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उत्तर  
 
उत्तर  
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आपकी ओर से ऐसा प्रस्ताव आना ही शुभ संकेत है । आपके जैसे अन्य सेवानिवृत्त शिक्षक यदि इस बात को प्रधानता देते हैं तो उचित परिप्रेक्ष्या में यह बात शुरू होगी । इस दृष्टि से आपको इन चरणों में काम करना होगा ।
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आपकी ओर से ऐसा प्रस्ताव आना ही शुभ संकेत है । आपके जैसे अन्य सेवानिवृत्त शिक्षक यदि इस बात को प्रधानता देते हैं तो उचित परिप्रेक्ष्या में यह बात आरम्भ होगी । इस दृष्टि से आपको इन चरणों में काम करना होगा ।
    
१, केवल स्त्रीत्व के ही नहीं तो पुरुषत्व के गुणों का सम्यक्‌ विकास होना अपेक्षित है ।
 
१, केवल स्त्रीत्व के ही नहीं तो पुरुषत्व के गुणों का सम्यक्‌ विकास होना अपेक्षित है ।
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'''<nowiki/>'एक शिक्षक का प्रश्न'''
 
'''<nowiki/>'एक शिक्षक का प्रश्न'''
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'''उत्तर''' ज्योर्ज वॉर्शिंग्टन कार्वर नामक एक नीग्रो कृषि वैज्ञानिक ने कहा है कि आप जहाँ हैं वहाँ से, जिस स्थिति में हैं वहाँ से शुरू करो और कुछ करके दिखाओ । आप शिक्षक हैं । शिक्षकों द्वारा ही इसका प्रास्भ हो सकता है ।
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'''उत्तर''' ज्योर्ज वॉर्शिंग्टन कार्वर नामक एक नीग्रो कृषि वैज्ञानिक ने कहा है कि आप जहाँ हैं वहाँ से, जिस स्थिति में हैं वहाँ से आरम्भ करो और कुछ करके दिखाओ । आप शिक्षक हैं । शिक्षकों द्वारा ही इसका प्रास्भ हो सकता है ।
    
आप वेतन लेना बन्द मत करो । परन्तु आप विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं वे यदि अन्य किसी के पास ट्यूशन के लिये जाते हैं तो उनके ट्यूशन बन्द करवाकर अतिरिक्त शिक्षा निःशुल्क देना प्रारम्भ करो । प्रार्भ में अभिभावकों को विश्वास नहीं होगा । वे सॉंचेगे कि आप पैसे नहीं लेते इसलिये दरकार भी कम करेंगे । परन्तु धीरे धीरे विश्वास हो जायेगा । दूसरे शिक्षकों के विद्यार्थियों को मत पढाओ, अपने ही विद्यार्थियों का जिम्मा लो । धीरे धीरे आपके जैसे और शिक्षक भी आपसे मिल जायेंगे ।
 
आप वेतन लेना बन्द मत करो । परन्तु आप विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं वे यदि अन्य किसी के पास ट्यूशन के लिये जाते हैं तो उनके ट्यूशन बन्द करवाकर अतिरिक्त शिक्षा निःशुल्क देना प्रारम्भ करो । प्रार्भ में अभिभावकों को विश्वास नहीं होगा । वे सॉंचेगे कि आप पैसे नहीं लेते इसलिये दरकार भी कम करेंगे । परन्तु धीरे धीरे विश्वास हो जायेगा । दूसरे शिक्षकों के विद्यार्थियों को मत पढाओ, अपने ही विद्यार्थियों का जिम्मा लो । धीरे धीरे आपके जैसे और शिक्षक भी आपसे मिल जायेंगे ।
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महाविद्यालय के विदायर्थियों के साथ चर्चा शुरू करो । उनमें भी शिक्षक के स्वभाव के लोग मिलेंगे । उन्हें अपने काम में जोड़ो । यह मत सोचो कि युवा लोग नहीं मिलेंगे । आज भी ऐसे युवा हैं जो अच्छा काम करना चाहते हैं । उनके साथ मिलकर यदि आप विद्यालय शुरू कर सकते हैं तो बहुत ही अच्छा । इस विद्यालय को
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महाविद्यालय के विदायर्थियों के साथ चर्चा आरम्भ करो । उनमें भी शिक्षक के स्वभाव के लोग मिलेंगे । उन्हें अपने काम में जोड़ो । यह मत सोचो कि युवा लोग नहीं मिलेंगे । आज भी ऐसे युवा हैं जो अच्छा काम करना चाहते हैं । उनके साथ मिलकर यदि आप विद्यालय आरम्भ कर सकते हैं तो बहुत ही अच्छा । इस विद्यालय को
 
अर्थनिरपेक्ष बनाओ । धार्मिक शिक्षा की अर्थव्यवस्था कैसी होती थी यह समझकर, आज की स्थिति का विचार
 
अर्थनिरपेक्ष बनाओ । धार्मिक शिक्षा की अर्थव्यवस्था कैसी होती थी यह समझकर, आज की स्थिति का विचार
 
कर अर्थव्यवस्था बिठाओ । यह प्रयोग अवश्य यशस्वी होगा ।
 
कर अर्थव्यवस्था बिठाओ । यह प्रयोग अवश्य यशस्वी होगा ।
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यह बडी शोचनीय बात है कि इतना उच्च स्तर छोडकर हम आज अत्यन्त सतही स्तर पर विहार कर रहे हैं और उसे अनुसन्धान का नाम दे रहे हैं । यह अनुसन्धान नहीं, अनुसन्धान का आभास है । भारत की विद्रत्ता को शोभा देने वाली यह बात नहीं है । हमें यह आभासी आवरण को दूर कर सही बातों की पुनर्प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता है ।
 
यह बडी शोचनीय बात है कि इतना उच्च स्तर छोडकर हम आज अत्यन्त सतही स्तर पर विहार कर रहे हैं और उसे अनुसन्धान का नाम दे रहे हैं । यह अनुसन्धान नहीं, अनुसन्धान का आभास है । भारत की विद्रत्ता को शोभा देने वाली यह बात नहीं है । हमें यह आभासी आवरण को दूर कर सही बातों की पुनर्प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता है ।
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'''प्रश्न ३३ विगत कुछ वर्षों से सूत्र चल रहा है “छोटा परिवार सुखी परिवार' अब लोगों के ध्यान में आ रहा है कि छोटा परिवार बहुत सुखदायक नहीं होता है । लोग एकदम बडे परिवार बनाने तो नहीं लगे हैं परन्तु विचार तो शुरू हुआ है । विद्यालय भी एक परिवार है । आज की स्थिति में तो सूत्र है “बडा विद्यालय अच्छा'''
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'''प्रश्न ३३ विगत कुछ वर्षों से सूत्र चल रहा है “छोटा परिवार सुखी परिवार' अब लोगों के ध्यान में आ रहा है कि छोटा परिवार बहुत सुखदायक नहीं होता है । लोग एकदम बडे परिवार बनाने तो नहीं लगे हैं परन्तु विचार तो आरम्भ हुआ है । विद्यालय भी एक परिवार है । आज की स्थिति में तो सूत्र है “बडा विद्यालय अच्छा'''
 
विद्यालय ।' उचित क्या है, बडा विद्यालय कि छोटा ?
 
विद्यालय ।' उचित क्या है, बडा विद्यालय कि छोटा ?
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कारण होती है । आज भारत में शिक्षा टैकनिकली धार्मिक है, उसकी जीवनदृष्टि पाश्चात्य है । उसे जीवनदृष्टि के रूप में धार्मिक बनाने से वह धार्मिक होगी ।
 
कारण होती है । आज भारत में शिक्षा टैकनिकली धार्मिक है, उसकी जीवनदृष्टि पाश्चात्य है । उसे जीवनदृष्टि के रूप में धार्मिक बनाने से वह धार्मिक होगी ।
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अभी तो धार्मिक शिक्षा की केवल बातें शुरू हुई हैं । देश में हलचल शुरू हुई है । योजना और प्रयोग तो होने शेष हैं । हम सबको मिलकर शिक्षा को पूर्ण रूप से धार्मिक बनाने की आवश्यकता है ।
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अभी तो धार्मिक शिक्षा की केवल बातें आरम्भ हुई हैं । देश में हलचल आरम्भ हुई है । योजना और प्रयोग तो होने शेष हैं । हम सबको मिलकर शिक्षा को पूर्ण रूप से धार्मिक बनाने की आवश्यकता है ।
    
'''प्रश्न ३७ शिक्षा के तन्त्र में ऐसे कौन से परिवर्तन हैं जो सहजता से किये जा सकते हैं ? जो सहजता से किये नहीं जा सकते उन्हें हम व्यावहारिक कैसे कहेंगे ?'''
 
'''प्रश्न ३७ शिक्षा के तन्त्र में ऐसे कौन से परिवर्तन हैं जो सहजता से किये जा सकते हैं ? जो सहजता से किये नहीं जा सकते उन्हें हम व्यावहारिक कैसे कहेंगे ?'''
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१, गर्भावस्‍था से युवावस्था की शिक्षा को एक ही संस्था में लायें अर्थात्‌ एक विश्वविद्यालय ही पूर्ण शिक्षाक्रम का दायित्व सम्हाले । इससे किसी भी विषय के शिक्षाक्रम में सुसूत्रता और आन्तरिक सम्बद्धता निर्माण होगी ।
 
१, गर्भावस्‍था से युवावस्था की शिक्षा को एक ही संस्था में लायें अर्थात्‌ एक विश्वविद्यालय ही पूर्ण शिक्षाक्रम का दायित्व सम्हाले । इससे किसी भी विषय के शिक्षाक्रम में सुसूत्रता और आन्तरिक सम्बद्धता निर्माण होगी ।
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२. घर को एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा केन्द्र बनाना होगा । इस दृष्टि से विश्वविद्यालयों में परिवार शिक्षा विभाग शुरू
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२. घर को एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा केन्द्र बनाना होगा । इस दृष्टि से विश्वविद्यालयों में परिवार शिक्षा विभाग आरम्भ
 
करना होगा । इसको लगभग बीस वर्ष तक दो स्तरों पर चलाना होगा एक तो विद्यार्थियों के सामान्य क्रम में
 
करना होगा । इसको लगभग बीस वर्ष तक दो स्तरों पर चलाना होगा एक तो विद्यार्थियों के सामान्य क्रम में
 
जोडना और दूसरा गृहस्थों और वानप्रस्थों के लिये चलाना ।
 
जोडना और दूसरा गृहस्थों और वानप्रस्थों के लिये चलाना ।
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यह चाह अच्छी है । केवल इसके लिये जो कुछ करना आवश्यक है वह करने से ही हमारी चाह मृत स्वरूप धारण कर सकती है |
 
यह चाह अच्छी है । केवल इसके लिये जो कुछ करना आवश्यक है वह करने से ही हमारी चाह मृत स्वरूप धारण कर सकती है |
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रही बात अर्थार्जन की । अर्थार्जन हेतु कैसा व्यवसाय करेगा, उस व्यवसाय के लिये कौन सी शिक्षा प्राप्त करेगा यह तय करने के लिये बालक को आसक्ति छोड़कर जानना होगा । जानने के लिये अनेक जानकार लोग हमारी सहायता कर सकते हैं । शिक्षक भी सहायक बन सकते हैं । बालक को यदि निश्चित करना है तो उसे निश्चित करने की क्या प्रक्रिया होती है यह सिखाना होगा । आज तो सतन्नह वर्ष के तरुण भी कुछ भी निश्चित नहीं कर पाते हैं और मित्र करते हैं वही करते हैं । सत्रह वर्ष में तो वास्तव में अथार्जिन शुरू हो जाना चाहिये । करिअर वास्तव में दस वर्ष की आयु में निश्चित हो जानी चाहिये और उसके लिये उचित शिक्षा भी शुरू हो जानी चाहिये ।
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रही बात अर्थार्जन की । अर्थार्जन हेतु कैसा व्यवसाय करेगा, उस व्यवसाय के लिये कौन सी शिक्षा प्राप्त करेगा यह तय करने के लिये बालक को आसक्ति छोड़कर जानना होगा । जानने के लिये अनेक जानकार लोग हमारी सहायता कर सकते हैं । शिक्षक भी सहायक बन सकते हैं । बालक को यदि निश्चित करना है तो उसे निश्चित करने की क्या प्रक्रिया होती है यह सिखाना होगा । आज तो सतन्नह वर्ष के तरुण भी कुछ भी निश्चित नहीं कर पाते हैं और मित्र करते हैं वही करते हैं । सत्रह वर्ष में तो वास्तव में अथार्जिन आरम्भ हो जाना चाहिये । करिअर वास्तव में दस वर्ष की आयु में निश्चित हो जानी चाहिये और उसके लिये उचित शिक्षा भी आरम्भ हो जानी चाहिये ।
    
आज तो हम कुछ भी निश्चित नहीं करते । सब कुछ हो जाता है और हम असहाय होकर देखते रहते हैं, दुःखी होते रहते हैं।  
 
आज तो हम कुछ भी निश्चित नहीं करते । सब कुछ हो जाता है और हम असहाय होकर देखते रहते हैं, दुःखी होते रहते हैं।  
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ज्ञानधारा जिन ग्रन्थों में सुरक्षित है वे सब संस्कृत में रचे गये हैं । उनका प्रत्यक्ष पठन कर सकें इस लिये संस्कृत पढना आवश्यक है । एक धार्मिक को अपनी ही ज्ञानधारा का परिचय न हो यह कैसे सम्भव है ? वह शिक्षित ही कैसे कहा जायेगा ? दूसरा, भारत की सभी भाषाओं की जननी संस्कृत है । अपनी मातृभाषा को उत्तम स्तर की बनाने हेतु संस्कृत का ज्ञान अति आवश्यक है । हर कोई चाहेगा कि वह अपनी भाषा का प्रयोग उत्तम पद्धति से कर सके ।
 
ज्ञानधारा जिन ग्रन्थों में सुरक्षित है वे सब संस्कृत में रचे गये हैं । उनका प्रत्यक्ष पठन कर सकें इस लिये संस्कृत पढना आवश्यक है । एक धार्मिक को अपनी ही ज्ञानधारा का परिचय न हो यह कैसे सम्भव है ? वह शिक्षित ही कैसे कहा जायेगा ? दूसरा, भारत की सभी भाषाओं की जननी संस्कृत है । अपनी मातृभाषा को उत्तम स्तर की बनाने हेतु संस्कृत का ज्ञान अति आवश्यक है । हर कोई चाहेगा कि वह अपनी भाषा का प्रयोग उत्तम पद्धति से कर सके ।
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संस्कृत तो क्या, जगत की कोई भी भाषा प्रथम बोलनी होती है । संस्कृत का प्रारम्भ भी संस्कृत बोलने से होता है । शिशु अवस्था से ही संस्कृत बोलने का अभ्यास शुरू करना चाहिये । जब पढ़ने लिखने का क्रम आता है तब लिपि सीखने की आयु में प्रथम लिपि और बाद में पठन शुरू करना चाहिये । अच्छा बोलना और पढन अच्छी तरह अवगत होने के बाद लेखन शुरू करना चाहिये । पढने हेतु सुन्दर, ललित और शास्त्रीय वाड़्य या तो एकत्रित करना चाहिये, नहीं तो निर्माण करना चाहिये । संस्कृत का अध्ययन शुरू करने से पूर्व, अपरिचय के कारण से जो ग्रन्थियाँ होती है वे अध्ययन शुरू करने के बाद शीघ्र ही छूट जाती है और आनन्द का अनुभव होता है।
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संस्कृत तो क्या, जगत की कोई भी भाषा प्रथम बोलनी होती है । संस्कृत का प्रारम्भ भी संस्कृत बोलने से होता है । शिशु अवस्था से ही संस्कृत बोलने का अभ्यास आरम्भ करना चाहिये । जब पढ़ने लिखने का क्रम आता है तब लिपि सीखने की आयु में प्रथम लिपि और बाद में पठन आरम्भ करना चाहिये । अच्छा बोलना और पढन अच्छी तरह अवगत होने के बाद लेखन आरम्भ करना चाहिये । पढने हेतु सुन्दर, ललित और शास्त्रीय वाड़्य या तो एकत्रित करना चाहिये, नहीं तो निर्माण करना चाहिये । संस्कृत का अध्ययन आरम्भ करने से पूर्व, अपरिचय के कारण से जो ग्रन्थियाँ होती है वे अध्ययन आरम्भ करने के बाद शीघ्र ही छूट जाती है और आनन्द का अनुभव होता है।
    
'''प्रश्न ४५ क्या विद्यालय जाना इतना अनिवार्य है कि उसे संविधान के अन्तर्गत अनिवार्य बनाया जाता है और'''
 
'''प्रश्न ४५ क्या विद्यालय जाना इतना अनिवार्य है कि उसे संविधान के अन्तर्गत अनिवार्य बनाया जाता है और'''

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