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हमें बालकों के चारों ओर राष्ट्र तथा देशप्रेम का वायुमंडल निर्माण करना चाहिए । उनकी निष्ठाओं का आधारबिंदु परिवार से बाहर होना चाहिए । हमें उनसे अपने भारत देश के लिए बलिदान, भारत के लिए भक्ति, भारत के लिए ज्ञान का आह्वान करना चाहिए । आदर्श स्वयं लक्ष्य हो; भारत का उत्थान भारत के लिए हो । यह भाव उनके जीवन में प्राण के समान व्याप्त हो । हमें उन्हें विद्यालय और घर दोनों में भारत के विषय में बताते रहना चाहिए ।
 
हमें बालकों के चारों ओर राष्ट्र तथा देशप्रेम का वायुमंडल निर्माण करना चाहिए । उनकी निष्ठाओं का आधारबिंदु परिवार से बाहर होना चाहिए । हमें उनसे अपने भारत देश के लिए बलिदान, भारत के लिए भक्ति, भारत के लिए ज्ञान का आह्वान करना चाहिए । आदर्श स्वयं लक्ष्य हो; भारत का उत्थान भारत के लिए हो । यह भाव उनके जीवन में प्राण के समान व्याप्त हो । हमें उन्हें विद्यालय और घर दोनों में भारत के विषय में बताते रहना चाहिए ।
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राष्ट्र के पुननिर्माण की प्रक्रिया का आरंभ उसके arent की व्याख्या से करना होगा । यह इसलिए कि राष्ट्र में हमें तीन मूलभूत तत्त्वों का विचार करना है पहला देश अथवा क्षेत्र, दूसरा हमारा समाज और तीसरा राष्ट्रमानस । इनमें से अंतिम सर्वाधिक प्रभावशाली और सर्वनिदेशक है । उसको शक्तिशाली बनाकर हम शेष किसी एक या दोनों तत्त्वों में संशोधन, यहाँ तक कि उसकी पुरनरचना भी कर सकते हैं, जबकि इन दोनों तत्त्वों का उस पर प्रभाव अपेक्षाकृत क्षीण तथा अप्रत्यक्ष है । मनोशक्ति के द्वारा तो चाहे जितनी जड़ एवं दिद्रोही वस्तु का भी कायाकल्प
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राष्ट्र के पुननिर्माण की प्रक्रिया का आरंभ उसके arent की व्याख्या से करना होगा । यह अतः कि राष्ट्र में हमें तीन मूलभूत तत्त्वों का विचार करना है पहला देश अथवा क्षेत्र, दूसरा हमारा समाज और तीसरा राष्ट्रमानस । इनमें से अंतिम सर्वाधिक प्रभावशाली और सर्वनिदेशक है । उसको शक्तिशाली बनाकर हम शेष किसी एक या दोनों तत्त्वों में संशोधन, यहाँ तक कि उसकी पुरनरचना भी कर सकते हैं, जबकि इन दोनों तत्त्वों का उस पर प्रभाव अपेक्षाकृत क्षीण तथा अप्रत्यक्ष है । मनोशक्ति के द्वारा तो चाहे जितनी जड़ एवं दिद्रोही वस्तु का भी कायाकल्प
    
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प्रत्यक्ष अनुभव
 
प्रत्यक्ष अनुभव
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गांधीजी के शिक्षा संबंधी विचार किताबी ज्ञान पर आधारित नहीं थे । जनवरी १८९७ में गांधीजी दक्षिण आफ्रीका वापस लौटकर डरबन में अपने परिवार के साथ रहने लगे । उस समय उनके तीन बच्चे थे, जिनकी आयु क्रमशः दस, आठ और पाँच वर्ष थी । उनकी शिक्षा का प्रश्न जब उपस्थित हुआ तो सबसे पहले उनके मन में शिक्षा संबंधी विचार उठे । गांधीजी के शब्दों में - “बच्चे एक सुन्यवस्थित घर में कुदरती तौर पर जो शिक्षा ग्रहण करते हैं, वह छात्रावासों में मिलना असंभव है; इसलिए मैंने अपने बच्चों को अपने साथ रखा ।' कुछ धंधों के माध्यम से गांधीजी ने अपने बच्चों को शिक्षा देना प्रारंभ कर दिया । सन्‌ १९०४ में गांधीजीने अपने साथियों के सहयोग से डरबन से १४ मील दूर एवं फीनिक्स स्टेशन से २.५ मील दूर २० एकड़ भूमि पर “फीनिक्स परिवार नाम से एक आश्रम की स्थापना की और वहाँ के बच्चों की शिक्षा- दीक्षा का प्रबंध किया । सन्‌ १९०९ में ट्रांससाल नामक स्थान पर “टॉल्स्टॉय आश्रम' की स्थापना करके गांधीजीने उपयोगी शिक्षा-पद्धति खोज निकालने का संकल्प लिया । फीनिक्स परिवार के अनुभव उनके पास थे ही । टॉल्स्टॉय आश्रम में उन्होंने अपनी दो मूलभूत धारणाओं को मूर्तरूप दिया । उनकी पहली धारणा यह थी कि सच्ची शिक्षा माता-पिता ही दे सकते हैं । अतः उन्होंने आश्रम में अपने को पिता के स्थान पर रखकर कार्यारिंभ किया । उनकी दूसरी धारणा थी कि सच्ची शिक्षा की नींव चरित्र-निर्माण है । अतः टॉल्स्टॉय आश्रम में चरित्र-निर्माण पर बल था ।
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गांधीजी के शिक्षा संबंधी विचार किताबी ज्ञान पर आधारित नहीं थे । जनवरी १८९७ में गांधीजी दक्षिण आफ्रीका वापस लौटकर डरबन में अपने परिवार के साथ रहने लगे । उस समय उनके तीन बच्चे थे, जिनकी आयु क्रमशः दस, आठ और पाँच वर्ष थी । उनकी शिक्षा का प्रश्न जब उपस्थित हुआ तो सबसे पहले उनके मन में शिक्षा संबंधी विचार उठे । गांधीजी के शब्दों में - “बच्चे एक सुन्यवस्थित घर में कुदरती तौर पर जो शिक्षा ग्रहण करते हैं, वह छात्रावासों में मिलना असंभव है; अतः मैंने अपने बच्चों को अपने साथ रखा ।' कुछ धंधों के माध्यम से गांधीजी ने अपने बच्चों को शिक्षा देना प्रारंभ कर दिया । सन्‌ १९०४ में गांधीजीने अपने साथियों के सहयोग से डरबन से १४ मील दूर एवं फीनिक्स स्टेशन से २.५ मील दूर २० एकड़ भूमि पर “फीनिक्स परिवार नाम से एक आश्रम की स्थापना की और वहाँ के बच्चों की शिक्षा- दीक्षा का प्रबंध किया । सन्‌ १९०९ में ट्रांससाल नामक स्थान पर “टॉल्स्टॉय आश्रम' की स्थापना करके गांधीजीने उपयोगी शिक्षा-पद्धति खोज निकालने का संकल्प लिया । फीनिक्स परिवार के अनुभव उनके पास थे ही । टॉल्स्टॉय आश्रम में उन्होंने अपनी दो मूलभूत धारणाओं को मूर्तरूप दिया । उनकी पहली धारणा यह थी कि सच्ची शिक्षा माता-पिता ही दे सकते हैं । अतः उन्होंने आश्रम में अपने को पिता के स्थान पर रखकर कार्यारिंभ किया । उनकी दूसरी धारणा थी कि सच्ची शिक्षा की नींव चरित्र-निर्माण है । अतः टॉल्स्टॉय आश्रम में चरित्र-निर्माण पर बल था ।
    
गांधीजी जब भारत आए तो कुछ समय शांति निकेतन में रहने के बाद उन्होंने अहमदाबाद के समीप साबरमती आश्रम की स्थापना की । साबरमती आश्रम में उन्होंने उत्पादक उद्योगों की ओर बालकों का ध्यान आकृष्ट किया और साक्षरता के साथ-साथ किसी उद्योग को सीखने के लिए बालकों को प्रोत्साहित किया । साबरमती के बाद गांधीजी वर्धा जिले के सेवाग्राम में रहने लगे, यहाँ पर भी आश्रम के बच्चों पर उनके शिक्षा-प्रयोग चलते रहे ।
 
गांधीजी जब भारत आए तो कुछ समय शांति निकेतन में रहने के बाद उन्होंने अहमदाबाद के समीप साबरमती आश्रम की स्थापना की । साबरमती आश्रम में उन्होंने उत्पादक उद्योगों की ओर बालकों का ध्यान आकृष्ट किया और साक्षरता के साथ-साथ किसी उद्योग को सीखने के लिए बालकों को प्रोत्साहित किया । साबरमती के बाद गांधीजी वर्धा जिले के सेवाग्राम में रहने लगे, यहाँ पर भी आश्रम के बच्चों पर उनके शिक्षा-प्रयोग चलते रहे ।

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