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− | सनातन अर्थात् अनादि,शाश्वत, सत्य,नित्य,भ्रम संशय रहित धर्म का वह स्वरूप जो परंपरा से चला आता हुआ माना जाता है ।धर्म शब्द का अर्थ ही है कि जो धारण करे अथवा जिसके द्वारा यह विश्व धारण किया जा सके, क्योंकि धर्म "धृञ धारणे" धातु से बना है, जिसका अर्थ है -<blockquote>धारयतीति धर्मः अथवा 'येनैतद्धार्यते स धर्मः ।</blockquote>धर्म वास्तव में संसार की स्थिति का मूल है, धर्म मूल पर ही सकल संसार वृक्ष स्थित है। धर्म से पाप नष्ट होता है तथा अन्य लोग धर्मात्मा पुरुष का अनुसरण करके कल्याण को प्राप्त होते हैं । | + | सनातन अर्थात् अनादि,शाश्वत, सत्य,नित्य,भ्रम संशय रहित धर्म का वह स्वरूप जो परंपरा से चला आता हुआ माना जाता है ।धर्म शब्द का अर्थ ही है कि जो धारण करे अथवा जिसके द्वारा यह विश्व धारण किया जा सके, क्योंकि धर्म "धृञ धारणे" धातु से बना है, जिसका अर्थ है -<blockquote>धारयतीति धर्मः अथवा 'येनैतद्धार्यते स धर्मः ।</blockquote>धर्म वास्तव में संसार की स्थिति का मूल है, धर्म मूल पर ही सकल संसार वृक्ष स्थित है। धर्म से पाप नष्ट होता है तथा अन्य लोग धर्मात्मा पुरुष का अनुसरण करके कल्याण को प्राप्त होते हैं ।<blockquote>न जातु कामान्न भयान्न लोभाद्धर्मं त्यजेज्जीवितस्यापि हेतोः। नित्यो धर्मः सुख दुःखे त्वनित्ये, जीवो नित्यो हेतुरस्य त्वनित्यः॥(महा०स्वर्गा० ५/76)</blockquote>अर्थात् कामना से, भय से. लोभ से अथवा जीवन के लिये भी धर्म का त्याग न करे । धर्म ही नित्य है, सुख दु:ख तो अनित्य हैं। इसी प्रकार जीवात्मा नित्य हैं और उसके बन्धन का हेतु अनित्य है । (अतः अनित्य के लिये नित्य का परित्याग कदापि न करे )। |
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− | नित्यो धर्मः सुख दुःखे त्वनित्ये, जीवो नित्यो हेतुरस्य त्वनित्यः ।(महा० स्वर्गा० ५/६३) | |
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− | अर्थात् कामना से, भय से. लोभ से अथवा जीवन के लिये भी धर्म का त्याग न करे । धर्म ही नित्य है, सुख दु:ख तो अनित्य हैं। इसी प्रकार जीवात्मा नित्य हैं और उसके बन्धन का हेतु अनित्य है । (अतः अनित्य के लिये नित्य का परित्याग कदापि न करे )। | |
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| इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति धर्म का पालन करता है तो धर्म ही उसकी रक्षा करता है तथा नष्ट हुआ धर्म ही उसे मारता है अतः धर्म का पालन करना चाहिये । | | इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति धर्म का पालन करता है तो धर्म ही उसकी रक्षा करता है तथा नष्ट हुआ धर्म ही उसे मारता है अतः धर्म का पालन करना चाहिये । |
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− | नारायणोपनिषद् में कहा है- | + | नारायणोपनिषद् में कहा है-<blockquote>धर्मो विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा, लोके धर्मिष्ठं प्रजा उपसर्पन्ति, धर्मेण पापमपनुदति,धर्मे सर्वं प्रतिष्ठितं,तस्माद्धर्म परमं वदन्ति।<ref>मन्त्रपुष्पम् स्वमीदेवरूपानन्दः,रामकृष्ण मठ,खार,मुम्बई(नारायणोपनिषद ७९)पृ० ६१।</ref></blockquote>आचार को प्रथम धर्म कहा है-<blockquote>आचारः प्रथमो धर्मः श्रुत्युक्तः स्मार्त एव च।तस्मादस्मिन्समायुक्तो नित्यं स्यादात्मनो द्विजः ॥</blockquote><blockquote>आचाराल्लभते चायुराचाराल्लभते प्रजाः ।आचारादन्नमक्षय्यमाचारो हन्ति पातकम् ॥<ref>श्रीमद्देवीभागवत,उत्तरखण्ड,गीताप्रेस गोरखपुर,(एकादश स्कन्ध अ० 1श्० 9/10 पृ० 654)।</ref></blockquote>'''अनु-''' आचार ही प्रथम (मुख्य) धर्म है-ऐसा श्रुतियों तथा स्मृतियोंमें कहा गया है, अतएव द्विजको चाहिये कि वह अपने कल्याणके लिये इस सदाचारके पालनमें नित्य संलग्न रहे।मनुष्य आचारसे आयु प्राप्त करता है, आचारसे सन्तानें प्राप्त करता है तथा आचारसे अक्षय अन्न प्राप्त करता है। यह आचार पापको नष्ट कर देता है॥ |
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− | धर्मो विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा, लोके धर्मिष्ठं प्रजा उपसर्पन्ति, धर्मेण पापमपनुदति,धर्मे सर्वं प्रतिष्ठितं,तस्माद्धर्म परमं वदन्ति।<ref>मन्त्रपुष्पम् स्वमीदेवरूपानन्दः,रामकृष्ण मठ,खार,मुम्बई(नारायणोपनिषद ७९)पृ० ६१।</ref> | |
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− | आचार को प्रथम धर्म कहा है-<blockquote>आचारः प्रथमो धर्मः श्रुत्युक्तः स्मार्त एव च ।तस्मादस्मिन्समायुक्तो नित्यं स्यादात्मनो द्विजः ॥</blockquote><blockquote>आचाराल्लभते चायुराचाराल्लभते प्रजाः ।आचारादन्नमक्षय्यमाचारो हन्ति पातकम् ॥<ref>श्रीमद्देवीभागवत,उत्तरखण्ड,गीताप्रेस गोरखपुर,(एकादश स्कन्ध अ० 1श्० 9/10 पृ० 654)।</ref></blockquote>'''अनु-''' आचार ही प्रथम (मुख्य) धर्म है-ऐसा श्रुतियों तथा स्मृतियोंमें कहा गया है, अतएव द्विजको चाहिये कि वह अपने कल्याणके लिये इस सदाचारके पालनमें नित्य संलग्न रहे।मनुष्य आचारसे आयु प्राप्त करता है, आचारसे सन्तानें प्राप्त करता है तथा आचारसे अक्षय अन्न प्राप्त करता है। यह आचार पापको नष्ट कर देता है॥ | |
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| आचारः प्रथमो धर्मः श्रुत्युक्तः स्मार्त एव च । | | आचारः प्रथमो धर्मः श्रुत्युक्तः स्मार्त एव च । |
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| ==== जागरण का फल ==== | | ==== जागरण का फल ==== |
− | सनातनधर्ममें ब्राह्ममुहूर्तमें उठनेकी आज्ञा है। ब्राह्ममुहूर्तको निद्रा पुण्यका नाश करनेवाली है । उस समय जो कोई भी शयन करता है, उसे छुटकारा पानेके लिये पादकृच्छ्र नामक (व्रत) प्रायश्चित्त करना चाहिये-<blockquote>तां करोति द्विजो मोहात् पादकृच्छ्रेण शुद्ध्यति ।।</blockquote>रोगकी अवस्थामें या कीर्तन आदि शास्त्रविहित कार्यों के कारण इस समय यदि नींद आ जाय तो उसके लिये प्रायश्चित्तकी आवश्यकता नहीं होती-<blockquote>अव्याधितं चेत् स्वपन्तं विहितकर्मश्रान्ते तु न॥</blockquote><blockquote>ब्राह्मे मुहूर्ते बुध्येत धर्मार्थों चानुचिन्तयेत् । कायक्लेशांश्च तन्मूलान् वेदतत्त्वार्थमेव च ।। (मनु० ४।९२)</blockquote>अर्थात् ब्राह्म मुहुर्त में उठकर धर्म अर्थ का चिन्तन, कायक्लेश का निदान तथा वेदतत्त्व परमात्मा का स्मरण करना चाहिये । | + | सनातनधर्ममें ब्राह्ममुहूर्तमें उठनेकी आज्ञा है। ब्राह्ममुहूर्तकी निद्रा पुण्यका नाश करनेवाली है । उस समय जो कोई भी शयन करता है, उसे छुटकारा पानेके लिये पादकृच्छ्र नामक (व्रत) प्रायश्चित्त करना चाहिये-<blockquote>तां करोति द्विजो मोहात् पादकृच्छ्रेण शुद्ध्यति ।।</blockquote>रोगकी अवस्थामें या कीर्तन आदि शास्त्रविहित कार्यों के कारण इस समय यदि नींद आ जाय तो उसके लिये प्रायश्चित्तकी आवश्यकता नहीं होती-<blockquote>अव्याधितं चेत् स्वपन्तं विहितकर्मश्रान्ते तु न॥</blockquote><blockquote>ब्राह्मे मुहूर्ते बुध्येत धर्मार्थों चानुचिन्तयेत् । कायक्लेशांश्च तन्मूलान् वेदतत्त्वार्थमेव च ।। (मनु० ४।९२)</blockquote>अर्थात् ब्राह्म मुहुर्त में उठकर धर्म अर्थ का चिन्तन, कायक्लेश का निदान तथा वेदतत्त्व परमात्मा का स्मरण करना चाहिये । |
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− | शास्त्रों में भी कहा गया है कि- <blockquote>वर्णं कीर्तिं गतिं लक्ष्मी स्वास्थ्यमायुश्च विदन्ति। ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रच्छि वा पंकज यथा।।</blockquote>अर्थात् ब्रह्म मुहूर्त में जागने से व्यक्ति को अच्छा रुप, धन, दौलत, अच्छा स्वास्थ्य और लंबी आयु की प्राप्ति होती है। इस समय उठने से शरीर कमल के फूल के समान सुन्दर हो जाता है। | + | शास्त्रों में भी कहा गया है कि- <blockquote>वर्णं कीर्तिं गतिं लक्ष्मी स्वास्थ्यमायुश्च विदन्ति। ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रच्छि वा पंकज यथा।। (भैषज्य सारः 63)</blockquote>अर्थात् ब्रह्म मुहूर्त में जागने से व्यक्ति को अच्छा रुप, धन, दौलत, अच्छा स्वास्थ्य और लंबी आयु की प्राप्ति होती है। इस समय उठने से शरीर कमल के फूल के समान सुन्दर हो जाता है। |
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| ब्राह्ममुहूर्तमें उठानेकी प्रकृतिकी 'टाइमपीस-घड़ी' मुर्गाहुआ करता है। | | ब्राह्ममुहूर्तमें उठानेकी प्रकृतिकी 'टाइमपीस-घड़ी' मुर्गाहुआ करता है। |