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'''           ''' मनसस्तु परा बुध्दिर्यो बुध्दे: परतस्तु स: ॥
 
'''           ''' मनसस्तु परा बुध्दिर्यो बुध्दे: परतस्तु स: ॥
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अर्थात् इंद्रियों से मन सूक्ष्म है। मन से बुद्धि सूक्ष्म है। और आत्म तत्त्व तो बुद्धि से भी कहीं अधिक सूक्ष्म है। संस्कृत में सूक्ष्म का अर्थ होता है बलवान और व्यापक। पंचमहाभूतों से बनीं इंद्रियाँ स्थूल पाँच महाभूतों से तो सूक्ष्म हैं किन्तु मन उन से भी अत्यंत सूक्ष्म है। बुद्धि मन से और वह (आत्म तत्त्व) तो बुद्धि से भी अत्यंत सूक्ष्म है। जो सूक्ष्म होता है उस की मापन पट्टी से तो जो उस से स्थूल है उस का कदाचित मापन किया जा सकता है, किन्तु जो उस से अधिक सूक्ष्म है उस का मापन नहीं किया जा सकता। इस दृष्टि से आत्म तत्त्व की मापन पट्टी से बुद्धि, मन और इंद्रियों का, बुद्धि की मापन पट्टी से मन और इंद्रियों का और मन की मापन पट्टी से इंद्रियों का और इंद्रियों की मापन पट्टी से स्थूल पंचमहाभूतों का मापन (लम्बाई, चौड़ाई, गहराई, भार याने वजन आदि) किया जा सकता है। किन्तु इस से उलट नहीं किया जा सकता। भौतिक उपकरणों से इंद्रिय, मन, बुद्धि और आत्म तत्व आदि के व्यापारों का मापन नहीं किया जा सकता। वर्तमान साईंस के मापन के जो उपकरण हैं वे प्रकृति के पंचमहाभौतिक घटकों का तो मापन कर सकते है। कुछ उपकरण कुछ अधिक सूक्ष्मता से भी अध्ययन के लिए बने हैं। लेकिन फिर भी वे पंचमहाभौतिक पदार्थों से बने होने के कारण उन की मापन क्षमता की मर्यादा है। वे मन, बुद्धि, आत्मा आदि अति और अति-अति सूक्ष्म घटकों का मापन नहीं कर सकते| आत्मा जिस परमात्मा का अंश है उसे जानने का क्षेत्र अध्यात्म का क्षेत्र है। इस विषय की चर्चा हम आगे ‘प्रमाण की समस्या का समाधान’ में करेंगे।
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अर्थात् इंद्रियों से मन सूक्ष्म है। मन से बुद्धि सूक्ष्म है। और आत्म तत्त्व तो बुद्धि से भी कहीं अधिक सूक्ष्म है। संस्कृत में सूक्ष्म का अर्थ होता है बलवान और व्यापक। पंचमहाभूतों से बनीं इंद्रियाँ स्थूल पाँच महाभूतों से तो सूक्ष्म हैं किन्तु मन उन से भी अत्यंत सूक्ष्म है। बुद्धि मन से और वह (आत्म तत्त्व) तो बुद्धि से भी अत्यंत सूक्ष्म है। जो सूक्ष्म होता है उस की मापन पट्टी से तो जो उस से स्थूल है उस का कदाचित मापन किया जा सकता है, किन्तु जो उस से अधिक सूक्ष्म है उस का मापन नहीं किया जा सकता। इस दृष्टि से आत्म तत्त्व की मापन पट्टी से बुद्धि, मन और इंद्रियों का, बुद्धि की मापन पट्टी से मन और इंद्रियों का और मन की मापन पट्टी से इंद्रियों का और इंद्रियों की मापन पट्टी से स्थूल पंचमहाभूतों का मापन (लम्बाई, चौड़ाई, गहराई, भार याने वजन आदि) किया जा सकता है। किन्तु इस से उलट नहीं किया जा सकता। भौतिक उपकरणों से इंद्रिय, मन, बुद्धि और आत्म तत्व आदि के व्यापारों का मापन नहीं किया जा सकता। वर्तमान साईंस के मापन के जो उपकरण हैं वे प्रकृति के पंचमहाभौतिक घटकों का तो मापन कर सकते है। कुछ उपकरण कुछ अधिक सूक्ष्मता से भी अध्ययन के लिए बने हैं। लेकिन तथापि वे पंचमहाभौतिक पदार्थों से बने होने के कारण उन की मापन क्षमता की मर्यादा है। वे मन, बुद्धि, आत्मा आदि अति और अति-अति सूक्ष्म घटकों का मापन नहीं कर सकते| आत्मा जिस परमात्मा का अंश है उसे जानने का क्षेत्र अध्यात्म का क्षेत्र है। इस विषय की चर्चा हम आगे ‘प्रमाण की समस्या का समाधान’ में करेंगे।
    
== वर्तमान साईंस के विकास की पृष्ठभूमि ==
 
== वर्तमान साईंस के विकास की पृष्ठभूमि ==
वर्तमान साईंस का विकास युरोपीय देशों में अभी २००-२५० वर्ष में ही हुआ है। इस विकास के मार्ग में कट्टरपंथी ईसाई मत के कारण कई साईंटिस्टों को कष्ट झेलने पडे हैं। ब्रूनो जैसे वैज्ञानिकों को जान से हाथ धोना पडा। गॅलिलियो जैसे साईंटिस्ट को मृत्यू के डर से क्षमा माँगनी पडी। फिर भी यूरोप के साईंटिस्टों ने हार नहीं मानी। अल्प काल में ही साईंस के क्षेत्र में अद्वितीय ऐसा पराक्रम कर दिखाया। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी मुश्किल से २५० वर्षों में जो प्रगति हुई है वह स्तंभित करने वाली है। हालाँ की इस प्रौद्योगिकी में हुई तेज प्रगति का एक कारण साईंस के क्षेत्र में ‘पाँच महाभूतों को छोड़ कर सृष्टि में कुछ भी नहीं है’ ऐसी अड़ियल भूमिका के कारण निर्माण हुआ अवरोध भी है।  
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वर्तमान साईंस का विकास युरोपीय देशों में अभी २००-२५० वर्ष में ही हुआ है। इस विकास के मार्ग में कट्टरपंथी ईसाई मत के कारण कई साईंटिस्टों को कष्ट झेलने पडे हैं। ब्रूनो जैसे वैज्ञानिकों को जान से हाथ धोना पडा। गॅलिलियो जैसे साईंटिस्ट को मृत्यू के डर से क्षमा माँगनी पडी। तथापि यूरोप के साईंटिस्टों ने हार नहीं मानी। अल्प काल में ही साईंस के क्षेत्र में अद्वितीय ऐसा पराक्रम कर दिखाया। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी मुश्किल से २५० वर्षों में जो प्रगति हुई है वह स्तंभित करने वाली है। हालाँ की इस प्रौद्योगिकी में हुई तेज प्रगति का एक कारण साईंस के क्षेत्र में ‘पाँच महाभूतों को छोड़ कर सृष्टि में कुछ भी नहीं है’ ऐसी अड़ियल भूमिका के कारण निर्माण हुआ अवरोध भी है।  
    
रेने देकार्ते को इस साईंटिफिक टेम्परामेंट का जनक माना जाता है। रेने देकार्ते एक गणिति तथा फिलॉसॉफर था। इस साईंटिफिक टेम्परामेंट के महत्वपूर्ण पहलू निम्न हैं।  
 
रेने देकार्ते को इस साईंटिफिक टेम्परामेंट का जनक माना जाता है। रेने देकार्ते एक गणिति तथा फिलॉसॉफर था। इस साईंटिफिक टेम्परामेंट के महत्वपूर्ण पहलू निम्न हैं।  
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== समग्रता की दृष्टि ==
 
== समग्रता की दृष्टि ==
पूरे जीवन के प्रतिमान का विचार करना होगा। स्थल और काल की अखण्डता के विषय में भी विचार करना होगा। भारतीय और अभारतीय जीवनदृष्टि में भिन्नता होने के कारण भारतीय प्रतिमान अभारतीय प्रतिमान से भिन्न है। और भारतीय जीवनदृष्टि की श्रेष्ठता के कारण जीवन के अभारतीय प्रतिमान से भारतीय प्रतिमान श्रेष्ठ भी है। इस लिए उपर्युक्त सभी शोध कार्यों का विचार जीवन के भारतीय प्रतिमान के संदर्भ में करना ही उचित होगा। यद्यपि अंग्रेजों की दृष्टि विखण्डित है फिर भी अंग्रेजी भाषा का एक वाक्य महत्वपूर्ण है। थिंक ग्लोबली एक्ट लोकली। कुछ भी काम करना हो तो पहले उस के विश्व के सभी अस्तित्वोंपर होनेवाले परिणाम हितकारी हैं या नहीं इस का विचार करो। और यदि वे परिणाम हितकारी हों तो उसे करो, अन्यथा न करो। अंग्रेजी में समग्रता के लिए ‘(Holistic) होलिस्टिक’ शब्द का प्रयोग होता है।  
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पूरे जीवन के प्रतिमान का विचार करना होगा। स्थल और काल की अखण्डता के विषय में भी विचार करना होगा। भारतीय और अभारतीय जीवनदृष्टि में भिन्नता होने के कारण भारतीय प्रतिमान अभारतीय प्रतिमान से भिन्न है। और भारतीय जीवनदृष्टि की श्रेष्ठता के कारण जीवन के अभारतीय प्रतिमान से भारतीय प्रतिमान श्रेष्ठ भी है। इस लिए उपर्युक्त सभी शोध कार्यों का विचार जीवन के भारतीय प्रतिमान के संदर्भ में करना ही उचित होगा। यद्यपि अंग्रेजों की दृष्टि विखण्डित है तथापि अंग्रेजी भाषा का एक वाक्य महत्वपूर्ण है। थिंक ग्लोबली एक्ट लोकली। कुछ भी काम करना हो तो पहले उस के विश्व के सभी अस्तित्वोंपर होनेवाले परिणाम हितकारी हैं या नहीं इस का विचार करो। और यदि वे परिणाम हितकारी हों तो उसे करो, अन्यथा न करो। अंग्रेजी में समग्रता के लिए ‘(Holistic) होलिस्टिक’ शब्द का प्रयोग होता है।  
    
                       अपार हित हो अपना लेकिन अन्यों का नुक़सान न हो।                                        नहीं करें जिन कर्मों में भी रत्तीभर परपीड़ा हो ।।  
 
                       अपार हित हो अपना लेकिन अन्यों का नुक़सान न हो।                                        नहीं करें जिन कर्मों में भी रत्तीभर परपीड़ा हो ।।  

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