आप ऐसा मनोविज्ञान पढाते है कि कामप्रवृत्ति को ही मान्यता दे देते हैं । आप ऐसा भौतिक विज्ञान पढाते हैं जो जीवन की हर भावना, तत्त्व, प्रक्रिया, अनुभूति, संवेदना - स्वयं जीवन - को निर्जीव पदार्थ बना देता है और 'सर्वशास्रप्रधानम्' का दर्जा प्राप्त कर लेता है । इस कारण से आपको लगता है कि आपने असीम वैभव प्राप्त कर लिया है और प्रकृति को अपना दास बना लिया है । परन्तु आपने बहुत बडी मूल्यवान बातों को खो दिया है । जीवन का और जीवन के आनन्द का तो आपको स्पर्श भी नहीं हुआ है । प्रकृति को अपना दास बना लेना सिद्धि नहीं है, विजय नहीं है, प्रकृति के प्रेम और आशीर्वाद से आप वंचित हो जाते हैं और आपको अहेसास भी नहीं होता कि आपने कितनी मूल्यवान चीज को खो दिया है। | आप ऐसा मनोविज्ञान पढाते है कि कामप्रवृत्ति को ही मान्यता दे देते हैं । आप ऐसा भौतिक विज्ञान पढाते हैं जो जीवन की हर भावना, तत्त्व, प्रक्रिया, अनुभूति, संवेदना - स्वयं जीवन - को निर्जीव पदार्थ बना देता है और 'सर्वशास्रप्रधानम्' का दर्जा प्राप्त कर लेता है । इस कारण से आपको लगता है कि आपने असीम वैभव प्राप्त कर लिया है और प्रकृति को अपना दास बना लिया है । परन्तु आपने बहुत बडी मूल्यवान बातों को खो दिया है । जीवन का और जीवन के आनन्द का तो आपको स्पर्श भी नहीं हुआ है । प्रकृति को अपना दास बना लेना सिद्धि नहीं है, विजय नहीं है, प्रकृति के प्रेम और आशीर्वाद से आप वंचित हो जाते हैं और आपको अहेसास भी नहीं होता कि आपने कितनी मूल्यवान चीज को खो दिया है। |