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आपको सुखी होना है तो शिक्षाक्षेत्र से स्पर्धा के तत्त्व को निष्कासित कर देना होगा। बात एकदम से आपकी समझ में नहीं आयेगी क्योंकि स्पर्धा की प्रतिष्ठा के मूल आपकी सर्वश्रेष्ठ बनने की लालसा में हैं। क्या आपने अपने ही बारे में कभी सोचा है कि आप श्रेष्ठ नहीं सर्वश्रेष्ठ बनना चाहते हैं । श्रेष्ठ बनना तो अच्छा है परन्तु सर्वश्रेष्ठ बनने की चाह रखना अमानवीय है और हिंसा है । दूसरों से आगे निकलना, दूसरों को पीछे रखना अच्छी चाह नहीं है। मानवीय सम्बन्धों के क्षेत्र में यह अनेक दूषणों को जन्म देती है। स्पर्धा, संघर्ष, हिंसा और नाश इसके अनिवार्य चरण हैं। दुःख दौर्मनस्य, मारकाट और बुद्धि इसके अनिवार्य परिणाम हैं । विश्व के सुख और शान्ति का नाश करने वाले इस स्पर्धा के तत्त्व को तो जीवन से निष्कासित करना शिक्षा ही सिखाती है परन्तु आपने शिक्षा को ही स्पर्धा से दूषित कर दिया है। वह इतनी प्रभावी बन गई है कि कक्षाकक्षों से निकलकर सम्पूर्ण जीवन में व्याप्त हो गई है। इससे मुक्त होना आपके लिये भारी चुनौती है परन्तु उस चुनौती का स्वीकार किये बिना आपकी सद्गति नहीं होगी।
 
आपको सुखी होना है तो शिक्षाक्षेत्र से स्पर्धा के तत्त्व को निष्कासित कर देना होगा। बात एकदम से आपकी समझ में नहीं आयेगी क्योंकि स्पर्धा की प्रतिष्ठा के मूल आपकी सर्वश्रेष्ठ बनने की लालसा में हैं। क्या आपने अपने ही बारे में कभी सोचा है कि आप श्रेष्ठ नहीं सर्वश्रेष्ठ बनना चाहते हैं । श्रेष्ठ बनना तो अच्छा है परन्तु सर्वश्रेष्ठ बनने की चाह रखना अमानवीय है और हिंसा है । दूसरों से आगे निकलना, दूसरों को पीछे रखना अच्छी चाह नहीं है। मानवीय सम्बन्धों के क्षेत्र में यह अनेक दूषणों को जन्म देती है। स्पर्धा, संघर्ष, हिंसा और नाश इसके अनिवार्य चरण हैं। दुःख दौर्मनस्य, मारकाट और बुद्धि इसके अनिवार्य परिणाम हैं । विश्व के सुख और शान्ति का नाश करने वाले इस स्पर्धा के तत्त्व को तो जीवन से निष्कासित करना शिक्षा ही सिखाती है परन्तु आपने शिक्षा को ही स्पर्धा से दूषित कर दिया है। वह इतनी प्रभावी बन गई है कि कक्षाकक्षों से निकलकर सम्पूर्ण जीवन में व्याप्त हो गई है। इससे मुक्त होना आपके लिये भारी चुनौती है परन्तु उस चुनौती का स्वीकार किये बिना आपकी सद्गति नहीं होगी।
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आपके सुखी और समृद्ध जीवन के लिये आपको और एक बात करनी होगी। आपके पदार्थों, प्राणियों, बनस्पति और मनुष्यों के साथ के सम्बन्धों में भी परिवर्तन
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आपके सुखी और समृद्ध जीवन के लिये आपको और एक बात करनी होगी। आपके पदार्थों, प्राणियों, बनस्पति और मनुष्यों के साथ के सम्बन्धों में भी परिवर्तन करना होगा। ये सम्बन्ध सर्वप्रथम तो आत्मीयता के बनाने होंगे। यदि आप सृष्टि की हर सत्ता के साथ प्रेम से नहीं जुड़ेंगे तो सुखी कैसे हो सकेंगे ? यह विश्व प्रेम, ज्ञान, धर्म और सत्य के आधार पर ही चलती है । यह केवल भारतीय सिद्धान्त नहीं है, यह सार्वभौम सिद्दान्त है । आपको भी इस का स्वीकार करना होगा। यह सत्य आपको कौन सिखायेगा ? आपके विश्वविद्यालयों को ही इस विषय में पहल करनी होगी। विद्वजन वैश्विक स्तर पर अध्ययन करेंगे तो कुछ कर पायेंगे। विश्व के अन्यान्य देशों के साथ विमर्श करना और सही निष्कर्ष पर पहुँचना उनका ही काम है। परन्तु उन्हें ऐसा करने हेतु निवेदन करना आपका काम है। हर समस्या का ज्ञानात्मक हल ही श्रेष्ठ हल होता है । इस दृष्टि से विश्वविद्यालयों को सक्रिया होना ही होगा।
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भारत मानता है कि शिक्षा धर्म सिखाती है। हमने पहले ही कहा है कि आपके विचारविश्व में धर्म की संकल्पना बताने वाली एक भी संज्ञा नहीं है। धर्म कहते ही हम जो समझते हैं वह आपकी कल्पना में नहीं आता। आपने हमारे धर्म को रिलीजन कहकर बडा घालमेल कर दिया है । आप जिसे एथिक्स, युनिवर्सल लॉ, नेचर, ड्यूटी, रिलीजन कहते है उन सबका समावेश हमारे धर्म शब्द में होता है । आप यदि धर्म संकल्पना को समझ लेंगे तो धर्म और शिक्षा का सम्बन्ध कैसा है वह भी समझ में आ जायेगा । आपकी बुद्धि यह देखकर स्तिमित हो जायेगी कि इस धर्म संकल्पना ने ही भारत को चिरंजीव बनाया है। आपको भी यदि सुख, समृद्धि, वैभव, दीर्घ आयु शान्ति और सर्वतोमुखी विकास की आकांक्षा है तो धर्मानुसारी
    
==References==
 
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