Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "कया" to "क्या"
Line 181: Line 181:  
'''प्रश्न १७  विद्यालयों में सीसीटीवी कैमरे रखने का क्या प्रयोजन है ?'''
 
'''प्रश्न १७  विद्यालयों में सीसीटीवी कैमरे रखने का क्या प्रयोजन है ?'''
   −
'''उत्तर''' विद्यालय यदि बडा है तो मुख्याध्यापक को कहाँ कया हो रहा है इसकी जानकारी अपने स्थान पर ही बैठे हुए मिलती रहे यही उसका मूल प्रयोजन है । कोई बाहर का व्यक्ति, कोई आवांछनीय व्यक्ति विद्यालय में न घुसे इसकी सावधानी भी इससे रखी जाती है । परन्तु इस व्यवस्था का दुरुपयोग मनुष्य का मन और बुद्धि कर ही लेते हैं । इसलिये कक्षाकक्षों में शिक्षक और विद्यार्थियों की गतिविधि पर नजर रखने के लिये इसका महत्तम उपयोग किया जाता है । विद्यार्थी यह खूब जानते हैं इसलिये उससे बचने के उपाय भी खोज लेते हैं और जो करना है कर लेते हैं ।
+
'''उत्तर''' विद्यालय यदि बडा है तो मुख्याध्यापक को कहाँ क्या हो रहा है इसकी जानकारी अपने स्थान पर ही बैठे हुए मिलती रहे यही उसका मूल प्रयोजन है । कोई बाहर का व्यक्ति, कोई आवांछनीय व्यक्ति विद्यालय में न घुसे इसकी सावधानी भी इससे रखी जाती है । परन्तु इस व्यवस्था का दुरुपयोग मनुष्य का मन और बुद्धि कर ही लेते हैं । इसलिये कक्षाकक्षों में शिक्षक और विद्यार्थियों की गतिविधि पर नजर रखने के लिये इसका महत्तम उपयोग किया जाता है । विद्यार्थी यह खूब जानते हैं इसलिये उससे बचने के उपाय भी खोज लेते हैं और जो करना है कर लेते हैं ।
    
'''प्रश्न १८  इतने प्रभावी दृश्यश्राव्य उपकरण हैं फिर शिक्षक की क्या आवश्यकता है ?'''
 
'''प्रश्न १८  इतने प्रभावी दृश्यश्राव्य उपकरण हैं फिर शिक्षक की क्या आवश्यकता है ?'''
Line 204: Line 204:  
'''एक अभिभावक का प्रश्न'''
 
'''एक अभिभावक का प्रश्न'''
   −
'''उत्तर'''  मातृभाषा क्यों नहीं आनी चाहिये इसका कोई तर्कपूर्ण कारण है कया ? नहीं । इसलिये मातृभाषा नहीं आना अत्यन्त अस्वाभाविक है ।
+
'''उत्तर'''  मातृभाषा क्यों नहीं आनी चाहिये इसका कोई तर्कपूर्ण कारण है क्या ? नहीं । इसलिये मातृभाषा नहीं आना अत्यन्त अस्वाभाविक है ।
    
१, मातृभाषा नहीं आने से दुनिया की एक भी भाषा अच्छी तरह नहीं आती |
 
१, मातृभाषा नहीं आने से दुनिया की एक भी भाषा अच्छी तरह नहीं आती |
Line 228: Line 228:  
आधुनिक समय में भी एक कालखण्ड ऐसा आया जब कन्या भ्रूण हत्या की मात्रा बढ गई । यह चिन्तित कर देने वाला मामला अवश्य था । हमारी यह भी धारणा बनी है कि हम लडकों को ही पढाते हैं, लडकियों को नहीं । इसका उपाय करने के प्रयास होने लगे । सरकार की ओर से अनेक प्रयास हुए । उनमें से यह “बेटी बचाओ बेटी पढाओ' सूत्र आया ।
 
आधुनिक समय में भी एक कालखण्ड ऐसा आया जब कन्या भ्रूण हत्या की मात्रा बढ गई । यह चिन्तित कर देने वाला मामला अवश्य था । हमारी यह भी धारणा बनी है कि हम लडकों को ही पढाते हैं, लडकियों को नहीं । इसका उपाय करने के प्रयास होने लगे । सरकार की ओर से अनेक प्रयास हुए । उनमें से यह “बेटी बचाओ बेटी पढाओ' सूत्र आया ।
   −
आज समाज में यह सूत्र तो स्वीकृत हो गया है परन्तु हम करते कया हैं ? हम कहने लगे हैं कि हमारे लिये बेटी और बेटा समान है । परन्तु हम बेटी को बेटी के रूप में नहीं स्वीकार कर रहे हैं, बेटी को बेटा बना रहे हैं । अनजान में भी हम बेटी के साथ बेटे जैसा व्यवहार कर रहे हैं । छोटी बेटी को हम लडके की तरह बुलाते हैं । उसके कपडे उसके खेल, उसकी गतिविधियाँ सब लडके जैसी ही हों ऐसा हम चाहते हैं ।
+
आज समाज में यह सूत्र तो स्वीकृत हो गया है परन्तु हम करते क्या हैं ? हम कहने लगे हैं कि हमारे लिये बेटी और बेटा समान है । परन्तु हम बेटी को बेटी के रूप में नहीं स्वीकार कर रहे हैं, बेटी को बेटा बना रहे हैं । अनजान में भी हम बेटी के साथ बेटे जैसा व्यवहार कर रहे हैं । छोटी बेटी को हम लडके की तरह बुलाते हैं । उसके कपडे उसके खेल, उसकी गतिविधियाँ सब लडके जैसी ही हों ऐसा हम चाहते हैं ।
    
परीक्षा करके देखें । बेटा और बेटी समान हैं तो बेटे को बेटी की तरह बुलायेंगे ? बेटे को बेटी का वेश पहनायेंगे ? लडकियों के खेल दोनों खेलेंगे ? कभी नहीं । लडके की माता और बहन भी ऐसा करना पसन्द नहीं करेंगी । फिर बेटी को बेटे जैसा क्यों बनाना है ? अर्थात्‌ हमारा बालक बेटी के रूप में भले हीं हो हम उसे बेटे की तरह पालेंगे ।
 
परीक्षा करके देखें । बेटा और बेटी समान हैं तो बेटे को बेटी की तरह बुलायेंगे ? बेटे को बेटी का वेश पहनायेंगे ? लडकियों के खेल दोनों खेलेंगे ? कभी नहीं । लडके की माता और बहन भी ऐसा करना पसन्द नहीं करेंगी । फिर बेटी को बेटे जैसा क्यों बनाना है ? अर्थात्‌ हमारा बालक बेटी के रूप में भले हीं हो हम उसे बेटे की तरह पालेंगे ।
Line 448: Line 448:  
एक समय था जब वर्णव्यवस्था हिन्दु समाजव्यवस्था के मूल आधारों में एक थी । परन्तु आज वह पूर्ण रूप से अव्यवस्था में बदल गई है । आज उसका कोई सार्थक उपयोग नहीं रहा ।
 
एक समय था जब वर्णव्यवस्था हिन्दु समाजव्यवस्था के मूल आधारों में एक थी । परन्तु आज वह पूर्ण रूप से अव्यवस्था में बदल गई है । आज उसका कोई सार्थक उपयोग नहीं रहा ।
   −
आप ब्राह्मण हैं । ब्राह्मण वर्ण का समाज में कया स्थान है इसका विचार करने से पहले दायित्व क्या है इसका विचार करना चाहिये । ब्राह्मण केवल ब्राह्मण मातापिता के घर में जन्म लेने से नहीं हुआ जाता । प्रत्येक वर्ण के साथ आचार और व्यवसाय का सम्बन्ध है । ब्राह्मण वर्ण के आचार क्या हैं ? पवित्रता, सादगी, संयम, तपश्चर्या ब्राह्मण वर्ण के आचार हैं । अध्ययन और अध्यापन करना, यज्ञ करना और करवाना ब्राह्मण का व्यवसाय है । वैद्य, पुरोहित और अमात्य भी ब्राह्मण होते हैं । परन्तु व्यवसाय का अर्थ पैसा कमाना नहीं है, नोकरी करना नहीं है । केवल अमात्य ही नौकरी करते हैं । अन्य व्यवसाय का लक्ष्य भी अथार्जिन नहीं है, सेवा है । तभी तो ब्राह्मण पृथ्वी पर का देवता है । क्या आप ऐसे ब्राह्मण हैं ? बनना चाहते हैं ? ऐसे ब्राह्मणों की समाज को बहुत आवश्यकता है । समाज आज भी सम्मान करने को इच्छुक है । परन्तु ब्राह्मण नहीं रहना है और ब्राह्मण का सम्मान चाहिये तो सम्मान नहीं, उपहास मिलेगा । वस्तुस्थिति यह है कि आज किसी भी वर्ण में जन्म हुआ हो दस प्रतिशत लोग भी आचार और व्यवसाय से ब्राह्मण बन जाय तो समाज की व्यवस्था सम्हल जायेगी ।
+
आप ब्राह्मण हैं । ब्राह्मण वर्ण का समाज में क्या स्थान है इसका विचार करने से पहले दायित्व क्या है इसका विचार करना चाहिये । ब्राह्मण केवल ब्राह्मण मातापिता के घर में जन्म लेने से नहीं हुआ जाता । प्रत्येक वर्ण के साथ आचार और व्यवसाय का सम्बन्ध है । ब्राह्मण वर्ण के आचार क्या हैं ? पवित्रता, सादगी, संयम, तपश्चर्या ब्राह्मण वर्ण के आचार हैं । अध्ययन और अध्यापन करना, यज्ञ करना और करवाना ब्राह्मण का व्यवसाय है । वैद्य, पुरोहित और अमात्य भी ब्राह्मण होते हैं । परन्तु व्यवसाय का अर्थ पैसा कमाना नहीं है, नोकरी करना नहीं है । केवल अमात्य ही नौकरी करते हैं । अन्य व्यवसाय का लक्ष्य भी अथार्जिन नहीं है, सेवा है । तभी तो ब्राह्मण पृथ्वी पर का देवता है । क्या आप ऐसे ब्राह्मण हैं ? बनना चाहते हैं ? ऐसे ब्राह्मणों की समाज को बहुत आवश्यकता है । समाज आज भी सम्मान करने को इच्छुक है । परन्तु ब्राह्मण नहीं रहना है और ब्राह्मण का सम्मान चाहिये तो सम्मान नहीं, उपहास मिलेगा । वस्तुस्थिति यह है कि आज किसी भी वर्ण में जन्म हुआ हो दस प्रतिशत लोग भी आचार और व्यवसाय से ब्राह्मण बन जाय तो समाज की व्यवस्था सम्हल जायेगी ।
    
'''प्रश्न ३६ धार्मिक शिक्षा का बहुत बखान करनेवाले एक बात भूल जाते हैं कि भारत में शिक्षा की व्यवस्था ही नहीं थी । लडकियों को तो पढाया ही नहीं जाता था । शिक्षा का प्रसार तो अब हुआ है । अभी तो प्रयास चल रहे हैं । भारत में ही तो हो रहे हैं । उन्हें क्यों धार्मिक नहीं कहा जाता ?'''
 
'''प्रश्न ३६ धार्मिक शिक्षा का बहुत बखान करनेवाले एक बात भूल जाते हैं कि भारत में शिक्षा की व्यवस्था ही नहीं थी । लडकियों को तो पढाया ही नहीं जाता था । शिक्षा का प्रसार तो अब हुआ है । अभी तो प्रयास चल रहे हैं । भारत में ही तो हो रहे हैं । उन्हें क्यों धार्मिक नहीं कहा जाता ?'''
Line 476: Line 476:  
3. अध्यात्मशास्त्र, धर्मशास््र, संस्कृति, गोपालन, अर्थशास्त्र आदि विषयों को सामान्य शिक्षाक्रम का आधार बनाना होगा । मन की शिक्षा को सर्व स्तर पर अनिवार्य विषय बनाना होगा ।
 
3. अध्यात्मशास्त्र, धर्मशास््र, संस्कृति, गोपालन, अर्थशास्त्र आदि विषयों को सामान्य शिक्षाक्रम का आधार बनाना होगा । मन की शिक्षा को सर्व स्तर पर अनिवार्य विषय बनाना होगा ।
   −
४. राष्ट्रीयता की शिक्षा देनी होगी । धार्मिक होने का अर्थ क्या है, भारत की और धार्मिक होने के नाते हमारी विश्व में भूमिका कया है यह सिखाना होगा ।  
+
४. राष्ट्रीयता की शिक्षा देनी होगी । धार्मिक होने का अर्थ क्या है, भारत की और धार्मिक होने के नाते हमारी विश्व में भूमिका क्या है यह सिखाना होगा ।  
    
यहाँ से शुरुआत की तो शिक्षा की गाडी ठीक पटरी पर चलेगी ।
 
यहाँ से शुरुआत की तो शिक्षा की गाडी ठीक पटरी पर चलेगी ।

Navigation menu