Changes

Jump to navigation Jump to search
m
no edit summary
Line 37: Line 37:  
आचमन करे और छः छिद्रों (अर्थात् नाक, कान और नेत्रों) का जलसे स्पर्श करे।'<blockquote>पूजयेदशनं नित्यमद्याच्चैतदकुत्सयन्।</blockquote><blockquote>दृष्ट्वा हृष्येत्प्रसीदेच्च प्रतिनन्देच्च सर्वशः॥  (२। ५४)</blockquote>'भोजन का नित्य आदर करे और भोजन कैसा भी हो उसकी निन्दा न करते हुए भोजन करे, उसे देख हर्षित होकर प्रसन्नता प्रकट करे और सब प्रकार से उसका अभिनन्दन करे।'<blockquote>पूजितं ह्यशनं नित्यं बलमूर्ज च यच्छति।</blockquote><blockquote>अपूजितं तु तद्भुक्तमुभयं नाशयेदिदम्॥  (२। ५५)</blockquote>'क्योंकि नित्य आदर पूर्वक किया हुआ भोजन बल और वीर्य प्रदान करते  है और अनादर से किया हुआ भोजन उन दोनों का नाश करता है।'<blockquote>अनारोग्यमनायुष्यमस्वयं चातिभोजनम्।</blockquote><blockquote>अपुण्यं लोकविद्विष्ट तस्मात्तत्परिवर्जयेत्॥  (२।५७)</blockquote>'भूख से अधिक भोजन करना आरोग्य, आयु, स्वर्ग और पुण्य का नाश करता है और लोक निंदा का भागी होना पड़ता  है, इसलिये अधिक भोजन करना  त्याग दे। भोजन करने के बाद दिन में कुछ समय विश्रांति लेनी चाहिए  टहलना और सोना नहीं चाहिए । भोजन के तुरंत बाद पठन लेखन के लिए तुरंत नहीं बैठना चाहिए कम से कम एक घंटे का अंतर होना चाहिए ।प्रातः एवं सायं के समय मैदानी खेल जैसे खोखो, कबड्डी, इत्यादि मेहनत वाले और मिटटी से संपर्क वाले खेल खेलने चाहिए ।   
 
आचमन करे और छः छिद्रों (अर्थात् नाक, कान और नेत्रों) का जलसे स्पर्श करे।'<blockquote>पूजयेदशनं नित्यमद्याच्चैतदकुत्सयन्।</blockquote><blockquote>दृष्ट्वा हृष्येत्प्रसीदेच्च प्रतिनन्देच्च सर्वशः॥  (२। ५४)</blockquote>'भोजन का नित्य आदर करे और भोजन कैसा भी हो उसकी निन्दा न करते हुए भोजन करे, उसे देख हर्षित होकर प्रसन्नता प्रकट करे और सब प्रकार से उसका अभिनन्दन करे।'<blockquote>पूजितं ह्यशनं नित्यं बलमूर्ज च यच्छति।</blockquote><blockquote>अपूजितं तु तद्भुक्तमुभयं नाशयेदिदम्॥  (२। ५५)</blockquote>'क्योंकि नित्य आदर पूर्वक किया हुआ भोजन बल और वीर्य प्रदान करते  है और अनादर से किया हुआ भोजन उन दोनों का नाश करता है।'<blockquote>अनारोग्यमनायुष्यमस्वयं चातिभोजनम्।</blockquote><blockquote>अपुण्यं लोकविद्विष्ट तस्मात्तत्परिवर्जयेत्॥  (२।५७)</blockquote>'भूख से अधिक भोजन करना आरोग्य, आयु, स्वर्ग और पुण्य का नाश करता है और लोक निंदा का भागी होना पड़ता  है, इसलिये अधिक भोजन करना  त्याग दे। भोजन करने के बाद दिन में कुछ समय विश्रांति लेनी चाहिए  टहलना और सोना नहीं चाहिए । भोजन के तुरंत बाद पठन लेखन के लिए तुरंत नहीं बैठना चाहिए कम से कम एक घंटे का अंतर होना चाहिए ।प्रातः एवं सायं के समय मैदानी खेल जैसे खोखो, कबड्डी, इत्यादि मेहनत वाले और मिटटी से संपर्क वाले खेल खेलने चाहिए ।   
   −
विद्याके अभ्यास करनेके बाद सायंकाल के समय पुनः शौच-स्नान करके नित्यकर्म करना चाहिये। फिर रात्रि में भोजन करके कुछ देर टहलना चाहिए तुरंत बिस्तर पर नही जाना चाहिए । रात्रि भोजन और निद्रा में कम से कम २ घंटे का अंतर होना चाहिए । रात्रि के दूसरे पहर के आरम्भ होने पर शयन करना चाहिये। कम-से-कम बालकों को सात घंटे सोना चाहिये। यदि सोते सोते सूर्योदय हो जाय तो दिन भर गायत्री मंत्र का जप करते हुए उपवास करना चाहिये।
+
लेखन ,पठन , अभ्यास करनेके बाद सायंकाल के समय पुनः शौच-स्नान करके नित्यकर्म करना चाहिये। फिर रात्रि में भोजन करके कुछ देर टहलना चाहिए तुरंत बिस्तर पर नही जाना चाहिए । रात्रि भोजन और निद्रा में कम से कम २ घंटे का अंतर होना चाहिए । रात्रि के दूसरे पहर के आरम्भ होने पर शयन करना चाहिये। कम-से-कम बालकों को सात घंटे सोना चाहिये। यदि सोते सोते सूर्योदय हो जाय तो दिन भर गायत्री मंत्र का जप करते हुए उपवास करना चाहिये।
   −
मनुजी कहते  है-<blockquote>तं चेदभ्युदियात्सूर्यः शयानं कामचारतः।</blockquote><blockquote>निम्लोचेद्वाप्यविज्ञानाजपन्नुपवसेद्दिनम्  (२। २२०)</blockquote>'इच्छापूर्वक सोते हुए ब्रह्मचारी को यदि सूर्य उदय हो जाए या इसी तरह भूल से अस्त हो जाय तो गायत्री मंत्र को जपते हुए दिनभर व्रत करे।<blockquote>सूर्येण ह्यभिनिर्मुक्तः शयानोऽभ्युदितश्च यः।</blockquote><blockquote>प्रायश्चित्तमकुर्वाणो युक्तः स्यान्महतैनसा॥  (२। २२१)</blockquote>'जिस ब्रह्मचारी के सोते रहते हुए सूर्य अस्त या उदय हो जाय वह यदि प्रायश्चित्त न करे तो उसे बड़ा भारी पाप लगता है।'नित्यकर्म में भगवन के नाम का जप और ध्यान तथा कम-से-कम गीताके एक अध्यायका पाठ अवश्य ही करना चाहिये। यदि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य हो तो हवन, संध्या, गायत्री-जप, स्वाध्याय, देवपूजा और तर्पण भी करना चाहिये। इनमें भी संध्या और गायत्री-जप तो अवश्य ही करना चाहिये। न करने से
+
मनुजी कहते  है-<blockquote>तं चेदभ्युदियात्सूर्यः शयानं कामचारतः।</blockquote><blockquote>निम्लोचेद्वाप्यविज्ञानाजपन्नुपवसेद्दिनम्  (२। २२०)</blockquote>'इच्छापूर्वक सोते हुए ब्रह्मचारी को यदि सूर्य उदय हो जाए या इसी तरह भूल से अस्त हो जाय तो गायत्री मंत्र को जपते हुए दिनभर व्रत करे।<blockquote>सूर्येण ह्यभिनिर्मुक्तः शयानोऽभ्युदितश्च यः।</blockquote><blockquote>प्रायश्चित्तमकुर्वाणो युक्तः स्यान्महतैनसा॥  (२। २२१)</blockquote>' सोते रहते हुए सूर्य अस्त या उदय हो जाय वह यदि प्रायश्चित्त न करे तो उसे बड़ा भारी पाप लगता है।'नित्यकर्म में भगवन के नाम का जप और ध्यान तथा कम-से-कम गीता के एक अध्याय का पाठ अवश्य ही करना चाहिये। यदि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य हो तो हवन, संध्या, गायत्री-जप, स्वाध्याय, देवपूजा और तर्पण भी करना चाहिये। इनमें भी संध्या और गायत्री-जप तो अवश्य ही करना चाहिये। न करने से
1,192

edits

Navigation menu