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| ==== अभिमत : ==== | | ==== अभिमत : ==== |
− | प्रश्नावली के दस प्रश्नों में से दो-तीन प्रश्न छोडकर शेष सारे प्रश्न सरल एवं अनुभवजन्य थे । परन्तु उनके उत्तर उतने गहरे व समाधानकारक नहीं थे । सदैव ध्यान में रहना चाहिए । कक्षा में बेचों के नीचे पड़े हुए कागज के टुकडे, फर्निचर पर जमी हुई धूल, दीवारों पर चिपकी हुई टेप, टूटे फर्निचर का ढेर, उद्योग के कालांश में फेला हुआ कचरा, प्रश्नपत्र एवं उत्तर पुस्तिकाओं के बंडल, जमा हुआ पानी, शौचालयों की दुर्गन्ध तथा जगह-जगह पड़ा हुआ कचरा आदि सबको प्रतिदिन दिखाई तो देता है परन्तु यह मेरा घर नहीं है ऐसा विचार सब करते हैं। ऐसे गन्दगी से भरे वातावरण में छात्रों का मन पढ़ने में नहीं लगता । एक बार एक मुख्याध्यापक ने अतिथि को विद्यालय देखने के लिए बुलाया। विद्यालय दिखाने ले जाते समय सीढ़ियों पर कागज के टुकडे पडे हुए थे । टुकडों को देखते ही मुख्याध्यापक ने निकट की चलती कक्षा में से दो छात्रों को बाहर बुलाया । छात्र बाहर आये उससे पहले ही अतिथि ने वे टुकड़े उठा लिये । स्वच्छता आदेश से या निर्देश से नहीं होती, स्वयं करने से होती है। यह सन्देश अतिथि महोदय ने बिना बोले दे दिया। | + | प्रश्नावली के दस प्रश्नों में से दो-तीन प्रश्न छोडकर शेष सारे प्रश्न सरल एवं अनुभवजन्य थे । परन्तु उनके उत्तर उतने गहरे व समाधानकारक नहीं थे । सदैव ध्यान में रहना चाहिए । कक्षा में बेचों के नीचे पड़े हुए कागज के टुकडे, फर्निचर पर जमी हुई धूल, दीवारों पर चिपकी हुई टेप, टूटे फर्निचर का ढेर, उद्योग के कालांश में फेला हुआ कचरा, प्रश्नपत्र एवं उत्तर पुस्तिकाओं के बंडल, जमा हुआ पानी, शौचालयों की दुर्गन्ध तथा जगह-जगह पड़ा हुआ कचरा आदि सबको प्रतिदिन दिखाई तो देता है परन्तु यह मेरा घर नहीं है ऐसा विचार सब करते हैं। ऐसे गन्दगी से भरे वातावरण में छात्रों का मन पढ़ने में नहीं लगता । एक बार एक मुख्याध्यापक ने अतिथि को विद्यालय देखने के लिए बुलाया। विद्यालय दिखाने ले जाते समय सीढ़ियों पर कागज के टुकडे पड़े हुए थे । टुकडों को देखते ही मुख्याध्यापक ने निकट की चलती कक्षा में से दो छात्रों को बाहर बुलाया । छात्र बाहर आये उससे पहले ही अतिथि ने वे टुकड़े उठा लिये । स्वच्छता आदेश से या निर्देश से नहीं होती, स्वयं करने से होती है। यह सन्देश अतिथि महोदय ने बिना बोले दे दिया। |
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| स्वच्छता और पवित्रता में भी भिन्नता है। जो-जो पवित्र है वह स्वच्छ है। परन्तु जो जो स्वच्छ है, वह पवित्र होगा ही ऐसा आवश्यक नहीं है। विद्यालय में स्वच्छता बनाये रखने हेतु स्थान स्थान पर कूडादान रखने होंगे। सफाई करने के पर्याप्त साधन झाडू, बाल्टियाँ, पुराने कपड़े आदि विद्यालय में कक्षाशः अलग उपलब्ध होने चाहिए। जिस किसी छात्र या आचार्य को एक छोटा सा तिनका भी दिखाई दे वह तुरन्त उस तिनके को उठाकर कूड़ादान में डाले, ऐसी आदत सबकी बनानी चाहिए। कोई भी खिड़की से कचरा बाहर न फेंके, गन्दगी करने वाले छात्रों के नाम बताने के स्थान पर स्वच्छता रखने वाले छात्रों के नाम बताना उनको गौरवान्वित करना अधिक प्रेरणादायी होता है। | | स्वच्छता और पवित्रता में भी भिन्नता है। जो-जो पवित्र है वह स्वच्छ है। परन्तु जो जो स्वच्छ है, वह पवित्र होगा ही ऐसा आवश्यक नहीं है। विद्यालय में स्वच्छता बनाये रखने हेतु स्थान स्थान पर कूडादान रखने होंगे। सफाई करने के पर्याप्त साधन झाडू, बाल्टियाँ, पुराने कपड़े आदि विद्यालय में कक्षाशः अलग उपलब्ध होने चाहिए। जिस किसी छात्र या आचार्य को एक छोटा सा तिनका भी दिखाई दे वह तुरन्त उस तिनके को उठाकर कूड़ादान में डाले, ऐसी आदत सबकी बनानी चाहिए। कोई भी खिड़की से कचरा बाहर न फेंके, गन्दगी करने वाले छात्रों के नाम बताने के स्थान पर स्वच्छता रखने वाले छात्रों के नाम बताना उनको गौरवान्वित करना अधिक प्रेरणादायी होता है। |
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| कुछ इस प्रकार से उपाय करने होंगे: | | कुछ इस प्रकार से उपाय करने होंगे: |
− | # हमें मानसिकता बनानी पडेगी कि पैदल चलना अच्छा है। उसमें स्वास्थ्य है, खर्च की बचत है, अच्छाई है और इन्हीं कारणों से प्रतिष्ठा भी है। | + | # हमें मानसिकता बनानी पड़ेगी कि पैदल चलना अच्छा है। उसमें स्वास्थ्य है, खर्च की बचत है, अच्छाई है और इन्हीं कारणों से प्रतिष्ठा भी है। |
| # यह केवल मानसिकता का ही नहीं तो व्यवस्था का भी विषय है। हमें बहुत व्यावहारिक होकर विचार करना होगा। | | # यह केवल मानसिकता का ही नहीं तो व्यवस्था का भी विषय है। हमें बहुत व्यावहारिक होकर विचार करना होगा। |
| # विद्यालय घर से इतना दूर नहीं होना चाहिये कि विद्यार्थी पैदल चलकर न जा सकें । शिशुओं के लिये और प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों के लिये तो वह व्यवस्था अनिवार्य है। यहाँ फिर मानसिकता का प्रश्न अवरोध निर्माण करता है । अच्छे विद्यालय की हमारी कल्पनायें इतनी विचित्र हैं कि हम इन समस्याओं का विचार ही नहीं करते । वास्तव में घर के समीप का सरकारी प्राथमिक विद्यालय या कोई भी निजी विद्यालय हमारे लिये अच्छा विद्यालय ही माना जाना चाहिये । अच्छे विद्यालय के सर्वसामान्य नियमों पर जो विद्यालय खरा नहीं उतरता वह अभिभावकों के दबाव से बन्द हो जाना चाहिये । वास्तविक दृश्य यह दिखाई देता है कि अच्छा नहीं है कहकर जिस विद्यालय में आसपास के लोग अपने बच्चों को नहीं भेजते उनमें दूर दूर से बच्चे पढने के लिये आते ही हैं। निःशुल्क सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को अभिभावक ही अच्छा विद्यालय बना सकते हैं। इस सम्भावना को त्याग कर दूर दूर के विद्यालयों में जाना बुद्धिमानी नहीं है । | | # विद्यालय घर से इतना दूर नहीं होना चाहिये कि विद्यार्थी पैदल चलकर न जा सकें । शिशुओं के लिये और प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों के लिये तो वह व्यवस्था अनिवार्य है। यहाँ फिर मानसिकता का प्रश्न अवरोध निर्माण करता है । अच्छे विद्यालय की हमारी कल्पनायें इतनी विचित्र हैं कि हम इन समस्याओं का विचार ही नहीं करते । वास्तव में घर के समीप का सरकारी प्राथमिक विद्यालय या कोई भी निजी विद्यालय हमारे लिये अच्छा विद्यालय ही माना जाना चाहिये । अच्छे विद्यालय के सर्वसामान्य नियमों पर जो विद्यालय खरा नहीं उतरता वह अभिभावकों के दबाव से बन्द हो जाना चाहिये । वास्तविक दृश्य यह दिखाई देता है कि अच्छा नहीं है कहकर जिस विद्यालय में आसपास के लोग अपने बच्चों को नहीं भेजते उनमें दूर दूर से बच्चे पढने के लिये आते ही हैं। निःशुल्क सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को अभिभावक ही अच्छा विद्यालय बना सकते हैं। इस सम्भावना को त्याग कर दूर दूर के विद्यालयों में जाना बुद्धिमानी नहीं है । |