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आपके सुखी और समृद्ध जीवन के लिये आपको और एक बात करनी होगी। आपके पदार्थों, प्राणियों, बनस्पति और मनुष्यों के साथ के सम्बन्धों में भी परिवर्तन करना होगा। ये सम्बन्ध सर्वप्रथम तो आत्मीयता के बनाने होंगे। यदि आप सृष्टि की हर सत्ता के साथ प्रेम से नहीं जुड़ेंगे तो सुखी कैसे हो सकेंगे ? यह विश्व प्रेम, ज्ञान, धर्म और सत्य के आधार पर ही चलती है । यह केवल भारतीय सिद्धान्त नहीं है, यह सार्वभौम सिद्दान्त है । आपको भी इस का स्वीकार करना होगा। यह सत्य आपको कौन सिखायेगा ? आपके विश्वविद्यालयों को ही इस विषय में पहल करनी होगी। विद्वजन वैश्विक स्तर पर अध्ययन करेंगे तो कुछ कर पायेंगे। विश्व के अन्यान्य देशों के साथ विमर्श करना और सही निष्कर्ष पर पहुँचना उनका ही काम है। परन्तु उन्हें ऐसा करने हेतु निवेदन करना आपका काम है। हर समस्या का ज्ञानात्मक हल ही श्रेष्ठ हल होता है । इस दृष्टि से विश्वविद्यालयों को सक्रिया होना ही होगा।
 
आपके सुखी और समृद्ध जीवन के लिये आपको और एक बात करनी होगी। आपके पदार्थों, प्राणियों, बनस्पति और मनुष्यों के साथ के सम्बन्धों में भी परिवर्तन करना होगा। ये सम्बन्ध सर्वप्रथम तो आत्मीयता के बनाने होंगे। यदि आप सृष्टि की हर सत्ता के साथ प्रेम से नहीं जुड़ेंगे तो सुखी कैसे हो सकेंगे ? यह विश्व प्रेम, ज्ञान, धर्म और सत्य के आधार पर ही चलती है । यह केवल भारतीय सिद्धान्त नहीं है, यह सार्वभौम सिद्दान्त है । आपको भी इस का स्वीकार करना होगा। यह सत्य आपको कौन सिखायेगा ? आपके विश्वविद्यालयों को ही इस विषय में पहल करनी होगी। विद्वजन वैश्विक स्तर पर अध्ययन करेंगे तो कुछ कर पायेंगे। विश्व के अन्यान्य देशों के साथ विमर्श करना और सही निष्कर्ष पर पहुँचना उनका ही काम है। परन्तु उन्हें ऐसा करने हेतु निवेदन करना आपका काम है। हर समस्या का ज्ञानात्मक हल ही श्रेष्ठ हल होता है । इस दृष्टि से विश्वविद्यालयों को सक्रिया होना ही होगा।
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भारत मानता है कि शिक्षा धर्म सिखाती है। हमने पहले ही कहा है कि आपके विचारविश्व में धर्म की संकल्पना बताने वाली एक भी संज्ञा नहीं है। धर्म कहते ही हम जो समझते हैं वह आपकी कल्पना में नहीं आता। आपने हमारे धर्म को रिलीजन कहकर बडा घालमेल कर दिया है । आप जिसे एथिक्स, युनिवर्सल लॉ, नेचर, ड्यूटी, रिलीजन कहते है उन सबका समावेश हमारे धर्म शब्द में होता है । आप यदि धर्म संकल्पना को समझ लेंगे तो धर्म और शिक्षा का सम्बन्ध कैसा है वह भी समझ में आ जायेगा । आपकी बुद्धि यह देखकर स्तिमित हो जायेगी कि इस धर्म संकल्पना ने ही भारत को चिरंजीव बनाया है। आपको भी यदि सुख, समृद्धि, वैभव, दीर्घ आयु शान्ति और सर्वतोमुखी विकास की आकांक्षा है तो धर्मानुसारी
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भारत मानता है कि शिक्षा धर्म सिखाती है। हमने पहले ही कहा है कि आपके विचारविश्व में धर्म की संकल्पना बताने वाली एक भी संज्ञा नहीं है। धर्म कहते ही हम जो समझते हैं वह आपकी कल्पना में नहीं आता। आपने हमारे धर्म को रिलीजन कहकर बडा घालमेल कर दिया है । आप जिसे एथिक्स, युनिवर्सल लॉ, नेचर, ड्यूटी, रिलीजन कहते है उन सबका समावेश हमारे धर्म शब्द में होता है । आप यदि धर्म संकल्पना को समझ लेंगे तो धर्म और शिक्षा का सम्बन्ध कैसा है वह भी समझ में आ जायेगा । आपकी बुद्धि यह देखकर स्तिमित हो जायेगी कि इस धर्म संकल्पना ने ही भारत को चिरंजीव बनाया है। आपको भी यदि सुख, समृद्धि, वैभव, दीर्घ आयु शान्ति और सर्वतोमुखी विकास की आकांक्षा है तो धर्मानुसारी शिक्षा को अपनाना होगा। धर्म : संकल्पना का स्वीकार करते ही आप ईसाई, मुसलमान, यहूदी या पारसी हैं तो ईसाई, मुसलमान यहूदी या पारसी मिट नहीं जायेंगे, उल्टे अधिक अच्छे ईसाई बनेंगे। हम भारतवासी हिन्दू है परन्तु हम साम्प्रदायिक हिन्दू नहीं, धार्मिक हिन्दू हैं। हम आपका और सम्पूर्ण विश्व का स्वीकार करते हैं। जाति, भाषा, वेश, खानपान, सम्प्रदाय, रीतिरिवाज आदि कितने ही भिन्न हों हम सबका आदर करते हैं सबका कल्याण चाहते हैं, सबका स्वीकार करते हैं। हमने शिक्षा के माध्यम से हमारी हर पीढी को यही, सबके लिये समादर की बात सिखाई है।
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सारांश के रूप में कहें तो आपको
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# आपको अपनी शिक्षा विषयक संकल्पना बदलने की,
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# अध्ययन अध्यापन की सही प्रक्रियाओं को अपनाने की और
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# शिक्षा की विषयवस्तु मूल रूप से बदलने की आवश्यकता है।
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आपने अपनी जीवन पद्धति और शिक्षा व्यवस्था से चलकर अनुभव कर ही लिया है कि इनके परिणामस्वरूप न केवल आप अपितु सारा विश्व विनाश की ओर धंस रहा है। अब उस विनाश से बचना है तो जरा भारत की कालसिद्ध जीवनपद्धति और शिक्षा पद्धति अपना कर अनुभव कर लिजीये । आपको तुरन्त आश्वस्ति का अनुभव प्राप्त हो जायेगा।
    
==References==
 
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