Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "भारतीय" to "धार्मिक"
Line 267: Line 267:  
अर्थात्‌ पैसे को केन्द्रस्थान से हटाकर उचित स्थान पर स्थापित करने के लिये शिक्षा निःशुल्क बनानी चाहिये ।
 
अर्थात्‌ पैसे को केन्द्रस्थान से हटाकर उचित स्थान पर स्थापित करने के लिये शिक्षा निःशुल्क बनानी चाहिये ।
   −
यह कठिन तो है परन्तु भारत को भारत बनना है और हमें भारतीय बनना है तो ज्ञान की प्रतिष्ठा तो करनी ही होगी और उसे पैसे से उपर का स्थान देना होगा ।
+
यह कठिन तो है परन्तु भारत को भारत बनना है और हमें धार्मिक बनना है तो ज्ञान की प्रतिष्ठा तो करनी ही होगी और उसे पैसे से उपर का स्थान देना होगा ।
    
'''प्रश्न २३''' '''लोग बारबार भगवद्‌गीता, उपनिषद, वेद आदि की बातें करते रहते हैं । वे तो प्राचीन हैं । उनके होने के खास प्रमाण भी नहीं हैं । वे उस समय प्रासंगिक होंगे । आज के आधुनिक काल में उनकी क्या उपयोगिता है ? उन्हें क्यों पढना चाहिये ?'''  
 
'''प्रश्न २३''' '''लोग बारबार भगवद्‌गीता, उपनिषद, वेद आदि की बातें करते रहते हैं । वे तो प्राचीन हैं । उनके होने के खास प्रमाण भी नहीं हैं । वे उस समय प्रासंगिक होंगे । आज के आधुनिक काल में उनकी क्या उपयोगिता है ? उन्हें क्यों पढना चाहिये ?'''  
Line 292: Line 292:  
संस्कृत का परिचय होने के बाद प्रामाणिक अनुवाद की सहायता से हम मूल ग्रन्थ पढ़ सकते हैं ।
 
संस्कृत का परिचय होने के बाद प्रामाणिक अनुवाद की सहायता से हम मूल ग्रन्थ पढ़ सकते हैं ।
   −
भारतीय जीवनदृष्टि क्या है यह जानने के लिये यदि हमने भगवदूगीता से प्रारम्भ किया तो सरल होता है । एक बार भगवदूगीता का कहना क्या है यह समझ लिया तो उसके प्रकाश में अनेक बातें सरलतापूर्वक समझी जा सकती हैं ।  
+
धार्मिक जीवनदृष्टि क्या है यह जानने के लिये यदि हमने भगवदूगीता से प्रारम्भ किया तो सरल होता है । एक बार भगवदूगीता का कहना क्या है यह समझ लिया तो उसके प्रकाश में अनेक बातें सरलतापूर्वक समझी जा सकती हैं ।  
    
'''प्रश्न २५ आज सर्वसामान्य लोग नौकरी ही करते हैं । परम्परागत धन्धे भी समाप्त हो गये हैं । धन्धे करने वालों को भी नौकरी करनी पड रही है । नये से धन्धा करने के लिये निवेश के लिये बहुत पैसा चाहिये । उसके बाद भी स्पर्धा में टिकना असम्भव है । फिर सामान्य लोगों के लिये जैसी भी मिले नौकरी के अलावा क्या बचा है ? नौकरी का भी तो संकट है ।'''
 
'''प्रश्न २५ आज सर्वसामान्य लोग नौकरी ही करते हैं । परम्परागत धन्धे भी समाप्त हो गये हैं । धन्धे करने वालों को भी नौकरी करनी पड रही है । नये से धन्धा करने के लिये निवेश के लिये बहुत पैसा चाहिये । उसके बाद भी स्पर्धा में टिकना असम्भव है । फिर सामान्य लोगों के लिये जैसी भी मिले नौकरी के अलावा क्या बचा है ? नौकरी का भी तो संकट है ।'''
Line 368: Line 368:  
मुख्य रूप से यह शिक्षकों का ही काम है, अभिभावक सहयोगी और धर्माचार्य मार्गदर्शक हो सकते हैं ।
 
मुख्य रूप से यह शिक्षकों का ही काम है, अभिभावक सहयोगी और धर्माचार्य मार्गदर्शक हो सकते हैं ।
   −
'''प्रश्न ३० भारतीय शिक्षा के पक्षधर सब कहते हैं कि शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिये । आज स्थिति एकदम दूसरे छोर की है । अब दोनों छोरों को मिलाने के क्या उपाय हैं ?'''
+
'''प्रश्न ३० धार्मिक शिक्षा के पक्षधर सब कहते हैं कि शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिये । आज स्थिति एकदम दूसरे छोर की है । अब दोनों छोरों को मिलाने के क्या उपाय हैं ?'''
    
'''<nowiki/>'एक शिक्षक का प्रश्न'''
 
'''<nowiki/>'एक शिक्षक का प्रश्न'''
Line 377: Line 377:     
महाविद्यालय के विदायर्थियों के साथ चर्चा शुरू करो । उनमें भी शिक्षक के स्वभाव के लोग मिलेंगे । उन्हें अपने काम में जोड़ो । यह मत सोचो कि युवा लोग नहीं मिलेंगे । आज भी ऐसे युवा हैं जो अच्छा काम करना चाहते हैं । उनके साथ मिलकर यदि आप विद्यालय शुरू कर सकते हैं तो बहुत ही अच्छा । इस विद्यालय को
 
महाविद्यालय के विदायर्थियों के साथ चर्चा शुरू करो । उनमें भी शिक्षक के स्वभाव के लोग मिलेंगे । उन्हें अपने काम में जोड़ो । यह मत सोचो कि युवा लोग नहीं मिलेंगे । आज भी ऐसे युवा हैं जो अच्छा काम करना चाहते हैं । उनके साथ मिलकर यदि आप विद्यालय शुरू कर सकते हैं तो बहुत ही अच्छा । इस विद्यालय को
अर्थनिरपेक्ष बनाओ । भारतीय शिक्षा की अर्थव्यवस्था कैसी होती थी यह समझकर, आज की स्थिति का विचार
+
अर्थनिरपेक्ष बनाओ । धार्मिक शिक्षा की अर्थव्यवस्था कैसी होती थी यह समझकर, आज की स्थिति का विचार
 
कर अर्थव्यवस्था बिठाओ । यह प्रयोग अवश्य यशस्वी होगा ।
 
कर अर्थव्यवस्था बिठाओ । यह प्रयोग अवश्य यशस्वी होगा ।
    
केवल इतना ध्यान रखो कि यह गरीब, अनाथ, बेचारे विद्यार्थियों के लिये न हो, सम्पन्न घर के विद्यार्थी भी हों । निःशुल्क विद्यालय धर्मादाय व्यवस्था नहीं है, विद्या को अर्थ के उपर उठाने की व्यवस्था है । शिक्षक भिक्षुक नहीं है, गुरु है । वह दया का नहीं, सम्मान का अधिकारी है ।
 
केवल इतना ध्यान रखो कि यह गरीब, अनाथ, बेचारे विद्यार्थियों के लिये न हो, सम्पन्न घर के विद्यार्थी भी हों । निःशुल्क विद्यालय धर्मादाय व्यवस्था नहीं है, विद्या को अर्थ के उपर उठाने की व्यवस्था है । शिक्षक भिक्षुक नहीं है, गुरु है । वह दया का नहीं, सम्मान का अधिकारी है ।
   −
'''प्रश्न ३१ शिक्षा को भारतीय बनाने हेतु हम यदि अध्ययन करना चाहते हैं तो क्या करें ? और अनुसन्धान का क्या तरीका है ?'''
+
'''प्रश्न ३१ शिक्षा को धार्मिक बनाने हेतु हम यदि अध्ययन करना चाहते हैं तो क्या करें ? और अनुसन्धान का क्या तरीका है ?'''
    
'''एक जिज्ञासु'''
 
'''एक जिज्ञासु'''
   −
पहली बात तो यह है कि आप विश्वविद्यालय की कोई पदवी या पुरस्कार मिलेगा ऐसी अपेक्षा छोड दो । वर्तमान शिक्षाव्यवस्था से समानान्तर पद्धति विकसित करने की आवश्यकता है । दूसरी बात यह है कि गीता और उपनिषदों का कुछ अध्ययन कर भारतीय जीवनदृष्टि क्या है इसकी समझ स्पष्ट करने का प्रयास करो । तीसरी बात यह है कि स्वामी विवेकानन्द, श्री अरविन्द, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी आदि महानुभावों के शिक्षाविषयक विचारों और प्रयोगों का अध्ययन करो । चौथी बात है आज देशभर में भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में समानान्तर कार्य
+
पहली बात तो यह है कि आप विश्वविद्यालय की कोई पदवी या पुरस्कार मिलेगा ऐसी अपेक्षा छोड दो । वर्तमान शिक्षाव्यवस्था से समानान्तर पद्धति विकसित करने की आवश्यकता है । दूसरी बात यह है कि गीता और उपनिषदों का कुछ अध्ययन कर धार्मिक जीवनदृष्टि क्या है इसकी समझ स्पष्ट करने का प्रयास करो । तीसरी बात यह है कि स्वामी विवेकानन्द, श्री अरविन्द, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी आदि महानुभावों के शिक्षाविषयक विचारों और प्रयोगों का अध्ययन करो । चौथी बात है आज देशभर में धार्मिक शिक्षा के क्षेत्र में समानान्तर कार्य
 
कैसा चल रहा है उसका अध्ययन करो ।
 
कैसा चल रहा है उसका अध्ययन करो ।
    
इसके बाद आज क्या किया जा सकता है और क्या करने की आवश्यकता है इसका चिन्तन कर उसके अनुसार योजना बनाना व्यावहारिक अनुसन्धान होता है । ऐसे अध्ययन और अनुसन्धान की आज नितान्त आवश्यकता है । इस दृष्टि से अध्ययन हेतु कुछ ग्रन्थों की, कुछ मार्गदर्शकों की, परामर्शकों की, सहअध्येताओं की सूचियाँ बन सकती हैं । आप देखेंगे कि यह कार्य बहुत अच्छी तरह से हो सकता है और उसमें आनन्द आ सकता है।
 
इसके बाद आज क्या किया जा सकता है और क्या करने की आवश्यकता है इसका चिन्तन कर उसके अनुसार योजना बनाना व्यावहारिक अनुसन्धान होता है । ऐसे अध्ययन और अनुसन्धान की आज नितान्त आवश्यकता है । इस दृष्टि से अध्ययन हेतु कुछ ग्रन्थों की, कुछ मार्गदर्शकों की, परामर्शकों की, सहअध्येताओं की सूचियाँ बन सकती हैं । आप देखेंगे कि यह कार्य बहुत अच्छी तरह से हो सकता है और उसमें आनन्द आ सकता है।
क्या अनुसन्धान का स्वरूप भी भारतीय हो सकता है ? वर्तमान अनुसन्धान से वह भिन्न है ?
+
क्या अनुसन्धान का स्वरूप भी धार्मिक हो सकता है ? वर्तमान अनुसन्धान से वह भिन्न है ?
   −
'''प्रश्न ३२ एक जिज्ञासु का प्रश्न निश्चित रूप से अनुसन्धान का भारतीय स्वरूप वर्तमान स्वरूप से भिन्न ही है ।'''
+
'''प्रश्न ३२ एक जिज्ञासु का प्रश्न निश्चित रूप से अनुसन्धान का धार्मिक स्वरूप वर्तमान स्वरूप से भिन्न ही है ।'''
   −
उत्तर निश्चित रूप से अनुसन्धान का भारतीय स्वरूप से भिन्न ही है।  
+
उत्तर निश्चित रूप से अनुसन्धान का धार्मिक स्वरूप से भिन्न ही है।  
   −
भारतीय अनुसन्धान के दो प्रकार हैं, अथवा कहें कि दो स्तर हैं । एक है तात्त्विक और दूसरा है व्यावहारिक ।
+
धार्मिक अनुसन्धान के दो प्रकार हैं, अथवा कहें कि दो स्तर हैं । एक है तात्त्विक और दूसरा है व्यावहारिक ।
   −
तात्त्विक अनुसन्धान अनुभूति का क्षेत्र हैं । बौद्धिक जगत से यह परे हैं । यह दर्शन है । भारतीय ज्ञानधारा के मूल तत्त्वों का ऋषियों को दर्शन हुआ था । आज भी ऐसा हो तो सकता है परन्तु इसके रास्ते बहुत भिन्न हैं ।
+
तात्त्विक अनुसन्धान अनुभूति का क्षेत्र हैं । बौद्धिक जगत से यह परे हैं । यह दर्शन है । धार्मिक ज्ञानधारा के मूल तत्त्वों का ऋषियों को दर्शन हुआ था । आज भी ऐसा हो तो सकता है परन्तु इसके रास्ते बहुत भिन्न हैं ।
    
व्यावहारिक अनुसन्धान बुद्धि का क्षेत्र है । इसके भी दो स्तर हैं । एक है तत्त्व को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समझना और समझाना । यह तत्त्व की युगानुकूल प्रस्तुति है ।
 
व्यावहारिक अनुसन्धान बुद्धि का क्षेत्र है । इसके भी दो स्तर हैं । एक है तत्त्व को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समझना और समझाना । यह तत्त्व की युगानुकूल प्रस्तुति है ।
Line 450: Line 450:  
आप ब्राह्मण हैं । ब्राह्मण वर्ण का समाज में कया स्थान है इसका विचार करने से पहले दायित्व क्या है इसका विचार करना चाहिये । ब्राह्मण केवल ब्राह्मण मातापिता के घर में जन्म लेने से नहीं हुआ जाता । प्रत्येक वर्ण के साथ आचार और व्यवसाय का सम्बन्ध है । ब्राह्मण वर्ण के आचार क्या हैं ? पवित्रता, सादगी, संयम, तपश्चर्या ब्राह्मण वर्ण के आचार हैं । अध्ययन और अध्यापन करना, यज्ञ करना और करवाना ब्राह्मण का व्यवसाय है । वैद्य, पुरोहित और अमात्य भी ब्राह्मण होते हैं । परन्तु व्यवसाय का अर्थ पैसा कमाना नहीं है, नोकरी करना नहीं है । केवल अमात्य ही नौकरी करते हैं । अन्य व्यवसाय का लक्ष्य भी अथार्जिन नहीं है, सेवा है । तभी तो ब्राह्मण पृथ्वी पर का देवता है । क्या आप ऐसे ब्राह्मण हैं ? बनना चाहते हैं ? ऐसे ब्राह्मणों की समाज को बहुत आवश्यकता है । समाज आज भी सम्मान करने को इच्छुक है । परन्तु ब्राह्मण नहीं रहना है और ब्राह्मण का सम्मान चाहिये तो सम्मान नहीं, उपहास मिलेगा । वस्तुस्थिति यह है कि आज किसी भी वर्ण में जन्म हुआ हो दस प्रतिशत लोग भी आचार और व्यवसाय से ब्राह्मण बन जाय तो समाज की व्यवस्था सम्हल जायेगी ।
 
आप ब्राह्मण हैं । ब्राह्मण वर्ण का समाज में कया स्थान है इसका विचार करने से पहले दायित्व क्या है इसका विचार करना चाहिये । ब्राह्मण केवल ब्राह्मण मातापिता के घर में जन्म लेने से नहीं हुआ जाता । प्रत्येक वर्ण के साथ आचार और व्यवसाय का सम्बन्ध है । ब्राह्मण वर्ण के आचार क्या हैं ? पवित्रता, सादगी, संयम, तपश्चर्या ब्राह्मण वर्ण के आचार हैं । अध्ययन और अध्यापन करना, यज्ञ करना और करवाना ब्राह्मण का व्यवसाय है । वैद्य, पुरोहित और अमात्य भी ब्राह्मण होते हैं । परन्तु व्यवसाय का अर्थ पैसा कमाना नहीं है, नोकरी करना नहीं है । केवल अमात्य ही नौकरी करते हैं । अन्य व्यवसाय का लक्ष्य भी अथार्जिन नहीं है, सेवा है । तभी तो ब्राह्मण पृथ्वी पर का देवता है । क्या आप ऐसे ब्राह्मण हैं ? बनना चाहते हैं ? ऐसे ब्राह्मणों की समाज को बहुत आवश्यकता है । समाज आज भी सम्मान करने को इच्छुक है । परन्तु ब्राह्मण नहीं रहना है और ब्राह्मण का सम्मान चाहिये तो सम्मान नहीं, उपहास मिलेगा । वस्तुस्थिति यह है कि आज किसी भी वर्ण में जन्म हुआ हो दस प्रतिशत लोग भी आचार और व्यवसाय से ब्राह्मण बन जाय तो समाज की व्यवस्था सम्हल जायेगी ।
   −
'''प्रश्न ३६ भारतीय शिक्षा का बहुत बखान करनेवाले एक बात भूल जाते हैं कि भारत में शिक्षा की व्यवस्था ही नहीं थी । लडकियों को तो पढाया ही नहीं जाता था । शिक्षा का प्रसार तो अब हुआ है । अभी तो प्रयास चल रहे हैं । भारत में ही तो हो रहे हैं । उन्हें क्यों भारतीय नहीं कहा जाता ?'''
+
'''प्रश्न ३६ धार्मिक शिक्षा का बहुत बखान करनेवाले एक बात भूल जाते हैं कि भारत में शिक्षा की व्यवस्था ही नहीं थी । लडकियों को तो पढाया ही नहीं जाता था । शिक्षा का प्रसार तो अब हुआ है । अभी तो प्रयास चल रहे हैं । भारत में ही तो हो रहे हैं । उन्हें क्यों धार्मिक नहीं कहा जाता ?'''
    
'''एक शिक्षाशास्त्री का प्रश्न'''
 
'''एक शिक्षाशास्त्री का प्रश्न'''
    
निरक्षरता और अशिक्षितता में अन्तर है । इस देश में लिखने पढने को शिक्षा नहीं कहा जाता था, संस्कार और बुद्धि को शिक्षा कहा जाता था । लिखना पढना नहीं जानने वाले कबीर तत्त्वज्ञ, भक्त और कवि थे, लिखना पढना नहीं जाननेवाले व्यापारी करोड़ों रूपये कमाते थे, लिखना पढना नहीं जानने वाले लोग अत्यन्त व्यवहारदृक्ष थे, लिखना पढना नहीं जानने वाले लोग कुशल कारीगर थे । आज लिखना पढ़ना जानने वाले लोगों में ज्ञान, संस्कार, व्यवहार कौशल कुछ नहीं होता । अर्थात्‌ साक्षरता से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता तो भी हम
 
निरक्षरता और अशिक्षितता में अन्तर है । इस देश में लिखने पढने को शिक्षा नहीं कहा जाता था, संस्कार और बुद्धि को शिक्षा कहा जाता था । लिखना पढना नहीं जानने वाले कबीर तत्त्वज्ञ, भक्त और कवि थे, लिखना पढना नहीं जाननेवाले व्यापारी करोड़ों रूपये कमाते थे, लिखना पढना नहीं जानने वाले लोग अत्यन्त व्यवहारदृक्ष थे, लिखना पढना नहीं जानने वाले लोग कुशल कारीगर थे । आज लिखना पढ़ना जानने वाले लोगों में ज्ञान, संस्कार, व्यवहार कौशल कुछ नहीं होता । अर्थात्‌ साक्षरता से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता तो भी हम
उसे ही शिक्षा कह रहे हैं । दूसरी बात यह है कि सरकार की कोई शिक्षा व्यवस्था नहीं होने पर भी इस देश में पाँच लाख प्राथमिक विद्यालय और सैंकडों उच्च शिक्षा के केन्द्र थे इसके तो दस्तावेज भी आपको मिलेंगे । तीसरी बात यह है कि शिक्षा भारतीय और अधार्मिक कानून और संविधान से नहीं होती, उसके आधार रूप जीवनदृष्टि के
+
उसे ही शिक्षा कह रहे हैं । दूसरी बात यह है कि सरकार की कोई शिक्षा व्यवस्था नहीं होने पर भी इस देश में पाँच लाख प्राथमिक विद्यालय और सैंकडों उच्च शिक्षा के केन्द्र थे इसके तो दस्तावेज भी आपको मिलेंगे । तीसरी बात यह है कि शिक्षा धार्मिक और अधार्मिक कानून और संविधान से नहीं होती, उसके आधार रूप जीवनदृष्टि के
कारण होती है । आज भारत में शिक्षा टैकनिकली भारतीय है, उसकी जीवनदृष्टि पाश्चात्य है । उसे जीवनदृष्टि के रूप में भारतीय बनाने से वह भारतीय होगी ।
+
कारण होती है । आज भारत में शिक्षा टैकनिकली धार्मिक है, उसकी जीवनदृष्टि पाश्चात्य है । उसे जीवनदृष्टि के रूप में धार्मिक बनाने से वह धार्मिक होगी ।
   −
अभी तो भारतीय शिक्षा की केवल बातें शुरू हुई हैं । देश में हलचल शुरू हुई है । योजना और प्रयोग तो होने शेष हैं । हम सबको मिलकर शिक्षा को पूर्ण रूप से भारतीय बनाने की आवश्यकता है ।
+
अभी तो धार्मिक शिक्षा की केवल बातें शुरू हुई हैं । देश में हलचल शुरू हुई है । योजना और प्रयोग तो होने शेष हैं । हम सबको मिलकर शिक्षा को पूर्ण रूप से धार्मिक बनाने की आवश्यकता है ।
    
'''प्रश्न ३७ शिक्षा के तन्त्र में ऐसे कौन से परिवर्तन हैं जो सहजता से किये जा सकते हैं ? जो सहजता से किये नहीं जा सकते उन्हें हम व्यावहारिक कैसे कहेंगे ?'''
 
'''प्रश्न ३७ शिक्षा के तन्त्र में ऐसे कौन से परिवर्तन हैं जो सहजता से किये जा सकते हैं ? जो सहजता से किये नहीं जा सकते उन्हें हम व्यावहारिक कैसे कहेंगे ?'''
Line 476: Line 476:  
3. अध्यात्मशास्त्र, धर्मशास््र, संस्कृति, गोपालन, अर्थशास्त्र आदि विषयों को सामान्य शिक्षाक्रम का आधार बनाना होगा । मन की शिक्षा को सर्व स्तर पर अनिवार्य विषय बनाना होगा ।
 
3. अध्यात्मशास्त्र, धर्मशास््र, संस्कृति, गोपालन, अर्थशास्त्र आदि विषयों को सामान्य शिक्षाक्रम का आधार बनाना होगा । मन की शिक्षा को सर्व स्तर पर अनिवार्य विषय बनाना होगा ।
   −
४. राष्ट्रीयता की शिक्षा देनी होगी । भारतीय होने का अर्थ क्या है, भारत की और भारतीय होने के नाते हमारी विश्व में भूमिका कया है यह सिखाना होगा ।  
+
४. राष्ट्रीयता की शिक्षा देनी होगी । धार्मिक होने का अर्थ क्या है, भारत की और धार्मिक होने के नाते हमारी विश्व में भूमिका कया है यह सिखाना होगा ।  
    
यहाँ से शुरुआत की तो शिक्षा की गाडी ठीक पटरी पर चलेगी ।
 
यहाँ से शुरुआत की तो शिक्षा की गाडी ठीक पटरी पर चलेगी ।
Line 500: Line 500:  
सब प्रयोग करते हैं इसलिये वह सही नहीं हो जाता । आज के वातावरण में कोई सुनेगा नहीं यह सही है परन्तु इतने मात्र से वह सही नहीं हो जाता ।
 
सब प्रयोग करते हैं इसलिये वह सही नहीं हो जाता । आज के वातावरण में कोई सुनेगा नहीं यह सही है परन्तु इतने मात्र से वह सही नहीं हो जाता ।
   −
'''प्रश्न ३९ जमाने के अनुसार नहीं चलने में क्या व्यावहारिकता है ? भारतीय शिक्षा के नाम पर अथ से इति सब कुछ नकारना कहाँ तक उचित है ? क्या वर्तमान शिक्षा में सब कुछ छोड देने योग्य है ?'''
+
'''प्रश्न ३९ जमाने के अनुसार नहीं चलने में क्या व्यावहारिकता है ? धार्मिक शिक्षा के नाम पर अथ से इति सब कुछ नकारना कहाँ तक उचित है ? क्या वर्तमान शिक्षा में सब कुछ छोड देने योग्य है ?'''
    
एक प्राध्यापक का प्रश्र
 
एक प्राध्यापक का प्रश्र
   −
भारत में भारतीय शिक्षा होनी चाहिये इतना यदि हमने स्वीकर कर लिया तो सारी की सारी बातें परिवर्तनीय हैं यह
+
भारत में धार्मिक शिक्षा होनी चाहिये इतना यदि हमने स्वीकर कर लिया तो सारी की सारी बातें परिवर्तनीय हैं यह
 
भी मानना ही पडेगा ।
 
भी मानना ही पडेगा ।
   Line 510: Line 510:     
हमें यदि अमरुद के वृक्ष से आम की अपेक्षा है तो उसके पत्ते तोडकर आम के पत्ते चिपकाना, वृक्ष की डालियाँ काटना, कहीं कहीं आम के फल लटका देना आदि करने से नहीं चलेगा । पूरा वृक्ष ही नये से बोना
 
हमें यदि अमरुद के वृक्ष से आम की अपेक्षा है तो उसके पत्ते तोडकर आम के पत्ते चिपकाना, वृक्ष की डालियाँ काटना, कहीं कहीं आम के फल लटका देना आदि करने से नहीं चलेगा । पूरा वृक्ष ही नये से बोना
पडेगा । इसी प्रकार यदि भारतीय शिक्षा चाहिये तो वर्तमान ढाँचे को पूरा का पूरा छोडकर नया ढाँचा बनाना पड़ेगा।  
+
पडेगा । इसी प्रकार यदि धार्मिक शिक्षा चाहिये तो वर्तमान ढाँचे को पूरा का पूरा छोडकर नया ढाँचा बनाना पड़ेगा।  
    
'''प्रश्न ४० सरकारें बदलती हैं, सरकार बनाने वाले राजकीय पक्ष बदलते हैं, नई नई नीतियाँ और आयोग बनते हैं तो भी शिक्षा का प्रश्न तो अधिकाधिक उलझता रहता है इसका कारण क्या है ?'''
 
'''प्रश्न ४० सरकारें बदलती हैं, सरकार बनाने वाले राजकीय पक्ष बदलते हैं, नई नई नीतियाँ और आयोग बनते हैं तो भी शिक्षा का प्रश्न तो अधिकाधिक उलझता रहता है इसका कारण क्या है ?'''
Line 570: Line 570:  
'''प्रश्न ४४ क्या वास्तव में संस्कृत पढने की आवश्यकता है ? यदि हाँ तो विद्यालय में वह कैसे पढाई जाय ?'''
 
'''प्रश्न ४४ क्या वास्तव में संस्कृत पढने की आवश्यकता है ? यदि हाँ तो विद्यालय में वह कैसे पढाई जाय ?'''
   −
'''उत्तर''' भारतीयों के लिये संस्कृत पढ़ना अनिवार्य है । इसके कई कारण हैं जिनमें दो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । भारतीय
+
'''उत्तर''' धार्मिकों के लिये संस्कृत पढ़ना अनिवार्य है । इसके कई कारण हैं जिनमें दो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । धार्मिक
ज्ञानधारा जिन ग्रन्थों में सुरक्षित है वे सब संस्कृत में रचे गये हैं । उनका प्रत्यक्ष पठन कर सकें इस लिये संस्कृत पढना आवश्यक है । एक भारतीय को अपनी ही ज्ञानधारा का परिचय न हो यह कैसे सम्भव है ? वह शिक्षित ही कैसे कहा जायेगा ? दूसरा, भारत की सभी भाषाओं की जननी संस्कृत है । अपनी मातृभाषा को उत्तम स्तर की बनाने हेतु संस्कृत का ज्ञान अति आवश्यक है । हर कोई चाहेगा कि वह अपनी भाषा का प्रयोग उत्तम पद्धति से कर सके ।
+
ज्ञानधारा जिन ग्रन्थों में सुरक्षित है वे सब संस्कृत में रचे गये हैं । उनका प्रत्यक्ष पठन कर सकें इस लिये संस्कृत पढना आवश्यक है । एक धार्मिक को अपनी ही ज्ञानधारा का परिचय न हो यह कैसे सम्भव है ? वह शिक्षित ही कैसे कहा जायेगा ? दूसरा, भारत की सभी भाषाओं की जननी संस्कृत है । अपनी मातृभाषा को उत्तम स्तर की बनाने हेतु संस्कृत का ज्ञान अति आवश्यक है । हर कोई चाहेगा कि वह अपनी भाषा का प्रयोग उत्तम पद्धति से कर सके ।
    
संस्कृत तो क्या, जगत की कोई भी भाषा प्रथम बोलनी होती है । संस्कृत का प्रारम्भ भी संस्कृत बोलने से होता है । शिशु अवस्था से ही संस्कृत बोलने का अभ्यास शुरू करना चाहिये । जब पढ़ने लिखने का क्रम आता है तब लिपि सीखने की आयु में प्रथम लिपि और बाद में पठन शुरू करना चाहिये । अच्छा बोलना और पढन अच्छी तरह अवगत होने के बाद लेखन शुरू करना चाहिये । पढने हेतु सुन्दर, ललित और शास्त्रीय वाड़्य या तो एकत्रित करना चाहिये, नहीं तो निर्माण करना चाहिये । संस्कृत का अध्ययन शुरू करने से पूर्व, अपरिचय के कारण से जो ग्रन्थियाँ होती है वे अध्ययन शुरू करने के बाद शीघ्र ही छूट जाती है और आनन्द का अनुभव होता है।
 
संस्कृत तो क्या, जगत की कोई भी भाषा प्रथम बोलनी होती है । संस्कृत का प्रारम्भ भी संस्कृत बोलने से होता है । शिशु अवस्था से ही संस्कृत बोलने का अभ्यास शुरू करना चाहिये । जब पढ़ने लिखने का क्रम आता है तब लिपि सीखने की आयु में प्रथम लिपि और बाद में पठन शुरू करना चाहिये । अच्छा बोलना और पढन अच्छी तरह अवगत होने के बाद लेखन शुरू करना चाहिये । पढने हेतु सुन्दर, ललित और शास्त्रीय वाड़्य या तो एकत्रित करना चाहिये, नहीं तो निर्माण करना चाहिये । संस्कृत का अध्ययन शुरू करने से पूर्व, अपरिचय के कारण से जो ग्रन्थियाँ होती है वे अध्ययन शुरू करने के बाद शीघ्र ही छूट जाती है और आनन्द का अनुभव होता है।
Line 728: Line 728:  
'''एक शिक्षक का प्रश्न'''
 
'''एक शिक्षक का प्रश्न'''
   −
'''उत्तर''' १. प्रतिमास भारतीय शिक्षाविषयक एक पुस्तक पढना।  
+
'''उत्तर''' १. प्रतिमास धार्मिक शिक्षाविषयक एक पुस्तक पढना।  
    
२. वर्ष में कम से कम एक बार शिक्षकों की गोष्ठी आयोजित करना अथवा उसमें जाना ।
 
२. वर्ष में कम से कम एक बार शिक्षकों की गोष्ठी आयोजित करना अथवा उसमें जाना ।
Line 750: Line 750:  
'''उत्तर''' निश्चित !
 
'''उत्तर''' निश्चित !
   −
'''प्रश्न ५९''' '''क्या भारत में शिक्षा भारतीय होगी ? यह सम्भव है''' ?
+
'''प्रश्न ५९''' '''क्या भारत में शिक्षा धार्मिक होगी ? यह सम्भव है''' ?
    
'''एक जिज्ञासु का प्रश्न'''
 
'''एक जिज्ञासु का प्रश्न'''
   −
'''उत्तर''' निश्चितरूप से भारतमें भारतीय शिक्षा प्रतिष्ठित होगी । यह विश्व की आवश्यकता है और भारत की नियति ।
+
'''उत्तर''' निश्चितरूप से भारतमें धार्मिक शिक्षा प्रतिष्ठित होगी । यह विश्व की आवश्यकता है और भारत की नियति ।
   −
'''प्रश्न ६० शिक्षा पुन: भारतीय हो इसके लिये किसे काम करना होगा ?'''
+
'''प्रश्न ६० शिक्षा पुन: धार्मिक हो इसके लिये किसे काम करना होगा ?'''
    
'''उत्तर'''  हम में से कोई बाकी न रहे । हम सबको काम करना होगा ।
 
'''उत्तर'''  हम में से कोई बाकी न रहे । हम सबको काम करना होगा ।
    
==References==
 
==References==
<references />भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
+
<references />धार्मिक शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण धार्मिक शिक्षा (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
[[Category:Bhartiya Shiksha Granthmala(भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला)]]
+
[[Category:Bhartiya Shiksha Granthmala(धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला)]]
 
[[Category:Education Series]]
 
[[Category:Education Series]]
[[Category:भारतीय शिक्षा : भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम]]
+
[[Category:धार्मिक शिक्षा : धार्मिक शिक्षा के व्यावहारिक आयाम]]

Navigation menu