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अपने बालक का सर्वांगीण विकास हो इसका भूत अभिभावकों के मस्तिष्क पर सवार हो गया है । इस के चलते वे अपने बालकों को संगीत भी सिखाना चाहते हैं और नृत्य भी, चित्र भी सिखाना चाहते हैं और कारीगरी भी, वैदिक गणित भी सिखाना चाहते हैं और संस्कृत भी । गर्मी की छुट्टियों में भी योग, तैराकी, फैशन डिजाइनिंग, पर्वतारोहण आदि इतनी अधिक गतिविधियाँ होती हैं कि बालक को एक भी ठीक से नहीं आती । यह तो मानसिक ही नहीं बौद्धिक अस्थिरता भी पैदा करती है । विद्यार्थी की रुचि ही नहीं बन पाती है । एक भी विषय में गहरी पैठ नहीं होती । और सबसे बडा नुकसान यह है कि विद्यार्थी घर के साथ जुड़ता नहीं है । घर की दुनिया में उसका प्रवेश ही नहीं होता, सहभागिता की बात तो दूर की है । जो सीखना चाहिये वह नहीं सीखा जाता और व्यर्थ की भागदौड चलती रहती है ।
अपने बालक का सर्वांगीण विकास हो इसका भूत अभिभावकों के मस्तिष्क पर सवार हो गया है । इस के चलते वे अपने बालकों को संगीत भी सिखाना चाहते हैं और नृत्य भी, चित्र भी सिखाना चाहते हैं और कारीगरी भी, वैदिक गणित भी सिखाना चाहते हैं और संस्कृत भी । गर्मी की छुट्टियों में भी योग, तैराकी, फैशन डिजाइनिंग, पर्वतारोहण आदि इतनी अधिक गतिविधियाँ होती हैं कि बालक को एक भी ठीक से नहीं आती । यह तो मानसिक ही नहीं बौद्धिक अस्थिरता भी पैदा करती है । विद्यार्थी की रुचि ही नहीं बन पाती है । एक भी विषय में गहरी पैठ नहीं होती । और सबसे बडा नुकसान यह है कि विद्यार्थी घर के साथ जुड़ता नहीं है । घर की दुनिया में उसका प्रवेश ही नहीं होता, सहभागिता की बात तो दूर की है । जो सीखना चाहिये वह नहीं सीखा जाता और व्यर्थ की भागदौड चलती रहती है ।
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सर्वांगीण विकास की संकल्पना को स्पष्ट करना और
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सर्वांगीण विकास की संकल्पना को स्पष्ट करना और उसके लिये क्या करना और विशेष रूप से क्या नहीं करना यह भी अभिभावक प्रबोधन का विषय है ।
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उसके लिये क्या करना और विशेष रूप से क्या नहीं करना
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यह भी अभिभावक प्रबोधन का विषय है ।
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५. अंग्रेजी माध्यम का मोह
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=== ५. अंग्रेजी माध्यम का मोह ===
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अभिभावकों को अंग्रेजी का इतना अधिक आकर्षण होता है कि वे अपने बालकों को मातृभाषा सिखाने से पहले ही अंग्रेजी सिखाना प्रारम्भ करते हैं । बालक को भविष्य में विदेश भेजना है इसलिये अंग्रेजी अनिवार्य है यह तर्क देकर वे दो वर्ष की आयु से अंग्रेजी सिखाना शुरु कर देते हैं और अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में भेजते हैं । इससे न मातृभाषा आती है न वे अपनी संस्कृति से जुडते हैं । अंग्रेजी माध्यम में पढने से विचार करने की, चिन्तन की, विषय को ग्रहण करने की, अभिव्यक्ति की, मौलिकता की बौद्धिक शक्तियों का विकास नहीं होता इस बडे भारी नुकसान की ओर ध्यान ही नहीं जाता है । व्यक्तिगत रूप से या सामाजिक रूप से मौलिक और स्वतन्त्र चिन्तन का ह्रास अंग्रेजी के लिये चुकानी पड़ने वाली भारी कीमत है । परिवार प्रबोधन के बिना इसका परिहार होने वाला
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अभिभावकों को अंग्रेजी का इतना अधिक आकर्षण
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होता है कि वे अपने बालकों को मातृभाषा सिखाने से
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पहले ही अंग्रेजी सिखाना प्रारम्भ करते हैं । बालक को
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भविष्य में विदेश भेजना है इसलिये अंग्रेजी अनिवार्य है यह
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तर्क देकर वे दो वर्ष की आयु से अंग्रेजी सिखाना शुरु कर
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देते हैं और अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में भेजते हैं । इससे
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न मातृभाषा आती है न वे अपनी संस्कृति से जुडते हैं ।
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अंग्रेजी माध्यम में पढने से विचार करने की, चिन्तन की,
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विषय को ग्रहण करने की, अभिव्यक्ति की, मौलिकता की
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बौद्धिक शक्तियों का विकास नहीं होता इस बडे भारी
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पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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नुकसान की ओर ध्यान ही नहीं जाता है । व्यक्तिगत रूप से
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या सामाजिक रूप से मौलिक और स्वतन्त्र चिन्तन का
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Se अंग्रेजी के लिये चुकानी पड़ने वाली भारी कीमत
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है । परिवार प्रबोधन के बिना इसका परिहार होने वाला
नहीं है ।
नहीं है ।
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६. सांस्कृतिक विषयों की उपेक्षा
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=== ६. सांस्कृतिक विषयों की उपेक्षा ===
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आजकल शिक्षा अनेक अप्राकृतिक बन्धनों में जकडी
आजकल शिक्षा अनेक अप्राकृतिक बन्धनों में जकडी
गई है । सांस्कृतिक विषयों की उपेक्षा इसमें एक है । आज
गई है । सांस्कृतिक विषयों की उपेक्षा इसमें एक है । आज