गत दस ग्यारह पीढियों से हम इस अभारतीय प्रतिमान में जी रहे हैं। इस प्रतिमान के अनुसार सोचने और जीने के आदि बन गये हैं। इस लिये यह परिवर्तन संभव नहीं है ऐसा लगना स्वाभाविक ही है। किन्तु हमें यह समझना होगा कि इस प्रतिमान को भारत पर सत्ता के बल पर लादने के लिये भी अंग्रेजों को १२५-१५० वर्ष तो लगे ही थे। हजारों लाखों वर्षों से चले आ रहे भारतीय प्रतिमान को वे केवल १५० वर्षों में बदल सके। फिर हमारे हजारों वर्षों से चले आ रहे जीवन के प्रतिमान को जो मुष्किल से १५० वर्षों के लिये खण्डित हो गया था, फिर से मूल स्थिति की दिशा में लाना ५०-६० वर्षों में असंभव नहीं है। शायद इस से भी कम समय में यह संभव हो सकेगा। किन्तु उस के लिये भगीरथ प्रयास करने होंगे। वैसे तो समाज भी ऐसे परिवर्तन की आस लगाये बैठा है। लेकिन क्या प्रबुध्द हिंदु इस के लिये तैयार है? | गत दस ग्यारह पीढियों से हम इस अभारतीय प्रतिमान में जी रहे हैं। इस प्रतिमान के अनुसार सोचने और जीने के आदि बन गये हैं। इस लिये यह परिवर्तन संभव नहीं है ऐसा लगना स्वाभाविक ही है। किन्तु हमें यह समझना होगा कि इस प्रतिमान को भारत पर सत्ता के बल पर लादने के लिये भी अंग्रेजों को १२५-१५० वर्ष तो लगे ही थे। हजारों लाखों वर्षों से चले आ रहे भारतीय प्रतिमान को वे केवल १५० वर्षों में बदल सके। फिर हमारे हजारों वर्षों से चले आ रहे जीवन के प्रतिमान को जो मुष्किल से १५० वर्षों के लिये खण्डित हो गया था, फिर से मूल स्थिति की दिशा में लाना ५०-६० वर्षों में असंभव नहीं है। शायद इस से भी कम समय में यह संभव हो सकेगा। किन्तु उस के लिये भगीरथ प्रयास करने होंगे। वैसे तो समाज भी ऐसे परिवर्तन की आस लगाये बैठा है। लेकिन क्या प्रबुध्द हिंदु इस के लिये तैयार है? |