Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 123: Line 123:     
२०. भारत ने अर्थ को धर्म के नियमन में रखने का काम किया है। पश्चिमने ठीक इससे विपरीत किया है। पश्चिम की इस उल्टी दिशा को सही करने का महत्कार्य भारत को करना है।
 
२०. भारत ने अर्थ को धर्म के नियमन में रखने का काम किया है। पश्चिमने ठीक इससे विपरीत किया है। पश्चिम की इस उल्टी दिशा को सही करने का महत्कार्य भारत को करना है।
 +
 +
==== ४. श्रमप्रतिष्ठा ====
 +
भारत आर्थिक दृष्टि से भी अत्यन्त समृद्ध देश रहा है । इसका एक कारण श्रमप्रतिष्ठा है । श्रम प्रमुख रूप से शारीरिक मेहनत को कहा जाता है। पर्याय से मानसिक और बौद्धिक श्रम भी होता है परन्तु उसका मूल अर्थ शारीरिक मेहनत ही है।
 +
 +
२. श्रम व्यायाम नहीं है । श्रम से व्यायाम होता अवश्य है परन्तु श्रम और व्यायाम एक नहीं है । व्यायाम शरीर को कसने के लिये, सुडौल और सुदृढ बनाने के लिये तथा बलवान बनाने के लिये किया जाता है, श्रम किसी न किसी काम के लिये किया जाता है।
 +
 +
३. श्रम से शरीर थकता है, कष्ट का अनुभव भी करता है, क्षीण भी होता है। श्रम से पसीना निकलता है। इस थकान, कष्ट, क्षरण आदि को भरपाई करने हेतु आहार और आराम का प्रावधान किया जाता है।
 +
 +
४. परन्तु श्रम मजदूरी नहीं है। स्वेच्छापूर्वक, स्वतन्त्रतापूर्वक, प्रसन्नतापूर्वक, कर्तव्यभावना से प्रेरित होकर जो महेनत की जाती है वह श्रम है । विवशता से, दूसरों के आदेश से, अनिच्छा से जो किया जाता है वह मजदूरी है। प्रतिष्ठा श्रम की होती है, मजदूरी की नहीं।
 +
 +
श्रम की प्रतिष्ठा का अर्थ क्या है यह प्रथम स्पष्ट करना चाहिये । श्रम करने वालों को अच्छा वेतन देना प्रतिष्ठा करना नहीं है। श्रम करने वालों को नीचा नहीं मानना कुछ मात्रा में श्रम की प्रतिष्ठा करना है, परन्तु स्वयं गौरवपूर्वक श्रम करना श्रम की प्रतिष्ठा करना है। श्रम करने में आनन्द का अनुभव करना श्रमप्रतिष्ठा है।
 +
 +
६. आज इसके सामने संकट खडा हुआ है। हमें काम
    
==References==
 
==References==
1,815

edits

Navigation menu