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इस जानकारी के प्रमुख मुद्दे कुछ इस प्रकार रहेंगे...  
 
इस जानकारी के प्रमुख मुद्दे कुछ इस प्रकार रहेंगे...  
 
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# भारत आध्यात्मिक देश है, विश्व में प्राचीनतम देश है, विश्व में सर्वाधिक आयु वाला देश है, चिरंजीव देश है।  
१. भारत आध्यात्मिक देश है, विश्व में प्राचीनतम देश है, विश्व में सर्वाधिक आयु वाला देश है, चिरंजीव देश है।  
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# भारत जीवन को और विश्व को समग्रता में देखता है, एकात्म दृष्टि से देखता है।  
 
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# भारत भौतिक, जैविक, मानसिक, बौद्धिक, चैतसिक और आध्यात्मिक पहलुओं का एक साथ विचार करता है । ये सारे पहलू एकदूसरे से भिन्न, एकदूसरे से स्वतन्त्र नहीं है। वे सब एक समग्र के ही विभिन्न पहलू हैं । उनका एकदूसरे के साथ और पूर्ण के साथ समरस एकात्म सम्बन्ध है।  
२. भारत जीवन को और विश्व को समग्रता में देखता है, एकात्म दृष्टि से देखता है।  
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# भारत मनुष्य को श्रेष्ठ मानता है परन्तु श्रेष्ठता के साथ वह अपने से कनिष्ठ के प्रति क्षमा, उदारता, दया, स्नेह और रक्षण के कर्तव्य को जोड़ता है, अधिकार को नहीं।  
 
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# भारत संस्कृति और समृद्धि को एक दूसरे के पूरक के रूप में साथ साथ रखता है। समृद्धि से संस्कृति की रक्षा होती है और संस्कृति से समृद्धि हितकारी होती है।
३. भारत भौतिक, जैविक, मानसिक, बौद्धिक, चैतसिक और आध्यात्मिक पहलुओं का एक साथ विचार करता है । ये सारे पहलू एकदूसरे से भिन्न, एकदूसरे से स्वतन्त्र नहीं है। वे सब एक समग्र के ही विभिन्न पहलू हैं । उनका एकदूसरे के साथ और पूर्ण के साथ समरस एकात्म सम्बन्ध है।  
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# भारत सजीव निर्जीव सभी पदार्थों में परमात्मा है ऐसा ही मानता है और सबकी स्वतन्त्रसत्ता का आदर करता है।  
 
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# भारत मनुष्य से अपेक्षा करता है कि सृष्टि के साथ वह स्नेह, कृतज्ञता, दोहन एवं रक्षण का सम्बन्ध बनाये। ऐसा करने से पर्यावरण के प्रदूषण का प्रश्न ही पैदा नहीं होता।  
४. भारत मनुष्य को श्रेष्ठ मानता है परन्तु श्रेष्ठता के साथ वह अपने से कनिष्ठ के प्रति क्षमा, उदारता, दया, स्नेह और रक्षण के कर्तव्य को जोड़ता है, अधिकार को नहीं।  
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# भारत पर्यावरण को केवल भौतिक रूप में नहीं देखता और केवल वायु, जल और भूमि का प्रदूषण नहीं होने देने की चिन्ता नहीं करता। वह विचारों का, भावनाओं का, वृत्तियों का, वाणी का और बुद्धि का प्रदूषण भी न हो ऐसा चाहता है।  
 
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# भारत का अर्थशास्त्र, राजशास्त्र, समाजशास्त्र, वाणिज्यशास्त्र, उद्योगतन्त्र धर्म के अविरोधी है इसलिये सबक लिये हितकारी है ।  
५. भारत संस्कृति और समृद्धि को एक दूसरे के पूरक के रूप में साथ साथ रखता है। समृद्धि से संस्कृति की रक्षा होती है और संस्कृति से समृद्धि हितकारी होती है।
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# भारत अध्यात्मनिष्ठ धर्मपरायण देश है। उसकी धर्म संकल्पना सम्प्रदाय संकल्पना से अलग है, अधिक व्यापक है और सर्वसमावेशक है।  
 
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# भारत की आकांक्षा हमेशा से ही सब सुखी हों, सब निरामय हों, सब का कल्याण हो, किसी को कोई दुःख न हो ऐसी ही रही है। इसके अनुकूल ही भारत का व्यवहार और व्यवस्थायें बनती हैं। विश्व के सन्दर्भ में भारत की कल्पना 'सर्व खलु इदं ब्रह्म' की है। विश्व को भारत का ऐसा परिचय प्राप्त हो इस दृष्टि से आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में साहित्य की निर्मिति होनी चाहिये । विश्व के लोगों के लिये कार्यक्रम होने चाहिये । विश्वविद्यालय के लोगों को विश्व के देशों में जाना चाहिये। आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की शाखायें भी विदेशों में होनी चाहिये।  
६. भारत सजीव निर्जीव सभी पदार्थों में परमात्मा है ऐसा ही मानता है और सबकी स्वतन्त्रसत्ता का आदर करता है।  
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# आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में एक ओर तो विश्वअध्ययन केन्द्र होना चाहिये और दूसरा भारत अध्ययन केन्द्र भी होना चाहिये । वर्तमान की स्थिति ऐसी है कि भारत पश्चिम के प्रभाव में जी रहा है, उसकी सारी व्यवस्थायें पश्चिमी हो गई हैं, भारत को अपने आपके विषय में कोई जानकारी नहीं है, पश्चिम की दृष्टि से भारत अपने आपको देखता है, पश्चिम की बुद्धि से अपने शास्त्रों को जानता है । इस समय भारत की प्रथम आवश्यकता है अपने आपको सही रूप में जानने की। भारत भारत बने, वर्तमान भारत अपने आपको सनातन भारत में परिवर्तित करे इस हेतु से भारत अध्ययन केन्द्र कार्यरत होना चाहिये । इसमें भारतीय जीवनदृष्टि, भारत की विचारधारा, भारत की संस्कृति परम्परा, भारत की अध्यात्म और धर्म संकल्पना, भारत की शिक्षा संकल्पना, भारत के दैनन्दिन जीवन व्यवहार में और विभिन्न व्यवस्थाओं में अनुस्यूत आध्यात्मिक दृष्टि आदि विषय होने चाहिये। भारतीय जीवन व्यवस्था और विश्व की अन्य जीवनव्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन, भारत की विश्व में भूमिका आदि विषयों में अध्ययन होना चाहिये । वर्तमान भारत में पश्चिमीकरण के परिणाम स्वरूप क्या क्या समस्यायें निर्माण हुई हैं और उनका समाधान कर हम भारत को पश्चिमीकरण से कैसे मुक्त कर सकते हैं इस विषय का भी अध्ययन होना चाहिये । संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी आन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत संस्थाओं के माध्यम से अमेरिका किस प्रकार अन्य देशों सहित भारत को अपने चंगुल में रखे हुए है इसका भी विश्लेषणात्मक अध्ययन होना चाहिये।
 
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७. भारत मनुष्य से अपेक्षा करता है कि सृष्टि के साथ वह स्नेह, कृतज्ञता, दोहन एवं रक्षण का सम्बन्ध बनाये। ऐसा करने से पर्यावरण के प्रदूषण का प्रश्न ही पैदा नहीं होता।  
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८. भारत पर्यावरण को केवल भौतिक रूप में नहीं देखता और केवल वायु, जल और भूमि का प्रदूषण नहीं होने देने की चिन्ता नहीं करता। वह विचारों का, भावनाओं का, वृत्तियों का, वाणी का और बुद्धि का प्रदूषण भी न हो ऐसा चाहता है।  
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९. भारत का अर्थशास्त्र, राजशास्त्र, समाजशास्त्र, वाणिज्यशास्त्र, उद्योगतन्त्र धर्म के अविरोधी है इसलिये सबक लिये हितकारी है ।  
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१०. भारत अध्यात्मनिष्ठ धर्मपरायण देश है। उसकी धर्म संकल्पना सम्प्रदाय संकल्पना से अलग है, अधिक व्यापक है और सर्वसमावेशक है।  
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११. भारत की आकांक्षा हमेशा से ही सब सुखी हों, सब निरामय हों, सब का कल्याण हो, किसी को कोई दुःख न हो ऐसी ही रही है। इसके अनुकूल ही भारत का व्यवहार और व्यवस्थायें बनती हैं। विश्व के सन्दर्भ में भारत की कल्पना 'सर्व खलु इदं ब्रह्म' की है। विश्व को भारत का ऐसा परिचय प्राप्त हो इस दृष्टि से आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में साहित्य की निर्मिति होनी चाहिये ।  
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विश्व के लोगों के लिये कार्यक्रम होने चाहिये । विश्वविद्यालय के लोगों को विश्व के देशों में जाना चाहिये। आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की शाखायें भी विदेशों में होनी चाहिये।  
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१२. आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में एक ओर तो विश्वअध्ययन केन्द्र होना चाहिये और दूसरा भारत अध्ययन केन्द्र भी होना चाहिये । वर्तमान की स्थिति ऐसी है कि भारत पश्चिम के प्रभाव में जी रहा है, उसकी सारी व्यवस्थायें पश्चिमी हो गई हैं, भारत को अपने आपके विषय में कोई जानकारी नहीं है, पश्चिम की दृष्टि से भारत अपने आपको देखता है, पश्चिम की बुद्धि से अपने शास्त्रों को जानता है । इस समय भारत की प्रथम आवश्यकता है अपने आपको सही रूप में जानने की। भारत भारत बने, वर्तमान भारत अपने आपको सनातन भारत में परिवर्तित करे इस हेतु से भारत अध्ययन केन्द्र कार्यरत होना चाहिये । इसमें भारतीय जीवनदृष्टि, भारत की विचारधारा, भारत की संस्कृति परम्परा, भारत की अध्यात्म और धर्म संकल्पना, भारत की शिक्षा संकल्पना, भारत के दैनन्दिन जीवन व्यवहार में और विभिन्न व्यवस्थाओं में अनुस्यूत आध्यात्मिक दृष्टि आदि विषय होने चाहिये। भारतीय जीवन व्यवस्था और विश्व की अन्य जीवनव्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन, भारत की विश्व में भूमिका आदि विषयों में अध्ययन होना चाहिये । वर्तमान भारत में पश्चिमीकरण के परिणाम स्वरूप क्या क्या समस्यायें निर्माण हुई हैं और उनका समाधान कर हम भारत को पश्चिमीकरण से कैसे मुक्त कर सकते हैं इस विषय का भी अध्ययन होना चाहिये । संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी आन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत संस्थाओं के माध्यम से अमेरिका किस प्रकार अन्य देशों सहित भारत को अपने चंगुल में रखे हुए है इसका भी विश्लेषणात्मक अध्ययन होना चाहिये।
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इस अध्ययन केन्द्र में अध्ययन के साथ अनुसन्धान भी निहित है। यह अनुसन्धान ज्ञानात्मक आधार पर व्यावहारिक प्रश्नों के निराकरण हेतु होना चाहिये । केवल अनुसन्धान और व्यावहारिक अनुसन्धान का अनुपात तीस और सत्तर प्रतिशत का होना चाहिये ।  
 
इस अध्ययन केन्द्र में अध्ययन के साथ अनुसन्धान भी निहित है। यह अनुसन्धान ज्ञानात्मक आधार पर व्यावहारिक प्रश्नों के निराकरण हेतु होना चाहिये । केवल अनुसन्धान और व्यावहारिक अनुसन्धान का अनुपात तीस और सत्तर प्रतिशत का होना चाहिये ।  
  
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