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'''<nowiki/>'एक संचालक का प्रश्न'''  
 
'''<nowiki/>'एक संचालक का प्रश्न'''  
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घर में आपके सब काम करने वाला और आपके साथ मीठी बातें भी करने वाला रोबोट है तो फिर पत्नी, पुत्र आदि की क्‍या आवश्यकता है ? आप तुरन्त कहेंगे कि जीवन जीवित लोगों के साथ जीया जाता है, यन्त्रों के साथ नहीं । शिक्षा का भी ऐसा ही है । शिक्षा जीवित लोगों के मध्य होने वाला व्यवहार है, यन्त्रों और मनुष्यों के बीच होने वाला नहीं । यन्त्र हमारे सहायक हो सकते हैं, हमारा स्थान नहीं ले सकते हैं ।
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घर में आपके सब काम करने वाला और आपके साथ मीठी बातें भी करने वाला रोबोट है तो फिर पत्नी, पुत्र आदि की क्‍या आवश्यकता है ? आप तुरन्त कहेंगे कि जीवन जीवित लोगों के साथ जीया जाता है, यन्त्रों के साथ नहीं । शिक्षा का भी ऐसा ही है । शिक्षा जीवित लोगों के मध्य होने वाला व्यवहार है, यन्त्रों और मनुष्यों के मध्य होने वाला नहीं । यन्त्र हमारे सहायक हो सकते हैं, हमारा स्थान नहीं ले सकते हैं ।
    
जो लोग शिक्षा को यान्त्रिक व्यवस्था के हवाले कर रहे हैं उनकी सोच इस प्रकार की बनती है, परन्तु जो आत्मीयता, प्रेरणा, श्रद्धा, निष्ठा, मूल्य चरित्र, सदूगुणविकास आदि का महत्त्व जानते हैं वे कभी भी शिक्षक के स्थान पर यन्त्र नहीं लायेंगे ।  
 
जो लोग शिक्षा को यान्त्रिक व्यवस्था के हवाले कर रहे हैं उनकी सोच इस प्रकार की बनती है, परन्तु जो आत्मीयता, प्रेरणा, श्रद्धा, निष्ठा, मूल्य चरित्र, सदूगुणविकास आदि का महत्त्व जानते हैं वे कभी भी शिक्षक के स्थान पर यन्त्र नहीं लायेंगे ।  
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'''एक अभिभावक का प्रश्न'''  
 
'''एक अभिभावक का प्रश्न'''  
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पुस्तक पढने का महत्त्व बहुत है । बच्चों को तीन वर्ष की आयु से पुस्तकों के बीच में रखना चाहिये । भले ही पुस्तक पढ़ें नहीं, पुस्तकों के साथ सम्बन्ध जुडना चाहिये । धीरे धीरे अपने आप पढ़ना आ जायेगा ।
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पुस्तक पढने का महत्त्व बहुत है । बच्चों को तीन वर्ष की आयु से पुस्तकों के मध्य में रखना चाहिये । भले ही पुस्तक पढ़ें नहीं, पुस्तकों के साथ सम्बन्ध जुडना चाहिये । धीरे धीरे अपने आप पढ़ना आ जायेगा ।
    
घर में यदि बडों को पढ़ते हुए देखते हैं तो बच्चे भी पढ़ने में रुचि लेते हैं । बच्चों ने पढ़ी हुई पुस्तक पर उनके साथ बातें करना भाषा सीखने में बहुत सहायता करता है ।
 
घर में यदि बडों को पढ़ते हुए देखते हैं तो बच्चे भी पढ़ने में रुचि लेते हैं । बच्चों ने पढ़ी हुई पुस्तक पर उनके साथ बातें करना भाषा सीखने में बहुत सहायता करता है ।
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अनेक प्रकार के तर्को से युक्त, उदाहरणों से युक्त साहित्य विपुल मात्रा में प्रस्तुत करने से भी कुछ परिणाम हो सकता है ।
 
अनेक प्रकार के तर्को से युक्त, उदाहरणों से युक्त साहित्य विपुल मात्रा में प्रस्तुत करने से भी कुछ परिणाम हो सकता है ।
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'''प्रश्न ४७ आज चारों ओर जब विपरीत प्रवाह ही चल रहा है तब ये सर्वथा देशी पद्धतियाँ कैसे चलने वाली हैं ? क्या बीच का रास्ता नहीं है ?'''
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'''प्रश्न ४७ आज चारों ओर जब विपरीत प्रवाह ही चल रहा है तब ये सर्वथा देशी पद्धतियाँ कैसे चलने वाली हैं ? क्या मध्य का रास्ता नहीं है ?'''
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महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बताने वाले ने समझौते की बात नहीं करनी चाहिये । बताने वाले ने सही बातें बतानी चाहिये । वर्तमान परिस्थिति में वे बहुत विपरीत या अव्यावहारिक लग सकती हैं । परन्तु व्यावहारिकता का विचार कर आधी अधूरी बातें नहीं बतानी चाहिये । बीच के रास्ते तो लोग स्वयं निकाल लेते हैं । बीच के रास्ते निकालने भी पड़ते हैं । परन्तु बीच के रास्ते निकालते समय क्या सही है और क्या नहीं इसके मापदण्ड तो सामने रहने ही चाहिये । ऐसे मापदण्ड सामने रहने से प्रयत्नों की दिशा सही रहती है । आज स्थिति ऐसी है कि जो सही करना चाहते हैं उनके सामने भी आदर्श नहीं है, जानकारी भी नहीं है । हमें प्रथम तो सही जानकारी देनी चाहिये और साथ में उदाहरण भी प्रस्तुत करने चाहिये ।
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महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बताने वाले ने समझौते की बात नहीं करनी चाहिये । बताने वाले ने सही बातें बतानी चाहिये । वर्तमान परिस्थिति में वे बहुत विपरीत या अव्यावहारिक लग सकती हैं । परन्तु व्यावहारिकता का विचार कर आधी अधूरी बातें नहीं बतानी चाहिये । मध्य के रास्ते तो लोग स्वयं निकाल लेते हैं । मध्य के रास्ते निकालने भी पड़ते हैं । परन्तु मध्य के रास्ते निकालते समय क्या सही है और क्या नहीं इसके मापदण्ड तो सामने रहने ही चाहिये । ऐसे मापदण्ड सामने रहने से प्रयत्नों की दिशा सही रहती है । आज स्थिति ऐसी है कि जो सही करना चाहते हैं उनके सामने भी आदर्श नहीं है, जानकारी भी नहीं है । हमें प्रथम तो सही जानकारी देनी चाहिये और साथ में उदाहरण भी प्रस्तुत करने चाहिये ।
    
'''प्रश्न ४८ हमने एक उक्ति सुनी है, “सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्थ त्यजति पण्डित:' अर्थात्‌ जब सब कुछ नष्ट होने कि स्थिति'''
 
'''प्रश्न ४८ हमने एक उक्ति सुनी है, “सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्थ त्यजति पण्डित:' अर्थात्‌ जब सब कुछ नष्ट होने कि स्थिति'''

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