Changes

Jump to navigation Jump to search
2,106 bytes added ,  10:25, 16 July 2023
m
no edit summary
Line 1: Line 1: −
तिथि भारतीय पंचांग का सबसे मुख्य अंग है। तिथि के नाम से सर्वप्रथम ध्यान तारीख की ओर जाता है किन्तु भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्रमा अपने विमण्डलमें स्वगति से चलता हुआ जिस समय सूर्य के सन्निकट पहुँच जाता है तब वह अमावस्या तिथि होती है। अमावस्या के दिन सूर्य एवं चन्द्र दोनों एक राशि पर आ जाते हैं। उसके बाद सूर्य एवं चन्द्रमा दोनों अपने-अपने मार्ग पर घूमते हुये जो दूरी(१२ अंश की) उत्पन्न करते हैं उसी को तिथि कहा गया है। यह भारतीय चान्द्रमास का एक दिन होता है। तिथि के आधार पर ही सभी दिन, त्यौहार, जन्मदिन, जयन्ती और पुण्यतिथि आदि का निर्धारण होता है। तिथिका हमारे मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पडता है। इससे हमारे जन्म, मृत्यु आदि कई विशेष कार्य जुडे होते हैं। {{#evu:https://www.youtube.com/watch?v=U5kHj3eTZC8=youtu.be
+
तिथि भारतीय पंचांग का सबसे मुख्य अंग है। तिथि के नाम से सर्वप्रथम ध्यान तारीख की ओर जाता है किन्तु भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्रमा अपने विमण्डलमें स्वगति से चलता हुआ जिस समय सूर्य के सन्निकट पहुँच जाता है तब वह अमावस्या तिथि होती है। अमावस्या के दिन सूर्य एवं चन्द्र दोनों एक राशि पर आ जाते हैं। उसके बाद सूर्य एवं चन्द्रमा दोनों अपने-अपने मार्ग पर घूमते हुये जो दूरी(१२ अंश की) उत्पन्न करते हैं उसी को तिथि कहा गया है। यह भारतीय चान्द्रमास का एक दिन होता है। तिथि के आधार पर ही सभी दिन, त्यौहार, जन्मदिन, जयन्ती और पुण्यतिथि आदि का निर्धारण होता है। तिथिका हमारे मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पडता है। इससे हमारे जन्म, मृत्यु आदि कई विशेष कार्य जुडे होते हैं। किसी भी तिथि के पूरी होने में लगने वाला समय सदैव बदलता रहता है। वह कम से कम २० घण्टों का और अधिक से अधिक २७ घण्टों का हो सकता है। {{#evu:https://www.youtube.com/watch?v=U5kHj3eTZC8=youtu.be
 
|alignment=right
 
|alignment=right
 
|dimensions=500x248
 
|dimensions=500x248
Line 189: Line 189:  
|
 
|
 
|अमावस्या(कृष्णपक्ष की पञ्चदशी)
 
|अमावस्या(कृष्णपक्ष की पञ्चदशी)
|348०- 360०
+
|
 
|
 
|
 
|अमा, दर्श, कुहू।
 
|अमा, दर्श, कुहू।
Line 199: Line 199:  
|
 
|
 
|पूर्णिमा(शुक्लपक्ष की पञ्चदशी)
 
|पूर्णिमा(शुक्लपक्ष की पञ्चदशी)
|
+
|348०- 360०
 
|
 
|
 
|तिथि, पंचदशी, राका।
 
|तिथि, पंचदशी, राका।
Line 207: Line 207:     
=== नन्दादि संज्ञाऐँ ===
 
=== नन्दादि संज्ञाऐँ ===
ज्योतिषशास्त्रमें समग्र तिथियों की क्रमशः नन्दा आदि पाँच भागों में विभाजित किया गया हैं-
+
ज्योतिषशास्त्रमें समग्र तिथियों की क्रमशः नन्दा आदि पाँच भागों में विभाजित किया गया हैं-<blockquote>नन्दा च भद्रा जया च रिक्ता पूर्णेति तिथ्यो अशुभमध्यशस्ताः। सिते असिते शस्तसमाधमाः स्युः सितज्ञभौमार्किगुरौ च सिद्धाः॥(मु०चि०)<ref name=":1" /></blockquote>नन्दा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा संज्ञक।
 
  −
नन्दा च भद्रा जया च रिक्ता पूर्णेति तिथ्यो अशुभमध्यशस्ताः। सिते असिते शस्तसमाधमाः स्युः सितज्ञभौमार्किगुरौ च सिद्धाः॥(मु०चि०)<ref name=":1" />
  −
 
   
* '''नन्दा तिथि-''' प्रतिपदा, षष्ठी, और एकादशी।  
 
* '''नन्दा तिथि-''' प्रतिपदा, षष्ठी, और एकादशी।  
 
* '''भद्रा तिथि-''' द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी।
 
* '''भद्रा तिथि-''' द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी।
Line 393: Line 390:  
== तिथि निर्णय ==
 
== तिथि निर्णय ==
 
चन्द्रमा अपने विमण्डल में स्वगति से चलता हुआ जिस समय सूर्य के सन्निकट पहुँच जाता है तब वह अमावस्या तिथि होती है। अर्थात् अमावस्या तिथि के दिन सूर्य-चन्द्र दोनों एक राशि पर आ जाते हैं। उसके बाद सूर्य एवं चन्द्रमा दोनों अपने-अपने मार्ग पर घूमते हुए जो दूरी (१२ अंश की) उत्पन्न करते हैं, उसी को तिथि कहा गया है। १२-१२ अंशात्मक अन्तर की एक-एक तिथि होती है। ३६० अंश पूरा होने पर पुनः सूर्य-चन्द्र एक राशि पर आ जाते हैं, तब एक चान्द्रमास होता है। सूर्य चन्द्र का १२ अंश अन्तर जिस समय में पूरा होता है, उसको तिथि का भोगकाल कहते हैं। जब १, २, ३, ४ आदि तिथियों में चन्द्रमा की कलाएँ बढती रहती हैं, उसको शुक्ल पक्ष और जिस समय चन्द्रमा की कलाएँ घटने लगती हैं, उसे कृष्णपक्ष कहा जाता है।
 
चन्द्रमा अपने विमण्डल में स्वगति से चलता हुआ जिस समय सूर्य के सन्निकट पहुँच जाता है तब वह अमावस्या तिथि होती है। अर्थात् अमावस्या तिथि के दिन सूर्य-चन्द्र दोनों एक राशि पर आ जाते हैं। उसके बाद सूर्य एवं चन्द्रमा दोनों अपने-अपने मार्ग पर घूमते हुए जो दूरी (१२ अंश की) उत्पन्न करते हैं, उसी को तिथि कहा गया है। १२-१२ अंशात्मक अन्तर की एक-एक तिथि होती है। ३६० अंश पूरा होने पर पुनः सूर्य-चन्द्र एक राशि पर आ जाते हैं, तब एक चान्द्रमास होता है। सूर्य चन्द्र का १२ अंश अन्तर जिस समय में पूरा होता है, उसको तिथि का भोगकाल कहते हैं। जब १, २, ३, ४ आदि तिथियों में चन्द्रमा की कलाएँ बढती रहती हैं, उसको शुक्ल पक्ष और जिस समय चन्द्रमा की कलाएँ घटने लगती हैं, उसे कृष्णपक्ष कहा जाता है।
 +
 +
 +
जब चंद्रमा की कलायें पूर्णता को प्राप्त हो जाती हैं उसे पूर्णिमा एवं घटते-घटते जब कलाएँ हीन हो जाती है, तो वह अमावस्या कही जाती है। सूर्य का मध्यम दैनिक गति १ अंश है तथा चन्द्रमा का मध्यम दैनिक गति १३ अंश है। अर्थात् ये पूर्वाभिमुख होकर १२ अंशों के अन्तर पर गति करते हैं। सूर्य तथा चन्द्रमा का १२ अंशों का अन्तर जब कभी कम या ज्यादा हो जाता है तब कभी तिथि क्षय या वृद्धि होती है। जब सूर्यांशों से चन्द्रमा सूर्य से 12 x 15 = 180 अंश आगे हो जाता है तब पूर्णिमा तिथि समाप्त होती है और कृष्णपक्ष की प्रतिपदा का आरम्भ होता है जब चन्द्रमा और सूर्य का अन्तर ३६० अंश अर्थात् शून्य हो जाता है तो अमावस्या होती है। इसी परिभ्रमण को चान्द्रमास कहते हैं।
    
चन्द्र जब सूर्य से १२ अंश आगे निकलता है तो एक तिथि होती है।
 
चन्द्र जब सूर्य से १२ अंश आगे निकलता है तो एक तिथि होती है।
Line 417: Line 417:     
=== तिथि क्षय ===
 
=== तिथि क्षय ===
जिस तिथि में दो सूर्योदय हो, उसे क्षयतिथि कहते हैं। क्षयतिथि पडने पर एक अहोरात्र में तीन तिथियों की सन्धियाँ होती हैं। इस प्रकार से पूर्वतिथि सूर्योदय के बाद ७घटी के भीतर कभी भी समाप्त हो जाती है। एवं एक तिथि तीन दिनों को स्पर्श करती है तो उसे अधितिथि कहा जाता है। क्षय-वृद्धि दोनों तिथियों को शुभ कर्म में निन्दित कहा गया है।
+
जिस तिथि में दो सूर्योदय हो, उसे क्षयतिथि कहते हैं। क्षयतिथि पड़ने पर एक अहोरात्र में तीन तिथियों की सन्धियाँ होती हैं। इस प्रकार से पूर्वतिथि सूर्योदय के बाद ७घटी के भीतर कभी भी समाप्त हो जाती है। एवं एक तिथि तीन दिनों को स्पर्श करती है तो उसे अधितिथि कहा जाता है। क्षय-वृद्धि दोनों तिथियों को शुभ कर्म में निन्दित कहा गया है।
    
==तिथि और तारीख==
 
==तिथि और तारीख==
912

edits

Navigation menu