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प्रश्नावली के दस प्रश्नों में से दो-तीन प्रश्न छोडकर शेष सारे प्रश्न सरल एवं अनुभवजन्य थे । परन्तु उनके उत्तर उतने गहरे व समाधानकारक नहीं थे । सदैव ध्यान में रहना चाहिए । कक्षा में बेचों के नीचे पड़े हुए कागज के टुकडे, फर्निचर पर जमी हुई धूल, दीवारों पर चिपकी हुई टेप, टूटे फर्निचर का ढेर, उद्योग के कालांश में फेला हुआ कचरा, प्रश्नपत्र एवं उत्तर पुस्तिकाओं के बंडल, जमा हुआ पानी, शौचालयों की दुर्गन्ध तथा जगह-जगह पड़ा हुआ कचरा आदि सबको प्रतिदिन दिखाई तो देता है परन्तु यह मेरा घर नहीं है ऐसा विचार सब करते हैं। ऐसे गन्दगी से भरे वातावरण में छात्रों का मन पढ़ने में नहीं लगता । एक बार एक मुख्याध्यापक ने अतिथि को विद्यालय देखने के लिए बुलाया। विद्यालय दिखाने ले जाते समय सीढ़ियों पर कागज के टुकडे पडे हुए थे । टुकडों को देखते ही मुख्याध्यापक ने निकट की चलती कक्षा में से दो छात्रों को बाहर बुलाया । छात्र बाहर आये उससे पहले ही अतिथि ने वे टुकड़े उठा लिये । स्वच्छता आदेश से या निर्देश से नहीं होती, स्वयं करने से होती है। यह सन्देश अतिथि महोदय ने बिना बोले दे दिया।
 
प्रश्नावली के दस प्रश्नों में से दो-तीन प्रश्न छोडकर शेष सारे प्रश्न सरल एवं अनुभवजन्य थे । परन्तु उनके उत्तर उतने गहरे व समाधानकारक नहीं थे । सदैव ध्यान में रहना चाहिए । कक्षा में बेचों के नीचे पड़े हुए कागज के टुकडे, फर्निचर पर जमी हुई धूल, दीवारों पर चिपकी हुई टेप, टूटे फर्निचर का ढेर, उद्योग के कालांश में फेला हुआ कचरा, प्रश्नपत्र एवं उत्तर पुस्तिकाओं के बंडल, जमा हुआ पानी, शौचालयों की दुर्गन्ध तथा जगह-जगह पड़ा हुआ कचरा आदि सबको प्रतिदिन दिखाई तो देता है परन्तु यह मेरा घर नहीं है ऐसा विचार सब करते हैं। ऐसे गन्दगी से भरे वातावरण में छात्रों का मन पढ़ने में नहीं लगता । एक बार एक मुख्याध्यापक ने अतिथि को विद्यालय देखने के लिए बुलाया। विद्यालय दिखाने ले जाते समय सीढ़ियों पर कागज के टुकडे पडे हुए थे । टुकडों को देखते ही मुख्याध्यापक ने निकट की चलती कक्षा में से दो छात्रों को बाहर बुलाया । छात्र बाहर आये उससे पहले ही अतिथि ने वे टुकड़े उठा लिये । स्वच्छता आदेश से या निर्देश से नहीं होती, स्वयं करने से होती है। यह सन्देश अतिथि महोदय ने बिना बोले दे दिया।
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स्वच्छता और पवित्रता में भी भिन्नता है । जो-जो पवित्र है वह स्वच्छ है । परन्तु जो जो स्वच्छ है, वह पवित्र होगा ही ऐसा आवश्यक नहीं है । विद्यालय में स्वच्छता बनाये रखने हेतु स्थान स्थान पर कूडादान रखने होंगे। सफाई करने के पर्याप्त साधन झाडू, बाल्टियाँ, पुराने कपड़े आदि विद्यालय में कक्षाशः अलग उपलब्ध होने चाहिए। जिस किसी छात्र या आचार्य को एक छोटा सा तिनका भी दिखाई दे वह तुरन्त उस तिनके को उठाकर कूड़ादान में डाले, ऐसी आदत सबकी बनानी चाहिए। कोई भी खिड़की से कचरा बाहर न फेंके, गन्दगी करने वाले छात्रों के नाम बताने के स्थान पर स्वच्छता रखने वाले छात्रों के नाम बताना उनको गौरवान्वित करना __ अधिक प्रेरणादायी होता है।
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स्वच्छता और पवित्रता में भी भिन्नता है। जो-जो पवित्र है वह स्वच्छ है। परन्तु जो जो स्वच्छ है, वह पवित्र होगा ही ऐसा आवश्यक नहीं है। विद्यालय में स्वच्छता बनाये रखने हेतु स्थान स्थान पर कूडादान रखने होंगे। सफाई करने के पर्याप्त साधन झाडू, बाल्टियाँ, पुराने कपड़े आदि विद्यालय में कक्षाशः अलग उपलब्ध होने चाहिए। जिस किसी छात्र या आचार्य को एक छोटा सा तिनका भी दिखाई दे वह तुरन्त उस तिनके को उठाकर कूड़ादान में डाले, ऐसी आदत सबकी बनानी चाहिए। कोई भी खिड़की से कचरा बाहर न फेंके, गन्दगी करने वाले छात्रों के नाम बताने के स्थान पर स्वच्छता रखने वाले छात्रों के नाम बताना उनको गौरवान्वित करना अधिक प्रेरणादायी होता है।
    
अनेक बार बड़े लोग विदेशों में स्वच्छता व भारत में गन्दगी का तुलनात्मक वर्णन बच्चों के सामने ऐसे शब्दों में बताते हैं कि जैसे धार्मिकों को गन्दगी ही पसन्द है, ये स्वच्छता के बारे में कुछ नहीं जानते । जैसे भारत में स्वच्छता को कोई महत्त्व ही नहीं है । ऐसा बोलने से अपने देश के प्रति हीनता बोध ही पनपता है, जो उचित नहीं है। भारत में तो सदैव से ही स्वच्छता का आचरण व व्यवहार रहा है। एक गृहिणी उठते ही सबसे पहले पूरे घर की सफाई करती है । घर के द्वार पर रंगोली बनाती है, पहले पानी छिड़कती है । ऐसी आदतें जिस देश के घर घर में हो भला वह भारत कभी स्वच्छता की अनदेखी कर सकता है ? केवल घर व शरीर की शुद्धि ही नहीं तो चित्त शुद्धि पर परम पद प्राप्त करने की इच्छा जन जन में थी, आज फिर से उसे जगाने की आवश्यकता है।
 
अनेक बार बड़े लोग विदेशों में स्वच्छता व भारत में गन्दगी का तुलनात्मक वर्णन बच्चों के सामने ऐसे शब्दों में बताते हैं कि जैसे धार्मिकों को गन्दगी ही पसन्द है, ये स्वच्छता के बारे में कुछ नहीं जानते । जैसे भारत में स्वच्छता को कोई महत्त्व ही नहीं है । ऐसा बोलने से अपने देश के प्रति हीनता बोध ही पनपता है, जो उचित नहीं है। भारत में तो सदैव से ही स्वच्छता का आचरण व व्यवहार रहा है। एक गृहिणी उठते ही सबसे पहले पूरे घर की सफाई करती है । घर के द्वार पर रंगोली बनाती है, पहले पानी छिड़कती है । ऐसी आदतें जिस देश के घर घर में हो भला वह भारत कभी स्वच्छता की अनदेखी कर सकता है ? केवल घर व शरीर की शुद्धि ही नहीं तो चित्त शुद्धि पर परम पद प्राप्त करने की इच्छा जन जन में थी, आज फिर से उसे जगाने की आवश्यकता है।
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==== स्वच्छता के सम्बन्ध में इस प्रकार विचार करना चाहिये... ====
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==== स्वच्छता के सम्बन्ध में इस प्रकार विचार करना चाहिये: ====
 
* सार्वजनिक स्थानों को स्वच्छ नहीं रखना यह आज के समय का सामान्य प्रचलन हो गया है। इसका कारण जरा व्यापक और दूरवर्ती है । अंग्रेजों के भारत की सत्ता के अधिग्रहण से पूर्व धार्मिक समाज स्वायत्त था। स्वायत्तता का एक लक्षण स्वयंप्रेरणा से सामाजिक दायित्वों का निर्वाहण करने का भी था । परन्तु अंग्रेजों ने सत्ता ग्रहण कर लेने के बाद समाज धीरे धीरे शासन के अधीन होता गया। इस नई व्यवस्था में ज़िम्मेदारी सरकार की और काम समाज का ऐसा विभाजन हो गया। सरकार जिम्मेदार थी परन्तु स्वयं काम करने के स्थान पर काम करवाती थी । जो काम करता था उसका अधिकार नहीं था, जिसका अधिकार था वह काम नहीं करता था । धीरे धीरे काम करना हेय और करवाना श्रेष्ठ माना जाने लगा । आज ऐसी व्यवस्था में हम जी रहे हैं । यह व्यवस्था हमारी सभी रचनाओं में दिखाई देती है।  
 
* सार्वजनिक स्थानों को स्वच्छ नहीं रखना यह आज के समय का सामान्य प्रचलन हो गया है। इसका कारण जरा व्यापक और दूरवर्ती है । अंग्रेजों के भारत की सत्ता के अधिग्रहण से पूर्व धार्मिक समाज स्वायत्त था। स्वायत्तता का एक लक्षण स्वयंप्रेरणा से सामाजिक दायित्वों का निर्वाहण करने का भी था । परन्तु अंग्रेजों ने सत्ता ग्रहण कर लेने के बाद समाज धीरे धीरे शासन के अधीन होता गया। इस नई व्यवस्था में ज़िम्मेदारी सरकार की और काम समाज का ऐसा विभाजन हो गया। सरकार जिम्मेदार थी परन्तु स्वयं काम करने के स्थान पर काम करवाती थी । जो काम करता था उसका अधिकार नहीं था, जिसका अधिकार था वह काम नहीं करता था । धीरे धीरे काम करना हेय और करवाना श्रेष्ठ माना जाने लगा । आज ऐसी व्यवस्था में हम जी रहे हैं । यह व्यवस्था हमारी सभी रचनाओं में दिखाई देती है।  
* विद्यालय की स्वच्छता विद्यालय के आचार्यों और छात्रों के नित्यकार्य का अंग बनाना चाहिए क्योंकि यह शिक्षा का ही क्रियात्मक अंग है। आज ऐसा माना नहीं जाता है । आज यह सफाई कर्मचारियों का काम माना जाता है और पैसे देकर करवाया जाता है। छात्र या आचार्य इसे अपने लायक नहीं मानते हैं। इससे ऐसी मानसिकता पनपती है कि अच्छे पढेलिखे और अच्छी कमाई करने वाले स्वच्छताकार्य करेंगे नहीं। समय न हो और अन्य लोग करने वाले हो और किसीको स्वच्छताकार्य न करना पड़े यह अलग विषय है परन्तु पढेलिखे हैं और प्रतिष्ठित लोग ऐसा काम नहीं करते यह मानसिकता अलग विषय है। प्रायोगिक शिक्षा का यह अंग बनने की आवश्यकता है।  
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* विद्यालय की स्वच्छता विद्यालय के आचार्यों और छात्रों के नित्यकार्य का अंग बनाना चाहिए क्योंकि यह शिक्षा का ही क्रियात्मक अंग है। आज ऐसा माना नहीं जाता है। आज यह सफाई कर्मचारियों का काम माना जाता है और पैसे देकर करवाया जाता है। छात्र या आचार्य इसे अपने लायक नहीं मानते हैं। इससे ऐसी मानसिकता पनपती है कि अच्छे पढेलिखे और अच्छी कमाई करने वाले स्वच्छताकार्य करेंगे नहीं। समय न हो और अन्य लोग करने वाले हो और किसीको स्वच्छताकार्य न करना पड़े यह अलग विषय है परन्तु पढेलिखे हैं और प्रतिष्ठित लोग ऐसा काम नहीं करते यह मानसिकता अलग विषय है। प्रायोगिक शिक्षा का यह अंग बनने की आवश्यकता है।  
* स्वच्छता स्वभाव बने यह भी शिक्षा का आवश्यक अंग है। आजकल इस विषय में भी विपरीत अवस्था है। सार्वजनिक स्थानों पर, मार्गों पर, कार्यालयों में कचरा जमा होना और दिनों तक उसे उठाया नहीं जाना सहज बन गया है। आने जाने वाले लोगोंं को, वहीं पर काम करने वाले लोगोंं को इससे परेशानी भी नहीं होती है। इस स्वभाव को बदलना शिक्षा का विषय बनाना चाहिये । इसे बदले बिना यदि स्वच्छता का काम किया भी तो वह केवल विवशता से अथवा अंकों के लिए होगा, करना चाहिये अतः नहीं होगा।  
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* स्वच्छता स्वभाव बने, यह भी शिक्षा का आवश्यक अंग है। आजकल इस विषय में भी विपरीत अवस्था है। सार्वजनिक स्थानों पर, मार्गों पर, कार्यालयों में कचरा जमा होना और दिनों तक उसे उठाया नहीं जाना सहज बन गया है। आने जाने वाले लोगोंं को, वहीं पर काम करने वाले लोगोंं को इससे परेशानी भी नहीं होती है। इस स्वभाव को बदलना शिक्षा का विषय बनाना चाहिये । इसे बदले बिना यदि स्वच्छता का काम किया भी तो वह केवल विवशता से अथवा अंकों के लिए होगा, करना चाहिये अतः नहीं होगा।  
 
* विद्यालय की स्वच्छता में केवल भवन की स्वच्छता ही नहीं होती। पुस्तकें, शैक्षिक सामग्री,बगीचा, मैदान, उपस्कर आदि सभी बातों की स्वच्छता भी होनी चाहिये । छात्रों का वेश, पदवेश, बस्ता आदि भी स्वच्छ होना अपेक्षित है।  
 
* विद्यालय की स्वच्छता में केवल भवन की स्वच्छता ही नहीं होती। पुस्तकें, शैक्षिक सामग्री,बगीचा, मैदान, उपस्कर आदि सभी बातों की स्वच्छता भी होनी चाहिये । छात्रों का वेश, पदवेश, बस्ता आदि भी स्वच्छ होना अपेक्षित है।  
 
* स्वच्छता के लिए प्रयोग में ली जाने वाली सामग्री चिन्ता का विषय है। साबुन, डीटेर्जेंट, एसिड, फिनाइल आदि सफाई की जो सामग्री होती है वह कृत्रिम और पर्यावरण का प्रदूषण करने वाली ही होती है। इससे होने वाली सफाई सुन्दर दिखाई देने वाली ही होती है परन्तु इसके पीछे व्यापक अस्वच्छता जन्म लेती है जो प्रदूषण पैदा करती है। ऐसी सुन्दर अस्वच्छता की संकल्पना छात्रों को समझ में आए ऐसा करने की आवश्यकता है। विद्यालय की स्वच्छता छात्रों का सरोकार बने यही शिक्षा है। स्वच्छता अपने आपमें साध्य भी है और छात्रों के विकास का माध्यम भी है । यह व्यावहारिक शिक्षा है, कारीगरी की शिक्षा है, विज्ञान की शिक्षा है, सामाजिक शिक्षा भी है।
 
* स्वच्छता के लिए प्रयोग में ली जाने वाली सामग्री चिन्ता का विषय है। साबुन, डीटेर्जेंट, एसिड, फिनाइल आदि सफाई की जो सामग्री होती है वह कृत्रिम और पर्यावरण का प्रदूषण करने वाली ही होती है। इससे होने वाली सफाई सुन्दर दिखाई देने वाली ही होती है परन्तु इसके पीछे व्यापक अस्वच्छता जन्म लेती है जो प्रदूषण पैदा करती है। ऐसी सुन्दर अस्वच्छता की संकल्पना छात्रों को समझ में आए ऐसा करने की आवश्यकता है। विद्यालय की स्वच्छता छात्रों का सरोकार बने यही शिक्षा है। स्वच्छता अपने आपमें साध्य भी है और छात्रों के विकास का माध्यम भी है । यह व्यावहारिक शिक्षा है, कारीगरी की शिक्षा है, विज्ञान की शिक्षा है, सामाजिक शिक्षा भी है।
    
=== विद्यालय का बगीचा ===
 
=== विद्यालय का बगीचा ===
१. विद्यालय में बगीचा अनिवार्य है क्या ?  
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# विद्यालय में बगीचा अनिवार्य है क्या ?  
 
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# विद्यालय में बगीचा क्यों होना चाहिये ?  
२. विद्यालय में बगीचा क्यों होना चाहिये ?  
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# विद्यालय में कितना बड़ा बगीचा होना चाहिये ?  
 
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# विद्यालय में खुला अथवा सुरक्षित स्थान ही न हो तो बगीचा कैसे बनायें ?  
३. विद्यालय में कितना बड़ा बगीचा होना चाहिये ?  
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# विद्यालय में बगीचा कैसा होना चाहिये ?  
 
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# बगीचा और पर्यावरण, बगीचा और सुन्दरता, बगीचा एवं स्वास्थ्य, बगीचा एवं संस्कारक्षमता का क्या सम्बन्ध है ?  
४. विद्यालय में खुला अथवा सुरक्षित स्थान ही न हो तो बगीचा कैसे बनायें ?  
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# विद्यालय में घास, पौधे, वृक्ष एवं लता के विषय में किन किन बातों का विचार करना चाहिये ?   
 
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# विद्यालय में फूल, फल आदि के विषय में क्या क्या विचार करना चाहिये ?  
५. विद्यालय में बगीचा कैसा होना चाहिये ?  
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# छात्रों एवं आचार्यों की वनस्पति सेवा में सहभागिता कैसे बने ?  
 
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# बगीचा तैयार करते समय खर्च, सुविधा, उपयोगिता, सुन्दरता, प्रसन्नता, प्राकृतिकता एवं व्यावहारिकता का ध्यान कैसे रखें ?
६. बगीचा और पर्यावरण, बगीचा और सुन्दरता, बगीचा एवं स्वास्थ्य, बगीचा एवं संस्कारक्षमता का क्या सम्बन्ध है ?  
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७. विद्यालय में घास, पौधे, वृक्ष एवं लता के विषय में किन किन बातों का विचार करना चाहिये ?   
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विद्यालय में फूल, फल आदि के विषय में क्या क्या विचार करना चाहिये ?
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९. छात्रों एवं आचार्यों की वनस्पति सेवा में सहभागिता कैसे बने ?
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१०. बगीचा तैयार करते समय खर्च, सुविधा, उपयोगिता, सुन्दरता, प्रसन्नता, प्राकृतिकता एवं व्यावहारिकता का ध्यान कैसे रखें ?
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==== '''प्रश्नावली से पाप्त उत्तर''' ====
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यह प्रश्नावली संस्थाचालक, शिक्षक, अभिभावक ऐसे तीनों गटों के सहयोग से भरकर प्राप्त हुई है।
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प्रश्न १ : स्वच्छता का अर्थ लिखते समय तन की स्वच्छता, मन की स्वच्छता, पर्यावरण की स्वच्छता का विचार एक अभिभावक ने रखा । कुछ लोगोंं ने आसपास का परिसर साफ रखना यह विचार भी रखा ।
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प्रश्न २-३ : स्वच्छता एवं पर्यावरण ये सब एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । इसी प्रकार के संक्षिप्त उत्तर स्वच्छता और स्वास्थ्य के विषय में प्राप्त हुए। इनमें विद्यार्थी, अभिभावक, सफाई कर्मचारी इन सबकी सहभागिता अपेक्षित है। पानी के पाउच, बाजारी चीजों के रेपर्स, फूड पेकेट्स के कवर आदि जो गन्दगी फैलाते हैं उन्हें वर्जित करना चाहिए ऐसा सभी चाहते हैं । प्रश्न ६ के उत्तर में स्वच्छता एवं पवित्रता के परस्पर सम्बन्धों का योग्य उत्तर नहीं मिला । प्रश्न ७ में स्वच्छता बनाये रखने के लिए स्थान-स्थान पर 'कचरापात्र' रखें जायें, यह सुझाव मिला । प्र. ८ स्वच्छता का आग्रह शतप्रतिशत होना ही चाहिए ऐसा सर्वानुमत था। गन्दगी फैलाने वाले पर आर्थिक दण्ड और कानूनी कार्यवाही करने की बात भी एक के उत्तर में आई।
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==== अभिमत : ====
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प्रश्नावली के दस प्रश्नों में से दो-तीन प्रश्न छोडकर शेष सारे प्रश्न सरल एवं अनुभवजन्य थे । परन्तु उनके उत्तर उतने गहरे व समाधानकारक नहीं थे । सदैव ध्यान में रहना चाहिए । कक्षा में बेचों के नीचे पड़े हुए कागज के टकडे, फर्निचर पर जमी हुई धूल, दीवारों पर चिपकी हुई टेप, टूटे फर्निचर का ढेर, उद्योग के कालांश में फेला हुआ कचरा, प्रश्नपत्र एवं उत्तर पुस्तिकाओं के बंडल, जमा हुआ पानी, शौचालयों की दुर्गन्ध तथा जगह-जगह पड़ा हुआ कचरा आदि सबको प्रतिदिन दिखाई तो देता है परन्तु यह मेरा घर नहीं है ऐसा विचार सब करते हैं। ऐसे गन्दगी से भरे वातावरण में छात्रों का मन पढ़ने में नहीं लगता । एक बार एक मुख्याध्यापक ने अतिथि को विद्यालय देखने के लिए बुलाया । विद्यालय दिखाने ले जाते समय सीढ़ियों पर कागज के टुकडे पडे हुए थे । टुकडों को देखते ही मुख्याध्यापक ने निकट की चलती कक्षा में से दो छात्रों को बाहर बुलाया । छात्र बाहर आये उससे पहले ही अतिथि ने वे टुकड़े उठा लिये । स्वच्छता आदेश से या निर्देश से नहीं होती, स्वयं करने से होती है। यह सन्देश अतिथि महोदय ने बिना बोले दे दिया।
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स्वच्छता और पवित्रता में भी भिन्नता है । जो-जो पवित्र है वह स्वच्छ है । परन्तु जो जो स्वच्छ है, वह पवित्र होगा ही ऐसा आवश्यक नहीं है । विद्यालय में स्वच्छता बनाये रखने हेतु स्थान स्थान पर कूडादान रखने होंगे। सफाई करने के पर्याप्त साधन झाडू, बाल्टियाँ, पुराने कपड़े आदि विद्यालय में कक्षाशः अलग उपलब्ध होने चाहिए। जिस किसी छात्र या आचार्य को एक छोटा सा तिनका भी दिखाई दे वह तुरन्त उस तिनके को उठाकर कूड़ादान में डाले, ऐसी आदत सबकी बनानी चाहिए। कोई भी खिड़की से कचरा बाहर न फेंके, गन्दगी करने वाले छात्रों के नाम बताने के स्थान पर स्वच्छता रखने वाले छात्रों के नाम बताना उनको गौरवान्वित करना __ अधिक प्रेरणादायी होता है।
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अनेक बार बड़े लोग विदेशों में स्वच्छता व भारत में गन्दगी का तुलनात्मक वर्णन बच्चों के सामने ऐसे शब्दों में बताते हैं कि जैसे धार्मिकों को गन्दगी ही पसन्द है, ये स्वच्छता के बारे में कुछ नहीं जानते । जैसे भारत में स्वच्छता को कोई महत्त्व ही नहीं है । ऐसा बोलने से अपने देश के प्रति हीनता बोध ही पनपता है, जो उचित नहीं है । भारत में तो सदैव से ही स्वच्छता का आचरण व व्यवहार रहा है। एक गृहिणी उठते ही सबसे पहले पूरे घर की सफाई करती है । घर के द्वार पर रंगोली बनाती है, पहले पानी छिड़कती है । ऐसी आदतें जिस देश के घर घर में हो भला वह भारत कभी स्वच्छता की अनदेखी कर सकता है ? केवल घर व शरीर की शुद्धि ही नहीं तो चित्त शुद्धि पर परम पद प्राप्त करने की इच्छा जन जन में थी, आज फिर से उसे जगाने की आवश्यकता है।
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==== स्वच्छता के सम्बन्ध में इस प्रकार विचार करना चाहिये... ====
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* सार्वजनिक स्थानों को स्वच्छ नहीं रखना यह आज के समय का सामान्य प्रचलन हो गया है । इसका कारण जरा व्यापक और दूरवर्ती है। अंग्रेजों के भारत की सत्ता के अधिग्रहण से पूर्व धार्मिक समाज स्वायत्त था। स्वायत्तता का एक लक्षण स्वयंप्रेरणा से सामाजिक दायित्वों का निर्वाहण करने का भी था । परन्तु अंग्रेजों ने सत्ता ग्रहण कर लेने के बाद समाज धीरे धीरे शासन के अधीन होता गया। इस नई व्यवस्था में ज़िम्मेदारी सरकार की और काम समाज का ऐसा विभाजन हो गया। सरकार जिम्मेदार थी परन्तु स्वयं काम करने के स्थान पर काम करवाती थी । जो काम करता था उसका अधिकार नहीं था, जिसका अधिकार था वह काम नहीं करता था । धीरे धीरे काम करना हेय और करवाना श्रेष्ठ माना जाने लगा। आज ऐसी व्यवस्था में हम जी रहे हैं । यह व्यवस्था हमारी सभी रचनाओं में दिखाई देती है।
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* विद्यालय की स्वच्छता विद्यालय के आचार्यों और छात्रों के नित्यकार्य का अंग बनाना चाहिए क्योंकि यह शिक्षा का ही क्रियात्मक अंग है। आज ऐसा माना नहीं जाता है । आज यह सफाई कर्मचारियों का काम माना जाता है और पैसे देकर करवाया जाता है। छात्र या आचार्य इसे अपने लायक नहीं मानते हैं। इससे ऐसी मानसिकता पनपती है कि अच्छे पढेलिखे और अच्छी कमाई करने वाले स्वच्छताकार्य करेंगे नहीं। समय न हो और अन्य लोग करने वाले हो और किसीको स्वच्छताकार्य न करना पड़े यह अलग विषय है परन्तु पढेलिखे हैं और प्रतिष्ठित लोग ऐसा काम नहीं करते यह मानसिकता अलग विषय है।  प्रायोगिक शिक्षा का यह अंग बनने की आवश्यकता है।
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* स्वच्छता स्वभाव बने यह भी शिक्षा का आवश्यक अंग है। आजकल इस विषय में भी विपरीत अवस्था है। सार्वजनिक स्थानों पर, मार्गों पर,कार्यालयों में कचरा जमा होना और दिनों तक उसे उठाया नहीं जाना सहज बन गया है। आने जाने वाले लोगोंं को, वहीं पर काम करने वाले लोगोंं को इससे परेशानी भी नहीं होती है। इस स्वभाव को बदलना शिक्षा का विषय बनाना चाहिये । इसे बदले बिना यदि स्वच्छता का काम किया भी तो वह केवल विवशता से अथवा अंकों के लिए होगा, करना चाहिये अतः नहीं होगा।
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* विद्यालय की स्वच्छता में केवल भवन की स्वच्छता ही नहीं होती। पुस्तकें, शैक्षिक सामग्री,बगीचा, मैदान, उपस्कर आदि सभी बातों की स्वच्छता भी होनी चाहिये । छात्रों का वेश, पदवेश, बस्ता आदि भी स्वच्छ होना अपेक्षित है।
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* स्वच्छता के लिए प्रयोग में ली जाने वाली सामग्री चिन्ता का विषय है। साबुन, डीटेर्जेंट, एसिड, फिनाइल आदि सफाई की जो सामग्री होती है वह कृत्रिम और पर्यावरण का प्रदूषण करने वाली ही होती है। इससे होने वाली सफाई सुन्दर दिखाई देने वाली ही होती है परन्तु इसके पीछे व्यापक अस्वच्छता जन्म लेती है जो प्रदूषण पैदा करती है। ऐसी सुन्दर अस्वच्छता की संकल्पना छात्रों को समझ में आए ऐसा करने की आवश्यकता है। विद्यालय की स्वच्छता छात्रों का सरोकार बने यही शिक्षा है। स्वच्छता अपने आपमें साध्य भी है और छात्रों के विकास का माध्यम भी है । यह व्यावहारिक शिक्षा है, कारीगरी की शिक्षा है, विज्ञान की शिक्षा है, सामाजिक शिक्षा भी है।
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=== विद्यालय का बगीचा ===
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१. विद्यालय में बगीचा अनिवार्य है क्या ?
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२. विद्यालय में बगीचा क्यों होना चाहिये ?
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३. विद्यालय में कितना बड़ा बगीचा होना चाहिये ?
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४. विद्यालय में खुला अथवा सुरक्षित स्थान ही न हो तो बगीचा कैसे बनायें ?
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५. विद्यालय में बगीचा कैसा होना चाहिये ?
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६. बगीचा और पर्यावरण, बगीचा और सुन्दरता, बगीचा एवं स्वास्थ्य, बगीचा एवं संस्कारक्षमता का क्या सम्बन्ध है ?
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७. विद्यालय में घास, पौधे, वृक्ष एवं लता के विषय में किन किन बातों का विचार करना चाहिये ?
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८. विद्यालय में फूल, फल आदि के विषय में क्या क्या विचार करना चाहिये ?  
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९. छात्रों एवं आचार्यों की वनस्पति सेवा में सहभागिता कैसे बने ?  
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१०. बगीचा तैयार करते समय खर्च, सुविधा, उपयोगिता, सुन्दरता, प्रसन्नता, प्राकृतिकता एवं व्यावहारिकता का ध्यान कैसे रखें ?
      
==== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ====
 
==== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ====
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# विद्यालय मे बगीचा अनिवार्य ही है ऐसा दृढ मत सब का प्रथम प्रश्न का रहा। मुंबई जैसे महानगरों के शिक्षक भी विद्यालय मे बगीचा चाहिये यह मान्य तो करते हैं परंतु असंभव है ऐसा भी लिखते हैं । स्थान स्थान की परिस्थिति अनुसार विचार बदलता है यह हम सबका अनुभव है।
 
# विद्यालय मे बगीचा अनिवार्य ही है ऐसा दृढ मत सब का प्रथम प्रश्न का रहा। मुंबई जैसे महानगरों के शिक्षक भी विद्यालय मे बगीचा चाहिये यह मान्य तो करते हैं परंतु असंभव है ऐसा भी लिखते हैं । स्थान स्थान की परिस्थिति अनुसार विचार बदलता है यह हम सबका अनुभव है।
 
# बगीचा क्यों चाहिये ? इस प्रश्न के उत्तर में बालको में सौंदर्यदृष्टि बढे, विद्यालय का सौंदर्य बढे, उनको वृक्षवनस्पती फूल पौधों की जानकारी मिले इस प्रकार के विविध उत्तर प्राप्त हुए .
 
# बगीचा क्यों चाहिये ? इस प्रश्न के उत्तर में बालको में सौंदर्यदृष्टि बढे, विद्यालय का सौंदर्य बढे, उनको वृक्षवनस्पती फूल पौधों की जानकारी मिले इस प्रकार के विविध उत्तर प्राप्त हुए .
# बगीचा कितना बड़ा हो ? इस प्रश्न के लिए उसका क्षेत्र (एरिया)कितना हो इस बाबत स्पष्ट उल्लेख नहीं था। जितनी जगह उतना बगीचा आवश्यक है ऐसा आग्रह रहा । विद्यालय में खुली जगह न हो तो गमले में ही पौधे लगाकर बगीचा तो बनवाना ही चाहिये । बगीचा कैसा होना चाहिये इस प्रश्न के उत्तर मे सुंदर, सुशोभित, बहुत बडी हरियाली रंगबिरंगी फूलों के पौधे, बडे बडे वृक्ष इन सबका समावेश बगीचा संकल्पना में दिखाई दिया। ६ पर्यावरण, सुंदरता, स्वास्थ्य, संस्कारक्षमता और बगीचा परस्परपूरक बातें हैं यह तो लिखा परंतु किस प्रकार से यह किसी ने भी स्पष्ट नहीं किया। प्र. ७ से १० तक के प्रश्न वैचारिक थे उनके उत्तर वैसे नहीं थे । केवल मुलायम घास, फूलों से भरे वृक्ष इस प्रकार के सीमित शब्दों में जवाब थे ।
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# बगीचा कितना बड़ा हो ? इस प्रश्न के लिए उसका क्षेत्र (एरिया)कितना हो इस बाबत स्पष्ट उल्लेख नहीं था। जितनी जगह उतना बगीचा आवश्यक है ऐसा आग्रह रहा । विद्यालय में खुली जगह न हो तो गमले में ही पौधे लगाकर बगीचा तो बनवाना ही चाहिये । बगीचा कैसा होना चाहिये इस प्रश्न के उत्तर मे सुंदर, सुशोभित, बहुत बडी हरियाली रंगबिरंगी फूलों के पौधे, बडे बडे वृक्ष इन सबका समावेश बगीचा संकल्पना में दिखाई दिया।  
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# प्र. ६ पर्यावरण, सुंदरता, स्वास्थ्य, संस्कारक्षमता और बगीचा परस्परपूरक बातें हैं यह तो लिखा परंतु किस प्रकार से यह किसी ने भी स्पष्ट नहीं किया।  
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# प्र. ७ से १० तक के प्रश्न वैचारिक थे उनके उत्तर वैसे नहीं थे । केवल मुलायम घास, फूलों से भरे वृक्ष इस प्रकार के सीमित शब्दों में जवाब थे ।
    
==== अभिमत : ====
 
==== अभिमत : ====
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==== वाहन की व्यवस्था क्यों करनी पडती है ? ====
 
==== वाहन की व्यवस्था क्यों करनी पडती है ? ====
विद्यालय घर से इतना दर है कि बालक पैदल चलकर नहीं जा सकते ।  
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विद्यालय घर से इतना दर है कि बालक पैदल चलकर नहीं जा सकते । यदि पैदल चलकर जा भी सकते हैं तो सड़कों पर वाहनों का यातायात इतना अधिक है कि उनकी सुरक्षा के विषय में भय लगता है। पैदल चलकर जा भी सकते हैं तो अब छोटे या बडे विद्यार्थियों में इतनी शक्ति नहीं रही कि वे चल सकें। उन्हें थकान होती है। पैदर चलने की शक्ति है तो मानसिकता नहीं है। पैदल चलना अच्छा नहीं लगता। पैदल चलने में प्रतिष्ठा नहीं लगती। पैदल चलकर यदि सम्भव भी है तो लगता है कि आने जाने में ही इतना समय बरबाद हो जायेगा की पढने का समय कम हो जायेगा । थक जायेंगे तो पढेंगे कैसे ?
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यदि पैदल चलकर जा भी सकते हैं तो सड़कों पर वाहनों का यातायात इतना अधिक है कि उनकी सुरक्षा के विषय में भय लगता है।
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इन कारणों से वाहन की आवश्यकता निर्माण होती है। विद्यालय जाने के लिये जिन वाहनों का प्रयोग होता है वे कुछ इस प्रकार के हैं:
 
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पैदल चलकर जा भी सकते हैं तो अब छोटे या बडे विद्यार्थियों में इतनी शक्ति नहीं रही कि वे चल सकें। उन्हें थकान होती है।
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पैदर चलने की शक्ति है तो मानसिकता नहीं है। पैदल चलना अच्छा नहीं लगता। पैदल चलने में प्रतिष्ठा नहीं लगती।
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पैदल चलकर यदि सम्भव भी है तो लगता है कि आने जाने में ही इतना समय बरबाद हो जायेगा की पढने का समय कम हो जायेगा । थक जायेंगे तो पढेंगे कैसे ?
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इन कारणों से वाहन की आवश्यकता निर्माण होती है। विद्यालय जाने के लिये जिन वाहनों का प्रयोग होता है वे कुछ इस प्रकार के हैं...
   
# ऑटोरिक्षा : शिशु से लेकर किशोर आयु के विद्यार्थी इस व्यवस्था में आतेजाते हैं ।  
 
# ऑटोरिक्षा : शिशु से लेकर किशोर आयु के विद्यार्थी इस व्यवस्था में आतेजाते हैं ।  
 
# साइकिलरिक्षा : क्वचित इनका भी प्रयोग होता है और शिशु और बाल आयु के विद्यार्थी इनमें जाते हैं ।  
 
# साइकिलरिक्षा : क्वचित इनका भी प्रयोग होता है और शिशु और बाल आयु के विद्यार्थी इनमें जाते हैं ।  
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# कार : धनाढ्य परिवारों के बालकों के लिये मातापिता कार की सुविधा देते हैं। महाविद्यालयीन विद्यार्थी स्वयं भी कार लेकर आते हैं।  
 
# कार : धनाढ्य परिवारों के बालकों के लिये मातापिता कार की सुविधा देते हैं। महाविद्यालयीन विद्यार्थी स्वयं भी कार लेकर आते हैं।  
 
# स्कूल बस : महाविद्यालयों में जिस प्रकार मोटरसाइकिल बहुत प्रचलित है उस प्रकार शिशु से किशोर आयु के विद्यार्थियों के लिये स्कूल बस अत्यन्त प्रचलित वाहन है। इसकी व्यवस्था विद्यालय द्वारा ही की जाती है । कभी विद्यालयों की ओर से ऑटोरिक्षा का प्रबन्ध भी किया जाता है।
 
# स्कूल बस : महाविद्यालयों में जिस प्रकार मोटरसाइकिल बहुत प्रचलित है उस प्रकार शिशु से किशोर आयु के विद्यार्थियों के लिये स्कूल बस अत्यन्त प्रचलित वाहन है। इसकी व्यवस्था विद्यालय द्वारा ही की जाती है । कभी विद्यालयों की ओर से ऑटोरिक्षा का प्रबन्ध भी किया जाता है।
हमें एक दृष्टि से लगता है कि वाहन के कारण सुविधा होती है। परन्तु वाहन के कारण अनेक प्रकार की समस्यायें भी निर्माण होती हैं।
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हमें एक दृष्टि से लगता है कि वाहन के कारण सुविधा होती है। परन्तु वाहन के कारण अनेक प्रकार की समस्यायें भी निर्माण होती हैं। कैसे ?
 
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# सबसे बड़ी समस्या है प्रदूषण की । झट से कोई कह देता है कि सीएनजी के कारण अब उतना प्रदूषण नहीं होता जितना पहले होता था। यह तो ठीक है परन्तु ईंधन की पैदाइश से लेकर प्रयोग तक सर्वत्र वह प्रदूषण का ही स्रोत बनता है। अनदेखी की जा सके इतनी सामान्य समस्या यह नहीं है।  
कैसे ?
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# सबसे बड़ी समस्या है प्रदषण की । झट से कोई कह देता है कि सीएनजी के कारण अब उतना प्रदूषण नहीं होता जितना पहले होता था। यह तो ठीक है परन्तु ईंधन की पैदाइश से लेकर प्रयोग तक सर्वत्र वह प्रदूषण का ही स्रोत बनता है। अनदेखी की जा सके इतनी सामान्य समस्या यह नहीं है।  
   
# यातायात की भीड : वाहनों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि सडकों पर उनकी भीड हो जाती है। ट्रैफिक की समस्या महानगरों में तो विकट बन ही गई है, अब वह नगरों की ओर गति कर रही है। इससे कोलाहल अर्थात् ध्वनि प्रदूषण पैदा होता है। हम जानते ही नहीं है कि यह हमारी श्रवणेन्द्रिय पर गम्भीर अत्याचार है और इससे हमारी मानसिक शान्ति का नाश होता है, विचारशक्ति कम होती है।  
 
# यातायात की भीड : वाहनों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि सडकों पर उनकी भीड हो जाती है। ट्रैफिक की समस्या महानगरों में तो विकट बन ही गई है, अब वह नगरों की ओर गति कर रही है। इससे कोलाहल अर्थात् ध्वनि प्रदूषण पैदा होता है। हम जानते ही नहीं है कि यह हमारी श्रवणेन्द्रिय पर गम्भीर अत्याचार है और इससे हमारी मानसिक शान्ति का नाश होता है, विचारशक्ति कम होती है।  
 
# वाहनों की भीड के कारण सडकें चौडी से अधिक चौडी बनानी पडती हैं। सडक के बहाने फिर प्राकृतिक संसाधनों के नाश का चक्र आरम्भ होता है। सडकें चौडी बनाने के लिये खेतों को नष्ट किया जाता है, पुराने रास्तों के किनारे लगे वृक्षों को उखाडा जाता है । यह संकट कोई सामान्य संकट नहीं है।  
 
# वाहनों की भीड के कारण सडकें चौडी से अधिक चौडी बनानी पडती हैं। सडक के बहाने फिर प्राकृतिक संसाधनों के नाश का चक्र आरम्भ होता है। सडकें चौडी बनाने के लिये खेतों को नष्ट किया जाता है, पुराने रास्तों के किनारे लगे वृक्षों को उखाडा जाता है । यह संकट कोई सामान्य संकट नहीं है।  
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इन समस्याओं का समाधान क्या है इसका विचार हमें शान्त चित्त से, बुद्धिपूर्वक, मानवीय दृष्टिकोण से और व्यावहारिक धरातल पर करना होगा।
 
इन समस्याओं का समाधान क्या है इसका विचार हमें शान्त चित्त से, बुद्धिपूर्वक, मानवीय दृष्टिकोण से और व्यावहारिक धरातल पर करना होगा।
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कुछ इस प्रकार से उपाय करने होंगे...
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कुछ इस प्रकार से उपाय करने होंगे:
 
# हमें मानसिकता बनानी पडेगी कि पैदल चलना अच्छा है। उसमें स्वास्थ्य है, खर्च की बचत है, अच्छाई है और इन्हीं कारणों से प्रतिष्ठा भी है।  
 
# हमें मानसिकता बनानी पडेगी कि पैदल चलना अच्छा है। उसमें स्वास्थ्य है, खर्च की बचत है, अच्छाई है और इन्हीं कारणों से प्रतिष्ठा भी है।  
 
# यह केवल मानसिकता का ही नहीं तो व्यवस्था का भी विषय है। हमें बहुत व्यावहारिक होकर विचार करना होगा।  
 
# यह केवल मानसिकता का ही नहीं तो व्यवस्था का भी विषय है। हमें बहुत व्यावहारिक होकर विचार करना होगा।  
 
# विद्यालय घर से इतना दूर नहीं होना चाहिये कि विद्यार्थी पैदल चलकर न जा सकें । शिशुओं के लिये और प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों के लिये तो वह व्यवस्था अनिवार्य है। यहाँ फिर मानसिकता का प्रश्न अवरोध निर्माण करता है । अच्छे विद्यालय की हमारी कल्पनायें इतनी विचित्र हैं कि हम इन समस्याओं का विचार ही नहीं करते । वास्तव में घर के समीप का सरकारी प्राथमिक विद्यालय या कोई भी निजी विद्यालय हमारे लिये अच्छा विद्यालय ही माना जाना चाहिये । अच्छे विद्यालय के सर्वसामान्य नियमों पर जो विद्यालय खरा नहीं उतरता वह अभिभावकों के दबाव से बन्द हो जाना चाहिये । वास्तविक दृश्य यह दिखाई देता है कि अच्छा नहीं है कहकर जिस विद्यालय में आसपास के लोग अपने बच्चों को नहीं भेजते उनमें दूर दूर से बच्चे पढने के लिये आते ही हैं। निःशुल्क सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को अभिभावक ही अच्छा विद्यालय बना सकते हैं। इस सम्भावना को त्याग कर दूर दूर के विद्यालयों में जाना बुद्धिमानी नहीं है ।  
 
# विद्यालय घर से इतना दूर नहीं होना चाहिये कि विद्यार्थी पैदल चलकर न जा सकें । शिशुओं के लिये और प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों के लिये तो वह व्यवस्था अनिवार्य है। यहाँ फिर मानसिकता का प्रश्न अवरोध निर्माण करता है । अच्छे विद्यालय की हमारी कल्पनायें इतनी विचित्र हैं कि हम इन समस्याओं का विचार ही नहीं करते । वास्तव में घर के समीप का सरकारी प्राथमिक विद्यालय या कोई भी निजी विद्यालय हमारे लिये अच्छा विद्यालय ही माना जाना चाहिये । अच्छे विद्यालय के सर्वसामान्य नियमों पर जो विद्यालय खरा नहीं उतरता वह अभिभावकों के दबाव से बन्द हो जाना चाहिये । वास्तविक दृश्य यह दिखाई देता है कि अच्छा नहीं है कहकर जिस विद्यालय में आसपास के लोग अपने बच्चों को नहीं भेजते उनमें दूर दूर से बच्चे पढने के लिये आते ही हैं। निःशुल्क सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को अभिभावक ही अच्छा विद्यालय बना सकते हैं। इस सम्भावना को त्याग कर दूर दूर के विद्यालयों में जाना बुद्धिमानी नहीं है ।  
# साइकिल पर आनाजाना सबसे अच्छा उपाय है । वास्तव में विद्यालय ने ऐसा नियम बनानाचाहिये किघरसे विद्यालय की दूरी एक किलोमीटर है तो पैदल चलकर ही आना है, साइकिल भी नहीं लाना है और पाँच से सात किलोमीटर है तो साइकिल लेकर ही आना है । विद्यालय में पेट्रोल-डीजल चलित वाहन की अनुमति ही नहीं है । अभिभावक अपने वाहन पर भी छोडने के लिये न आयें।  
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# साइकिल पर आनाजाना सबसे अच्छा उपाय है । वास्तव में विद्यालय को ऐसा नियम बनाना चाहिये कि घर से विद्यालय की दूरी एक किलोमीटर है तो पैदल चलकर ही आना है, साइकिल भी नहीं लाना है और पाँच से सात किलोमीटर है तो साइकिल लेकर ही आना है। विद्यालय में पेट्रोल-डीजल चलित वाहन की अनुमति ही नहीं है। अभिभावक अपने वाहन पर भी छोडने के लिये न आयें।  
# देखा जाता है कि जहाँ ऐसा नियम बनाया जाता है वहाँ विद्यार्थी या अभिभावक पेट्रोल-डिजल चलित वाहन तो लाते हैं, परन्तु उसे कुछ दूरी पर रखते हैं और बाद में पैदल चलकर विद्यालय आते हैं । यह तो इस बात का निदर्शक है कि विद्यार्थी और उनके मातापिता अप्रामाणिक हैं, नियम का पालन करते नहीं हैं इसलिये अनुशासनहीन हैं और विद्यालय के लोग यह जानते हैं तो भी कुछ नहीं कर सकते इतने प्रभावहीन हैं। वास्तव में इस व्यवस्था को सबके मन में स्वीकृत करवाना विद्यालय का प्रथम दायित्व है।  
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# देखा जाता है कि जहाँ ऐसा नियम बनाया जाता है वहाँ विद्यार्थी या अभिभावक पेट्रोल-डिजल चलित वाहन तो लाते हैं, परन्तु उसे कुछ दूरी पर रखते हैं और बाद में पैदल चलकर विद्यालय आते हैं। यह तो इस बात का निदर्शक है कि विद्यार्थी और उनके मातापिता अप्रामाणिक हैं, नियम का पालन करते नहीं हैं इसलिये अनुशासनहीन हैं और विद्यालय के लोग यह जानते हैं तो भी कुछ नहीं कर सकते इतने प्रभावहीन हैं। वास्तव में इस व्यवस्था को सबके मन में स्वीकृत करवाना विद्यालय का प्रथम दायित्व है।  
 
# महाविद्यालयों में मोटर साइकिल एक आर्थिक, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक अनिष्ट बन गया है। मार्गों पर दुर्घटनायें युवाओं के बेतहाशा वाहन चलाने के कारण होती हैं । महाविद्यालय के परिसर में और आसपास पार्किंग की समस्या इन्हीं के कारण से होती है। पिरीयड बंक करने का प्रचलन इसी के आकर्षण से होता है। मित्रों के साथ मजे करने का एक माध्यम मोटरसाइकिल की सवारी । वह दस प्रतिशत उपयोगी और नब्बे प्रतिशत अनिष्टकारी वाहन बन गया है। महाविद्यालयों का किसी भी प्रकार का नैतिक प्रभाव विद्यार्थियों पर नहीं है इसलिये वे उन्हें मोटरसाइकिल के उपयोग से रोक नहीं सकते । परन्तु इसका एकमात्र उपाय नैतिक प्रभाव निर्माण करने का, विद्यार्थियों का प्रबोधन करने का और महाविद्यालय में साइकिल लेकर आने की प्रेरणा देने का है। इसके बाद मोटरसाइकिल लेकर नहीं आने का नियम बनाया जा सकता है।  
 
# महाविद्यालयों में मोटर साइकिल एक आर्थिक, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक अनिष्ट बन गया है। मार्गों पर दुर्घटनायें युवाओं के बेतहाशा वाहन चलाने के कारण होती हैं । महाविद्यालय के परिसर में और आसपास पार्किंग की समस्या इन्हीं के कारण से होती है। पिरीयड बंक करने का प्रचलन इसी के आकर्षण से होता है। मित्रों के साथ मजे करने का एक माध्यम मोटरसाइकिल की सवारी । वह दस प्रतिशत उपयोगी और नब्बे प्रतिशत अनिष्टकारी वाहन बन गया है। महाविद्यालयों का किसी भी प्रकार का नैतिक प्रभाव विद्यार्थियों पर नहीं है इसलिये वे उन्हें मोटरसाइकिल के उपयोग से रोक नहीं सकते । परन्तु इसका एकमात्र उपाय नैतिक प्रभाव निर्माण करने का, विद्यार्थियों का प्रबोधन करने का और महाविद्यालय में साइकिल लेकर आने की प्रेरणा देने का है। इसके बाद मोटरसाइकिल लेकर नहीं आने का नियम बनाया जा सकता है।  
 
# वास्तव में साइकिल संस्कृति का विकास करने की आवश्यकता है । सडकों पर साइकिल के लिये अलग से व्यवस्था बन सकती है। पैदल चलनेवालों और साइकिल का प्रयोग करने वालों की प्रतिष्ठा बढनी चाहिये। विद्यालयों ने इसे अपना मिशन बनाना चाहिये । सरकार ने आवाहन करना चाहिये । समाज के प्रतिष्ठित लोगोंं ने नेतृत्व करना चाहिये ।
 
# वास्तव में साइकिल संस्कृति का विकास करने की आवश्यकता है । सडकों पर साइकिल के लिये अलग से व्यवस्था बन सकती है। पैदल चलनेवालों और साइकिल का प्रयोग करने वालों की प्रतिष्ठा बढनी चाहिये। विद्यालयों ने इसे अपना मिशन बनाना चाहिये । सरकार ने आवाहन करना चाहिये । समाज के प्रतिष्ठित लोगोंं ने नेतृत्व करना चाहिये ।
जिस दिन वाहनव्यवस्था और वाहनमानसिकता में परिवर्तन होगा उस दिन से हम स्वास्थ्य, शान्ति और समृद्धि की दिशा में चलना आरम्भ करेंगे।
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जिस दिन वाहनव्यवस्था और वाहन मानसिकता में परिवर्तन होगा उस दिन से हम स्वास्थ्य, शान्ति और समृद्धि की दिशा में चलना आरम्भ करेंगे।
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=== विद्यालय में धनव्यवस्था ===
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=== विद्यालय में ध्वनिव्यवस्था ===
 
# ध्वनि प्रदूषण का क्या अर्थ है ?  
 
# ध्वनि प्रदूषण का क्या अर्थ है ?  
 
# विद्यालय में ध्वनि प्रदूषण किन किन स्रोतों से होता है ?
 
# विद्यालय में ध्वनि प्रदूषण किन किन स्रोतों से होता है ?
 
# अच्छी ध्वनिव्यवस्था का क्या अर्थ है ?  
 
# अच्छी ध्वनिव्यवस्था का क्या अर्थ है ?  
 
# ध्वनि का शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होता है ?  
 
# ध्वनि का शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होता है ?  
# ध्वनि व्यवस्था की दृष्टि से निम्नलिखित बातों में क्या क्या सावधानियां रखनी चाहिये ? १. ध्वनिवर्धक यंत्र २. ध्वनिमुद्रण यंत्र एवं ध्वनमुद्रिकायें ३. ध्वनिक्षेपक यंत्र ४. विद्यालय की विभिन्न प्रकार की घण्टियां ५. कक्षाकक्ष की रचना ६. संगीत के साधन ७. लोगोंं का बोलने का ढंग  
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# ध्वनि व्यवस्था की दृष्टि से निम्नलिखित बातों में क्या क्या सावधानियां रखनी चाहिये ?
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## ध्वनिवर्धक यंत्र  
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## ध्वनिमुद्रण यंत्र एवं ध्वनमुद्रिकायें  
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## ध्वनिक्षेपक यंत्र  
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## विद्यालय की विभिन्न प्रकार की घण्टियां  
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## कक्षाकक्ष की रचना  
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## संगीत के साधन  
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## लोगोंं का बोलने का ढंग  
 
# ध्वनिप्रदूषण का निवारण करने के क्या उपाय है ?
 
# ध्वनिप्रदूषण का निवारण करने के क्या उपाय है ?
 
# अच्छी ध्वनिव्यवस्था के शैक्षिक लाभ क्या हैं ?
 
# अच्छी ध्वनिव्यवस्था के शैक्षिक लाभ क्या हैं ?
Line 441: Line 389:  
जल प्रदूषण, वायु प्रदुषण जैसे शब्दों से हम सुपरिचित हैं। वैसा ही खतरनाक शब्द ध्वनि प्रदूषण भी है। विद्यालयों में इस ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए व्यवस्थयें कैसी हों, यह जानने के लिए प्रश्नावली बनी है। विद्यालयों में होने वाले कोलाहल का नित्य अनुभव करने वाले आचार्यों ने इन आठ प्रश्नों के उत्तर भेजे हैं।
 
जल प्रदूषण, वायु प्रदुषण जैसे शब्दों से हम सुपरिचित हैं। वैसा ही खतरनाक शब्द ध्वनि प्रदूषण भी है। विद्यालयों में इस ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए व्यवस्थयें कैसी हों, यह जानने के लिए प्रश्नावली बनी है। विद्यालयों में होने वाले कोलाहल का नित्य अनुभव करने वाले आचार्यों ने इन आठ प्रश्नों के उत्तर भेजे हैं।
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१. छात्रों के सतत कोलाहल से होने वाले शोर से ही ध्वनि प्रदूषण होता है। ऐसा उनका मत है। २. ध्वनि प्रदूषण के स्रोत में छात्रों का जोर जोर से चिल्लाना, दर के मित्र को चिल्लाकर बुलाना, आस पास की कक्षाओं से ऊँचे स्वर में पढ़ाने की आवाजें आना, सूचनाएँ देने के लिए ध्वनिवर्धक यन्त्र का उपयोग करना आदि । इन सबके साथ साथ जब विद्यालय शहर के मध्य में अथवा मुख्य सड़क पर स्थित है तो आने जाने वाले वाहनों की कर्णकर्कश आवाजों के कारण विद्यार्थी ठीक से सुन नहीं पाते, परिणाम स्वरूप शिक्षकों का उच्चस्वर में बोलना, शिक्षकों द्वारा डस्टर को जोर से टेबल पर मारना आदि बातों से अत्यधिक शोर मचता है। इस ध्वनि प्रदूषण को रोकने हेतु विद्यालय का मुख्य सडक से दूर होना, छात्रों व आचार्यों का चिल्ला कर न बोलना, ध्वनि वर्धक यन्त्र का अनावश्यक उपयोग न करना आदि उपाय सूचित किये हैं।
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छात्रों के सतत कोलाहल से होने वाले शोर से ही ध्वनि प्रदूषण होता है। ऐसा उनका मत है। ध्वनि प्रदूषण के स्रोत में छात्रों का जोर जोर से चिल्लाना, दर के मित्र को चिल्लाकर बुलाना, आस पास की कक्षाओं से ऊँचे स्वर में पढ़ाने की आवाजें आना, सूचनाएँ देने के लिए ध्वनिवर्धक यन्त्र का उपयोग करना आदि । इन सबके साथ साथ जब विद्यालय शहर के मध्य में अथवा मुख्य सड़क पर स्थित है तो आने जाने वाले वाहनों की कर्णकर्कश आवाजों के कारण विद्यार्थी ठीक से सुन नहीं पाते, परिणाम स्वरूप शिक्षकों का उच्चस्वर में बोलना, शिक्षकों द्वारा डस्टर को जोर से टेबल पर मारना आदि बातों से अत्यधिक शोर मचता है। इस ध्वनि प्रदूषण को रोकने हेतु विद्यालय का मुख्य सडक से दूर होना, छात्रों व आचार्यों का चिल्ला कर न बोलना, ध्वनि वर्धक यन्त्र का अनावश्यक उपयोग न करना आदि उपाय सूचित किये हैं।
    
==== अभिमत : ====
 
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