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| * तिथिमें दोष उत्पन्न होने पर चन्द्रबल, लग्नबल और ग्रहबल फल नहीं देते हैं। | | * तिथिमें दोष उत्पन्न होने पर चन्द्रबल, लग्नबल और ग्रहबल फल नहीं देते हैं। |
| | | |
− | मुहूर्त के निर्धारण में तिथि की चर्चा
| + | === तिथि ज्ञान === |
| + | <blockquote>प्रतिपच्च द्वितीया च तृतीया तदनन्तरम् । चतुर्थी पञ्चमी षष्ठी सप्तमी चाष्टमी तथा॥ |
| + | |
| + | नवमी दशमी चैकादशी च द्वादशी ततः। त्रयोदशी ततो ज्ञेया ततः कथिता चतुर्दशी॥ |
| + | |
| + | पञ्चदशी तिथिः शुक्ले पूर्णिमेति निगद्यते। कृष्णे पञ्चदशी या च सा त्वमा परिकीर्त्यते॥</blockquote>'''अर्थ-''' प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पञ्चमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और पञ्चदशी; शुक्ल पक्ष की पञ्चदशी को पूर्णिमा और कृष्णपक्ष की पञ्चदशी अमावस्या कहलाती है। |
| + | |
| + | === तिथियों के स्वामी === |
| + | |
| ==परिभाषा॥ Paribhasha== | | ==परिभाषा॥ Paribhasha== |
| तिथि क्या है? इस पर विचार करते हुये आचार्यों ने तिथि की परिभाषा इस प्रकार की है-<blockquote>तनोति विस्तारयति वर्द्धमानां क्षीयमाणांवा चन्द्रकलामेकां यः कालविशेषः सा तिथिः।<ref>सृजन झा, अमरकोश, शब्दकल्पद्रुम सहित, मुम्बईः क०जे० सोमैयासंस्कृतविद्यापीठम् ।</ref></blockquote>'''अर्थ-''' चन्द्रमा के एक-एक कला वृद्धि एवं क्षय के अवच्छिन्न काल को तिथि कहा जाता है। वस्तुतः सूर्य एवं चन्द्रमा के द्वादश अंशात्मक गत्यन्तर को तिथि कहते हैं। | | तिथि क्या है? इस पर विचार करते हुये आचार्यों ने तिथि की परिभाषा इस प्रकार की है-<blockquote>तनोति विस्तारयति वर्द्धमानां क्षीयमाणांवा चन्द्रकलामेकां यः कालविशेषः सा तिथिः।<ref>सृजन झा, अमरकोश, शब्दकल्पद्रुम सहित, मुम्बईः क०जे० सोमैयासंस्कृतविद्यापीठम् ।</ref></blockquote>'''अर्थ-''' चन्द्रमा के एक-एक कला वृद्धि एवं क्षय के अवच्छिन्न काल को तिथि कहा जाता है। वस्तुतः सूर्य एवं चन्द्रमा के द्वादश अंशात्मक गत्यन्तर को तिथि कहते हैं। |
− | ==तिथि भेद॥ == | + | ==तिथि भेद == |
| भारतवर्ष में दो प्रकार की तिथियाँ प्रचलित हैं। सौर तिथि एवं चान्द्र तिथि। सूर्य की गति के अनुसार मान्य तिथि को सौर तिथि तथा चन्द्रगति के अनुसार मान्य तिथि को चान्द्र तिथि कहते हैं। | | भारतवर्ष में दो प्रकार की तिथियाँ प्रचलित हैं। सौर तिथि एवं चान्द्र तिथि। सूर्य की गति के अनुसार मान्य तिथि को सौर तिथि तथा चन्द्रगति के अनुसार मान्य तिथि को चान्द्र तिथि कहते हैं। |
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| '''चान्द्र तिथि-''' भारतीय धार्मिक कार्यों में विशेषरूप से चान्द्र तिथियों का ही प्रयोग होता है। इन तिथियों का नाम एवं तिथि स्वामी इस प्रकार हैं- | | '''चान्द्र तिथि-''' भारतीय धार्मिक कार्यों में विशेषरूप से चान्द्र तिथियों का ही प्रयोग होता है। इन तिथियों का नाम एवं तिथि स्वामी इस प्रकार हैं- |
| {| class="wikitable" | | {| class="wikitable" |
− | |+(तिथियों के नाम, तिथियों के पर्यायवाची शब्द एवं तिथियों के स्वामी तालिका)<ref>श्री विन्ध्येश्वरीप्रसाद द्विवेदी, म्हूर्तचिन्तामणि, पीयूषधारा टीका, शुभाशुभ प्रकरण, सन् २०१८, वाराणसीः चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन (पृ०१०/११)</ref> | + | |+(तिथियों के नाम, तिथियों के पर्यायवाची शब्द एवं तिथियों के स्वामी तालिका)<ref name=":1">श्री विन्ध्येश्वरीप्रसाद द्विवेदी, म्हूर्तचिन्तामणि, पीयूषधारा टीका, शुभाशुभ प्रकरण, सन् २०१८, वाराणसीः चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन (पृ०१०/११)</ref> |
| !क्र०सं० | | !क्र०सं० |
| !तिथियों का नाम | | !तिथियों का नाम |
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| |शशि( चन्द्रमा) | | |शशि( चन्द्रमा) |
| |} | | |} |
| + | |
| + | === नन्दादि संज्ञाऐँ === |
| ज्योतिषशास्त्रमें समग्र तिथियों की क्रमशः नन्दा आदि पाँच भागों में विभाजित किया गया हैं- | | ज्योतिषशास्त्रमें समग्र तिथियों की क्रमशः नन्दा आदि पाँच भागों में विभाजित किया गया हैं- |
| | | |
− | नन्दा च भद्रा जया च रिक्ता पूर्णेति तिथ्यो अशुभमध्यशस्ताः। सिते असिते शस्तसमाधमाः स्युः सितज्ञभौमार्किगुरौ च सिद्धाः॥ | + | नन्दा च भद्रा जया च रिक्ता पूर्णेति तिथ्यो अशुभमध्यशस्ताः। सिते असिते शस्तसमाधमाः स्युः सितज्ञभौमार्किगुरौ च सिद्धाः॥(मु०चि०)<ref name=":1" /> |
| | | |
| * '''नन्दा तिथि-''' प्रतिपदा, षष्ठी, और एकादशी। | | * '''नन्दा तिथि-''' प्रतिपदा, षष्ठी, और एकादशी। |
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| * '''रिक्ता तिथि-''' चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी। | | * '''रिक्ता तिथि-''' चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी। |
| * '''पूर्णा तिथि-''' पञ्चमी, दशमी, पूर्णिमा और अमावस्या। | | * '''पूर्णा तिथि-''' पञ्चमी, दशमी, पूर्णिमा और अमावस्या। |
| + | चन्द्रमा के पूर्ण और क्षीण होने से तिथियों में बलत्व और निर्बलत्व होता है। अतः शुक्लपक्ष में प्रतिपद् से पंचमी तक चन्द्रमा के क्षीण होने के कारण प्रथमावृत्ति की नन्दादि तिथियाँ अशुभ, षष्ठी से दशमी तक चन्द्रमा के मध्य(न पूर्ण, न क्षीण) होने से द्वितीयावृत्ति की नन्दादि(६,७।८।९।१०) तिथियाँ मध्य और इसी भाँति तृतीयावृत्ति की नन्दादि(११।१२।१३।१४।१५/३०) तिथियाँ चन्द्रमा के पूर्ण होने के कारणशुभ कही गईं हैं। एवं कृष्णपक्षमें १-५ तिथियाँ शुभ, ६-१० तक तिथियाँ मध्य, ११-१५/३० तक की तिथियाँ चन्द्रमा के क्षीण होने के कारण अशुभ मानी गईं हैं।<ref name=":1" /> स्पष्टज्ञानार्थ सारिणी- |
| + | {| class="wikitable" |
| + | |+(नन्दादि संज्ञाऐं एवं फल ज्ञान सारिणी) |
| + | ! rowspan="2" |तिथि संज्ञा |
| + | ! colspan="3" |तिथियाँ |
| + | |- |
| + | |प्रथमावृत्ति |
| + | |द्वितीयावृत्ति |
| + | |तृतीयावृत्ति |
| + | |- |
| + | |नन्दा |
| + | |१ |
| + | |६ |
| + | |११ |
| + | |- |
| + | |भद्रा |
| + | |२ |
| + | |७ |
| + | |१२ |
| + | |- |
| + | |जया |
| + | |३ |
| + | |८ |
| + | |१३ |
| + | |- |
| + | |रिक्ता |
| + | |४ |
| + | |९ |
| + | |१४ |
| + | |- |
| + | |पूर्णा |
| + | |५ |
| + | |१० |
| + | |१५,३० |
| + | |- |
| + | |शुक्लपक्ष में |
| + | |अशुभ |
| + | |मध्य |
| + | |शुभ |
| + | |- |
| + | |कृष्णपक्ष में |
| + | |शुभ |
| + | |मध्य |
| + | |अशुभ |
| + | |} |
| | | |
− | === अमावस्या एवं पूर्णीमा निर्णय === | + | === अमावस्या एवं पूर्णिमा निर्णय === |
| सूर्य एवं चन्द्रमा जिस दिन एक बिन्दु पर आ जाते हैं उस तिथि को अमावस्या कहते हैं। उस दिन सूर्य और चन्द्रमाका गति अन्तर शून्य अक्षांश होता है। एवं इसी प्रकार सूर्य एवं चन्द्रमा परस्पर आमने-सामने अर्थात् ६राशि या १८० अंशके अन्तरपर होते हैं, उस तिथि को पूर्णिमा या पूर्णमासी कहते हैं। | | सूर्य एवं चन्द्रमा जिस दिन एक बिन्दु पर आ जाते हैं उस तिथि को अमावस्या कहते हैं। उस दिन सूर्य और चन्द्रमाका गति अन्तर शून्य अक्षांश होता है। एवं इसी प्रकार सूर्य एवं चन्द्रमा परस्पर आमने-सामने अर्थात् ६राशि या १८० अंशके अन्तरपर होते हैं, उस तिथि को पूर्णिमा या पूर्णमासी कहते हैं। |
| | | |
Line 156: |
Line 211: |
| यज्ञक्रियापौष्टिक मङ्गलानि सङ्ग्रामयोग्याखिलवास्तुकर्म। उद्वाहशिल्पाखिलभूषणाद्यं कार्यं प्रतिष्ठा खलु पौर्णमास्याम् ॥१३॥ | | यज्ञक्रियापौष्टिक मङ्गलानि सङ्ग्रामयोग्याखिलवास्तुकर्म। उद्वाहशिल्पाखिलभूषणाद्यं कार्यं प्रतिष्ठा खलु पौर्णमास्याम् ॥१३॥ |
| | | |
− | सदैव दर्शे पितृकर्म कृत्वा नान्यद्विधेयं शुभपौष्टिकाद्यम्। मूढैः कृतं तत्र शुभोत्सवाद्यं विनाशमायात्यचिराद्भृशं तत् ॥१४ ॥ </blockquote> | + | सदैव दर्शे पितृकर्म कृत्वा नान्यद्विधेयं शुभपौष्टिकाद्यम्। मूढैः कृतं तत्र शुभोत्सवाद्यं विनाशमायात्यचिराद्भृशं तत् ॥१४ ॥ </blockquote>प्रतिपदा आदि तिथियों में किन कार्यों को करना चाहिये अथवा किन को नहीं करना चाहिये, शास्त्रों में इस प्रकार कहा गया है- |
− | | |
| # '''प्रतिपदा-''' विवाह, उपनयन, यात्रा, प्रतिष्ठा, सीमन्त, चौल, वास्तुकर्म, गृहप्रवेश आदि माङ्गलिक कार्य प्रतिपदा को नहीं करने चाहिये। | | # '''प्रतिपदा-''' विवाह, उपनयन, यात्रा, प्रतिष्ठा, सीमन्त, चौल, वास्तुकर्म, गृहप्रवेश आदि माङ्गलिक कार्य प्रतिपदा को नहीं करने चाहिये। |
| # '''द्वितीया-''' यात्रा, विवाह, आभूषण, सङ्गीतविद्या, शिल्प आदि कार्य द्वितीया को नहीं करना चाहिये। | | # '''द्वितीया-''' यात्रा, विवाह, आभूषण, सङ्गीतविद्या, शिल्प आदि कार्य द्वितीया को नहीं करना चाहिये। |
Line 183: |
Line 237: |
| # '''कलियुग'''- भाद्रपद कृष्णपक्ष त्रयोदशी। | | # '''कलियुग'''- भाद्रपद कृष्णपक्ष त्रयोदशी। |
| | | |
− | मन्वादि तिथियों का परिगणन शास्त्रों में इस प्रकार किया गया है- | + | मन्वादि तिथियों का परिगणन नारद पुराण प्रथम पाद एवं अन्यान्य शास्त्रों में इस प्रकार किया गया है- |
− | | + | {| class="wikitable" |
− | कार्तिक शुक्ल द्वादशी
| + | |+मन्वादि तिथियाँ |
− | | + | !क्रम |
− | आश्विन शुक्ल नवमी | + | !मनु का नाम |
− | | + | !प्रारम्भ तिथियाँ |
− | चैत्र शुक्ल तृतीया
| + | !क्रम |
− | | + | !मनु का नाम |
− | भाद्रपद शुक्ल तृतीया
| + | !प्रारम्भ तिथियाँ |
− | | + | |- |
− | पौष शुक्ल एकादशी | + | |१ |
− | | + | |स्वायम्भुव |
− | आषाढ शुक्ल दशमी | + | |चैत्र शुक्ल तृतीया |
− | | + | |८ |
− | माघ शुक्ल सप्तमी
| + | |सावर्णि |
− | | + | |फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा |
− | भाद्रपद कृष्ण अष्टमी | + | |- |
− | | + | |२ |
− | श्रावण अमावस्या
| + | |स्वारोचिष |
− | | + | |चैत्र शुक्ल पूर्णिमा |
− | आषाढी पूर्णिमा
| + | |९ |
− | | + | |दक्षसावर्णि |
− | फाल्गुन पूर्णीमा
| + | |आश्विन शुक्ल नवमी |
− | | + | |- |
− | कार्तिकी पूर्णिमा
| + | |३ |
− | | + | |औत्तम |
− | ज्येष्ठ पूर्णिमा | + | |कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा |
− | | + | |१० |
− | चैत्र पूर्णिमा
| + | |ब्रह्मसावर्णि |
− | | + | |माघ शुक्ल सप्तमी |
− | ये १४ मनुओं की आद्य तिथि कही गयी हैं इनमें पितृकर्म(पार्वण श्राद्ध) आदि करना अत्यन्त पुण्यको देने वाला होता है। | + | |- |
| + | |४ |
| + | |तामस |
| + | |कार्तिक शुक्ल द्वादशी |
| + | |११ |
| + | |धर्मसावर्णि |
| + | |पौष शुक्ल त्रयोदशी |
| + | |- |
| + | |५ |
| + | |रैवत |
| + | |आषाढ शुक्ल द्वादशी |
| + | |१२ |
| + | |रुद्रसावर्णि |
| + | |भाद्रपद शुक्ल तृतीया |
| + | |- |
| + | |६ |
| + | |चाक्षुष |
| + | |आषाढ शुक्ल पूर्णिमा |
| + | |१३ |
| + | |दैवसावर्णि |
| + | |श्रावण कृष्ण अमावस्या |
| + | |- |
| + | |७ |
| + | |वैवस्वत |
| + | |ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा |
| + | |१४ |
| + | |इन्द्रसावर्णि |
| + | |भाद्रपद(श्रावण) कृष्ण अष्टमी |
| + | |} |
| + | ये १४ मनुओं की आद्य तिथि कही गयी हैं इनमें स्नान, दान, जप, होम एवं पितृकर्म(पार्वण श्राद्ध) आदि करना अत्यन्त पुण्यको देने वाला होता है। एवं इन तिथियों में अनध्याय विहित है। |
| | | |
| === तिथि क्षय === | | === तिथि क्षय === |