Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 374: Line 374:  
सर्वांगीण विकास की संकल्पना को स्पष्ट करना और उसके लिये क्या करना और विशेष रूप से क्या नहीं करना यह भी अभिभावक प्रबोधन का विषय है ।
 
सर्वांगीण विकास की संकल्पना को स्पष्ट करना और उसके लिये क्या करना और विशेष रूप से क्या नहीं करना यह भी अभिभावक प्रबोधन का विषय है ।
   −
=== ५. अंग्रेजी माध्यम का मोह ===
+
===५. अंग्रेजी माध्यम का मोह===
 
अभिभावकों को अंग्रेजी का इतना अधिक आकर्षण होता है कि वे अपने बालकों को मातृभाषा सिखाने से पहले ही अंग्रेजी सिखाना प्रारम्भ करते हैं । बालक को भविष्य में विदेश भेजना है इसलिये अंग्रेजी अनिवार्य है यह तर्क देकर वे दो वर्ष की आयु से अंग्रेजी सिखाना शुरु कर देते हैं और अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में भेजते हैं । इससे न मातृभाषा आती है न वे अपनी संस्कृति से जुडते हैं । अंग्रेजी माध्यम में पढने से विचार करने की, चिन्तन की, विषय को ग्रहण करने की, अभिव्यक्ति की, मौलिकता की बौद्धिक शक्तियों का विकास नहीं होता इस बडे भारी नुकसान की ओर ध्यान ही नहीं जाता है । व्यक्तिगत रूप से या सामाजिक रूप से मौलिक और स्वतन्त्र चिन्तन का ह्रास अंग्रेजी के लिये चुकानी पड़ने वाली भारी कीमत है । परिवार प्रबोधन के बिना इसका परिहार होने वाला
 
अभिभावकों को अंग्रेजी का इतना अधिक आकर्षण होता है कि वे अपने बालकों को मातृभाषा सिखाने से पहले ही अंग्रेजी सिखाना प्रारम्भ करते हैं । बालक को भविष्य में विदेश भेजना है इसलिये अंग्रेजी अनिवार्य है यह तर्क देकर वे दो वर्ष की आयु से अंग्रेजी सिखाना शुरु कर देते हैं और अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में भेजते हैं । इससे न मातृभाषा आती है न वे अपनी संस्कृति से जुडते हैं । अंग्रेजी माध्यम में पढने से विचार करने की, चिन्तन की, विषय को ग्रहण करने की, अभिव्यक्ति की, मौलिकता की बौद्धिक शक्तियों का विकास नहीं होता इस बडे भारी नुकसान की ओर ध्यान ही नहीं जाता है । व्यक्तिगत रूप से या सामाजिक रूप से मौलिक और स्वतन्त्र चिन्तन का ह्रास अंग्रेजी के लिये चुकानी पड़ने वाली भारी कीमत है । परिवार प्रबोधन के बिना इसका परिहार होने वाला
 
नहीं है ।
 
नहीं है ।
   −
=== ६. सांस्कृतिक विषयों की उपेक्षा ===
+
===६. सांस्कृतिक विषयों की उपेक्षा===
आजकल शिक्षा अनेक अप्राकृतिक बन्धनों में जकडी
+
आजकल शिक्षा अनेक अप्राकृतिक बन्धनों में जकडी गई है । सांस्कृतिक विषयों की उपेक्षा इसमें एक है । आज
गई है । सांस्कृतिक विषयों की उपेक्षा इसमें एक है । आज
+
शिक्षा, गणित, विज्ञान, अंग्रेजी और कम्प्यूटर में सिमट गई है । इनको छोडकर सारे विषय फालतू हैं । आगे चलकर तन्त्रज्ञान, चिकित्सा, प्रबन्धन, संगणक विज्ञान, वाणिज्य
शिक्षा, गणित, विज्ञान, अंग्रेजी और कम्प्यूटर में सिमट गई
+
महत्त्वपूर्ण विषय बन जाते हैं । इनके लिये आवश्यक हैं इसलिये प्रारम्भ में गणित और विज्ञान पढने हैं । गणित और विज्ञान में विषय के नाते रुचि नहीं है। इतिहास, समाजशास्त्र, तत्त्वज्ञान, गृहकार्य आदि सांस्कृतिक विषयों
है । इनको छोडकर सारे विषय फालतू हैं । आगे चलकर
+
की घोर उपेक्षा हो रही है । ये सब पढने लायक विषय नहीं हैं। भाषा और साहित्य की ओर भी सुझान नहीं है। भाषाशुद्धि का आग्रह समाप्त हो गया है । इसका परिणाम यह होता है कि सामाजिकता, सभ्यता, शिष्टता, संस्कारिता, सामाजिक दायित्वबोध, देशभक्ति, मानवीय गुण आदि की शिक्षा नहीं मिलती है । मनुष्य एक यान्त्रिक, पशुतुल्य, आर्थिक प्राणी बनकर रह जाता है । यान्त्रिक शिष्टाचार और सभ्यता विकसित होती है । मानवीय सम्बन्धों को स्वार्थ की प्रेरणा होती है । अर्थात्‌ व्यक्ति अपने सुख का विचार कर दूसरों से सम्बन्ध बनाता है । अपने लिये भी वह हित का नहीं, सुख का ही विचार करता है । भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति को ही पुरुषार्थ मानता है, शिक्षा का प्रयोजन भी वही है और वह प्राप्त कर सकने को यश मानता है । अधिक से अधिकतर की ओर गति को ही विकास मानता है और उसे ऐसा विकास ही चाहिये ।
तन्त्रज्ञान, चिकित्सा, प्रबन्धन, संगणक विज्ञान, वाणिज्य
  −
महत्त्वपूर्ण विषय बन जाते हैं । इनके लिये आवश्यक हैं
  −
इसलिये प्रारम्भ में गणित और विज्ञान पढने हैं । गणित और
  −
विज्ञान में विषय के नाते रुचि नहीं है। इतिहास,
  −
समाजशास्त्र, तत्त्वज्ञान, गृहकार्य आदि सांस्कृतिक विषयों
  −
की घोर उपेक्षा हो रही है । ये सब पढने लायक विषय नहीं
  −
हैं। भाषा और साहित्य की ओर भी सुझान नहीं है।
  −
भाषाशुद्धि का आग्रह समाप्त हो गया है । इसका परिणाम
  −
यह होता है कि सामाजिकता, सभ्यता, शिष्टता, संस्कारिता,
  −
सामाजिक दायित्वबोध, देशभक्ति, मानवीय गुण आदि की
  −
शिक्षा नहीं मिलती है । मनुष्य एक यान्त्रिक, पशुतुल्य,
  −
आर्थिक प्राणी बनकर रह जाता है । यान्त्रिक शिष्टाचार और
  −
सभ्यता विकसित होती है । मानवीय सम्बन्धों को स्वार्थ
  −
की प्रेरणा होती है । अर्थात्‌ व्यक्ति अपने सुख का विचार
  −
कर दूसरों से सम्बन्ध बनाता है । अपने लिये भी वह हित
  −
का नहीं, सुख का ही विचार करता है । भौतिक वस्तुओं
  −
की प्राप्ति को ही पुरुषार्थ मानता है, शिक्षा का प्रयोजन भी
  −
वही है और वह प्राप्त कर सकने को यश मानता है ।
  −
अधिक से अधिकतर की ओर गति को ही विकास मानता
  −
है और उसे ऐसा विकास ही चाहिये ।
      
७. वैश्विकता का आकर्षण
 
७. वैश्विकता का आकर्षण
1,815

edits

Navigation menu