<blockquote>आग्नेयी पूर्वदिग्ज्ञेया दक्षिणादिक् च नैरृती। वायवी पश्चिम दिक् स्यादैशानी च तथोत्तरा॥</blockquote>अर्थात् अग्निकोण की गणना पूर्वदिशा में, वायव्य कोण की पश्चिम दिशा में, नैरृत्य कोण की दक्षिण दिशा में तथा ईशान कोण की गणना उत्तर दिशा में जानना चाहिये। | <blockquote>आग्नेयी पूर्वदिग्ज्ञेया दक्षिणादिक् च नैरृती। वायवी पश्चिम दिक् स्यादैशानी च तथोत्तरा॥</blockquote>अर्थात् अग्निकोण की गणना पूर्वदिशा में, वायव्य कोण की पश्चिम दिशा में, नैरृत्य कोण की दक्षिण दिशा में तथा ईशान कोण की गणना उत्तर दिशा में जानना चाहिये। |