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एक आलू की बोरी में आलू बंधे होते हैं । जब तक बाहरी बोरी खुलती या फटती नहीं आलू बोरी के अन्दर रहते हैं । जैसे ही बोरी का अवरोध हट जाता है आलू बिखर जाते हैं । ऐसे बिखरने वाले आलू और बोरी जैसा व्यक्ति और समाज का सम्बन्ध नहीं होता । यह स्थिर होता है । लेकिन अनार को तोडने पर भी अनार के दाने बिखरते नहीं हैं । तो क्या समाज और व्यक्ति संबंध अनार और उसके दानोंजैसा है?
 
एक आलू की बोरी में आलू बंधे होते हैं । जब तक बाहरी बोरी खुलती या फटती नहीं आलू बोरी के अन्दर रहते हैं । जैसे ही बोरी का अवरोध हट जाता है आलू बिखर जाते हैं । ऐसे बिखरने वाले आलू और बोरी जैसा व्यक्ति और समाज का सम्बन्ध नहीं होता । यह स्थिर होता है । लेकिन अनार को तोडने पर भी अनार के दाने बिखरते नहीं हैं । तो क्या समाज और व्यक्ति संबंध अनार और उसके दानोंजैसा है?
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समाज कुछ बातों में अनार जैसा होता है । जिस प्रकार अनार उसके अन्दर विद्यमान दानों के विकास के साथ विकास पाता है । हर दाने का विकास उसके पड़ोसी और अन्य सभी दानों के परिप्रेक्ष में ही होता है । उसी तरह से सामाजिक वातावरण ऐसा होना चाहिए जिससे किसी भी व्यक्ति के स्वाभाविक विकास में बाधा न हो । इसी प्रकार अनार की विशेषता यह होती है कि इसके दानों की विकसित होने की सीमा अनार के बाहरी आवरण की संभाव्य वृद्धि तक की ही होती है । लेकिन अनार और अनार के दानों में जीवात्मा नहीं होता । अतः समाज अनार से अधिक कुछ भी है ।
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समाज कुछ बातों में अनार जैसा होता है । जिस प्रकार अनार उसके अन्दर विद्यमान दानों के विकास के साथ विकास पाता है । हर दाने का विकास उसके पड़ोसी और अन्य सभी दानों के परिप्रेक्ष में ही होता है । उसी तरह से सामाजिक वातावरण ऐसा होना चाहिए जिससे किसी भी व्यक्ति के स्वाभाविक विकास में बाधा न हो । इसी प्रकार अनार की विशेषता यह होती है कि इसके दानों की विकसित होने की सीमा अनार के बाहरी आवरण की संभाव्य वृद्धि तक की ही होती है । लेकिन अनार और अनार के दानों में जीवात्मा नहीं होता । अतः समाज अनार से अधिक कुछ है ।
    
तो क्या समाज एक दौड़ की स्पर्धा जैसा होता है । सभी का लक्ष्य एक ही होता है । एक ही दिशा में सभी लोग चलते हैं । लेकिन स्पर्धा में लक्ष्य एक ही होनेपर भी वह प्रत्येक का व्यक्तिगत लक्ष्य होता है । अन्य लोग उसे प्राप्त नहीं कर सकें ऐसी इच्छा प्रत्येक की होती है । और ऐसा ही प्रयास प्रत्येक का होता है । अतः समाज दौड़ की स्पर्धा जैसा भी नहीं है ।
 
तो क्या समाज एक दौड़ की स्पर्धा जैसा होता है । सभी का लक्ष्य एक ही होता है । एक ही दिशा में सभी लोग चलते हैं । लेकिन स्पर्धा में लक्ष्य एक ही होनेपर भी वह प्रत्येक का व्यक्तिगत लक्ष्य होता है । अन्य लोग उसे प्राप्त नहीं कर सकें ऐसी इच्छा प्रत्येक की होती है । और ऐसा ही प्रयास प्रत्येक का होता है । अतः समाज दौड़ की स्पर्धा जैसा भी नहीं है ।

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