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तिथि भारतीय पंचांग का सबसे मुख्य अंग है। तिथि के नाम से सर्वप्रथम ध्यान तारीख की ओर जाता है किन्तु भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्रमा अपने विमण्डलमें स्वगति से चलता हुआ जिस समय सूर्य के सन्निकट पहुँच जाता है तब वह अमावस्या तिथि होती है। अमावस्या के दिन सूर्य एवं चन्द्र दोनों एक राशि पर आ जाते हैं। उसके बाद सूर्य एवं चन्द्रमा दोनों अपने-अपने मार्ग पर घूमते हुये जो दूरी(१२ अंश की) उत्पन्न करते हैं उसी को तिथि कहा गया है। यह भारतीय चान्द्रमास का एक दिन होता है। तिथि के आधार पर ही सभी दिन, त्यौहार, जन्मदिन, जयन्ती और पुण्यतिथि आदि का निर्धारण होता है। तिथिका हमारे मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पडता है। इससे हमारे जन्म, मृत्यु आदि कई विशेष कार्य जुडे होते हैं। किसी भी तिथि के पूरी होने में लगने वाला समय सदैव बदलता रहता है। वह कम से कम २० घण्टों का और अधिक से अधिक २७ घण्टों का हो सकता है। {{#evu:https://www.youtube.com/watch?v=U5kHj3eTZC8=youtu.be
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तिथि भारतीय पंचांग का सबसे मुख्य अंग है। तिथि के नाम से सर्वप्रथम ध्यान तारीख की ओर जाता है किन्तु भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्रमा अपने विमण्डलमें स्वगति से चलता हुआ जिस समय सूर्य के सन्निकट पहुँच जाता है तब वह अमावस्या तिथि होती है। अमावस्या के दिन सूर्य एवं चन्द्र दोनों एक राशि पर आ जाते हैं। उसके बाद सूर्य एवं चन्द्रमा दोनों अपने-अपने मार्ग पर घूमते हुये जो दूरी (१२ अंश की) उत्पन्न करते हैं उसी को तिथि कहा गया है। यह भारतीय चान्द्रमास का एक दिन होता है। तिथि के आधार पर ही सभी दिन, त्यौहार, जन्मदिन, जयन्ती और पुण्यतिथि आदि का निर्धारण होता है। तिथिका हमारे मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पडता है। इससे हमारे जन्म, मृत्यु आदि कई विशेष कार्य जुडे होते हैं। किसी भी तिथि के पूरी होने में लगने वाला समय सदैव बदलता रहता है। वह कम से कम २० घण्टों का और अधिक से अधिक २७ घण्टों का हो सकता है। {{#evu:https://www.youtube.com/watch?v=U5kHj3eTZC8=youtu.be
 
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==परिचय॥ Parichaya==
 
==परिचय॥ Parichaya==
चन्द्रमा की एक कलाको तिथि कहते हैं। चन्द्र कलारूप क्रिया उपलक्षित कालको तिथि के रूप में व्यवहृत किया जाता है। तिथियाँ १ से ३० तक एक मास में ३० होती हैं। ये पक्षों में विभाजित हैं। प्रत्येक पक्ष में १५-१५ तिथियाँ होती हैं। प्रत्येक तिथि का एक नाम है। तिथि जलतत्व है और यह हमारे मस्तिष्क-मन की स्थिति को दर्शाती है।जन्मकुण्डली में तिथि अतिआवश्यक हिस्सा है। जन्म के दिन पडने वाली तिथि को जन्मतिथि कहते हैं।   
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चन्द्रमा की एक कलाको तिथि कहते हैं। चन्द्र कलारूप क्रिया उपलक्षित कालको तिथि के रूप में व्यवहृत किया जाता है। तिथियाँ १ से ३० तक एक मास में ३० होती हैं। ये पक्षों में विभाजित हैं। प्रत्येक पक्ष में १५-१५ तिथियाँ होती हैं। प्रत्येक तिथि का एक नाम है। चन्द्र जलतत्व है और चन्द्र के गमन पर तिथि आधारित है अतः हमारे मन एवं मस्तिष्क की स्थिति को तिथि दर्शाती है। जन्मकुण्डली में तिथि अतिआवश्यक हिस्सा है। जन्म के दिन पडने वाली तिथि को जन्मतिथि कहते हैं।   
    
* पंचांग के अवयवों पर विचार करते समय तिथि को शरीर माना गया है।   
 
* पंचांग के अवयवों पर विचार करते समय तिथि को शरीर माना गया है।   
 
* शरीर(तिथि) शुद्ध और बलवान होने पर ही प्रबलता की कामना की जाती है।   
 
* शरीर(तिथि) शुद्ध और बलवान होने पर ही प्रबलता की कामना की जाती है।   
 
* तिथिमें दोष उत्पन्न होने पर चन्द्रबल, लग्नबल और ग्रहबल फल नहीं देते हैं।   
 
* तिथिमें दोष उत्पन्न होने पर चन्द्रबल, लग्नबल और ग्रहबल फल नहीं देते हैं।   
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* मानव के दैनन्दिन जीवन से जुडे अनेक क्रियाकलापों में
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* व्रत-पर्व निर्धारण में
    
=== तिथि ज्ञान ===
 
=== तिथि ज्ञान ===
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=== तिथियों के स्वामी ===
 
=== तिथियों के स्वामी ===
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<blockquote>तिथीशा वह्निकौ गौरी गणेशोऽहिर्गुहो रविः। शिवो दुर्गान्तको विश्वे हरिः कामः शिवः शशी॥(मुहू०चिन्ता०१/३)<ref>रामदैवज्ञ, मुहूर्तचिन्तामणि, भाषाटीका सहित, पंडित रामरत्न अवस्थी, सन् २००४, नवल किशोर प्रेस, लखनऊ, अध्याय-१, श्लोक-२,(पृ०२)।</ref></blockquote>
    
==परिभाषा॥ Paribhasha==
 
==परिभाषा॥ Paribhasha==
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|1.
 
|1.
|0०-12०
+
|0० - 12०
 
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|प्रतिपदा
 
|प्रतिपदा
|180०-192०
+
|180० - 192०
 
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|पक्षति, आद्यतिथि, भू और चन्द्रके सभी पर्यायवाचक शब्द(भूमि, भू, कु, शशी, इन्दु आदि)
 
|पक्षति, आद्यतिथि, भू और चन्द्रके सभी पर्यायवाचक शब्द(भूमि, भू, कु, शशी, इन्दु आदि)
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|2.
 
|2.
|12०-24०
+
|12० - 24०
 
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|द्वितीया
 
|द्वितीया
|192०-204०
+
|192० - 204०
 
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|युग्म, द्वि, यम और नेत्रके सभी पर्याय (नेत्र, अक्षि, अन्तक)  अश्वि आदि।
 
|युग्म, द्वि, यम और नेत्रके सभी पर्याय (नेत्र, अक्षि, अन्तक)  अश्वि आदि।
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|3.
 
|3.
|24०- 36०
+
|24० - 36०
 
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|तृतीया
 
|तृतीया
|204०-216०
+
|204० - 216०
 
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|
 
|अग्नि, वह्नि, हुताशन, अनल, शिवस्वेद।
 
|अग्नि, वह्नि, हुताशन, अनल, शिवस्वेद।
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|4.
 
|4.
|36०-48०
+
|36० - 48०
 
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|चतुर्थी
 
|चतुर्थी
|216०- 228०
+
|216० - 228०
 
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|
 
|युग, वेद, अब्धि, उदधि।
 
|युग, वेद, अब्धि, उदधि।
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|5.
 
|5.
|48०-60०
+
|48० - 60०
 
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|पञ्चमी
 
|पञ्चमी
|228०- 240०
+
|228० - 240०
 
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|
 
|बाण, शर, नाग, इषु।
 
|बाण, शर, नाग, इषु।
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|6.
 
|6.
|60०-72०
+
|60० - 72०
 
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|षष्ठी
 
|षष्ठी
|240०- 252०
+
|240० - 252०
 
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|
 
|स्कन्द, रस, अंग।
 
|स्कन्द, रस, अंग।
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|7.
 
|7.
|72०-84०
+
|72० - 84०
 
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|सप्तमी
 
|सप्तमी
|252०- 264०
+
|252० - 264०
 
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|अश्व, हय, शैल, वायु, अर्क, अद्रि।
 
|अश्व, हय, शैल, वायु, अर्क, अद्रि।
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|8.
 
|8.
|84०-96०
+
|84० - 96०
 
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|अष्टमी
 
|अष्टमी
|264०- 276०
+
|264० - 276०
 
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|वसु, गज, नाग, उरग।
 
|वसु, गज, नाग, उरग।
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|9.
 
|9.
|96०-108०
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|96० - 108०
 
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|नवमी
 
|नवमी
|276०- 288०
+
|276० - 288०
 
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|अंक, गो, ग्रह, नन्द, दुर्गा।
 
|अंक, गो, ग्रह, नन्द, दुर्गा।
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|10.
 
|10.
|108०-120०
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|दशमी
 
|दशमी
|288०-300०
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|288० - 300०
 
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|दिक् , आशा, काष्ठा।
 
|दिक् , आशा, काष्ठा।
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|11.
 
|11.
|120०-132०
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|120० - 132०
 
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|एकादशी
 
|एकादशी
|300०-312०
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|300० - 312०
 
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|शिव, रुद्र, ईश।
 
|शिव, रुद्र, ईश।
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|12.
 
|12.
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|132० - 144०
 
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|द्वादशी
 
|द्वादशी
|312०- 324०
+
|312० - 324०
 
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|अर्क, रवि, सूर्य, हरि।
 
|अर्क, रवि, सूर्य, हरि।
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|13.
 
|13.
|144०-156०
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|144० - 156०
 
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|त्रयोदशी
 
|त्रयोदशी
|324०- 336०
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|324० - 336०
 
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|विश्वे, काम, मदन
 
|विश्वे, काम, मदन
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|14.
 
|14.
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|156० - 168०
 
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|चतुर्दशी
 
|चतुर्दशी
|336०- 348०
+
|336० - 348०
 
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|यम, इन्द्र, मनु, शक्र।
 
|यम, इन्द्र, मनु, शक्र।
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|15.
 
|15.
|168०-180०
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|168० - 180०
 
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|अमावस्या(कृष्णपक्ष की पञ्चदशी)
 
|अमावस्या(कृष्णपक्ष की पञ्चदशी)
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=== अमावस्या एवं पूर्णिमा निर्णय ===
 
=== अमावस्या एवं पूर्णिमा निर्णय ===
सूर्य एवं चन्द्रमा जिस दिन एक बिन्दु पर आ जाते हैं उस तिथि को अमावस्या कहते हैं। उस दिन सूर्य और चन्द्रमाका गति अन्तर शून्य अक्षांश होता है। एवं इसी प्रकार सूर्य एवं चन्द्रमा परस्पर आमने-सामने अर्थात् ६राशि या १८० अंशके अन्तरपर होते हैं, उस तिथि को पूर्णिमा या पूर्णमासी कहते हैं।
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सूर्य एवं चन्द्रमा जिस दिन एक बिन्दु पर आ जाते हैं उस तिथि को अमावस्या कहते हैं। उस दिन सूर्य और चन्द्रमाका गति अन्तर शून्य अक्षांश होता है। एवं इसी प्रकार सूर्य एवं चन्द्रमा परस्पर आमने-सामने अर्थात् ६राशि या १८० अंशके अन्तरपर होते हैं, उस तिथि को पूर्णिमा या पूर्णमासी कहते हैं।<blockquote>दर्शः सूर्येन्दु संगमः।</blockquote>सूर्य और चन्द्र के संगम को दर्श (अमावस्या) कहते हैं। वसिष्ठ संहिता में इसी बात को श्लोकबद्ध किया गया है-<blockquote>सूर्यान्निर्गत्य यत्प्राचीं शशी याति दिने-दिने। लिप्तादिसाम्ये सूर्येन्दु तिथ्यन्तेऽर्कांशकैस्तिथिः॥</blockquote>सूर्य से बाहर निकल कर पूर्व दिशा की ओर चन्द्रमा जैसे-जैसे बढता है वैसे-वैसे तिथि बढती है। अमावस्या तिथि में राशि,अंश और कला का साम्य होता है दोनों के बीच।अमावस्या तिथि दो प्रकार की होती है-<ref name=":0">पं०श्री सीतारामजी स्वामी, ज्योतिषतत्त्वांक, भारतीय काल गणना, सन् २०१९,गोरखपुर गीताप्रेस, (पृ०२१०)।</ref>
 
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अमावस्या तिथि दो प्रकार की होती है-<ref name=":0">पं०श्री सीतारामजी स्वामी, ज्योतिषतत्त्वांक, भारतीय काल गणना, सन् २०१९,गोरखपुर गीताप्रेस, (पृ०२१०)।</ref>
   
#'''सिनीवाली अमावस्या-''' जो चतुर्दशी तिथिमिश्रित अमावस्या हो वह सिनीवाली संज्ञक कहलाती है।
 
#'''सिनीवाली अमावस्या-''' जो चतुर्दशी तिथिमिश्रित अमावस्या हो वह सिनीवाली संज्ञक कहलाती है।
 
#'''कुहू अमावस्या-''' जो प्रतिपदा तिथि मिश्रित अमावस्या हो वह कुहू संज्ञक कहलाती है।
 
#'''कुहू अमावस्या-''' जो प्रतिपदा तिथि मिश्रित अमावस्या हो वह कुहू संज्ञक कहलाती है।
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