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दोनों अध्ययन केन्द्रों में विश्व के अनेक देशों से तेजस्वी विद्यार्थी अध्ययन हेतु आयें ऐसी इसकी प्रतिष्ठा बननी चाहिये परन्तु इण्टरनेट के इस युग में विज्ञापन के माध्यम से प्रचार हो और प्रतिष्ठा बने ऐसा मार्ग नहीं अपनाना चाहिये । प्रतिष्ठा ज्ञान को ही, संस्था की नहीं । इसलिये इण्टरनेट के माध्यम से ज्ञान के सर्वत्र पहुँचाने की व्यवस्था की जा सकती है। हम मौन रहें और अन्य लोग प्रशंसा करें इस लायक हों यह सही भारतीय मार्ग है।  
 
दोनों अध्ययन केन्द्रों में विश्व के अनेक देशों से तेजस्वी विद्यार्थी अध्ययन हेतु आयें ऐसी इसकी प्रतिष्ठा बननी चाहिये परन्तु इण्टरनेट के इस युग में विज्ञापन के माध्यम से प्रचार हो और प्रतिष्ठा बने ऐसा मार्ग नहीं अपनाना चाहिये । प्रतिष्ठा ज्ञान को ही, संस्था की नहीं । इसलिये इण्टरनेट के माध्यम से ज्ञान के सर्वत्र पहुँचाने की व्यवस्था की जा सकती है। हम मौन रहें और अन्य लोग प्रशंसा करें इस लायक हों यह सही भारतीय मार्ग है।  
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१३ .आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का चरित्र राष्ट्रीय होना अपेक्षित है । राष्ट्रीय का अर्थ है भारतीय जीवनदृष्टि के अनुसार उसका अधिष्ठान लिये । इसका चरित्र ज्ञानात्मक होना चाहिये। भारत में ज्ञान को कार्यकुशलता, भावना, विचार, बुद्धिमत्ता, विज्ञान, संस्कार आदि सभी बातों से उच्च स्थान पर प्रतिष्ठित किया गया है। ज्ञान आत्मतत्त्व का लक्षण है। श्रीमद् भगवद् गीता में कहा है, 'न हि ज्ञानेन सद्दश पवित्रमिहे विद्यते' - इस संसार में ज्ञान जैसा पवित्र और कुछ नहीं है। इस ज्ञान का ही अधिष्ठान विश्वविद्यालय को होना चाहिये । राष्ट्रीयता और ज्ञानात्मक अधिष्ठान के साथ । साथ व्यावहारिक और वैश्विक सन्दर्भो को नहीं भूलना चाहिये, युगानुकूलता और देशानुकूलता के आयामों को भी नहीं भूलना चाहिये। सनातन का अर्थ प्राचीन नहीं होता, चिरपुरातन और नित्यनूतन ऐसा होता है। विश्वविद्यालय के चरित्र में ये सारे तत्त्वदिखाई देने चाहिये।  
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13 .आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का चरित्र राष्ट्रीय होना अपेक्षित है । राष्ट्रीय का अर्थ है भारतीय जीवनदृष्टि के अनुसार उसका अधिष्ठान लिये । इसका चरित्र ज्ञानात्मक होना चाहिये। भारत में ज्ञान को कार्यकुशलता, भावना, विचार, बुद्धिमत्ता, विज्ञान, संस्कार आदि सभी बातों से उच्च स्थान पर प्रतिष्ठित किया गया है। ज्ञान आत्मतत्त्व का लक्षण है। श्रीमद् भगवद् गीता में कहा है, 'न हि ज्ञानेन सद्दश पवित्रमिहे विद्यते' - इस संसार में ज्ञान जैसा पवित्र और कुछ नहीं है। इस ज्ञान का ही अधिष्ठान विश्वविद्यालय को होना चाहिये । राष्ट्रीयता और ज्ञानात्मक अधिष्ठान के साथ । साथ व्यावहारिक और वैश्विक सन्दर्भो को नहीं भूलना चाहिये, युगानुकूलता और देशानुकूलता के आयामों को भी नहीं भूलना चाहिये। सनातन का अर्थ प्राचीन नहीं होता, चिरपुरातन और नित्यनूतन ऐसा होता है। विश्वविद्यालय के चरित्र में ये सारे तत्त्वदिखाई देने चाहिये।  
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१४. आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में एक विश्वस्तरीय सन्दर्भ ग्रन्थालय होना चाहिये । उसमें देशभर में जो राष्ट्रीय विचार का प्राचीनतम और अर्वाचीनतम साहित्य एकत्रित करना चाहिये । साथ ही अपने देश में जो अराष्ट्रीय धारायें चलती है उसका परिचय देने वाला साहित्य भी होना चाहिये। तीसरा प्रकार है विश्वभर में भारत के विषय में सही और गलत धारणा से, उचित और अनुचित प्रयोजन से, अच्छी और बुरी नियत से निर्मित साहित्य है वह भी होना चाहिये । देशविदेश की शिक्षा, संस्कृति, धर्म, तत्त्वज्ञान विषयक पत्रिकायें आनी चाहिये । आकारप्रकार में यह ग्रन्थालय नालन्दा के धर्मगंज का स्मरण दिलाने वाला होना चाहिये जो छ: छ: मंजिलों के नौ भवनों का बना हुआ था। इस सम्पूर्ण विश्वविद्यालय का चरित्र तक्षशिला का स्मरण दिलाने वाला होना चाहिये जिसकी आयु ग्यारहसौ वर्ष की थी और जो सिकन्दर के आक्रमण को परावर्तित करने का तथा आततायी सम्राट को राज्यभ्रष्ट करने का तथा उसका स्थान ले सके ऐसा सम्राट निर्माण करने का सामर्थ्य रखता था।  
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14. आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में एक विश्वस्तरीय सन्दर्भ ग्रन्थालय होना चाहिये । उसमें देशभर में जो राष्ट्रीय विचार का प्राचीनतम और अर्वाचीनतम साहित्य एकत्रित करना चाहिये । साथ ही अपने देश में जो अराष्ट्रीय धारायें चलती है उसका परिचय देने वाला साहित्य भी होना चाहिये। तीसरा प्रकार है विश्वभर में भारत के विषय में सही और गलत धारणा से, उचित और अनुचित प्रयोजन से, अच्छी और बुरी नियत से निर्मित साहित्य है वह भी होना चाहिये । देशविदेश की शिक्षा, संस्कृति, धर्म, तत्त्वज्ञान विषयक पत्रिकायें आनी चाहिये । आकारप्रकार में यह ग्रन्थालय नालन्दा के धर्मगंज का स्मरण दिलाने वाला होना चाहिये जो छ: छ: मंजिलों के नौ भवनों का बना हुआ था। इस सम्पूर्ण विश्वविद्यालय का चरित्र तक्षशिला का स्मरण दिलाने वाला होना चाहिये जिसकी आयु ग्यारहसौ वर्ष की थी और जो सिकन्दर के आक्रमण को परावर्तित करने का तथा आततायी सम्राट को राज्यभ्रष्ट करने का तथा उसका स्थान ले सके ऐसा सम्राट निर्माण करने का सामर्थ्य रखता था।  
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१५ . परन्तु आन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय का प्राण तो वहाँ के अध्यापकऔर विद्यार्थी ही हो सकते हैं। तक्षशिला का यश उसकी कुलपति परम्परा और चाणक्य तथा जीवक जैसे अध्यापकों के कारण से है, भवन और ग्रन्थालय से नहीं। इसलिये सर्वाधिक चिन्ता इनके विषय में ही करनी चाहिये । देशभर से विद्वान, देशभक्त, जिज्ञासु, अध्ययनशील, विश्वकल्याण की भावना वाले अध्यापकों और  विद्यार्थियों को इस विश्वविद्यालय में अध्ययन-अध्यापन-अनुसन्धान हेतु आमन्त्रित करना चाहिये । देशभर के महाविद्यालयों और विद्यालयों के विद्यार्थियों का प्रयत्नपूर्वक चयन करना चाहिये । साथ ही दस वर्ष के बाद अच्छे विद्यार्थी और बीस वर्ष के बाद अच्छे अध्यापक प्राप्त हों इस विशिष्ट हेतु से गर्भाधान से शिक्षा देनेवाला विद्यालय भी शुरू करना चाहिये। ये ऐसे विद्यार्थी होंगे जो भविष्य में इसी विश्वविद्यालय में कार्यरत होंगे। ऐसा विश्वविद्यालय शीघ्रातिशीघ्र प्रारम्भ होना चाहिये।  
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15. परन्तु आन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय का प्राण तो वहाँ के अध्यापकऔर विद्यार्थी ही हो सकते हैं। तक्षशिला का यश उसकी कुलपति परम्परा और चाणक्य तथा जीवक जैसे अध्यापकों के कारण से है, भवन और ग्रन्थालय से नहीं। इसलिये सर्वाधिक चिन्ता इनके विषय में ही करनी चाहिये । देशभर से विद्वान, देशभक्त, जिज्ञासु, अध्ययनशील, विश्वकल्याण की भावना वाले अध्यापकों और  विद्यार्थियों को इस विश्वविद्यालय में अध्ययन-अध्यापन-अनुसन्धान हेतु आमन्त्रित करना चाहिये । देशभर के महाविद्यालयों और विद्यालयों के विद्यार्थियों का प्रयत्नपूर्वक चयन करना चाहिये । साथ ही दस वर्ष के बाद अच्छे विद्यार्थी और बीस वर्ष के बाद अच्छे अध्यापक प्राप्त हों इस विशिष्ट हेतु से गर्भाधान से शिक्षा देनेवाला विद्यालय भी शुरू करना चाहिये। ये ऐसे विद्यार्थी होंगे जो भविष्य में इसी विश्वविद्यालय में कार्यरत होंगे। ऐसा विश्वविद्यालय शीघ्रातिशीघ्र प्रारम्भ होना चाहिये।  
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१६. इस विश्वविद्यालय की सारी व्यवस्थायें पूर्णरूप से भारतीय होनी चाहिये । वास्तुशास्त्र, स्थापत्यशास्त्र, पर्यावरण आदि का विचार कर भवन, फर्नीचर, मैदान, बगीचा, पानी और स्वच्छता आदि की व्यवस्थायें बननी चाहिये । उदाहरण के लिये  
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16. इस विश्वविद्यालय की सारी व्यवस्थायें पूर्णरूप से भारतीय होनी चाहिये । वास्तुशास्त्र, स्थापत्यशास्त्र, पर्यावरण आदि का विचार कर भवन, फर्नीचर, मैदान, बगीचा, पानी और स्वच्छता आदि की व्यवस्थायें बननी चाहिये । उदाहरण के लिये  
 
# विश्वविद्यालय परिसर में कोई पेट्रोल संचालित वाहन प्रवेश नहीं करेगा, उनके स्थान पर रथ, पालखी, साइकिल, रिक्सा आदि अवश्य होंगे।  
 
# विश्वविद्यालय परिसर में कोई पेट्रोल संचालित वाहन प्रवेश नहीं करेगा, उनके स्थान पर रथ, पालखी, साइकिल, रिक्सा आदि अवश्य होंगे।  
 
# विद्यालय परिसर में, अथवा कम से कम भवनों के कक्षों में पादत्राण का प्रयोग नहीं होगा।  
 
# विद्यालय परिसर में, अथवा कम से कम भवनों के कक्षों में पादत्राण का प्रयोग नहीं होगा।  
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