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१८. पश्चिम ने अनेक श्रेष्ठ बातों को तो अर्थ के अधीन बना दिया परन्तु अर्थ को केवल पैसे में अर्थात् द्रव्य में सीमित कर दिया । सारी बातें सिक्कों में परिवर्तित करने की प्रक्रिया जीवन को निर्जीवता की ओर ले जाती हैं और व्यवहारों और विचारों को यान्त्रिक बना देती हैं। भारत को सिक्कों का मानक बदलने की आवश्यकता है।  
 
१८. पश्चिम ने अनेक श्रेष्ठ बातों को तो अर्थ के अधीन बना दिया परन्तु अर्थ को केवल पैसे में अर्थात् द्रव्य में सीमित कर दिया । सारी बातें सिक्कों में परिवर्तित करने की प्रक्रिया जीवन को निर्जीवता की ओर ले जाती हैं और व्यवहारों और विचारों को यान्त्रिक बना देती हैं। भारत को सिक्कों का मानक बदलने की आवश्यकता है।  
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१९. भारत ने अर्थ को बहुत व्यापक अर्थ दिया है। उसे पुरुषार्थ माना है । व्यक्ति को समर्थ बनकर अर्थार्जन करना चाहिये ऐसा भी प्रतिपादन किया है। समृद्धि,
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१९. भारत ने अर्थ को बहुत व्यापक अर्थ दिया है। उसे पुरुषार्थ माना है । व्यक्ति को समर्थ बनकर अर्थार्जन करना चाहिये ऐसा भी प्रतिपादन किया है। समृद्धि, सम्पत्ति, वैभव आदि की आकांक्षा की है । लक्ष्मी को देवता माना है, माता माना है । उसकी पूजा का विधान भी बनाया है, स्तुति भी की है । अतः यह स्पष्ट रूप से समझना चाहिये कि अर्थनिरपेक्ष होना निर्धन होना नहीं है। अर्थनिरपेक्ष होकर भी वैभव सम्पन्न हुआ जाता है यह इतिहासने सिद्ध किया है।
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२०. भारत ने अर्थ को धर्म के नियमन में रखने का काम किया है। पश्चिमने ठीक इससे विपरीत किया है। पश्चिम की इस उल्टी दिशा को सही करने का महत्कार्य भारत को करना है।
    
==References==
 
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