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9. भारत ज्ञान को पवित्रतम सत्ता मानता है। वह सत्ता, धन, बल आदि से परे है । इसलिए वह wa और विक्रय का साधन नहीं है । इस अर्थ में भारत में शिक्षा अर्थनिरपेक्ष रही है । वह अर्थनिरपेक्ष रहे इसकी चिन्ता शिक्षक को करनी है ।
 
9. भारत ज्ञान को पवित्रतम सत्ता मानता है। वह सत्ता, धन, बल आदि से परे है । इसलिए वह wa और विक्रय का साधन नहीं है । इस अर्थ में भारत में शिक्षा अर्थनिरपेक्ष रही है । वह अर्थनिरपेक्ष रहे इसकी चिन्ता शिक्षक को करनी है ।
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10.  शिक्षक और विद्यार्थी के बीच होने वाला अध्ययन  और अध्यापन स्वेच्छा, स्वतन्त्रता, जिज्ञासा, श्रद्धा और ज्ञाननिष्ठा से चलता है । विवशता, बाध्यता, स्वार्थ, अविनय, उदरपूर्ति का लक्ष्य इन्हें दूषित करते हैं । भारत में कभी ऐसा नहीं होता ।
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10.  शिक्षक और विद्यार्थी के मध्य होने वाला अध्ययन  और अध्यापन स्वेच्छा, स्वतन्त्रता, जिज्ञासा, श्रद्धा और ज्ञाननिष्ठा से चलता है । विवशता, बाध्यता, स्वार्थ, अविनय, उदरपूर्ति का लक्ष्य इन्हें दूषित करते हैं । भारत में कभी ऐसा नहीं होता ।
    
11.  भिक्षा, समिधा, दान और गुरुदक्षिणा शिक्षक और विद्यार्थी के योगक्षेम के साधन हैं; शुल्क और वेतन नहीं । शिक्षक और विद्यार्थी भिक्षा मांगते हैं, शिष्य समीत्पाणि होकर शिक्षा ग्रहण करने के लिए आता है, अध्ययन पूर्ण होने पर गुरुदक्षिणा देता है, समाज और राज्य दान देते हैं । यही शिक्षाक्षेत्र का अर्थव्यवहार है ।  
 
11.  भिक्षा, समिधा, दान और गुरुदक्षिणा शिक्षक और विद्यार्थी के योगक्षेम के साधन हैं; शुल्क और वेतन नहीं । शिक्षक और विद्यार्थी भिक्षा मांगते हैं, शिष्य समीत्पाणि होकर शिक्षा ग्रहण करने के लिए आता है, अध्ययन पूर्ण होने पर गुरुदक्षिणा देता है, समाज और राज्य दान देते हैं । यही शिक्षाक्षेत्र का अर्थव्यवहार है ।  

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