातावरण दिखाई देता है । धैर्य, मनोबल, डटे रहने का साहस युवाओं में भी नहीं दिखाई देता । पलायन करना, समझौते कर लेना, अल्पतामें ही सन्तोष मानना सामान्य बात हो गई है । यह अत्यन्त घातक लक्षण है। जिसमें मन की शक्ति नहीं है वह कभी भी अपना विकास नहीं कर सकता । |
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| ==== नई पीढ़ी का मनोबल बढ़ाना ==== | | ==== नई पीढ़ी का मनोबल बढ़ाना ==== |