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निरक्षरता और अशिक्षितता में अन्तर है । इस देश में लिखने पढने को शिक्षा नहीं कहा जाता था, संस्कार और बुद्धि को शिक्षा कहा जाता था । लिखना पढना नहीं जानने वाले कबीर तत्त्वज्ञ, भक्त और कवि थे, लिखना पढना नहीं जाननेवाले व्यापारी करोड़ों रूपये कमाते थे, लिखना पढना नहीं जानने वाले लोग अत्यन्त व्यवहारदृक्ष थे, लिखना पढना नहीं जानने वाले लोग कुशल कारीगर थे । आज लिखना पढ़ना जानने वाले लोगों में ज्ञान, संस्कार, व्यवहार कौशल कुछ नहीं होता । अर्थात्‌ साक्षरता से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता तो भी हम
 
निरक्षरता और अशिक्षितता में अन्तर है । इस देश में लिखने पढने को शिक्षा नहीं कहा जाता था, संस्कार और बुद्धि को शिक्षा कहा जाता था । लिखना पढना नहीं जानने वाले कबीर तत्त्वज्ञ, भक्त और कवि थे, लिखना पढना नहीं जाननेवाले व्यापारी करोड़ों रूपये कमाते थे, लिखना पढना नहीं जानने वाले लोग अत्यन्त व्यवहारदृक्ष थे, लिखना पढना नहीं जानने वाले लोग कुशल कारीगर थे । आज लिखना पढ़ना जानने वाले लोगों में ज्ञान, संस्कार, व्यवहार कौशल कुछ नहीं होता । अर्थात्‌ साक्षरता से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता तो भी हम
उसे ही शिक्षा कह रहे हैं । दूसरी बात यह है कि सरकार की कोई शिक्षा व्यवस्था नहीं होने पर भी इस देश में पाँच लाख प्राथमिक विद्यालय और सैंकडों उच्च शिक्षा के केन्द्र थे इसके तो दस्तावेज भी आपको मिलेंगे । तीसरी बात यह है कि शिक्षा भारतीय और अभारतीय कानून और संविधान से नहीं होती, उसके आधार रूप जीवनदृष्टि के
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उसे ही शिक्षा कह रहे हैं । दूसरी बात यह है कि सरकार की कोई शिक्षा व्यवस्था नहीं होने पर भी इस देश में पाँच लाख प्राथमिक विद्यालय और सैंकडों उच्च शिक्षा के केन्द्र थे इसके तो दस्तावेज भी आपको मिलेंगे । तीसरी बात यह है कि शिक्षा भारतीय और अधार्मिक कानून और संविधान से नहीं होती, उसके आधार रूप जीवनदृष्टि के
 
कारण होती है । आज भारत में शिक्षा टैकनिकली भारतीय है, उसकी जीवनदृष्टि पाश्चात्य है । उसे जीवनदृष्टि के रूप में भारतीय बनाने से वह भारतीय होगी ।
 
कारण होती है । आज भारत में शिक्षा टैकनिकली भारतीय है, उसकी जीवनदृष्टि पाश्चात्य है । उसे जीवनदृष्टि के रूप में भारतीय बनाने से वह भारतीय होगी ।
  

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