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अमेरिका में मूल रूप से प्रोटेस्टंट ईसाई रहते थे । अभी तो सारे लोग बाहर के देशों से आकर बसे हुए हैं । सर्व प्रथम युरोप से आये लोग १३ कॉलोनी बनाकर रहे थे । १७७६ में ब्रिटन के लोग आये, बाद में जर्मनी और इटली से, १९वीं शताब्दी में चीन और जापान से, तथा २०वीं शताब्दी में भारत से तथा मध्य पूर्व देशों से लोग आकर वहाँ बसने लगे । वहाँ बसने वालों में नीग्रो की संख्या भी बहुत बड़ी थी। ये सब अलग अलग होने के बावजूद अमेरिका ने अपना एक अमेरिकन कल्चर विकसित किया।
 
अमेरिका में मूल रूप से प्रोटेस्टंट ईसाई रहते थे । अभी तो सारे लोग बाहर के देशों से आकर बसे हुए हैं । सर्व प्रथम युरोप से आये लोग १३ कॉलोनी बनाकर रहे थे । १७७६ में ब्रिटन के लोग आये, बाद में जर्मनी और इटली से, १९वीं शताब्दी में चीन और जापान से, तथा २०वीं शताब्दी में भारत से तथा मध्य पूर्व देशों से लोग आकर वहाँ बसने लगे । वहाँ बसने वालों में नीग्रो की संख्या भी बहुत बड़ी थी। ये सब अलग अलग होने के बावजूद अमेरिका ने अपना एक अमेरिकन कल्चर विकसित किया।
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इसलिये सेम्युअल हंटिंग्टन ने कल्चर देट मेटर तथा क्लेशिज ऑफ सिविलाईझेशन में निर्देश दिया है उसके अनुसार सामान्य रूप से लोगों की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान संघर्ष का कारण होने के बावजूद अमेरिका में अलग अलग देशों से, अलग अलग धर्म में आस्था रखने वाले, अलग पार्श्वभूमि से, अलग सांस्कृतिक धारा से, विविध उपासना पद्धति से आने के बाद भी सब को अमेरिकन कल्चर के आधार पर जीना है और वे जी रहे हैं।
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इसलिये सेम्युअल हंटिंग्टन ने कल्चर देट मेटर तथा क्लेशिज ऑफ सिविलाईझेशन में निर्देश दिया है उसके अनुसार सामान्य रूप से लोगोंं की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान संघर्ष का कारण होने के बावजूद अमेरिका में अलग अलग देशों से, अलग अलग धर्म में आस्था रखने वाले, अलग पार्श्वभूमि से, अलग सांस्कृतिक धारा से, विविध उपासना पद्धति से आने के बाद भी सब को अमेरिकन कल्चर के आधार पर जीना है और वे जी रहे हैं।
    
== औपनिवेशिक विरोधी राष्ट्रीयता ==
 
== औपनिवेशिक विरोधी राष्ट्रीयता ==
१८वी शताब्दी में युरोप के लोगों ने पूरे आफ्रिका पर आक्रमण कर दिया । आफ्रिका के जनजाति समुदाय युरोपिअन सेना और ईसाई मिशनरियों का सामना नहीं कर सके और अपना टिकाव नहीं कर सके । १९वीं शताब्दी के प्रारंभ तक तो युरोप ने संपूर्ण आफ्रिका को युरोप का उपनिवेश बना दिया। वहाँ के लोगों का शोषण किया और उनकी जनजाति संस्कृति का पूर्ण विध्वंस किया, वहां के प्राकृतिक संसाधनों को लूटा । अपनी भू राजनैतिक शक्ति के आधार पर दूसरे समाज को, देशों को लूटने का, उनका सर्वनाश करने का, उन्हें समाप्त कर देने का यह उदाहरण सारे सभ्य समाज को लज्जित करनेवाला है।
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१८वी शताब्दी में युरोप के लोगोंं ने पूरे आफ्रिका पर आक्रमण कर दिया । आफ्रिका के जनजाति समुदाय युरोपिअन सेना और ईसाई मिशनरियों का सामना नहीं कर सके और अपना टिकाव नहीं कर सके । १९वीं शताब्दी के प्रारंभ तक तो युरोप ने संपूर्ण आफ्रिका को युरोप का उपनिवेश बना दिया। वहाँ के लोगोंं का शोषण किया और उनकी जनजाति संस्कृति का पूर्ण विध्वंस किया, वहां के प्राकृतिक संसाधनों को लूटा । अपनी भू राजनैतिक शक्ति के आधार पर दूसरे समाज को, देशों को लूटने का, उनका सर्वनाश करने का, उन्हें समाप्त कर देने का यह उदाहरण सारे सभ्य समाज को लज्जित करनेवाला है।
    
इसमें केवल इथोपिया अपवाद रहा । वहाँ के राजा मनेलिक दूसरे के धैर्य, पराक्रम, कूटनीति और कुशलता के कारण १ मार्च १८९६ के दिन इथोपिया अडोवा युद्ध (Battle of -dowa) जीत गया और इटली हार गया । इथोपिया अपनी स्वतंत्रता की रक्षा कर सका। लेकिन उसके बाद पूरा आफ्रिका अनेक नेशन्स में विभाजित हो गया । १८४७ से १९५० तक युरोप के आधिपत्य के कारण आफ्रिका की मूल जातियों की संस्कृति नष्ट हो गई और आफ्रिका में अनेक राष्ट्रों की सीमाओं का निर्माण हुआ।
 
इसमें केवल इथोपिया अपवाद रहा । वहाँ के राजा मनेलिक दूसरे के धैर्य, पराक्रम, कूटनीति और कुशलता के कारण १ मार्च १८९६ के दिन इथोपिया अडोवा युद्ध (Battle of -dowa) जीत गया और इटली हार गया । इथोपिया अपनी स्वतंत्रता की रक्षा कर सका। लेकिन उसके बाद पूरा आफ्रिका अनेक नेशन्स में विभाजित हो गया । १८४७ से १९५० तक युरोप के आधिपत्य के कारण आफ्रिका की मूल जातियों की संस्कृति नष्ट हो गई और आफ्रिका में अनेक राष्ट्रों की सीमाओं का निर्माण हुआ।
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== साम्यवादियों का अति राष्ट्रवाद ==
 
== साम्यवादियों का अति राष्ट्रवाद ==
वामपंथियों की हिंसा से प्रेरित राष्ट्रीयता के कारण भी विश्व में मानवता का शोषण हुआ है। सोवियत रशिया -सोवियत युनिअन ने जार की वसाहतों एवं एशिया और युरोप में अनेक आक्रमण किये और अपने साम्राज्य का विस्तार किया। मध्य एशिया के कजाकिस्थान, किरालिस्थान, तनकिस्थान, उजबेकिस्थान और तुर्कमेनिस्थान के करोड़ों लोगों को मार डाला। रशियन राष्ट्रवाद और रशियन साम्राज्यवाद की मानसिकताने वहां की अरबी भाषा को बदल दिया, अनेक देशों की मूल भाषा और संस्कृति को नष्ट किया। इस प्रकार ७० वर्ष तक साम्राज्यवाद की भावना से राज्य चलाने के बाद भी आखिर में १९८९-९० में सोवियत युनिअन बिखर गया, सारे देश स्वतंत्र हो गये। केवल रशिया देश राष्ट्र (नेशन) बचा रहा । अर्थात् राज्य राष्ट्र बनने का आधार नहीं है, सांस्कृतिक आधार ही 'राष्ट्' के नाते जीने का शाश्वत आधार दीखाई देता है।  
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वामपंथियों की हिंसा से प्रेरित राष्ट्रीयता के कारण भी विश्व में मानवता का शोषण हुआ है। सोवियत रशिया -सोवियत युनिअन ने जार की वसाहतों एवं एशिया और युरोप में अनेक आक्रमण किये और अपने साम्राज्य का विस्तार किया। मध्य एशिया के कजाकिस्थान, किरालिस्थान, तनकिस्थान, उजबेकिस्थान और तुर्कमेनिस्थान के करोड़ों लोगोंं को मार डाला। रशियन राष्ट्रवाद और रशियन साम्राज्यवाद की मानसिकताने वहां की अरबी भाषा को बदल दिया, अनेक देशों की मूल भाषा और संस्कृति को नष्ट किया। इस प्रकार ७० वर्ष तक साम्राज्यवाद की भावना से राज्य चलाने के बाद भी आखिर में १९८९-९० में सोवियत युनिअन बिखर गया, सारे देश स्वतंत्र हो गये। केवल रशिया देश राष्ट्र (नेशन) बचा रहा । अर्थात् राज्य राष्ट्र बनने का आधार नहीं है, सांस्कृतिक आधार ही 'राष्ट्' के नाते जीने का शाश्वत आधार दीखाई देता है।  
    
== धार्मिक राष्ट्रवाद ==
 
== धार्मिक राष्ट्रवाद ==
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अंग्रेजों के कालखंड में कुटिलता से, शिक्षा पद्धति बदल कर भावनात्मक दासता का निर्माण किया गया । अंग्रेजों का मानना था कि भारत समाप्त हो जायेगा । इ.स. १७५७ से लेकर १९४७ तक वे भारत को लूटते रहे फिर भी भारत भारत बना रहा क्योंकि समाज की रक्षा करने वाला सांस्कृतिक प्रवाह विद्यमान था। रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, नारायण गुरु, योगी अरविंद, बंकिम चन्द्र, सुब्रह्मण्यम भारती जैसे अनेक महानुभावों ने सांस्कृतिक जागरण किया।
 
अंग्रेजों के कालखंड में कुटिलता से, शिक्षा पद्धति बदल कर भावनात्मक दासता का निर्माण किया गया । अंग्रेजों का मानना था कि भारत समाप्त हो जायेगा । इ.स. १७५७ से लेकर १९४७ तक वे भारत को लूटते रहे फिर भी भारत भारत बना रहा क्योंकि समाज की रक्षा करने वाला सांस्कृतिक प्रवाह विद्यमान था। रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, नारायण गुरु, योगी अरविंद, बंकिम चन्द्र, सुब्रह्मण्यम भारती जैसे अनेक महानुभावों ने सांस्कृतिक जागरण किया।
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स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद भी स्वार्थी राजनीति के लोगों ने तथा विदेश प्रेरित लोगों ने राष्ट्र को तोड़ने के कई प्रयास किये । पूर्वोत्तर भारत एवं सीमावर्ती प्रान्तों को भारत से अलग करने के अनेक प्रयास हुए । भाषा एवं जाति भेद बढ़ा कर देश को तोड़ने के प्रयास हुए। परंतु भारत राष्ट्र के नाते विजयी होते हुए आगे ही बढ़ रहा है उसका कारण हमारी सांस्कृतिक एकता है।
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स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद भी स्वार्थी राजनीति के लोगोंं ने तथा विदेश प्रेरित लोगोंं ने राष्ट्र को तोड़ने के कई प्रयास किये । पूर्वोत्तर भारत एवं सीमावर्ती प्रान्तों को भारत से अलग करने के अनेक प्रयास हुए । भाषा एवं जाति भेद बढ़ा कर देश को तोड़ने के प्रयास हुए। परंतु भारत राष्ट्र के नाते विजयी होते हुए आगे ही बढ़ रहा है उसका कारण हमारी सांस्कृतिक एकता है।
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प्राचीन समय में भारत के मनीषी विश्व के अनेक देशों में गये थे। वहाँ उन्होंने सेवा और ज्ञान में बहुत योगदान किया परंतु वहाँ के लोगों का कभी शोषण नहीं किया। इतना ही नहीं तो जहाँ भी स्थानिक लोगों पर विदेशीयों द्वारा अत्याचार होते थे वहां के लोगों को भारत में आश्रय भी दिया गया था और प्रेम भी दिया था। सिरिअन लोगों पर जब उनके ही ईसाई देश में अत्याचार हुआ तब भारत ने ही उनको आश्रय दिया था। यह भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विशेषता है ।
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प्राचीन समय में भारत के मनीषी विश्व के अनेक देशों में गये थे। वहाँ उन्होंने सेवा और ज्ञान में बहुत योगदान किया परंतु वहाँ के लोगोंं का कभी शोषण नहीं किया। इतना ही नहीं तो जहाँ भी स्थानिक लोगोंं पर विदेशीयों द्वारा अत्याचार होते थे वहां के लोगोंं को भारत में आश्रय भी दिया गया था और प्रेम भी दिया था। सिरिअन लोगोंं पर जब उनके ही ईसाई देश में अत्याचार हुआ तब भारत ने ही उनको आश्रय दिया था। यह भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विशेषता है ।
    
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा में देश को माता मान कर समाज उसका पुत्र है इस रूप में व्यवहार करता है। इस भूमि में जन्म लेकर इस राष्ट्र के लिये अनेक महापुरुषों ने अपना जीवन समर्पित किया । शरणागत शत्रु और मित्र के साथ उनका व्यवहार समान रहा ।
 
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा में देश को माता मान कर समाज उसका पुत्र है इस रूप में व्यवहार करता है। इस भूमि में जन्म लेकर इस राष्ट्र के लिये अनेक महापुरुषों ने अपना जीवन समर्पित किया । शरणागत शत्रु और मित्र के साथ उनका व्यवहार समान रहा ।
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# असम (गुवाहाटी) में ४२ जनजातियों के प्रमुख नेताओं का सम्मेलन हुआ। सेंकड़ों लोग उसमें सहभागी हुए थे। सभी जनजाति के प्रमुखों ने 'धरती हमारी माता है, हम धरती को पवित्र मानते हैं, उसकी पूजा करते हैं ऐसा बताया।  
 
# असम (गुवाहाटी) में ४२ जनजातियों के प्रमुख नेताओं का सम्मेलन हुआ। सेंकड़ों लोग उसमें सहभागी हुए थे। सभी जनजाति के प्रमुखों ने 'धरती हमारी माता है, हम धरती को पवित्र मानते हैं, उसकी पूजा करते हैं ऐसा बताया।  
 
# दूसरा प्रश्न पूछा गया, 'आप अपने भगवान से क्या मांगते हैं ?' तब उन्होंने बताया कि वे अपनी पूजा में सब के कल्याण की कामना करते हैं।अपने गाँव, अपने परिवार के साथ धरती पर के सभी जीवों के सुख की कामना करते हैं।  
 
# दूसरा प्रश्न पूछा गया, 'आप अपने भगवान से क्या मांगते हैं ?' तब उन्होंने बताया कि वे अपनी पूजा में सब के कल्याण की कामना करते हैं।अपने गाँव, अपने परिवार के साथ धरती पर के सभी जीवों के सुख की कामना करते हैं।  
# तीसरा प्रश्न पूछा गया, 'आप अपनी जनजाति से भिन्न अन्य जन जाति की पूजा पद्धति की आलोचना अथवा निन्दा करते हैं क्या ? क्या अन्य पूजा पद्धति वाली जातियाँ आपकी पूजा पद्धति में शामिल हो जाय ऐसी अपेक्षा आप रखते हैं?' तब उत्तर में सभी ने कहा ' नहीं हम ऐसा कभी नहीं करते हैं। हम सब की पूजापद्धतियों को अच्छा मानते हैं और उनका सम्मान करते हैं। सब लोगों के लिये यह बात आश्चर्यजनक थी।  
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# तीसरा प्रश्न पूछा गया, 'आप अपनी जनजाति से भिन्न अन्य जन जाति की पूजा पद्धति की आलोचना अथवा निन्दा करते हैं क्या ? क्या अन्य पूजा पद्धति वाली जातियाँ आपकी पूजा पद्धति में शामिल हो जाय ऐसी अपेक्षा आप रखते हैं?' तब उत्तर में सभी ने कहा ' नहीं हम ऐसा कभी नहीं करते हैं। हम सब की पूजापद्धतियों को अच्छा मानते हैं और उनका सम्मान करते हैं। सब लोगोंं के लिये यह बात आश्चर्यजनक थी।  
    
== विश्व का उदाहरण ==
 
== विश्व का उदाहरण ==
विश्व सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र (International center for cultural studies) द्वारा हर पाँच वर्ष में एक बार विश्व सम्मेलन होता है। हरिद्वार में आयोजित ऐसे एक सम्मेलन में ४० देशों से वहां के मूल निवासी -प्रकृति पूजक लोग आये हुए थे। प्रतिदिन प्रातः काल में सब अपने अपने इष्ट देवों की, अपनी अपनी भाषा में, अपनी अपनी पद्धति से पूजा करते थे। पूजा में वे क्या कामना करते थे ऐसा पूछने पर उन्हों ने बताया कि 'धरती हमारे लिये पवित्र है, जल पवित्र है, अग्नि भी पूजनीय है इसलिये उनकी कृपा के लिये प्रार्थना करते थे और अपने परिवार के, गाँव के, पृथ्वी के लोगों की तथा संपूर्ण जीव सृष्टि के कल्याण की कामना करते थे।' यह सुनकर सभी को बहुत आश्चर्य हुआ, आनंद हुआ।  
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विश्व सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र (International center for cultural studies) द्वारा हर पाँच वर्ष में एक बार विश्व सम्मेलन होता है। हरिद्वार में आयोजित ऐसे एक सम्मेलन में ४० देशों से वहां के मूल निवासी -प्रकृति पूजक लोग आये हुए थे। प्रतिदिन प्रातः काल में सब अपने अपने इष्ट देवों की, अपनी अपनी भाषा में, अपनी अपनी पद्धति से पूजा करते थे। पूजा में वे क्या कामना करते थे ऐसा पूछने पर उन्हों ने बताया कि 'धरती हमारे लिये पवित्र है, जल पवित्र है, अग्नि भी पूजनीय है इसलिये उनकी कृपा के लिये प्रार्थना करते थे और अपने परिवार के, गाँव के, पृथ्वी के लोगोंं की तथा संपूर्ण जीव सृष्टि के कल्याण की कामना करते थे।' यह सुनकर सभी को बहुत आश्चर्य हुआ, आनंद हुआ।  
    
== निष्कर्ष ==
 
== निष्कर्ष ==

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