जिस प्रकार व्यक्ति के स्तर पर मानव का लक्ष्य मोक्ष होता है। मुक्ति होता है। उसी प्रकार मानव जीवन का सामाजिक स्तर का लक्ष्य भी मोक्ष ही होगा। मुक्ति ही होगा। इस सामाजिक लक्ष्य का व्यावहारिक स्वरूप ‘स्वतंत्रता’ है। स्वतंत्रता का अर्थ है अपनी इच्छा के अनुसार व्यवहार करने की सामर्थ्य। सामर्थ्य प्राप्ति के लिये परिश्रम करने की सामान्यत: लोगोंं की तैयारी नहीं होती। लेकिन ऐसे किसी प्रयास के बगैर ही यदि जादू से वे समर्थ बन जाएँ तो प्रत्येक को ‘अनिर्बाध स्वतंत्रता’ की चाहत होती है। स्वैराचार और स्वतंत्रता में अंतर होता है। स्वैराचार की कोई सीमा नहीं होती। लेकिन समाज में जहाँ अन्यों के सुख के साथ संघर्ष खडा होता है तब स्वतंत्रता की सीमा आ जाती है। धर्म ही स्वैराचार को सीमामें बाँधकर उसे स्वतंत्रता बना देता है। | जिस प्रकार व्यक्ति के स्तर पर मानव का लक्ष्य मोक्ष होता है। मुक्ति होता है। उसी प्रकार मानव जीवन का सामाजिक स्तर का लक्ष्य भी मोक्ष ही होगा। मुक्ति ही होगा। इस सामाजिक लक्ष्य का व्यावहारिक स्वरूप ‘स्वतंत्रता’ है। स्वतंत्रता का अर्थ है अपनी इच्छा के अनुसार व्यवहार करने की सामर्थ्य। सामर्थ्य प्राप्ति के लिये परिश्रम करने की सामान्यत: लोगोंं की तैयारी नहीं होती। लेकिन ऐसे किसी प्रयास के बगैर ही यदि जादू से वे समर्थ बन जाएँ तो प्रत्येक को ‘अनिर्बाध स्वतंत्रता’ की चाहत होती है। स्वैराचार और स्वतंत्रता में अंतर होता है। स्वैराचार की कोई सीमा नहीं होती। लेकिन समाज में जहाँ अन्यों के सुख के साथ संघर्ष खडा होता है तब स्वतंत्रता की सीमा आ जाती है। धर्म ही स्वैराचार को सीमामें बाँधकर उसे स्वतंत्रता बना देता है। |