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इस स्थिति में यह आवश्यक है कि विश्व भारत को सही रूप में जाने भारत के आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को विश्व सनातन भारत को जाने ऐसी योजना बनानी होगी।
 
इस स्थिति में यह आवश्यक है कि विश्व भारत को सही रूप में जाने भारत के आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को विश्व सनातन भारत को जाने ऐसी योजना बनानी होगी।
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इस जानकारी के प्रमुख मुद्दे कुछ इस प्रकार रहेंगे...
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१. भारत आध्यात्मिक देश है, विश्व में प्राचीनतम देश है, विश्व में सर्वाधिक आयु वाला देश है, चिरंजीव देश है।
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२. भारत जीवन को और विश्व को समग्रता में देखता है, एकात्म दृष्टि से देखता है।
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३. भारत भौतिक, जैविक, मानसिक, बौद्धिक, चैतसिक और आध्यात्मिक पहलुओं का एक साथ विचार करता है । ये सारे पहलू एकदूसरे से भिन्न, एकदूसरे से स्वतन्त्र नहीं है। वे सब एक समग्र के ही विभिन्न पहलू हैं । उनका एकदूसरे के साथ और पूर्ण के साथ समरस एकात्म सम्बन्ध है।
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४. भारत मनुष्य को श्रेष्ठ मानता है परन्तु श्रेष्ठता के साथ वह अपने से कनिष्ठ के प्रति क्षमा, उदारता, दया, स्नेह और रक्षण के कर्तव्य को जोड़ता है, अधिकार को नहीं।
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५. भारत संस्कृति और समृद्धि को एक दूसरे के पूरक के रूप में साथ साथ रखता है। समृद्धि से संस्कृति की रक्षा होती है और संस्कृति से समृद्धि हितकारी होती है।
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६. भारत सजीव निर्जीव सभी पदार्थों में परमात्मा है ऐसा ही मानता है और सबकी स्वतन्त्रसत्ता का आदर करता है।
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७. भारत मनुष्य से अपेक्षा करता है कि सृष्टि के साथ वह स्नेह, कृतज्ञता, दोहन एवं रक्षण का सम्बन्ध बनाये। ऐसा करने से पर्यावरण के प्रदूषण का प्रश्न ही पैदा नहीं होता।
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८. भारत पर्यावरण को केवल भौतिक रूप में नहीं देखता और केवल वायु, जल और भूमि का प्रदूषण नहीं होने देने की चिन्ता नहीं करता। वह विचारों का, भावनाओं का, वृत्तियों का, वाणी का और बुद्धि का प्रदूषण भी न हो ऐसा चाहता है।
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९. भारत का अर्थशास्त्र, राजशास्त्र, समाजशास्त्र, वाणिज्यशास्त्र, उद्योगतन्त्र धर्म के अविरोधी है इसलिये सबक लिये हितकारी है ।
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१०. भारत अध्यात्मनिष्ठ धर्मपरायण देश है। उसकी धर्म संकल्पना सम्प्रदाय संकल्पना से अलग है, अधिक व्यापक है और सर्वसमावेशक है।
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११. भारत की आकांक्षा हमेशा से ही सब सुखी हों, सब निरामय हों, सब का कल्याण हो, किसी को कोई दुःख न हो ऐसी ही रही है। इसके अनुकूल ही भारत का व्यवहार और व्यवस्थायें बनती हैं। विश्व के सन्दर्भ में भारत की कल्पना 'सर्व खलु इदं ब्रह्म' की है। विश्व को भारत का ऐसा परिचय प्राप्त हो इस दृष्टि से आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में साहित्य की निर्मिति होनी चाहिये ।
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विश्व के लोगों के लिये कार्यक्रम होने चाहिये । विश्वविद्यालय के लोगों को विश्व के देशों में जाना चाहिये। आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की शाखायें भी विदेशों में होनी चाहिये।
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१२. आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में एक ओर तो विश्वअध्ययन केन्द्र होना चाहिये और दूसरा भारत अध्ययन केन्द्र भी होना चाहिये । वर्तमान की स्थिति ऐसी है कि भारत पश्चिम के प्रभाव में जी रहा है, उसकी सारी व्यवस्थायें पश्चिमी हो गई हैं, भारत को अपने आपके विषय में कोई जानकारी नहीं है, पश्चिम की दृष्टि से भारत अपने आपको देखता है, पश्चिम की बुद्धि से अपने शास्त्रों को जानता है । इस समय भारत की प्रथम आवश्यकता है अपने आपको सही रूप में जानने की। भारत भारत बने, वर्तमान भारत अपने आपको सनातन भारत में परिवर्तित करे इस हेतु से भारत अध्ययन केन्द्र कार्यरत होना चाहिये । इसमें भारतीय जीवनदृष्टि, भारत की विचारधारा, भारत की संस्कृति परम्परा, भारत की अध्यात्म और धर्म संकल्पना, भारत की शिक्षा संकल्पना, भारत के दैनन्दिन जीवन व्यवहार में और विभिन्न व्यवस्थाओं में अनुस्यूत आध्यात्मिक दृष्टि आदि विषय होने चाहिये। भारतीय जीवन व्यवस्था और विश्व की अन्य जीवनव्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन, भारत की विश्व में भूमिका आदि विषयों में अध्ययन होना चाहिये । वर्तमान भारत में पश्चिमीकरण के परिणाम स्वरूप क्या क्या समस्यायें निर्माण हुई हैं और उनका समाधान कर हम भारत को पश्चिमीकरण से कैसे मुक्त कर सकते हैं इस विषय का भी अध्ययन होना चाहिये । संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी आन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत संस्थाओं के माध्यम से अमेरिका किस प्रकार अन्य देशों सहित भारत को अपने चंगुल में रखे हुए है इसका भी विश्लेषणात्मक अध्ययन होना चाहिये।
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इस अध्ययन केन्द्र में अध्ययन के साथ अनुसन्धान भी निहित है। यह अनुसन्धान ज्ञानात्मक आधार पर व्यावहारिक प्रश्नों के निराकरण हेतु होना चाहिये । केवल अनुसन्धान और व्यावहारिक अनुसन्धान का अनुपात तीस और सत्तर प्रतिशत का होना चाहिये ।
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दोनों अध्ययन केन्द्रों में विश्व के अनेक देशों से तेजस्वी विद्यार्थी अध्ययन हेतु आयें ऐसी इसकी प्रतिष्ठा बननी चाहिये परन्तु इण्टरनेट के इस युग में विज्ञापन के माध्यम से प्रचार हो और प्रतिष्ठा बने ऐसा मार्ग नहीं अपनाना चाहिये । प्रतिष्ठा ज्ञान को ही, संस्था की नहीं । इसलिये इण्टरनेट के माध्यम से ज्ञान के सर्वत्र पहुँचाने की व्यवस्था की जा सकती है। हम मौन रहें और अन्य लोग प्रशंसा करें इस लायक हों यह सही भारतीय मार्ग है।
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१३ .आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का चरित्र राष्ट्रीय होना अपेक्षित है । राष्ट्रीय का अर्थ है भारतीय जीवनदृष्टि के अनुसार उसका अधिष्ठान लिये । इसका चरित्र ज्ञानात्मक होना चाहिये। भारत में ज्ञान को कार्यकुशलता, भावना, विचार, बुद्धिमत्ता, विज्ञान, संस्कार आदि सभी बातों से उच्च स्थान पर प्रतिष्ठित किया गया है। ज्ञान आत्मतत्त्व का लक्षण है। श्रीमद् भगवद् गीता में कहा है, 'न हि ज्ञानेन सद्दश पवित्रमिहे विद्यते' - इस संसार में ज्ञान जैसा पवित्र और कुछ नहीं है। इस ज्ञान का ही अधिष्ठान विश्वविद्यालय को होना चाहिये । राष्ट्रीयता और ज्ञानात्मक अधिष्ठान के साथ । साथ व्यावहारिक और वैश्विक सन्दर्भो को नहीं भूलना चाहिये, युगानुकूलता और देशानुकूलता के आयामों को भी नहीं भूलना चाहिये। सनातन का अर्थ प्राचीन नहीं होता, चिरपुरातन और नित्यनूतन ऐसा होता है। विश्वविद्यालय के चरित्र में ये सारे तत्त्वदिखाई देने चाहिये।
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१४. आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में एक विश्वस्तरीय सन्दर्भ ग्रन्थालय होना चाहिये । उसमें देशभर में जो राष्ट्रीय विचार का प्राचीनतम और अर्वाचीनतम साहित्य एकत्रित करना चाहिये । साथ ही अपने देश में जो अराष्ट्रीय धारायें चलती है उसका परिचय देने वाला साहित्य भी होना चाहिये। तीसरा प्रकार है विश्वभर में भारत के विषय में सही और गलत धारणा से, उचित और अनुचित प्रयोजन से, अच्छी और बुरी नियत से निर्मित साहित्य है वह भी होना चाहिये । देशविदेश की शिक्षा, संस्कृति, धर्म, तत्त्वज्ञान विषयक पत्रिकायें आनी चाहिये । आकारप्रकार में यह ग्रन्थालय नालन्दा के धर्मगंज का स्मरण दिलाने वाला होना चाहिये जो छ: छ: मंजिलों के नौ भवनों का बना हुआ था। इस सम्पूर्ण विश्वविद्यालय का चरित्र तक्षशिला का स्मरण दिलाने वाला होना चाहिये जिसकी आयु ग्यारहसौ वर्ष की थी और जो सिकन्दर के आक्रमण को परावर्तित करने का तथा आततायी सम्राट को राज्यभ्रष्ट करने का तथा उसका स्थान ले सके ऐसा सम्राट निर्माण करने का सामर्थ्य रखता था।
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१५ . परन्तु आन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय का प्राण तो वहाँ के अध्यापकऔर विद्यार्थी ही हो सकते हैं। तक्षशिला का यश उसकी कुलपति परम्परा और चाणक्य तथा जीवक जैसे अध्यापकों के कारण से है, भवन और ग्रन्थालय से नहीं। इसलिये सर्वाधिक चिन्ता इनके विषय में ही करनी चाहिये । देशभर से विद्वान, देशभक्त, जिज्ञासु, अध्ययनशील, विश्वकल्याण की भावना वाले अध्यापकों और  विद्यार्थियों को इस विश्वविद्यालय में अध्ययन-अध्यापन-अनुसन्धान हेतु आमन्त्रित करना चाहिये । देशभर के महाविद्यालयों और विद्यालयों के विद्यार्थियों का प्रयत्नपूर्वक चयन करना चाहिये । साथ ही दस वर्ष के बाद अच्छे विद्यार्थी और बीस वर्ष के बाद अच्छे अध्यापक प्राप्त हों इस विशिष्ट हेतु से गर्भाधान से शिक्षा देनेवाला विद्यालय भी शुरू करना चाहिये। ये ऐसे विद्यार्थी होंगे जो भविष्य में इसी विश्वविद्यालय में कार्यरत होंगे। ऐसा विश्वविद्यालय शीघ्रातिशीघ्र प्रारम्भ होना चाहिये।
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१६. इस विश्वविद्यालय की सारी व्यवस्थायें पूर्णरूप से भारतीय होनी चाहिये । वास्तुशास्त्र, स्थापत्यशास्त्र, पर्यावरण आदि का विचार कर भवन, फर्नीचर, मैदान, बगीचा, पानी और स्वच्छता आदि की व्यवस्थायें बननी चाहिये । उदाहरण के लिये
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# विश्वविद्यालय परिसर में कोई पेट्रोल संचालित वाहन प्रवेश नहीं करेगा, उनके स्थान पर रथ, पालखी, साइकिल, रिक्सा आदि अवश्य होंगे।
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# विद्यालय परिसर में, अथवा कम से कम भवनों के कक्षों में पादत्राण का प्रयोग नहीं होगा।
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# इस विश्वविद्यालय में भारतीय वेश पहनकर ही प्रवेश हो सकेगा । विदेशी भी भारतीय वेश पहनेंगे।
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# भोजन सात्त्विक और शुद्ध शाकाहारी होगा।
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# इस विश्वविद्यालय में अध्ययन अध्यापन करने वाले हाथ से होने वाले कामों में हाथ बँटायेंगे। बिना कारसेवा के कोई नहीं रहेगा।
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# विश्वविद्यालय में बैठने की व्यवस्था भारतीय रहेगी। आपात्कालीन व्यवस्थायें अभारतीय हो सकती हैं परन्तु शीघ्रातिशीघ्र उनका त्याग करने की मानसिकता विकसित होगी।
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# विश्वविद्यालय में सिन्थेटिक पदार्थों और सिन्थेटिसीझम का पूर्ण निषेध रहेगा।
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# विद्युत का प्रयोग नहीं करने का साहस भी दिखाना होगा।
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# विश्वविद्यालय में भोजन की व्यवस्था में किसी स्वास्थ्य और पर्यावरण विरोधी यन्त्रों, मसालों और खाद्य सामग्री का प्रयोग नहीं होगा।
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# विश्वविद्यालय का भवन प्राकृतिक सामग्री का प्रयोग कर बनाया जायेगा।
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इन बातों का अर्थ यह नहीं है कि सब कुछ असुविधा से भरा हुआ होगा। उल्टे अधिक सुविधापूर्ण हो इसका ध्यान रखा जायेगा। हमें पर्यावरण रक्षा, स्वास्थ्य और सुविधा एकदूसरे के अविरोधी हो सकते हैं यही सिद्ध करना होगा । इसी दृष्टि से सारे आयोजन किये जायेंगे। अध्ययन का समय, अध्ययन की पद्धति, अध्ययन के सन्दर्भ, दिनचर्या, ऋतुचर्या आदि सभी बातें भारतीय बनानी होंगी। साथ ही अध्यापकों और विद्यार्थियों के लिये अध्ययन अध्यापन के अनुकूल आचारशैली भी अपनानी होगी। विदेशों से आने वाले विद्यार्थी विश्वविद्यालय की जीवनशैली अपनायेंगे, विश्वविद्यालय उनके लिये अपनी शैली में परिवर्तन नहीं करेगा।
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विश्वविद्यालय में अध्ययन का माध्यम हिन्दी या संस्कृत रहेगा। विदेशी विद्यार्थी भी इनमें से एक अथवा दोनों का अभ्यास करके आयेंगे। अंग्रेजी भाषा में लिखे गये ग्रन्थों का अध्ययन करने की अनुमति तो रहेगी परन्तु माध्यम अंग्रेजी नहीं होगा।
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==== ७. सरकार की भूमिका ====
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आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को भारत सरकार का अनुमोदन अवश्य होना चाहिये । यह सरकार की भी प्रतिष्ठा का विषय बनेगा । परन्तु यह विश्वविद्यालय सरकारी नहीं होगा। भारत सरकार की पहल से नहीं बनेगा । अन्य विश्वविद्यालयों के समान संसद में प्रस्ताव विधेयक पारित कर, कानून बनाकर, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की मान्यता लेकर यह नहीं बनेगा। अध्यापकों की पहल से बनेगा। अध्यापकों की बनी हुई आचार्य परिषद अपने में से ही योग्य व्यक्ति को
    
==References==
 
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