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४. अर्थार्जन या उद्योग उत्पादन केन्द्री होना चाहिये, सेवाकेन्द्री नहीं । 'सेवा' शब्द अर्थार्जन के क्षेत्र का है ही नहीं । उसका प्रयोग वहाँ करना ही नहीं चाहिये। उदाहरण के लिये शिक्षा उद्योग नहीं हो सकती, मैनेजमेण्ट सेवा नहीं हो सकता, चिकित्सा व्यवसाय नहीं हो सकता। यह धर्म के विरोधी है इसलिये मान्य नहीं है । भौतिक वस्तुओं के उत्पादन को ही अर्थक्षेत्र में केन्द्रवर्ती स्थान देना चाहिये ।
४. अर्थार्जन या उद्योग उत्पादन केन्द्री होना चाहिये, सेवाकेन्द्री नहीं । 'सेवा' शब्द अर्थार्जन के क्षेत्र का है ही नहीं । उसका प्रयोग वहाँ करना ही नहीं चाहिये। उदाहरण के लिये शिक्षा उद्योग नहीं हो सकती, मैनेजमेण्ट सेवा नहीं हो सकता, चिकित्सा व्यवसाय नहीं हो सकता। यह धर्म के विरोधी है इसलिये मान्य नहीं है । भौतिक वस्तुओं के उत्पादन को ही अर्थक्षेत्र में केन्द्रवर्ती स्थान देना चाहिये ।
−
५. भौतिक वस्तुओं के उत्पादक और उपभोक्ता के बीच कम से कम दूरी और कम से कम व्यवस्थायें होनी चाहिये । पैकिंग, संग्रह और सुरक्षा की व्यवस्था, परिवहन, बिचौलिये, वितरण की युक्ति प्रयुक्ति, विज्ञापन ये सब अनुत्पादक व्यवस्थायें हैं जो वस्तुओं की कीमतो में बिना गुणवत्ता बढे वृद्धि करती है और
+
५. भौतिक वस्तुओं के उत्पादक और उपभोक्ता के बीच कम से कम दूरी और कम से कम व्यवस्थायें होनी चाहिये । पैकिंग, संग्रह और सुरक्षा की व्यवस्था, परिवहन, बिचौलिये, वितरण की युक्ति प्रयुक्ति, विज्ञापन ये सब अनुत्पादक व्यवस्थायें हैं जो वस्तुओं की कीमतो में बिना गुणवत्ता बढे वृद्धि करती है और बिना श्रम किये, बिना निवेश के अर्थार्जन के अवसर निर्माण करती है। इससे एक आभासी अर्थव्यवस्था पैदा होती है जो समृद्धि नहीं, समृद्धि का आभास उत्पन्न करती है । आभासी समृद्धि से दारिद्य बढ़ता है।
−
करने का है। विभिन्न शैक्षिक संगठनों, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संगठनों को यह काम
+
६. भौतिक वस्तुओं का उत्पादन करने वालों को अर्थक्षेत्र में सबसे अधिक सम्मान और सुरक्षा प्राप्त होनी चाहिये । उत्पादन में गुणवत्ता और उत्कृष्टता प्रतिष्ठा का विषय बनना चाहिये।
−
करने के लिये सिद्ध करना होगा। १०. इस योजना में पढे लोगों को नौकरी देने की
+
७. ज्ञानदान, आरोग्यदान और धर्मज्ञान अर्थक्षेत्र से परे होना चाहिये । अन्न और जल, व्यावहारिक जीवन का मार्गदर्शन निःशुल्क होना चाहिये । ज्ञान, आरोग्य और धर्म का ज्ञान देनेवालों की सर्व प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति ससम्मान उत्पादकों द्वारा होनी चाहिये।
−
जिम्मेदारी भी सरकार की नहीं रहेगी। बाबूगीरी एकदम कम हो जायेगी। शिक्षा के साथ नौकरी वाला आर्थिक क्षेत्र भी स्वायत्त होना चाहिये । स्वायत्तता की यह योजना चरणों में होगी। नीचे की कोई शिक्षा अनिवार्य नहीं होगी परन्तु स्वास्थ्य सेवाओं, सैन्य सेवाओं तथा राजकीय सेवाओं का क्षेत्र सरकार के पास रहेगा। इस दृष्टि से सभी शाखाओं की प्रवेश परीक्षा होगी और जैसे चाहिये वैसे लोग तैयार कर लेना उन उन क्षेत्रों की जिम्मेदारी
+
८. राज्य को इस अर्थतन्त्र की सुरक्षा करनी चाहिये । स्वयं उत्पादन या व्यापार नहीं करना चाहिये परन्तु यह व्यवस्था सम्यक् रूप में बनी रहे यह देखना चाहिये ।
−
रहेगी। १२. अर्थक्षेत्र स्वायत्त होना आवश्यक है। हर उद्योग ने
+
९. करविधान, राज्य की अर्थनीति, प्रजा के अर्थविनियोग के सूत्र विश्वविद्यालयों में निश्चित होने चाहिये संसद में नहीं, और राज्यकर्ता तथा उत्पादकों के महाजनों को इस विषय में परामर्श तथा प्रशिक्षण भी विश्वविद्यालयों से मिलना चाहिये ।
−
अपने उद्योग के लिये आवश्यक लोगों को शिक्षित
+
१०. अर्थक्षेत्र की शिक्षा दो विभागों में बँटेगी। प्रत्यक्ष उत्पादन की तो सामान्य से लेकर प्रगत शिक्षा उत्पादन केन्द्रों पर ही प्राप्त होगी। उसके साथ जो धर्मपक्ष है उसकी शिक्षा जहाँ तक सम्भव है उत्पादन केन्द्रों पर, नहीं तो विश्वविद्यालयों में प्राप्त होगी।
−
कर लेने की सिद्धता करनी होगी। १३. शिक्षा संस्थानों को समाज से भिक्षा माँगनी पडेगी।
+
==== मूलसूत्रों की शिक्षा विश्वविद्यालय दे ====
+
यह तो हुए समाज की अर्थव्यवस्था के मूल सूत्र । इनकी शिक्षा देने का काम विश्वविद्यालय को करना है। इसके मूल सूत्र हैं...
−
प्राथमिक विद्यालय भी इसी तत्त्व पर चलेंगे। १४. इस योजना में सबसे बड़ा विरोध शिक्षक करेंगे
+
१. अर्थ पुरुषार्थ काम पुरुषार्थ का अनुसरण करता है इसलिये अर्थपुरुषार्थ को ठीक करना है। तो काम पुरुषार्थ को प्रथम ठीक करना होगा।
−
क्योंकि उनकी सुरक्षा और वेतन समाप्त हो जायेंगे । शैक्षिक संगठनों को अपने बलबूते पर विद्यालय चलाने वाले शिक्षक तैयार करने पड़ेंगे। संगठनों के
+
२. अर्थ और काम दोनों धर्म के अविरोधी है। इसकी शिक्षा देना ।
−
कार्यकर्ताओं को स्वयं विद्यालय शुरू करने होंगे। १५. इस देश में स्वायत्त शिक्षा के प्रयोग नहीं चल रहे हैं
+
३. श्रमसंस्कृति का विकास करना
−
ऐसा तो नहीं है। परन्तु वे सरकारी तन्त्र के पूरक के रूप में चल रहे हैं। वे स्वायत्त चलें ऐसा मन बनाना
+
४. मनुष्य के मूल्यांकन का निकष चरित्र है, अर्थ नहीं ।
−
चाहिये। १६. यह कार्य किसी भी एक पक्ष से होने वाला नहीं है।
+
५. अर्थ के विनियोग में संयम, सादगी, दान, धर्मादाय आदि को महत्त्व देना।
−
केवल सरकार चाहेगी, या संगठन चाहेंगे या शिक्षक चाहेंगे तो नहीं होगा। सरकार, शैक्षिक संगठन, सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन, धर्माचार्य, विद्वज्जन सब मिलकर यदि चाहेंगे तो होगा। इसलिये इन सबमें प्रथम संवाद, मानसिकता और वैचारिक स्पष्टता बनानी चाहिये । यह काम भी सरल नहीं है। ये सब
+
६. समाज में कोई भी अभावग्रस्त न रहे ऐसी व्यवस्था करना।
−
−
आहति देने योग्य पदार्थ ही अहम माना जाता था। किन्तु इसका लाक्षणिक अर्थ है, गुरु के लिये उपयोगी हो ऐसा कुछ न कछ लेकर जाना। क्या आज हर विद्यालय सशुल्क ही चलता है । इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होती । विद्यालय की शुल्कव्यवस्था इस प्रश्नावली के प्रश्न पुछकर कुछ लोगों से बातचीत हुई उनसे प्राप्त उत्तर इस प्रकार रहे -
−
−
१. विद्यालय का खर्च पूरा होने के लिए की गई व्यवस्था को शुल्क मानते हैं । बिना शुल्क विद्यालय चलाना असंभव है।
−
−
२, दक्षिणा मंदिर में, गुरु को तथा पुरोहित को देने की बात है अतः विद्यालय शुल्क को दक्षिणा नहीं कह सकते ऐसा कई लोगों का मत था । जब की ओरिसा मे शिक्षक जो वेतन लेते है उसे दक्षिणा कहते है ऐसा एक अभिप्राय मिला।
−
−
३. शुल्क का गुणवत्ता के साथ कोई संबंध नहीं ।
−
−
४. सरकारने ६ से १४ साल तक की शिक्षा तो निःशुल्क ही रखी है । परंतु विद्यालयों में अनेक प्रकार की सुविधायें करनी पडती है । यह खर्च निभाने हेतु जो पैसा लेते है वह शुल्क कहलाता है । जितना शुल्क अधिक उतनी सुविधा अधिक देना संभव है।
−
−
५. आजकल शुल्क चार अंको में देनेवाला हो वही विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त माना जाता है।
−
−
६. शुल्क कम करने की कोई आवश्यकता नहीं । विद्यालय से खर्च होनेवाला पैसा शुल्क के रूप में लेना ही चाहिये।
−
−
७. शिक्षण शुल्क, शिक्षक कल्याणनिधि, परीक्षाशुल्क, कार्यक्रम शुल्क, भ्रमण शुल्क आदि अनेको प्रकार से विद्यालयों में शुल्क लिया जाता है ।
−
−
८. एक मातापिता के दो बालक पढते हो तो एक बालक की फीस नहीं लेते थे ऐसा रिवाज था।
−
−
... उसे बेचने की चीज बना दी है । दक्षिणा स्वैच्छिक होती है ।
−
आज हर विद्यालय सशुल्क ही चलता है । इसमें किसी .... शुल्क को दक्षिणा मानना यह अनुचित बात को अच्छा लेबल
−
को आपत्ति भी नहीं होती । विद्यालय की शुल्कव्यवस्था इस... लगाने जैसा होता है । विद्यालयों में सबका शुल्क समान एवं
−
प्रश्नावली के प्रश्न पुछकर कुछ लोगों से बातचीत हुई उनसे प्राप्त. अनिवार्य ही होता है । शिक्षा की गुणवत्ता और शुल्क का
−
उत्तर इस प्रकार रहे - कोई सम्बन्ध कही दिखाई ही नहीं देता । ज्यादा शुल्क वाले
−
१, . विद्यालय का खर्च पूरा होने के लिए की गई व्यवस्था... विद्यालय में अच्छी पढाई होती है यह आभासी विचार
−
को शुल्क मानते हैं । बिना शुल्क विद्यालय चलाना... ज्यादातर लोगों का है । अभिभावक भी आजकल अपने
−
असंभव है । इकलौते बेटे को ए.सी., मिनरल वोटर, बैठने की स्वतंत्र सुंदर
−
2. दक्षिणा मंदिर में, गुरु को तथा पुरोहित को देने की बात... व्यवस्था ऐसी सुविधाएँ विद्यालय में भी मिले ऐसा सोचते है,
−
है अतः विद्यालय शुल्क को दक्षिणा नहीं कह सकते... इसलिये ज्यादा शुल्क देने की उनकी तैयारी है । मध्यमवर्गीय
−
ऐसा कई लोगों का मत था । जब की ओरिसा मे शिक्षक... लोग बालक को पढ़ाते है तो इतना शुल्क देना ही पडेगा ऐसा
−
जो वेतन लेते है उसे दृक्षिणा कहते है ऐसा एक... सोचते हैं । जितना ज्यादा शुल्क इतनी ज्यादा सुविधायें यह
−
−
अभिप्राय मिला । समझ आज सर्वत्र दृढ़ हुई है । सरकार की ओर से अनुदान
−
४. . शुल्क का गुणवत्ता के साथ कोई संबंध नहीं । प्राप्त विद्यालयों में शिक्षकों का वेतन निवृत्ति वेतन तक निश्चित
−
३,५. सरकारने ६ से १४ साल तक की शिक्षा तो निःशुल्क... होता है । उस विचार से हमारा अन्नदाता सरकार है अभिभावक
−
−
ही रखी है । परंतु विद्यालयों में अनेक प्रकार की. नहीं अतः शिक्षा की कोई गुणवत्ता टिकानी चाहिये यह बात
−
सुविधायें करनी पड़ती है । यह खर्च निभाने हेतु जो पैसा... वे भूल गये है । निजी विद्यालयों में अभी गुणवत्ता के संबंध
−
लेते है वह शुल्क कहलाता है । जितना शुल्क अधिक... से आपस में बहोत होड लगी रहती है । परंतु वह शिक्षकोंने
−
−
उतनी सुविधा अधिक देना संभव है । अच्छा पढ़ाना अनिवार्य नहीं होता, ज्यादा गुण देने से विद्यालय
−
६... आजकल शुल्क चार अंको में देनेवाला हो वही... की गुणवत्ता वे सिद्ध करते है । आज समाज में निःशुल्क शिक्षा
−
विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त माना जाता है । निकृष्ट शिक्षा और उंचे शुल्क लेनेवाली उत्कृष्ट शिक्षा ऐसा
−
−
७. . शुल्क कम करने की कोई आवश्यकता नहीं । विद्यालय... मापदण्ड निश्चित किया है । वेतन ज्यादा देने से अध्यापन की
−
से खर्च होनेवाला पैसा शुल्क के रूप में लेना ही... गुणवत्ता बढेगी यह संभव नहीं होता ।
−
चाहिये । शुल्क के विषय में भारतीय मानस और वर्तमान व्यवस्था
−
é. शिक्षण शुल्क, शिक्षक कल्याणनिधि, परीक्षाशुल्क, ... एकदूसरे से सर्वथा विपरीत हैं । मूल भारतीय विचार में शिक्षा
−
कार्यक्रम शुल्क, भ्रमण शुल्क आदि अनेको प्रकार से... निःशुल्क दी जानी चाहिये । इसका कारण यह है कि शिक्षा
−
−
विद्यालयों में शुल्क लिया जाता है । की प्रतिष्ठा अर्थ से अधिक है । अर्थ शिक्षा का मापदण्ड नहीं
−
९... एक मातापिता के दो बालक पढ़ते हो तो एक बालक... हो सकता । अर्थ केवल भौतिक पदार्थों का ही मापदण्ड हो
−
की फीस नही लेते थे ऐसा रिवाज था । सकता है । अधिक पैसा देने से अधिक अच्छा पढ़ाया जाता
−
−
23q
−
�
−
−
............. page-253 .............
−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
है और कम पैसे से नहीं यह सम्भव नहीं है । अच्छा पढ़ाया
−
इसलिये अधिक पैसा दिया जाना चाहिये ऐसा भी नहीं होता ।
−
इस स्वाभाविक बात को ध्यान में रखकर ही शिक्षा की
−
व्यवस्था अर्थनिरपेक्ष बनाई गई थी । परन्तु आज का मानस
−
कहता है कि जिसके पैसे नहीं दिये जाते उसकी कोई कीमत
−
नहीं होती । जिसे पैसा नहीं दिया जाता उस पर कोई बन्धन
−
या दबाव भी नहीं होता । इसलिये शिक्षा का शुल्क होना
−
चाहिये यह सबका मत बनता है ।
−
−
एक प्रकार से विद्यालय ऐसे होते हैं जहाँ शुल्क बहुत
−
कम लिया जाता है । कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या अधिक
−
होती है । विद्यालय में सुविधायें भी कम होती है । शिक्षकों
−
को वेतन कम दिया जाता है । ऐसे विद्यालयों में संचालकों,
−
अभिभावकों और शिक्षकों में हमेशा तनाव रहता है ।
−
अभिभावक शुल्क बढाने का विरोध करते हैं, शिक्षक वेतन में
−
वृद्धि चाहते हैं और शुल्क बढ़ाये बिना संचालक अधिक वेतन
−
नहीं दे सकते । विद्यार्थियों की संख्या बढाने से शुल्क की आय
−
में वृद्धि होती है परन्तु उससे पढ़ाई प्रभावित होती है इसलिये
−
अभिभावकों की उसमें सहमति नहीं होती ।
−
−
समाज में बिना अनुदान चलनेवाले अधिकांश विद्यालयों
−
की यही स्थिति होती है । इन विद्यालयों में इस तनावपूर्ण
−
स्थिति को शान्त करने की आवश्यकता रहती है । इसके दो
−
उपाय हैं । एक तो समझदार अभिभावक, शिक्षकों और
−
संचालकों के प्रतिनिधियों ने साथ बैठता चाहिये और
−
अबिभावकों की आर्थिक स्थिति, शिक्षकों की आवश्यकता
−
और विद्यालय भवन में सुविधाओं के सम्बन्ध में परस्पर
−
सहानुभूति पूर्वक विचार कर हल खोजना चाहिये । दूसरा
−
तरीका यह है कि संचालकों ने समाज से भिक्षा माँगनी चाहिये ।
−
संचालकों का बडा वर्ग ऐसा है जो मानता है और कहता है
−
−
−
−
2८ ५
−
2 ५.
−
−
−
−
कि समाज भवन तथा अन्य सुविधाों के
−
लिये तो सहयोग करता है परन्तु शिक्षकों के वेतन के लिये
−
दान देने के लिये सहमत नहीं होता । शिक्षकों का वेतन तो
−
शुल्क से ही देना होता है । परन्तु यह बात ऐसे ही छोडनी
−
नहीं चाहिये । शिक्षकों का वेतन शुल्क पर ही अवलम्बित
−
रहे यह व्यवस्था ही ठीक नहीं है । विद्यालय की अन्य
−
व्यवस्थाओं से भी शिक्षकों के वेतन का महत्त्व अधिक है ।
−
उसे विद्यार्थियों की संख्या और अभिभावकों के द्वारा दिये जाने
−
वाले शुल्क के सामने दाँव पर लगाना उचित नहीं है । शिक्षकों
−
को आदर देने की और उनकी आर्थिक सुरक्षा की ओर ध्यान
−
देने की समाज की भी जिम्मेदारी है । इसलिये समाज से भिक्षा
−
माँगने का प्रयास तो करना ही चाहिये । यह प्रयोग यदि अच्छा
−
चला तो आगे समाज के ही योगदान से निःशुल्क शिक्षा की
−
योजना भी हो सकती है ।
−
−
यह तो सर्वसामान्य विद्यालयों की बात है । परन्तु
−
विद्यालयों का एक वर्ग ऐसा है जिसमें मानते हैं कि भारतीय
−
शिक्षा अर्थनिरपेक्ष होती है और वह होनी चाहिये ।
−
−
ऐसे लोगों को सक्रिय होने की आवश्यकता है । ऐसे
−
लोगों को मुखर होना चाहिये । ऐक चिरपुरातन परन्तु आज
−
अपरिचित और विस्मृत विचार को पुनः प्रतिष्ठित करने हेतु
−
जितने और जिस प्रकार के उपाय करने होते हैं वे सब करने
−
चाहिये । शीघ्र ही ध्यान में आयेगा कि समाज इसे अपनाने
−
के लिये तैयार हो जायेगा ।
−
−
शुल्क व्यवस्था को निरस्त करने से शिक्षा को
−
बाजारीकरण से मुक्ति मिलेगी । शिक्षा की यह बहुत बडी सेवा
−
होगी । इसका लाभ समाज और संस्कृति को होगा । सही
−
दिशा में यात्रा करने का पुण्य भी प्राप्त होगा ।
−
−
विद्यालय में मितव्ययिता
−
−
9. विद्यालय में निम्नलिखित बातों पर खर्च कैसे
−
कम कर सकेत हैं -
−
१, छात्रों का बस्ता, २. शैक्षिक सामग्री
−
३. फर्नीचर
−
−
2. विद्यालय में दुर्व्यय एवं अपव्यय कहां कहां हो
−
सकता है ? उसे कैसे रोक सकते हैं ?
−
−
३... विद्यालय में टिकाऊ व्यवस्थायें एवं टिकाऊ चीजें
−
कैसे अपनायें ?
−
�
−
−
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−
−
−
−
४. कम से कम खर्च करके
−
सादगी एवं सुन्दरता कैसे निर्माण करें ?
−
−
कम खर्च की व्यवस्था या वस्तु कम मूल्य की
−
या कम उपयोगी भी नहीं होती है ऐसी
−
मानसिकता निर्माण करने के लिये क्या करें ?
−
निम्नलिखित बातों का कैसे ध्यान रखें -
−
−
१, वस्तुओं की सम्हाल
−
−
२. एक ही वस्तु के अनेक उपयोग
−
−
३. बिना पैसे की वस्तुओं का उपयोग
−
−
४. प्राकृतिक व्यवस्थायें
−
−
५. रखरखाव का खर्च कम से कम हो ऐसी
−
व्यवस्था या वस्तुयें ।
−
−
प्रश्नावली से ura उत्तर
−
−
महाराष्ट्र के नासिक जिले मे एक विद्यालय है जहाँ
−
मितव्ययता हेतु नित्य विविध प्रयोग होते हैं । उस विद्यालय
−
के शिक्षकों को यह प्रश्नाबली मिली थी । विद्यालय मे २०
−
शिक्षिकाएँ थी परंतु उत्तर मात्र एक ही प्राप्त हुआ । हमारे
−
विद्यालय में मितव्ययिता की नीति हम सब मिलकर एक
−
विचार से लागू करते हैं । इसलिए २० प्रश्नाबली की जगह
−
चर्चा करके एकने उत्तरावली भरी तो भी चलेगा यह विचार
−
हम सबने किया । विद्यालय की मितव्ययिता का प्रत्यक्ष
−
उदाहरण इस तरह प्राप्त हुआ ।
−
−
विद्यार्थियों के लिए शैक्षिक सामग्री निर्माण करते
−
समय ज्यादातर घरों में फिजूल वस्तुएँ होती हैं उसका ही
−
उपयोग हम करते हैं ।
−
−
जैसे बीज, बोतल के ढक्कन, मासिक पत्रिका से चित्र
−
इत्यादि विद्यालय में प्रश्नपत्र या अभ्यास कार्य करने हेतु
−
हमेशा एक बाजू पर कोरे कागज ही हम उपयोग में लाते
−
हैं । साजसज्जा की वस्तुयें बनाने के लिये घर मे बेकार और
−
अनुपयोगी (पुड्ठे के) पुरानी किताबों में से अच्छा रंगीन
−
कागज, निमंत्रण पत्रिकाएँ ऐसी वस्तुओं का आग्रह हम
−
रखते हैं । छोटे बच्चों के लिए आसन और लिखने हेतु
−
डेस्क के लिये अभिभावकों को द्वारा दिया हुआ लकडी का,
−
उनके घर का पुराना फर्निचर हम उपयोग में लाते हैं ।
−
−
२३८
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
अभिभावकों के बगीचे में लगे हुए केला, नारियल आदि
−
फल, सब्जी, फूल, विद्यालय में अध्यापन सामग्री के लिये
−
सहजता से देने का संस्कार हमने अभिभावकों पर किया है ।
−
चित्र-प्रतिकृति की जगह इस प्रकार की स्वेच्छा से भेजी हुई
−
सामग्री हमें अधिक मूल्यवान लगती है ।
−
−
स्टेशनरी, बिजली, पानी बाबत सर्वत्र अपव्यय और
−
दुर्व्यय होते दिखाई देता है परंतु उनका उपयोग मितन्ययिता
−
से करने की आदत शिक्षक एवं छात्रों में हमने निर्माण की
−
है । कैसा भी साहित्य हो उसका सम्भाल कर उपयोग करना
−
यह आदत बच्चों में हम विकसित करते हैं ।
−
−
कम से कम खर्च करके सादगी और सौंदर्य निर्माण
−
करने हेतु हस्तव्यवसाय एवं कार्यानुभव सिखाते समय
−
वस्तुओं का पुनरुपयोग और “वेस्ट से बेस्ट' इस संकल्पना
−
को हम व्यवहार में लाते हैं । सस्ती वस्तु का महत्व कम
−
नहीं होता यह बात प्रत्यक्ष व्यवहार से, प्रयोग से यहाँ सिद्ध
−
करते हैं । विद्यालय के वार्षिकोत्सव की निमंत्रण पत्रिका
−
जो छपवाकर आकर्षक परंतु महँगी हो जाती है परंतु हमारे
−
छात्र उसे सुंदर शब्दों में गद्य या पद्य रूप मे शब्दबद्ध करते
−
हैं और उसे सादे कागज पर छपवाते हैं । विद्यालय और
−
अभिभावक दोनों को इसकी मौलिकता समझ में आती है ।
−
वार्षिकोत्सव / स्नेहसंमेलन के कार्यक्रमों में आकर्षक
−
मेकअप और वेषभूषा की जगह विद्यार्थी का उत्कृष्ट
−
अभिनय, शिक्षकों ने स्वयं तैयार किये हुए विविध कार्यक्रम
−
अभिभावकों के लिये आकर्षक होते हैं । हर एक वस्तु का
−
ज्यादा से ज्यादा और अनेक प्रकार से कैसा उपयोग किया
−
जा सकता है इस बाबत छात्रों से सतत चर्चा, विचार और
−
प्रयोग किये जाते हैं ।
−
−
अभिमत : मितव्ययिता माने कंजूषी नहीं तो जिस बात
−
का जितना मूल्य है उतना ही खर्च करना यह बात समझ और
−
प्रयोग में उतारना है । आवश्यक न हो तब पांच पैसे भी नहीं
−
खर्च करना परंतु साथ साथ आवश्यकता हो तो हजार रूपया
−
भी खर्च करने मे हिचकिचाना नहीं यह विचार विद्यालयों में
−
और घर घर में प्रस्थापित करना चाहिये । शिशुकक्षा एवं
−
प्राथमिक कक्षाओं में कार्पियों की जगह पत्थर की स्लेट का
−
अनिवार्य रूप से उपयोग करना चाहिये । पेन, पेंसिल, कलर्स
−
�
−
−
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−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
इधर उधर फैंकना नहीं, खोना नहीं ऐसी छोटी छोटी बातों का
−
−
आग्रह करना चाहिये । साधन सामग्री का उचित और कम से
−
कम उपयोग करने वाले छात्रों को सब छात्रों के सामने
−
गौरवान्वित करें । नुकसान, लापरवाही आदि दुर्गुणों से बच्चों
−
को बचाना होगा ।
−
−
विमर्श
−
−
श्,
−
−
मितव्ययिता एक आर्थिक सद्गुण है । सद्गुण सदाचार
−
को प्रेरित करता है । उसका मूल जीवन विषयक दृष्टि
−
में है । इसलिये मितव्ययिता सांस्कृतिक सदूगुण भी
−
है।
−
−
मितव्ययिता का अर्थ है आवश्यक है उतनी ही मात्रा
−
में किसी भी पदार्थ का व्यय करना । मितव्ययिता
−
कंजूसी नहीं है, कम संसाधनों का उपयोग कर महत्तम
−
सन्तोष प्राप्त करना मितव्ययिता है ।
−
−
प्राकृतिक संसाधन सम्पत्ति है, मनुष्यों की
−
कार्यकुशलता सम्पत्ति है, समय सम्पत्ति है।
−
प्राकृतिक संसाधन सब की सम्पत्ति है । किसी एक
−
का उसके उपर अधिकार नहीं है । पैसे से, बल से,
−
सत्ता से, ज्ञान से प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार
−
प्राप्त नहीं होता । केवल अल्पतम आवश्यकता ही
−
प्राकृतिक संसाधन पर अधिकार प्राप्त करवाती है ।
−
मनुष्य की कार्यकुशलता पर केवल उसका ही
−
अधिकार है, हमारा नहीं । दूसरे की कुशलता का
−
उपयोग पैसे से, बल से, सत्ता से कर लेने का हमें
−
अधिकार नहीं होता । वह प्रार्थना करके ही प्राप्त
−
होता है और प्राप्त होने पर कृतज्ञ होने से ही पुनः
−
प्राप्त करने योग्य बना जाता है । समय सबके लिये
−
समान रूप से प्राप्त होता है । एक बार खर्च किया
−
और बीत गया तो पुनः प्राप्त नहीं होता ।
−
−
स्वयं की कार्यकुशलता, इच्छाशक्ति और बुद्धि ऐसी
−
सम्पत्ति है जिसका व्यय करने से वह बढती है
−
इसलिये अपने और दूसरों के लिये उसका खूब प्रयोग
−
करना चाहिये, परन्तु उसके लिये बदले में कुछ
−
माँगना नहीं ।
−
−
233
−
−
−
−
पानी. प्राकृतिक संसाधन है,
−
उसका प्रयोग आवश्यक है उतनी मात्रा में ही करना
−
चाहिये । आवश्यकता से अधिक उपयोग करने पर
−
उसका अपव्यय होता है । हम यदि नदी के किनारे
−
पर रहते हैं तब नदी के पानी का भरपूर प्रयोग कर
−
सकते हैं क्योंकि वह कभी समाप्त नहीं होता और
−
उसके उपयोग में और किसी संसाधन, व्यवस्था या
−
अपने अलावा किसी को श्रम नहीं हुआ । परन्तु उसे
−
यदि पाइप लाइन से हमारे घर तक लाया गया है,
−
किसी व्यक्ति के द्वारा घडा भर कर अपने सर पर
−
उठाकर लाया गया है और उसे शुद्ध करने हेतु पदार्थ
−
और प्रक्रिया का उपयोग किया गया है तो केवल पैसे
−
देने से उसका मन में आये उतना, अकुशलतापूर्वक
−
उपयोग करने का अधिकार प्रात् नहीं होता । पानी
−
का ऐसा उपयोग मितव्ययिता नहीं अपव्यय है ।
−
−
मितव्ययिता के उदाहरण
−
−
पानी का तो केवल उदाहरण है, मितव्ययिता संस्कार
−
−
है, संस्कारयुक्त व्यवहार है जो छोटे बडे सब से, सर्वत्र,
−
सर्वदा अपेक्षित है ।
−
−
श्,
−
−
कुछ उदाहरण देखें...
−
−
विद्यालय में आवश्यकता से अधिक कोई भी सामग्री
−
न होना । जो है उसको खराब नहीं होने देना ।
−
−
एक ओर लिखे हुए और एक ओर खाली कागजों
−
का लिखने हेतु प्रयोग करना ।
−
−
दोनों ओर लिखे हुए कागजों से लिफाफे बनाना
−
जिसमें छोटी छोटी वस्तुयें रखी जा सर्के ।
−
−
एक ओर खाली कागजों के लिफाफे बनाना जो डाक
−
में भेजने के काम आ सकते हैं ।
−
−
पुरानी चह्दरों से हाथ पॉछने के रूमाल बनाना जिसका
−
अल्पाहार के बाद हाथ और बर्तन पोंछने के लिये
−
उपयोग हो सके । इन्हीं पुरानी चद्दरों का पोंछे के रूप
−
में उपयोग हो सकता है ।
−
−
नारियल के छिलकों का बर्तन साफ करने के ब्रश के
−
रूप में उपयोग हो सकता है । उसके कठोर आवरणों
−
�
−
−
............. page-256 .............
−
−
−
−
Ro.
−
−
8.
−
−
x.
−
−
a cel cl Prat web ae
−
रूप में उपयोग हो सकता है ।
−
−
इस प्रकार अनेक पदार्थ ऐसे हैं जिनका अन्यान्य
−
कामों के लिये पुनः पुनः उपयोग किया जा सकता
−
a |
−
−
बिजली का उपयोग कम करना दूसरी बड़ी
−
आवश्यकता है । दिन में भी बिजली के लैम्प चालू
−
रखना पडे ऐसी भवन रचना फूहड वास्तु का नमूना
−
है। पंखों का, ए.सी. का, कूलर का, पानी
−
शुद्धीकरण का इतना अधिक उपयोग करने से बिजली
−
का संकट निर्माण होता है । इसका हम कितना कम
−
उपयोग कर सकते हैं इसका विचार करना चाहिये ।
−
इस विषय में अपनी कल्पनाशक्ति का उपयोग करना
−
चाहिये ।
−
−
इसी प्रकार वाहन का प्रयोग कम करने के रास्ते
−
ढूँढना चाहिये । घर के नजदीक से ही दूध, सब्जी,
−
अखबार आदि लाने के लिये स्कूटर का प्रयोग नहीं
−
करना चाहिये । विद्यालय आने के लिये साइकिल
−
का प्रयोग ही करना चाहिये । ओटो रिक्षा या स्कूटर
−
पर यदि अकेले जा रहे हैं तो अन्य किसी को साथ में
−
बिठा लेना चाहिये ।
−
−
विद्यालयों में, कार्यालयों में झेरोक्स प्रतियाँ, निमन्त्रण
−
पत्रिका, सूचना पत्रक, सी.डी. हमेशा आवश्यकता से
−
अधिक बनाने का ही प्रचलन हो गया है । इससे
−
अनावश्यक खर्च बढता है ।
−
−
बैठक में जाते समय सूचनापत्रक या कार्यक्रम पत्रिका
−
साथ नहीं ले जाना, थोडा कुछ लिखने के लिये पूरे
−
कागज का प्रयोग करना, पेन या पेन्सिल खो देना
−
अनावश्यक खर्च बढ़ाता है । ऐसी आदतें न बनें इस
−
हेतु शिक्षा की आवश्यकता है ।
−
−
हर कोई वस्तु प्लास्टिक पैकिंग में लाने का या किसी
−
को देने का आग्रह रखना उचित नहीं है । भेंट करने
−
की वस्तुओं को चमकीले कागजों में लपेटना, टेप से
−
उसे चिपकाकर बंद करना और भेंट प्राप्त होते ही
−
उसे फाडकर खोलना और चमकीले कागज को रही
−
−
२४०
−
−
2.
−
−
RY.
−
−
a4.
−
−
शु६,
−
−
Ru.
−
−
RC.
−
−
88.
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
−
−
की टोकरी में फैंकना दारिद्रय के मार्ग पर ही ले जाने
−
वाली बातें हैं ।
−
−
कागज जोडने हेतु स्टेपलर के स्थान पर आलपिन का
−
प्रयोग करना बुद्धिमानी है । इतनी छोटी बात अनेक
−
बडी बडी बातों की ओर ले जाती है यदि वह
−
विचारपूर्वक की at |
−
−
मोबाइल, कम्प्यूटर, इण्टरनेट, टी.वी.का अन्धाधुन्ध
−
उपयोग बुद्धिहीनता का लक्षण है। इनका विडियो
−
गेम्स, चैटिंग, फैसबुक, वॉट्सअप हेतु इतना
−
अधिक प्रयोग मन को सदैव चंचल, उत्तेजित और
−
अस्तव्यस्त रखता है, उससे चिन्तनशीलता का
−
विकास होना असम्भव बन जाता है । पैसा तो खर्च
−
होता ही है ।
−
−
बोलने और सुनने की शक्ति इतनी कम हुई हैं, भवनों
−
की ध्वनिव्यवस्था ऐसी विपरीत है और बाहर के
−
वातावरण में इतना कोलाहल है कि कम संख्या में
−
भी ध्वनिवर्धक यन्त्र का प्रयोग करना पडता है । यह
−
भी एक अनावश्यक खर्च ही है ।
−
−
वर्षभर में प्रयुक्त जूते, कपडे, पुस्तकें, लेखनसामग्री ,
−
नास्ते के डिब्बे, पानी की बोतलें आदि का यदि
−
हिसाब करें तो हम अब तक पूर्ण दिवालिये नहीं हो
−
गये यह बहुत बडा चमत्कार है ऐसा ही लगेगा ।
−
−
एक लिटर पानी पन्द्रह रूपये खर्च करने वाली और
−
उसकी खाली बोतलें धडाधड फैंकने वाली संस्कृति
−
संस्कृति नाम के लायक नहीं है, वह अपसंस्कृति
−
है। संसाधनों की ऐसी बरबादी किसी भी प्रकार से
−
क्षमा करने योग्य नहीं है ।
−
−
किसी भी विषय को सीखने में लगने वाला समय
−
ध्यान देने योग्य विषय है । किसी भी काम को करने
−
में लगने वाला अधिक समय चिन्ता का विषय है ।
−
समय की बचत करना अत्यन्त आवश्यक है ।
−
इसलिये अनावश्यक बातों के लिये समय का
−
अपव्यय नहीं करना चाहिये ।
−
−
किसी वस्तु का जतन नहीं करना, उसे खराब करना,
−
खो देना, तोड़ना, उसका दुरुपयोग करना अधिक
−
�
−
−
............. page-257 .............
−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
वस्तुओं की आवश्यकता निर्माण करता है और
−
परिणामतः खर्च बढता है ।
−
थाली में जूठन नहीं छोड़ना, कपडे गन्दे नहीं करना,
−
विद्यालय की दूरी को गन्दा नहीं करना, कापी के
−
कागज नहीं फाडना, कक्ष से बाहर जाते समय पंखे
−
बन्द करना, एकाग्रतापूर्वक पढना और एक बार में
−
याद कर लेना अच्छी आदते हैं । ये मितव्ययिता की
−
और तथा मितव्ययिता संस्कारी समृद्धि की ओर ले
−
जाती है ।
−
इतना पढ़कर ध्यान में आता है कि हमारी सम्पूर्ण
−
जीवनशैली मितव्ययिता के स्थान पर अपव्ययिता की बन गई
−
है । हम विचारशील नहीं विचारहीन सिद्ध हो रहे हैं । हम
−
समृद्धि की ओर नहीं दरिद्रता की ओर बढ रहे हैं । ऐसा ही
−
चलता रहा तो कोई हमें संकटों से उबार नहीं सकता । हमें
−
बदलना ही होगा । यह बदल विद्यालयों से शुरू होगा ।
−
विद्यालय को विचार और व्यवहार की दिशा बदलनी होगी ।
−
शिक्षकों और विद्यार्थियों के मानस बदलने होंगे ।
−
−
बडा परिवर्तन विद्यालय की व्यवस्थाओं में करना
−
होगा । मध्यावकाश के भोजन, पीने के पानी, पानी की
−
−
२०,
−
−
−
−
निकासी, बैठक व्यवस्था, भवन निर्माण
−
की सामग्री, भवन रचना, हवा और प्रकाश की व्यवस्था
−
आदि बातों में छोटे से लेकर बडे परिवर्तन करने होंगे ।
−
−
विद्यार्थियों के व्यवहार में आग्रहपूर्वक परिवर्तन करना
−
होगा । बालवय में आदतें बनती हैं । उस समय मितव्ययिता
−
की आदतें बनानी होंगी । किशोरवयीन विद्यार्थियों को तर्क
−
से, निरीक्षण से, प्रत्यक्ष प्रमा्णों से मितव्ययिता के लाभ और
−
अपव्ययिता का नुकसान बताना होगा । महाविद्यालयों के
−
विद्यार्थियों से तो मितव्ययिता को लेकर समाज-प्रबोधन की
−
अपेक्षा करनी होगी |
−
−
विद्यालय से शुरू हुआ यह कार्य घर तक पहुँचना
−
आवश्यक है । घर भी अपव्ययिता के केन्द्र बन गये हैं ।
−
घर में तो कमाने वाले का पैसा खर्च होता है परन्तु
−
कार्यालयों में और सार्वजनिक कार्यक्रमों में और किसी ने
−
कमाये हुए पैसे खर्च करने हैं इसलिये बहुत अविचार चलता
−
है । वहाँ भी मितव्ययिता की लहर ले जानी होगी ।
−
−
विचारहीनता के रूप में शीर्षासन कर रहे समाज को
−
पुनः अपने पैरों पर खडा रहना सिखाना विद्यालय की ही
−
जिम्मेदारी बन गई है ।
−
−
विद्यालय की अर्थव्यवस्था
−
−
2. आय
−
−
१, विद्यालय की आय के कितने स्रोत होते हैं ?
−
कौन कौन से ?
−
−
२. विद्यालय में छात्रों से शुल्क कितना लेना
−
चाहिये, यह निर्धारित करने की सही पद्धति
−
कौन सी है ?
−
−
३. विद्यालय के लिये दान और अनुदान
−
स्वीकार करने की नीति एवं मापदंड किस
−
प्रकार के होने चाहिये ?
−
−
४. विद्यालय के लिये अर्थप्राप्ति के और कोई
−
साधन हो सकते हैं क्या ? यदि हाँ, तो किस
−
प्रकार के ?
−
−
५. आवश्यकता से अधिक आय होने की
−
−
र४१
−
−
स्थिति अच्छी है या नहीं ?
−
६. आवश्यकता से अधिक आय का क्या
−
उपयोग कर सकते हैं ?
−
व्यय
−
१, विद्यालय में किन किन बातों पर व्यय होता
−
है?
−
. सभी प्रकार के व्यय का अनुपात कैसा होना
−
चाहिये ?
−
. कम से कम व्यय हो इस प्रकार की व्यवस्था
−
कैसे करें ?
−
.. व्यय एवं गुणवत्ता का क्या सम्बन्ध है ?
−
«+ व्यय एवं विद्यालय की प्रतिष्ठा का क्या
−
सम्बन्ध है ?
−
−
2.
−
�
−
−
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−
−
−
−
६. व्यय के अनुरूप आय
−
होनी चाहिये या आय के अनुरूप व्यय ?
−
आय एवं व्यय के सम्बन्ध में भारतीय एवं
−
पाश्चात्य दृष्टि में क्या अन्तर है ? भारतीय दृष्टि
−
को व्यावहारिक बनाने के लिये क्या क्या कर
−
−
सकते हैं ?
−
विद्यालय संचालन के जो आयव्यय के संबंध में एक
−
गट के साथ चर्चा की उनसे प्राप्त उत्तर ऐसे हैं
−
−
१, सरकार से प्राप्त अनुदान, एवं छात्र का शुल्क,
−
समाज में धनिको से दान आदि विद्यालय की आय के स्रोत
−
बताये गये ।
−
−
2. शिक्षक, ऑफिस कर्मचारी, चतुर्थ स्रेणी
−
कर्मचारीओंका वेतन हो सके इतना शुल्क छात्रों से लेना
−
उचित है यह मत अनुदान न लेनेबाले संचालको का AT |
−
तो जिस बस्ती में विद्यालय है उनकी क्षमता के अनुसार
−
छात्र से शुल्क लेना चाहिये ऐसा भी मत प्राप्त हुआ।
−
−
३. अनुदान तो सरकार की ओर से शर्ते पूर्ण करने पर
−
मिलता है । तथा दान भी आजकल स्वेच्छा से प्राप्त होना
−
कठीन है । अतः प्रवेश के समय अभिभावकों से दान
−
स्वरूप कुछ राशी लेते है यह भी एकने बताया ।
−
−
४. विद्यालय चलाना है तो अर्थ चाहिये इसलिये
−
डोनेशन, छुट्टियों में विद्यालय का मैदान कमरे विवाहमंडली
−
को किराये पर देना, विद्यालय छुटने के बाद ट्यूशन
−
क्लासीस, नृत्य संगीत आदि क्लासिस को किराये से देना,
−
विद्यालय भवन का कुछ हिस्सा बँक दुकान के लिये किराये
−
पर देना ऐसे कई आर्थिक स्रोत हो सकते है ।
−
−
५, ६. आवश्यकता से अधिक आय होने की स्थिति
−
अच्छी है । जितनी आय अधिक उतनी सुविधाए हम
−
अधिक दे सकते हैं । ऐसा उत्तर मिला यदि अधिक आय
−
मिलती तो कुछ गरीब छात्रों को निःशुल्क ver भी सकते
−
यह भी एक महानुभाव का मत रहा ।
−
−
अभिमत
−
−
आज विद्यालय तो ज्ञान के मॉल बन गये है।
−
गणवेश, बस्ता, पुस्तकें, अन्य सारा साहित्य खरिदना
−
−
BBR
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
विद्यालयों में अनिवार्य बना दिया है। कहीं कहीं तो
−
विद्यालयने बच्चों की सुविधा के रूप दिन में बच्चों के लिए
−
केन्टीन खोला है । और विद्यालय के बाद उसे ही होटल
−
का स्वरूप दिया है । नये से भर्ती होने वाले शिक्षको से
−
दान स्वरूप राशी लेना यह आज बडी मात्रा में दिखाई देता
−
है । बाजार जैसी किंबहुना बाजार से निकृष्ट लेनदेन का
−
प्रचलन आज बढ गया है । ऐसे विपरीत वातावरण में कुछ
−
अच्छे निष्ठावान, तत्त्व से चलनेवाले विद्यालय है भी परन्तु
−
उनकी मात्रा नगण्य जैसी ही है । ज्ञानदान का पवित्र कार्य
−
करनेवाले ज्ञानमंदिर हमने ही अपवित्र किये है ।
−
−
विद्यालय अध्ययन और अध्यापन का केन्द्र है यह
−
बात तो सही है फिर भी उसे अर्थ की आवश्यकता तो रहती
−
ही है । विद्यालय भौतिक पदार्थ के उत्पादन या वितरण का
−
केन्द्र तो है नहीं, तो फिर उसका निभाव कैसे होगा ?
−
−
एक के बाद एक मुद्दे का विचार करना चाहिये ।
−
विद्यालय में अर्थ क्यों चाहिये ?
−
−
१, अध्यायन अध्यापन का कार्य अच्छे से अच्छा हो
−
सके इसलिये भवन चाहिये । भवन में विभिन्न प्रकार
−
का फर्नीचर चाहिये । पानी और प्रकाश की सुविधा
−
चाहिये । बगीचा और मैदान चाहिये । ये सारी बातें
−
बहुत अधिक धन की अपेक्षा करती है ।
−
−
विद्यालय में अध्ययन अध्यापन हेतु विभिन्न प्रकार के
−
शैक्षिक उपकरण तथा व्यवस्थायें चाहिये । इनका
−
खर्च एक ही बार नहीं होता । यह आवर्ती खर्च होता
−
है। यह भी पर्याप्त मात्रा में अधिक होता है । साथ
−
ही अनेक प्रकार के कार्यक्रम होते हैं । इन कार्यक्रमों
−
के लिये भी खर्च होता है ।
−
−
सबसे महत्त्वपूर्ण खर्च है शिक्षकों के वेतन का । उन्हें
−
अर्थनिरपेक्ष शिक्षा की दुहाई देकर वेतन नहीं लेने के
−
लिये तो समझाया नहीं जा सकता क्योंकि उनका और
−
उनके परिवार का निर्वाह तो चलना ही चाहिये ।
−
साथ ही उनके गौरव और सम्मान की रक्षा हो ऐसा
−
वेतन भी चाहिये ।
−
�
−
−
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−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
ये तीन तो न्यूनतम खर्च हैं । इन की व्यवस्था हेतु
−
विद्यालय को पास आय की क्या व्यवस्था होती है ?
−
एक तो आय होती है विद्यार्थियों से मिलने वाले
−
शुल्क की । शुल्क के साथ ही विद्यार्थियों की संख्या
−
भी महत्त्वपूर्ण होती है । शुल्क यदि कम रखा जाये
−
तो आय अधिक नहीं होती और शुल्क ऊँचा रखा
−
जाय तो विद्यार्थियों की संख्या कम हो जाने की
−
सम्भावना रहती है फिर भी शुल्क कितना भी अधिक
−
रखा जाय तो भी विद्यालय संचालन का पूर्ण व्यय
−
उससे नहीं होता । बहुत कम ऐसे विद्यालय होते हैं
−
जहाँ बहुत ऊँचे शुल्क से खर्च की पूरा करने की
−
व्यवस्था हो पाती है । अन्यथा शुल्क के साथ ही
−
अन्य उपाय करने होते हैं । अन्य उपाय करने में कोई
−
बुराई नहीं है, see Be उपायों की सराहना ही
−
करनी चाहिये । शुल्क तो जितना कम हो उतना
−
अच्छा ही है ।
−
दूसरा उपाय होता है शासन से अनुदान का । ऐसा
−
एक बडा वर्ग है जहाँ सम्यक खर्च शासन का ही
−
होता है । आईआईटी, आईआईएम जैसे बडे संस्थान
−
अधिकांश. विश्वविद्यालय, अनेक. महाविद्यालय,
−
अधिकांश प्राथमिक विद्यालय शत प्रतिशत सरकारी
−
खर्च से ही चलते है । सरकार यह खर्च प्रजा से जो
−
कर मिलता है उसमें से करती है । अनेक छोटे बडे
−
निजी विद्यालय शासन द्वारा दिये गये आवर्ती अनुदान
−
से चलते हैं ।
−
निजी विद्यालयों का एक बडा वर्ग ऐसा है जिसे
−
शिक्षकों के वेतन हेतु अनुदान मिलता है परन्तु भवन,
−
फर्नीचर तथा अन्य समग्री के लिये स्वयं का पैसा
−
खर्च करना पडता है । तब यह पैसा समाज के दान
−
के रूप में ही मिलता है। ऐसे विद्यालयों का
−
संचालन सार्वजनिक संस्थायें करती हैं । समाज के
−
दानशील लोग इन्हें सहायता करते हैं ।
−
−
जो संस्था के नहीं अपितु सर्वथा निजी मालिकी के
−
विद्यालय या विश्वविद्यालय होते हैं उनकी आर्थिक
−
जिम्मेदारी उस मालिक की ही होती है । परन्तु वे
−
−
२४३
−
−
−
−
शुद्ध बाजार के रूप में ही उन्हें
−
चलाते हैं । अधिकांश ये उद्योजकों की मालिकी के
−
ही होते हैं और उनके उद्योग के एक अंग के रूप में
−
वे चलते हैं। ऐसे विद्यालयों के लिये शुल्क के
−
अतिरिक्त आय का और कोई स्रोत नहीं होता । इन
−
विद्यालयों के मालिक उद्योजक होते हैं, शिक्षक नहीं
−
इसलिये ये विद्यालय कम, उद्योग ही अधिक होते
−
हैं ।
−
−
क्लचचित् ऐसे भी विद्यालय होते हैं जिनके पास
−
पर्याप्त भूमि होती है । इस भूमि पर फलों की अथवा
−
तत्सम पदार्थों की फसल ली जाती है जिससे उन्हें
−
अच्छी आय होती है और उनका निभाव अच्छी तरह
−
होता है। विद्यालय के निभाव हेतु विद्यालय का
−
कोई न कोई व्यवसाय भी होता है । ये विद्यालय
−
वास्तव में अत्यन्त व्यवहावादी कहे जाने चाहिये ।
−
परन्तु ये इनेगिने ही होते हैं। ये सब वर्तमान
−
परिस्थिति का विचार कर अपनाये गये मार्ग हैं ।
−
परन्तु भारतीय दृष्टि से तो विद्यार्थियों ट्वारा दी गई
−
गुरुदक्षिणा, पूर्व छात्रों ट्वारा विद्यालय की ली गई
−
आर्थिक जिम्मेदारी तथा समाज द्वारा दिया गया दान
−
ही विद्यालय का आय का स्रोत होना चाहिये । साथ
−
ही विद्यालय ट्वारा अपनाई गई सादगी, स्वावलम्बन
−
और मितव्ययिता ही सही उपाय है । इन मुद्दों की
−
विस्तारपूर्वक चर्चा इस ग्रन्थ में अन्यत्र की गई हैं
−
इसलिये यहाँ केवल संकेत ही किया है ।
−
−
मूल विचार जानना
−
−
आज के युग में शिक्षा को उद्योग माना जाता है।
−
इसलिये पैसों के संदर्भ में ही इसका विचार किया जाता है।
−
उसको खरीदने बेचने की चीज़ या तो फिर धन कमाने का
−
साधन माना जाता है। इसलिये हर एक चरण पर शुल्क
−
(फीस), वेतन, भत्ता, संचालन व्यवस्था, प्रशासन आदि
−
बातों का संदर्भ लिया जाता है। इस परिप्रेक्ष्य में भारत का
−
विचार मूल से जानने की आवश्यकता है।
−
g. शिक्षा कोई खरीदने की या बेचने की वस्तु नहीं है,
−
�
−
−
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−
−
−
−
यह प्रथम मुद्दा है। शिक्षा समाज को
−
ज्ञाननिष्ठ बनाने की व्यवस्था है। शिक्षा का संबंध
−
बुद्धि, भावना और कुशलता के साथ है। ये तीनों
−
बातें पैसे से पर है। 'पर' का अर्थ अधिक गुणों से
−
युक्त। 'पर' अर्थात् श्रेष्ठ, 'पर' अर्थात् उसके
−
अधिकारक्षेत्र से बाहर की बात । ऐसा होने के कारण
−
शिक्षा की - चाहे वह अध्ययन हो या अध्यापन -
−
कीमत पैसे से आँकी नहीं जा सकती ।
−
−
व्यवहार में भी देखा जाय तो अधिक पैसे देने
−
वाला अधिक ज्ञान पा सकता है यह बात संभव नहीं
−
है। क्योंकि ज्ञान बुद्धि, श्रद्धा, एकाग्रता, संयम,
−
सेवाभावना और साधना से प्राप्त किया जा सकता है।
−
ये सभी योग्यताएँ केवल धनवान के पास हों और
−
निर्धन के पास न हों ऐसा तो होता नहीं । उसी प्रकार
−
अधिक वेतन पाने पर अध्यापक अच्छा पढ़ाएँगे यह
−
समीकरण भी ठीक नहीं है । विद्यार्थीनिष्ठा, समाजनिष्ठा
−
और ज्ञाननिष्ठा के परिणामस्वरूप अध्यापन की
−
कुशलता प्राप्त होती है, पैसों के कारण नहीं।
−
−
अत्यंत सुविधापूर्ण स्थान में बैठ कर ही अच्छा
−
अध्ययन हो सकता है यह बात भी ठीक नहीं ।
−
−
इसलिये विद्यार्थी के लिये फीस, शिक्षकों के लिये
−
वेतन और विद्याकेन्द्रों के लिये भरपूर संचालन व्यय
−
इन सब बातों को हम कभी शिक्षा के साथ जोड़ नहीं
−
सकते । इस प्रकार के संदर्भ पर्याप्त मात्रा में मिलते
−
हैं। अर्थनिरपेक्ष शिक्षातंत्र का विचार ही उचित है।
−
पैसों का संबंध शिक्षा के साथ नहीं है। पैसों का
−
संबंध मनुष्य के साथ है। मनुष्य को आवास, भोजन,
−
वस्त्र इत्यादि आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये पैसों
−
की आवश्यकता रहती है। इसलिये पढ़ने वाले और
−
पढ़ाने वाले दोनों की इन आवश्यकताओं की पूर्ति तो
−
होनी ही चाहिये। भारत में इन बातों की पूर्ति करने
−
का दायित्व समाज का माना गया है। अध्ययन,
−
अध्यापन यह केवल किसी एक व्यक्ति की
−
आवश्यकता नहीं हो सकती; यह पूरे समाज की
−
आवश्यकता है। यदि समाज को सर्वतोमुखी विकास
−
−
रस
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
−
−
चाहिये तो ज्ञाननिष्ठ बनना चाहिये ।
−
इसलिये अध्ययन अध्यापन करने वाले वर्ग के
−
योगक्षेम की चिंता भी करनी ही चाहिये। यह
−
व्यवस्था किसी विशेष परिस्थिति में, आपदूधर्म के
−
रूप में राज्य करता है तो भी अच्छा है। किन्तु
−
सामान्य परिस्थिति में तो समाज करे यही इष्ट है।
−
समाज यह व्यवस्था किस प्रकार करता है इसके
−
वास्तविक उदाहरण हमें इतिहास में मिल सकते हैं।
−
आज के संदर्भ में इस विषय में नये सिरे से विचार
−
करना चाहिये ।
−
अपने पास जो व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करने के लिये
−
आता है, पढ़ने के लिये आता है, उसकी योग्य रूप
−
से परीक्षा करने के बाद अध्यापक उसे पढ़ाने की
−
जिम्मेदारी लेता है। उसके आगे धन विषयक शर्तें
−
नहीं रखता है। किन्तु भारत में एक परंपरा ऐसी भी
−
है, कि हमें जिनसे ज्ञान प्राप्त करना है उनके पास
−
हम खाली हाथ नहीं जा सकते। अपनी अपनी
−
हैसियत के अनुसार पढ़ने वाले को पढ़ाने वाले के
−
लिये कुछ न कुछ लेकर ही जाना होता है। इसके
−
लिये शब्दप्रयोग हुआ है, 'समित्पाणि' । विद्यार्थी को
−
शिक्षक के पास समित्पाणि होकर ही जाना चाहिये ।
−
'समित्' का अर्थ है, 'समिधा' । और 'समिधा' का
−
अर्थ है, यज्ञ में आहुति देने के लिये उपयोग में
−
आने वाली पवित्र लकड़ी । यह एक प्रतीक है।
−
जब यज्ञ संस्कृति पूर्ण विकसित थी तब यज्ञ में
−
आहुति देने योग्य पदार्थ ही अहम माना जाता था।
−
किन्तु इसका लाक्षणिक अर्थ है, गुरु के लिये
−
उपयोगी हो ऐसा कुछ न कुछ लेकर जाना। क्या
−
और कितना लेकर जाना यह बात निश्चित नहीं
−
होती । अपनी अपनी श्रद्धा के अनुसार लेकर जाना
−
यह भी उचित नहीं। श्रद्धा तो सबकी एक समान ही
−
होती है। अपनी अपनी हैसियत के अनुसार लेकर
−
जाना यही उचित है। राजा का बेटा अपनी हैसियत
−
के अनुसार ले जायेगा, निर्धन का बेटा अपनी
−
हैसियत के अनुसार ले जायेगा। दोनों का ज्ञानप्राप्ति
−
�
−
−
............. page-261 .............
−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
का अधिकार समान ही माना जायेगा। अध्यापक के
−
योगक्षेम का यह भी एक साधन माना जा सकता
−
है।
−
उसी प्रकार अध्ययन पूर्ण होने के बाद गुरुदक्षिणा देना
−
यह भी प्रत्येक अध्येता का नैतिक दायित्व माना
−
जाता है। इस दायित्व को भूलने की तो अच्छे
−
विद्यार्थी को कल्पना भी नहीं आती । गुरुदक्षिणा भी
−
शिष्य की हैसियत के अनुसार ही होगी यह एक
−
व्यावहारिक बात है। किसी विशेष परिस्थिति में गुरु
−
की अपेक्षा के अनुसार गुरुदक्षिणा देना भी शिष्य का
−
कर्तव्य बनता है। गुरु भी शिष्य की हैसियत का,
−
सामर्थ्य का विचार करने के बाद ही गुरुदक्षिणा माँगेंगें
−
यह भी एक स्वाभाविक बात है। इस स्थिति में यदि
−
शिष्य गुरु की अपेक्षा के प्रति संदेह करे, या उस
−
अपेक्षा के औचित्य या अनौचित्य का मूल्यांकन करे
−
यह भी कल्पना के परे की बात मानी जायेगी ।
−
−
गुरु जब गुरुदक्षिणा के विषय में अपनी अपेक्षा
−
व्यक्त करते हैं, तब अधिकांश वह सामाजिक हित के
−
विषय की ही बात हो सकती है। गुरु कभी भी
−
व्यक्तिगत रूप से अपने लिये किसी भी बात की
−
अपेक्षा व्यक्त नहीं करते। फिर भी यह अपेक्षा किसी
−
सामाजिक हित के लिये है या किसी व्यक्तिगत स्वार्थ
−
के लिये यह सोचने का काम शिष्य का नहीं है।
−
भारत में गुरुकुल परंपरा रही है। गुरुकुल के अधिष्ठाता
−
को कुलपति कहा जाता है। कुलपति उसे कहते हैं
−
जो दस हजार शिष्यों की शिक्षा और निर्वाह का
−
दायित्व अपने ऊपर ले। इसका वास्तविक अर्थ तो
−
यह हुआ कि पढ़ने वाले की कोई जिम्मेदारी नहीं है।
−
शिक्षा देने की सभी प्रकार की जिम्मेदारी पढ़ाने वाले
−
की ही है। आज के समय में इसकी कल्पना तक
−
करना कठिन है। लेकिन यह काल्पनिक बात नहीं
−
है, यह भी हम सब जानते हैं। अनेक कुलपतियों के
−
नाम भी हम सब जानते हैं। कुलपति किस प्रकार
−
यह व्यवस्था करते होंगे यह एक बहुत बड़ा,
−
−
रण
−
−
−
−
महत्त्वपूर्ण शोध का विषय है ।
−
−
६, केवल गुरुकुल ही नहीं, आश्रम भी चलते थे।
−
आश्रमों में शिष्य भिक्षा माँगने जायेंगे ऐसी व्यवस्था
−
थी। यह भी निर्वाह की एक पद्धति ही है। इस
−
भिक्षातंत्र का नियोजन भी गुरु ही करते थे, किन्तु
−
उसका निर्वाह समाज के आधार पर ही होता था।
−
fiat को विवशता मान लेना अथवा एक
−
तिरस्करणीय कार्य मान लेना यह उसका गलत
−
अर्थघटन होगा । विद्यार्केद्रों के निर्वाह के लिये समाज
−
की सहभागिता होना यह एक मानवीय व्यवस्था मानी
−
जानी चाहिये ।
−
−
9. भारत के शिक्षा के इतिहास में तक्षशिला, नालंदा जैसे
−
बड़े बड़े विद्यापीठों के नाम भी प्रसिद्ध हैं। ये
−
विद्यापीठ विद्याभवन, ग्रंथभांडार, निवास, भोजन
−
जैसी व्यवस्थाओं में समृद्ध थे। ये सभी व्यवस्थाएँ
−
राज्य और समाज के ट्वारा होती थी, किन्तु इसको
−
'अनुदान' नहीं कहा जाता था। अनुदान कहने के
−
साथ ही शर्तें और अधीनता आ जाती है। विद्यीपीठों
−
ने कभी राज्य या समाज की अधीनता का स्वीकार
−
नहीं किया था। अर्थात् समाज अथवा राज्य के
−
द्वारा विद्याकेन्ट्रों का योगक्षेम चल रहा हो तो भी
−
समग्र योजना का सूत्र संचालन अध्यापक के हाथ
−
में ही हो यह भारतीय शिक्षा व्यवस्था की एक
−
विशेषता रही है।
−
ये सभी मुद्दे पर्याप्त शोध और अध्ययन की अपेक्षा
−
−
रखते हैं। साथ ही यह चिंतन का विषय भी है। ये सभी
−
बातें आज के युग में अकल्प्य, अवास्तविक और
−
अव्यावहारिक लग सकती हैं। आज के युग में इस प्रकार
−
की व्यवस्था चलाने का कोई विचार भी नहीं कर सकता ।
−
फिर भी हमें यह भूलना नहीं चाहिये कि अभी अभी तक ये
−
सभी व्यवस्थाएँ हमारे देश में मौजूद थीं। इसलिये
−
अर्थनिरपेक्ष, फिर भी (या तो इसीलिये) टिकाऊ और
−
गुणवत्ता से पूर्ण व्यवस्थाओं के विषय में विचार करने की
−
आवश्यकता है।
−
�
−
−
............. page-262 .............
−
−
−
−
अर्थ द्वारा संचालित तंत्र
−
−
आज सारा विपरीत चित्र दिखाई देता है, इसका मूल
−
कारण आज का बाजारीकरण है । बाजारीकरण का भी मूल
−
कारण हमारी बदली हुई जीवनदृष्टि है । यह जीवनदृष्टि हमारे
−
ऊपर शिक्षा के माध्यम से अंग्रेजों द्वारा थोपी गई है । यह
−
आसुरी जीवनदृष्टि है । इस दृष्टि के अनुसार हमें सारा जगत
−
जड़ दिखाई देता है और कामनाओं की पूर्ति के लिये ही
−
बना है, ऐसा लगता है । भौतिक जगत में सब कुछ जड़
−
पदार्थ ही माना जाता है । जब कामनाओं की पूर्ति ही मुख्य
−
हेतु होता है, तब कामनाओं की पूर्ति के लिये अर्थ ही
−
मुख्य हो जाता है । काम और अर्थ सारी व्यवस्थाओं का
−
संचालन करने लगते हैं । आज वही तो हो रहा है । ज्ञान
−
को भी जड़ पदार्थ माना जाता है और उसे अर्थ से ही नापा
−
जाता है । ज्ञान को जड़ पदार्थ मानकर कामनाओं की पूर्ति
−
हेतु उसका उपयोग करने के लिए सारी व्यवस्था बिठाई
−
जाती है । इसलिये शिक्षा का सारा तन्त्र अर्थ द्वारा संचालित
−
बन गया है । इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है । हमारे
−
an da ad gn dated ad थे, तब जो रचना थी वह
−
अर्थ के द्वारा संचालित होने के कारण से बदल गई है ।
−
अब अध्ययन ज्ञानार्जन के लिये नहीं अपितु अथर्जिन के
−
लिये होता है । जिनमें अधथर्जिन की सम्भावनायें अधिक
−
होती हैं उन विद्याओं के लिये शुल्क अधिक देना पड़ता
−
है । जिनमें अधथर्जिन की सम्भावनायें कम होती हैं उन
−
विद्याओं का शुल्क कम होता है, अतः उन्हें कोई पढ़ना भी
−
नहीं चाहता है । यह मूल कारण बीज के समान है, जिसका
−
वृक्ष भौतिक स्वरूप के ही फल देने वाला होता हैं । इससे
−
सारे व्यवहार, सारी व्यवस्थायें, सारी भावनायें अर्थ प्रधान
−
हो जाती हैं। इसलिये हमें वर्तमान जीवनदृष्टि में ही
−
परिवर्तन करना होगा । वह एक काम करेंगे तो सारी बातें
−
बदल जायेंगी । यह कार्य शिक्षा से ही हो सकता है ।
−
−
जड़वादी, कामकेन्द्री, अर्थप्रधान जीवनदृष्टि से ही
−
सारी समस्यायें निर्माण हुई हैं, और इस समस्या का
−
निराकरण शिक्षा से होगा, यह भी सत्य है । परन्तु यह तो
−
−
अर्थविचार
−
−
२४६
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
एक ऐसा चक्र हुआ जो अनन्त काल तक भेदा नहीं
−
जायेगा । शिक्षा अर्थ प्रधान है इसलिये वह समस्या का
−
समाधान नहीं कर सकती और अर्थ प्रधान जीवनदृष्टि शिक्षा
−
को बदल नहीं सकती । हमारे सामने प्रश्न है कि हम
−
जीवनदृष्टि में परिवर्तन करें कि शिक्षा में ? कहीं से तो
−
TREY करना होगा । हमें जीवनदृष्टि में परिवर्तन करने के
−
स्थान पर शिक्षा में परिवर्तन के साथ ही प्रारम्भ करना
−
होगा । शिक्षा ही सम्यक जीवनदृष्टि देगी ।
−
−
कोई भी काम करने से होता है । शिक्षा को अर्थ
−
निरपेक्ष बनाने के लिये भी हमें प्रयोग करने की योजना
−
बनानी होगी । हमें ऐसे विद्यालय शुरू करने होंगे जो शिक्षा
−
का शुल्क न लेते हों । साथ ही इन विद्यालयों में अर्थ
−
निरपेक्ष शिक्षा की संकल्पना भी सिखानी होगी । ऐसा नहीं
−
किया तो स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होगा ।
−
−
निःशुल्क शिक्षा के प्रयोग
−
−
ऐसी कई वेद पाठशालायें हैं जहाँ छात्रों से शुल्क नहीं
−
लिया जाता है। वनवासी कल्याण आश्रम, विश्व हिन्दू
−
परिषद्, सेवा भारती, विद्या भारती जैसी अनेक संस्थाओं द्वारा
−
गरीब बस्तियों में, वनवासी क्षेत्रों में और नगरों की झुग्गी-
−
झोंपड़ियों में संस्कारकेन्द्र और एकल विद्यालय चलते हैं,
−
जहाँ शुल्क नहीं लिया जाता है । सरकार स्वयं प्राथमिक
−
विद्यालय निःशुल्क ही चलाती है । ये प्राथमिक विद्यालय
−
लाखों की संख्या में हैं और देश के करोड़ों बच्चे इन
−
विद्यालयों में पढ़ते ही हैं । कर्नाटक में हिन्दू सेवा प्रतिष्ठान
−
द्वारा संचालित गुरुकुलों में आवास, भोजन और शिक्षा का
−
शुल्क नहीं लिया जाता है । ऐसे और भी कई उदाहरण होंगे ।
−
अतः निःशुल्क शिक्षा के प्रयोग तो चलते ही हैं । परन्तु
−
इसका परिणाम जैसा हमें अपेक्षित है, ऐसा नहीं हो रहा है ।
−
वेद्विज्ञान गुरुकुल एक आदर्श नमूने के रूप में प्रतिष्ठित है
−
परन्तु उसका अनुसरण अन्यत्र नहीं हो रहा है । विभिन्न
−
संगठनों के द्वारा चलाये जाने वाले संस्कारकेन्द्रों और एकल
−
विद्यालयों को सेवा के प्रकल्प के रूप में और धर्मादाय की
−
�
−
−
............. page-263 .............
−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
व्यवस्था के रूप में देखा जाता है । उनमें पढ़ना प्रतिष्ठा का
−
विषय नहीं माना जाता है । सरकारी विद्यालयों की दशा
−
इतनी खराब है कि कोई उसमें पढ़ना नहीं चाहता है । लोग
−
अधिक पैसा खर्च करके भी निजी संस्थानों द्वारा चलने वाले
−
विद्यालयों में अपने बच्चों को भेजते हैं । शिक्षा पर खर्च करने
−
में लोगों को अथार्जिन के लिये अधिक कष्ट झेलने पढ़ते हैं,
−
कर्जा लेना पड़ता है, गाँवों में लोग अपनी जमीन या आभूषण
−
बेचते हैं परन्तु निःशुल्क शिक्षा लेने के लिये सरकारी
−
विद्यालयों में नहीं जाते । एक ऐसा लोकमत हो गया है कि
−
जो मुफ्त मिलता है, वह गुणवत्तापूर्ण नहीं होता है । इस
−
प्रकार व्यवस्था और लोकमत दोनों क्षेत्रों में उपाय करने की
−
आवश्यकता है ।
−
−
हम निःशुल्क शिक्षा का प्रयोग तो करें ही, साथ ही
−
शिक्षा का क्षेत्र क्यों अर्थनिरपेक्ष होना चाहिये, इसका भी
−
ज्ञान दें ।
−
−
इस प्रश्न का एक और पहलू भी है । शिक्षा अर्थ
−
निरपेक्ष होने का एक पहलू है पढ़ाने के पैसे नहीं लेना ।
−
यह निश्चय तो शिक्षक को करना है । वर्तमान समय में
−
अधथर्जिन ही मुख्य लक्ष्य हो गया हो तब पढ़ाने का पैसा
−
नहीं लेने वाले शिक्षक कहाँ से मिलेंगे ? निःशुल्क शिक्षा
−
के जो भी उदाहरण दिये जाते हैं उनमें छात्रों को शुल्क नहीं
−
देना पड़ता है यह सत्य है परन्तु शिक्षकों को तो वेतन दिया
−
ही जाता है । शिक्षा के क्षेत्र के किसी भी प्रयोग का प्रारम्भ
−
शिक्षकों से ही होना अपेक्षित है । शिक्षक जब तक पढ़ाने
−
के पैसे लेना बन्द नहीं करेगा तब तक शिक्षा अर्थ Acar
−
नहीं हो सकती है । अतः: हमें शिक्षकों को ही यह बात
−
समझानी होगी ।
−
−
ऐसा निश्चय करने के लिये शिक्षक स्वतन्त्र होने
−
चाहिये । पढ़ाने के पैसे नहीं लेने का निश्चय स्वेच्छा से और
−
स्वतन्त्र बुद्धि से ही लिया जा सकता है । आज के नौकरी
−
करने वाले शिक्षक ऐसा निश्चय नहीं कर सकते हैं । आज
−
के शिक्षा क्षेत्र की एक विडम्बना तो यह भी है कि
−
ज्ञानसाधना करने वाले, विद्या प्रीति से प्रेरित होकर इस क्षेत्र
−
में आने वाले शिक्षक ही अत्यन्त अल्प मात्रा में होते हैं ।
−
अधिकांश अधथर्जिन के उद्देश्य से ही आते हैं । उनके लिये
−
−
२४७
−
−
−
−
2८ ५
−
2 ५.
−
−
पढ़ाने का पैसा नहीं लेंगे यह कहना
−
लगभग असम्भव है । अत: हमें शिक्षकों के प्रबोधन की भी
−
योजना बनानी होगी ।
−
−
परन्तु यह काम शिक्षक ही कर सकते हैं । शिक्षक
−
यदि गुरु के रूप में सम्माननीय हैं तो उन्हें और कोई उपदेश
−
नहीं कर सकता है । उन्हें स्वयं प्रेरणा से और स्वयं के
−
दायित्व से ही ऐसा निश्चय करना होगा । यह कैसे हो सकता
−
है ? शिक्षक स्वर्यंप्रेरणा से ऐसा निश्चय कैसे करेगा ? क्या
−
इस बात के लिये नियति पर विश्वास करके प्रतीक्षा करनी
−
पड़ेगी ?
−
−
निःशुल्क शिक्षा एवं शिक्षक
−
−
नियति तो है ही । परन्तु सत्य और तथ्य तो यह भी
−
है कि भारत में आज भी ऐसे शिक्षकों का अभाव नहीं है ।
−
पैसे की अपेक्षा के बिना सेवा करने वाले, ज्ञान को श्रेष्ठ
−
और पवित्र मानने वाले, पढ़ाने के पैसे नहीं लेने वाले
−
अनेक शिक्षक हमारे समाज में हैं । केवल उनकी ओर
−
ध्यान नहीं दिया जाता है । वे भी इस बात को व्यक्तिगत
−
मानकर उसे सामाजिक व्यवस्था बनाने का आग्रह नहीं
−
करते हैं । अब हम यदि इसे व्यापक चर्चा का विषय बनाते
−
हैं और आग्रह भी बढ़ाते हैं तो अनेक शिक्षक निःशुल्क
−
शिक्षा देने के लिये तैयार हो जायेंगे ।
−
−
आज भी अनेक लोग साधु और संन्यासी बनते हैं ।
−
अनेक लोग मन्दिर में सेवा करने हेतु निकल पढ़ते हैं ।
−
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे अनेक संगठनों में लोग प्रचारक
−
बनते हैं । सेवा के प्रतिष्ठानों में लोग निःशुल्क काम करते
−
हैं। शिक्षा के क्षेत्र को बाजार में समाविष्ट कर लिया गया
−
है, इसलिये शिक्षक निःशुल्क नहीं पढ़ाते हैं । यदि शिक्षा
−
क्षेत्र को भी धर्म के अन्तर्गत लाया जाता है और ज्ञानदान
−
को धर्मकार्य माना जाता है तो आज भी शिक्षक निःशुल्क
−
काम करने के लिये तैयार हो जायेंगे । हमें शिक्षा क्षेत्र को
−
ही बाजार से मुक्त करने के प्रयास करने होंगे ।
−
−
इसके साथ ही यह भी सोचना पड़ेगा कि शिक्षक तो
−
निःशुल्क शिक्षा देने के लिये तैयार हो जायेंगे परन्तु उनके
−
निर्वाह का प्रश्न विकट हो जायेगा । एक तो सरकारी
−
�
−
−
............. page-264 .............
−
−
−
−
व्यवस्था में ऐसा हो नहीं सकता है ।
−
वहाँ शिक्षक को न स्वतन्त्रता है न उसके सम्मान की
−
किसीको चिन्ता है । सरकारी da में सब नौकर हैं, सब
−
कर्मचारी हैं, सब सेवक हैं। सारा सरकारी तन्त्र ही
−
मानवीयता निरपेक्ष है। वहाँ बड़े से बड़े अधिकारी भी
−
नौकर ही हैं । इसीलिये तो उसे नौकरशाही कहा जाता है ।
−
इस तन्त्र में शिक्षक स्वेच्छा और स्वतन्त्रता पूर्वक निःशुल्क
−
शिक्षा देने के लिये सिद्ध नहीं हो सकता ।
−
−
निजी विद्यालयों की स्थिति तो इससे भी खराब है ।
−
निजी विद्यालय दो प्रकार के होते हैं । एक प्रकार के
−
विद्यालय सामाजिक सांस्कृतिक संगठनों के द्वारा अथवा
−
सेवाभावी व्यक्तियों के द्वारा चलाये जाते हैं । दूसरे प्रकार के
−
विद्यालय पैसा कमाने की दृष्टि से चलाये जाते हैं । ये भी
−
व्यक्तियों के द्वारा, संस्थाओं के द्वारा अथवा उद्योगगृहों के
−
ट्वारा चलाये जाते हैं। सेवाभावी संस्थाओं अथवा
−
सांस्कृतिक संगठनों के द्वारा चलाये जाने वाले विद्यालयों में
−
शिक्षकों के वेतन तो पहले से ही कम होते हैं । वेतन का
−
मुद्दा तो अलग है, यहाँ भी शिक्षक अपने विषय में निर्णय
−
करने हेतु स्वतन्त्र नहीं है। वह यदि कम वेतन में काम
−
करता है तो भी वह उसकी स्वेच्छा नहीं है, विवशता है ।
−
स्वेच्छा और विवशता में कभी-कभी अन्तर करना असम्भव
−
हो जाता है क्योंकि उसकी परीक्षा करने के अवसर न के
−
बराबर होते हैं । ऐसे शिक्षक पढ़ाने के पैसे न लेने का
−
निश्चय नहीं कर सकते हैं ।
−
−
भारतीय समाज में जब शिक्षा अर्थ निरपेक्ष थी और
−
शिक्षक और छात्र भिक्षा माँगकर अपनी ज़िम्मेदारी पर
−
विद्यालय चलाते थे तब समाज भी अपनी ज़िम्मेदारी समझने
−
वाला था । वह शिक्षकों तथा गुरुकुलों के योगक्षेम की
−
चिन्ता बराबर करता था । आज शिक्षक समाज पर ऐसा
−
भरोसा नहीं कर सकते । सर्व सामान्य रूप से समाज को
−
शिक्षक के प्रति आदर नहीं है और शिक्षकों को समाज पर
−
भरोसा नहीं है । ऐसे परस्पर अविश्वास और अश्रद्धा के
−
वातावरण में अर्थ निरपेक्ष शिक्षा सम्भव नहीं हो सकती ।
−
−
संचालकों के ट्वारा निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था
−
करना एक बात है और शिक्षकों द्वारा पढ़ाने के पैसे नहीं
−
−
रढ४८
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
−
−
लेना सर्वथा भिन्न बात है । सही अर्थ में अर्थनिरपेक्ष शिक्षा
−
तभी बन सकती है जब शिक्षक स्वतन्त्र हो । आज शिक्षक
−
स्वतन्त्र नहीं है । वह चाहे तो भी स्वतन्त्र नहीं हो सकता
−
है। यह मुद्दा शिक्षा की स्वायत्तता के मुद्दे के साथ सीधा
−
जुड़ा हुआ है । स्वायत्तता के मुद्दे की चर्चा स्वतन्त्र रूप से
−
करने की आवश्यकता है । हम वह करेंगे भी । अभी तो
−
इतना कहना सुसंगत है कि बिना स्वायत्तता के शिक्षा अर्थ
−
निरपेक्ष हो नहीं सकती |
−
−
शिक्षक स्वतंत्र होना चाहिए
−
−
शिक्षक स्वतन्त्र होना चाहिये यह बात सत्य है, परन्तु
−
कोई भी व्यवस्था शिक्षक को स्वतन्त्र नहीं बना सकती ।
−
शिक्षक स्वयं स्वतन्त्र होना नहीं चाहता है । स्वतन्त्रता के
−
साथ दायित्व एक सिक्के के दो पहलुओं की तरह जुड़ा है ।
−
स्वतन्त्र होने के लिये शिक्षक को दायित्व का स्वीकार प्रथम
−
करना होगा । दायित्व के साथ-साथ अपने ज्ञानसामर्थ्य और
−
शुद्ध वृत्ति की परीक्षा हेतु नित्यसिद्ध भी रहना होगा ।
−
स्वतन्त्रता दायित्व के साथ-साथ अनेक प्रकार के आहबवानों
−
से भी भरी होती है । अनेक प्रकार की सुरक्षाओं और
−
सुविधाओं का मूल्य चुकाकर ही व्यक्ति स्वतन्त्रता का
−
उपभोग ले सकता है । दायित्व के अभाव में स्वतन्त्रता,
−
स्वच्छन्दता और स्वैरविहार में परिणत हो जाती है।
−
स्वैरविहार अथवा स्वच्छन्द्ता व्यक्ति का अथवा समाज का
−
भला नहीं कर सकते । सुरक्षा और सुविधा का मोह तो
−
स्वतन्त्रता का नाश ही कर देता है । स्वतन्त्रता आध्यात्मिक
−
मूल्य है और व्यक्ति की स्वाभाविक चाह है परन्तु मोह ग्रस्त
−
व्यक्ति उसे समझता नहीं है । आज शिक्षकों की स्थिति ऐसी
−
मोह ग्रस्त हो गई है । वैसे पूरा समाज ही सुरक्षा और सुविधा
−
के आकर्षण में फँसकर मोह ग्रस्त और दुर्बल हो गया है ।
−
इसलिये स्वतन्त्रता का वास्तविक अर्थ और मूल्य समझता ही
−
नहीं है । इस स्थिति में शिक्षक का अर्थ निरपेक्ष शिक्षा का
−
पुरोधा होना अत्यन्त कठिन है ।
−
−
प्रश्न गम्भीर है। सरकार, शिक्षा संस्थाओं के
−
संचालक, समाज, शैक्षिक संगठन, स्वयं शिक्षक आदि
−
शिक्षा के साथ जुड़ा एक भी पक्ष अर्थ निरपेक्ष शिक्षा का
−
�
−
−
............. page-265 .............
−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
वास्तविक अर्थ ध्यान में नहीं ले रहा है। शिक्षा अर्थ
−
−
−
−
निरपेक्ष हो यह समाज के भले के लिये अनिवार्य है परन्तु
−
वह कार्य अत्यन्त कठिन है। कठिन ही नहीं, हमें तो
−
असम्भव सा लगता है ।
−
−
अनुवर्ती योजना हेतु विचारणीय बिन्दु
−
−
इसलिये मुद्दा गम्भीर है, शान्ति से, धैर्य के साथ और
−
−
स्पष्टता पूर्वक हमें विषय पर सांगोपांग विचार करना
−
चाहिये । चिन्तन और अनुवर्ती योजना हेतु कुछ बातें
−
विचारणीय है ।
−
−
भारत में परम्परा से शिक्षा अर्थ निरपेक्ष रही है ।
−
उसके पीछे विचार की जो पार्थभूमि रही है, उसका
−
उल्लेख प्रारम्भ में हुआ है। उसे फिर से संक्षेप में
−
कहें तो -
−
−
ज्ञान पवित्र है, श्रेष्ठ है, अर्थ से ऊपर है इसलिए
−
उसे अर्थ से परे ही रखना चाहिये ऐसी कल्पना हमारे
−
यहाँ रही है ।
−
ज्ञान और अर्थ दो भिन्न स्वरूप की बातें हैं । अर्थ
−
भौतिक क्षेत्र का हिस्सा है जबकि ज्ञान का क्षेत्र
−
अभौतिक है । वह मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक
−
क्षेत्र में विहार करता है । दोनों का स्वभाव भिन्न है,
−
व्यवहार की पद्धति भिन्न है । इस कारण से भी शिक्षा
−
का क्षेत्र अर्थ निरपेक्ष रहना चाहिये ऐसी सहज समझ
−
हमारे समाज में विकसित हुई थी ।
−
शिक्षा अपने स्वयं के विकास के लिये तो अनिवार्य
−
रूप से आवश्यक है ही, साथ ही वह समाजसेवा का
−
बहुत बड़ा क्षेत्र है । यह शिक्षक और समाज इन दोनों
−
की साझेदारी में ही चल सकता है, किसी तीसरी इकाई
−
की आवश्यकता नहीं होनी चाहिये ऐसी व्यापक
−
धारणा शिक्षक और समाज दोनों की बनी हुई थी ।
−
स्वायत्तता की कल्पना इतनी स्वाभाविक थी कि
−
जिसका काम है वह अपने ही बलबूते पर करेगा, यह
−
अपेक्षित ही था ।
−
कोई भी अच्छा कार्य, फिर चाहे व्यक्तिगत साधना,
−
तपश्चर्या या सेवा का हो तो भी समाज उसके योगक्षेम
−
−
BSB
−
−
−
−
की चिन्ता करना अपना धर्म
−
समझता था । काम करने वाले को भी ऐसा विश्वास
−
था।
−
−
कुल मिलाकर ध्येयनिष्ठा, उच्च लक्ष्य सिद्ध करने के
−
लिये परिश्रम करने की वृत्ति और अवरोधों को पार
−
करने का साहस लोगों में अधिक था । जीवन की
−
सार्थकता के मापदण्ड भौतिक कम और मानसिक,
−
बौद्धिक और आत्मिक अधिक थे ।
−
−
−
−
शिक्षा का रमणीयवृक्ष
−
−
इस आधार पर भारत में समाजव्यवस्था बनी हुई थी
−
और शिक्षाव्यवस्था उसीका एक अंग थी । हमारा
−
इतिहास बताता है कि ऐसी व्यवस्था सहस्रों वर्षों तक
−
चली । धर्मपालजी की पुस्तक “रमणीय वृक्ष' में
−
अठारहवीं शताब्दी की भारतीय शिक्षा का वर्णन
−
मिलता है । उसके अनुसार उस समय भारत में पाँच
−
लाख प्राथमिक विद्यालय थे और उसी अनुपात में
−
उच्च शिक्षा के केन्द्र थे परन्तु शिक्षकों को वेतन,
−
छात्रों के लिये शुल्क और राज्य की ओर से अनुदान
−
की कोई व्यवस्था नहीं थी । हाँ, मन्दिरों और धनी
−
लोगों से दान अवश्य मिलता था । राज्य भी योगक्षेम
−
की चिन्ता करता था । अर्थ व्यवस्था शिक्षक की
−
स्वतन्त्रता और ज्ञान की गरिमा का मूल्य चुकाकर
−
नहीं होती थी ।
−
−
परन्तु अठारहवीं शताब्दी में अंग्रेजों ने इस देश की
−
शिक्षा व्यवस्था में चंचुपात करना प्रारम्भ किया और
−
स्थितियाँ शीघ्र ही बदलने लगीं । अंग्रेजों की
−
जीवनदृष्टि जड़बादी थी । पूर्व में वर्णन किया है उस
−
प्रकार आसुरी थी । भारत धर्मप्रधान जीवनदृष्टि वाला
−
देश था परन्तु वे अर्थ प्रधान जीवनदृष्टि वाले थे ।
−
अत: उन्होंने ज्ञान को भी भौतिक पदार्थ प्राप्त करने
−
का साधन मानकर उसके साथ वैसा ही व्यवहार शुरू
−
किया । उन्होंने शिक्षा के तन्त्र को राज्य के अधीन
−
बनाया और शिक्षा को आर्थिक लेनदेन के व्यवहार में
−
जोड़ दिया । शिक्षा के क्षेत्र में अर्थ विषयक
−
�
−
−
............. page-266 .............
−
−
−
−
समस्याओं और विपरीत स्थितियों के
−
मूल में यह जीवनदृष्टि है ।
−
−
अंग्रेजों का भारत की शिक्षा के साथ खिलवाड़ सन
−
१७७३ से शुरू हुआ । बढ़ते-बढ़ते सन १८५७ में
−
वह पूर्णता को प्राप्त हुआ, जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी
−
के द्वारा भारत में तीन विश्वविद्यालय प्रारम्भ हुए ।
−
इसके साथ ही भारत की शिक्षा का अंग्रेजीकरण पूर्ण
−
हुआ । १९४७ में जब हम स्वाधीन हुए तब तक
−
यही व्यवस्था चलती रही । लगभग पौने दो सौ वर्षों
−
के इस कालखण्ड में भारतीय शिक्षा व्यवस्था का पूर्ण
−
रूप से अंग्रेजीकरण हो गया । हमारी लगभग दस
−
पीढ़ियाँ इस व्यवस्था में शिक्षा प्राप्त करती रहीं । कोई
−
आश्चर्य नहीं कि स्वाधीनता के बाद भी भारत में यही
−
व्यवस्था बनी रही । शिक्षा तो क्या स्वाधीनता के
−
साथ भारत की कोई भी व्यवस्था नहीं बदली |
−
कारण स्पष्ट है, उचित अनुचित का विवेक करने
−
वाली बुद्धि ही अंग्रेजीयत से ग्रस्त हो गई थी और
−
कामप्रधान दृष्टि के प्रभाव में मन दुर्बल हो गया था ।
−
भारत की व्यवस्थाओं में परिवर्तन नहीं होना समझ में
−
आने वाली बात है । आश्चर्य तो इस बात का होना
−
चाहिये कि पौने दोसौ वर्षों की ज्ञान के क्षेत्र की
−
दासता के बाद भी भारत में स्वत्व का सम्पूर्ण लोप
−
नहीं हो गया । विश्व में इतनी बलवती जिजीविषा से
−
युक्त देश और कोई नहीं है । इसलिये विवश और
−
दुर्बल बन जाने के बाद भी अन्दर अन्दर हम भारतीय
−
स्वभाव को जानते हैं और मानते भी हैं । इस कारण
−
से तो हम अभी कर रहे हैं वैसी चचर्यिं देश में
−
स्थान-स्थान पर चलती हैं। अंग्रेजों द्वारा समाज
−
जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में ढाये गये कहर को
−
पहचानने और समझने का प्रयास चल रहा है और
−
art gene fren की गाड़ी पुनः भारतीयता की
−
अपनी पटरी पर लाने का कार्य चल रहा है ।
−
−
हमने यदि मूल को ठीक से जान लिया तो हमारे
−
प्रयास की दिशा और स्वरूप ठीक रहेगा । इसी दृष्टि
−
से कुछ बातों को फिर से कहा है । अब हमारा मुख्य
−
−
२५०
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
−
−
काम है, शिक्षा को अर्थ निरपेक्ष बनाने के साथ-साथ
−
उसकी अर्थ व्यवस्था का सम्यक् स्वरूप निर्धारित
−
करना।
−
−
सर्व प्रथम काम, हमें शिक्षकों के साथ करना होगा ।
−
शिक्षा का क्षेत्र शिक्षकों का है । वह उनकी ज़िम्मेदारी
−
से चलना चाहिये । उनमें दायित्वबोध जगाने का
−
महत्त्वपूर्ण कार्य करना चाहिये । इसका दूसरा पक्ष है,
−
शिक्षकों के विषय में गौरव और आदर निर्माण करना ।
−
प्रथम शिक्षकों के हृदय में शिक्षा के कार्य के प्रति,
−
शिक्षा के व्यवसाय के प्रति आदर होना आवश्यक है ।
−
हम एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और श्रेष्ठ कार्य कर रहे हैं,
−
ऐसा भाव भी जागृत होना चाहिये । समाज के मन में
−
भी शिक्षा के प्रति और शिक्षकों के प्रति आदर की
−
भावना निर्माण करना आवश्यक है ।
−
−
मूले कुठाराघात आवश्यक है
−
−
व्यवस्था की दृष्टि से हमें शिक्षा का अथर्जिन के साथ
−
जो सम्बन्ध बना है, वह समाप्त कर देना चाहिये ।
−
यह वर्तमान शिक्षाव्यवस्था में मूले कुठाराघात होगा ।
−
परन्तु मूल में ही आधात किये बिना अर्थव्यवस्था
−
ठीक नहीं होगी । जब शिक्षा ग्रहण करने के बाद
−
नौकरी नहीं मिलेगी तब ज्ञानार्जन के लिये शिक्षा
−
ग्रहण करने हेतु ही छात्र इसमें आयेंगे । शिक्षा संख्या
−
के भारी बोझ से मुक्त हो जायेगी । सारे विद्यालयीन
−
पाठयक्रम और अन्य गतिविधियों में भारी परिवर्तन
−
आयेगा । शिक्षा का क्षेत्र परिष्कृत होगा । शिक्षाक्षेत्र
−
को ज्ञान का क्षेत्र बनाने हेतु ऐसा करना अनिवार्य
−
a |
−
−
अथर्जिन व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन का
−
आवश्यक हिस्सा है । श्रेष्ठ समाज समृद्ध होता है ।
−
समाज की समृद्धि आवश्यक भौतिक वस्तुओं के
−
उत्पादन पर निर्भर करती है । अथर्जिन को उत्पादक
−
व्यवसाय के क्षेत्र के साथ जोड़ना चाहिये । उत्पादन
−
के लिये जो निर्माण क्षमता और कुशलता चाहिये वह
−
भी सीखने से ही आती है । उसे हम अर्थकरी शिक्षा
−
�
−
−
............. page-267 .............
−
−
−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
−
−
का नाम दे सकते हैं । अर्थकरी शिक्षा शिक्षाक्षेत्र का योगक्षेम चलना ही है, उसे चैन
−
−
−
−
नहीं अपितु औद्योगिक क्षेत्र का अंगभूत हिस्सा होनी नहीं, आश्वस्ति चाहिये, उसने सादगी का ठेका लिया
−
चाहिये । आजकी भाषा में जिसे व्यावसायिक शिक्षा हुआ है । यही शिक्षक का धर्म है । उसे समाज पर
−
कहते हैं वह वास्तव में अर्थकरी शिक्षा है । विश्वास रखना है और समाज को विश्वास करने योग्य
−
०". शिक्षा को अर्थ से मुक्त कर धर्म के साथ जोड़ना बनाना है । शिक्षक अपने मूल स्वरूप में गुरु है ।
−
चाहिये । धर्म को समाज जीवन का नियन्त्रक आयाम गुरु बड़ा होता है । वह सम्मान का तो अधिकारी है
−
बनाना चाहिये । आज यह बात अत्यन्त दुष्कर है, यह परन्तु कर्तव्य भी उसका सबसे बड़ा होता है।
−
सत्य है । धर्म को ही आज इतना विवाद का विषय इसलिये इसका तो कोई विकल्प है ही नहीं ।
−
बना दिया गया है कि कोई धर्म का नाम लेने में ही... *. शिक्षकों के साथ-साथ शिक्षा हेतु अनेक उपकरण
−
अपराध बोध का अनुभव करेगा । परन्तु सत्य बात और भौतिक व्यवस्थाओं की भी आवश्यकता होती
−
कितनी भी कठिन हो तो भी करनी ही चाहिये । धर्म है । उदाहरण के लिये विद्यालय का भवन चाहिये,
−
को ही विवादों से मुक्त कैसे करना, इसकी चर्चा हम बैठने की, तापमान नियन्त्रण की, पानी आदि की
−
स्वतन्त्र रूप से करेंगे । अभी तो इतना कहना पर्याप्त है सुविधायें चाहिये । शैक्षिक साधन-सामग्री भी
−
कि शिक्षा को धर्मानुसारी बनाने से वह अनेक प्रकार चाहिये । इसकी क्या व्यवस्था हो ? वास्तव में यह
−
के अनिष्टकारी, अनुचित बन्धनों से मुक्त होगी । ज़िम्मेदारी विद्यालय के पूर्व छात्रों की है । विद्यालय
−
०. शिक्षा को धर्म की अनुसारिणी बनाने से अर्थ का क्षेत्र का शिक्षाक्रम ही ऐसा हो जिससे छात्रों को
−
भी धर्म के नियमन में आयेगा । यदि वह अपने आप गुरुदक्षिणा की संकल्पना ठीक से समझ में आये और
−
नहीं आता है तो उसे धर्म के नियन्त्रण में लाने की स्वीकार्य बने । शिक्षाक्रम यदि ठीक रहा तो पूर्व छात्र
−
व्यवस्था करनी होगी । अर्थ के साथ-साथ शिक्षा को विद्यालय को कभी भी अभाव में रहने नहीं देंगे ।
−
राज्य के नियन्त्रण से भी मुक्त करवानी होगी । जिस प्रकार परिवार में सन्तानें अपने मातापिता को
−
−
आभावों में नहीं रहने देती और उनकी सेवा करना
−
−
शिक्षक के योगक्षेम का प्रश्र अपना धर्म समझती हैं, उसी प्रकार पूर्व छात्र अपने
−
−
© इसके बाद शिक्षक के योगक्षेम का प्रश्न आता है । शिक्षकों और अपने विद्यालय को अभाव में न रहने
−
शिक्षक को वैभवी जीवन के आकर्षण से मुक्त तो दें । यह एक आदर्श व्यवस्था है ।
−
होना ही पड़ेगा । विद्या ही उसका धन है, वाणी ही इस सन्दर्भ में अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय
−
उसका आभूषण है, इस बात का स्वीकार उसे करना का उदाहरण ध्यान देने योग्य है । हार्वर्ड विश्वप्रसिद्ध
−
ही होगा । सादगी, संयम, साधना, तपश्चर्या को श्रेष्ठ विश्वविद्यालय है । वह शासन से कोई अनुदान
−
अपनाने का और कोई विकल्प नहीं है । ये ही धर्म नहीं लेता है । उसकी सारी अर्थव्यवस्था उसके पूर्व
−
को भी प्रतिष्ठित करते हैं। ये ही ज्ञान को भी छात्र ही सँभालते हैं । ये छात्र विश्वभर में फैले हुए
−
प्रतिष्ठित करते हैं । क्या शिक्षक को पत्नी और हैं। व्यवसाय के क्षेत्र में उन्होंने नाम और दाम
−
परिवार नहीं होता, क्या उसे भी चैन से रहने का कमाये हैं । परन्तु अपने विश्वविद्यालय हेतु धनदान
−
अधिकार नहीं है, क्या उसने ही सादगी का ठेका करना अपना धर्म मानते हैं । यदि आज के जमाने
−
लिया है ? ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं । स्वयं शिक्षक भी में अमेरिका जैसे देश में यह सम्भव है तो भारत तो
−
ऐसे प्रश्न पूछते हैं । ये प्रश्न स्वाभाविक हैं । उत्तर यह स्वभाव से ही जिससे ज्ञान मिला उसका करण मानने
−
है कि हाँ, उसका घर परिवार होता है, उसका वाला है। गुरुदक्षिणा की संकल्पना उसे सहज
−
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−
−
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
−
−
स्वीकार्य होगी ।. गुरुदक्षिणा की निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था देखते ही a aa
−
परम्परा को पुन: जीवित करना होगा । संस्कार जाग उठे और उन्होंने दक्षिणा देने का
−
०. साधन-सामग्री के सम्बन्ध में एक बात और आग्रह शुरू किया । अत: आचार्यों ने दक्षिणा पात्र
−
विचारणीय है । वर्तमान सन्दर्भ में साधन-सामग्री और रख दिया । जो लोग शुल्क के रूप में इक्यावन
−
सुविधाओं की मात्रा बहुत कम करने की आवश्यकता रुपये देते थे उन्होंने दक्षिणा के रूप में दोसौ
−
है । वास्तव में इनके कारण से ही आज शिक्षा महँगी grad रुपये दिये । यह कलियुग की इक्कीसवीं
−
हो गई है । ज्ञानार्जन का सिद्धान्त तो स्पष्ट कहता है शताब्दी का ही उदाहरण है । क्या यह इस बात का
−
कि अध्ययन हेतु साधनों की नहीं साधना की संकेत नहीं है कि समाज आज भी गुणग्राही है !
−
आवश्यकता होती है । यदि छात्रों को साधना करना हाँ, इक्यावन के स्थान पर दोसौ इक्यावन मिलते हैं
−
सिखाया जाय तो अनेक अतिरिक्त खर्चे बन्द हो इसलिये ही जो निःशुल्क शिक्षा की सिद्धता करेगा
−
जायेंगे । ज्ञानार्जन के विषय में हमने इस ग्रन्थमाला उसे तो कदाचित इक्यावन भी नहीं मिलेंगे । मूल्य
−
के प्रथम खण्ड में विस्तार से चर्चा की है, इसलिये पैसे का नहीं, निरपेक्षता का है ।
−
पुनरावर्तन की आवश्यकता नहीं है । ०. अत: निःशुल्क शिक्षा का प्रयोग साहस पूर्वक करना
−
०. इस सन्दर्भ में एक उदाहरण और है । गुजरात के चाहिये ।
−
सूरत में समग्र विकास का विद्यालय wane) *. किसी भी बड़े कार्य का प्रारम्भ छोटा ही होता है ।
−
वहाँ समर्थ भारत केन्द्र भी चलता है । इस केन्द्र में अत: शिक्षकों के एक छोटे गट ने इस प्रकार की
−
समर्थ बच्चों को जन्म देने हेतु माता-पिता को समर्थ व्यवस्था का प्रयोग प्रारम्भ करना चाहिये । परन्तु
−
बनने की शिक्षा दी जाती है। यह एक अभिनव इस संकल्पना की विद्वानों में, छात्रों में, शासकीय
−
प्रयोग है। इस केन्द्र में भारतीय परम्परा का अधिकारियों में और आम समाज में चर्चा प्रसृत
−
अनुसरण करते हुए कोई शुल्क नहीं लिया जाता । करने की अतीव आवश्यकता है । यदि सर्वसम्मति
−
परन्तु गर्भाधान आदि संस्कार करने हेतु यज्ञ आदि नहीं हुई तो यह प्रयोग तो चल जायेगा । ऐसे तो
−
करने के लिये जो सामग्री उपयोग में लाई जाती है अनेक एकसे बढ़कर एक अच्छे प्रयोग देशभर में
−
उस खर्च की भरपाई करने की दृष्टि से इक्यावन चलते ही हैं । परन्तु व्यवस्था नहीं बदलेगी । हमारा
−
रुपये की राशि ली जाती थी । माता-पिता यह राशि लक्ष्य प्रयोग करके सन्तुष्ट होना नहीं है, व्यवस्था में
−
खुशी से देते भी थे । परन्तु एक बार आचार्यों के परिवर्तन करने का है ।
−
मन में विचार आया कि इतनी सी राशि लेकर... *. शिक्षा के साथ जुड़े हुए तो ये सारे वर्ग हैं परन्तु
−
निःशुल्क शिक्षा की संकल्पना को क्यों दूषित करें । उसका केन्द्रवर्ती स्थान और केन्द्रवर्ती दायित्व शिक्षक
−
यह राशि भी समाज से प्राप्त कर लेंगे । ऐसा विचार का ही है । जिस दिन इस देश का शिक्षक अपने
−
कर उन्होंने इक्यावन रुपये की राशि लेना बन्द आपको इस कार्य के लिये प्रस्तुत करेगा उस दिन से
−
किया । दूसरी ओर जिन पर संस्कार होता था उन शिक्षा की अर्थव्यवस्था और समग्र शिक्षाक्षेत्र ठीक
−
माता-पिता को लगा कि हमारे भावी बालक को पटरी पर आ जायेगा यह निश्चित है । हमारा इतिहास
−
समर्थ बनाने वाले संस्कार हम बिना दक्षिणा दिये और हमारी परम्परा भी यही कहती है ।
−
−
कैसे करवा सकते हैं । कोई भी वस्तु मुफ्त में नहीं
−
लेना, यह भारतीय मानस तो है ही । वर्तमान शिक्षा के नाम पर अनावश्यक खर्च
−
परिप्रेश्य में उसका विस्मरण हुआ है। परन्तु पढ़ने के लिये जो अनावश्यक खर्च होता है उसके
−
−
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−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
सम्बन्ध में भी विचार करना चाहिये । आज कल ऐसी बातों
−
पर अनाप-शनाप खर्च किया जाता है जिन पर बिलकुल
−
ही खर्च करने की आवश्यकता नहीं है । उदाहरण के लिये
−
छोटे बच्चे जब लेखन सीखना प्रारम्भ करते हैं तब आज
−
क्या होता है इसका विचार करें । रेत पर उँगली से भी “अ'
−
लिखा जाता है, भूमि पर खड़िया से भी “अ' लिखा जाता
−
है, पत्थर की पाटी पर लेखनी से “अ' लिखा जाता है,
−
कागज पर कलम से “अ' लिखा जाता है, संगणक के पर्दे
−
पर भी “अ' लिखा जाता है । रेत पर ऊँगली से लिखने में
−
एक पैसा भी खर्च नहीं होता है, जबकि संगणक पर हजारों
−
रुपये खर्च होते हैं । एक पैसा खर्च करो या हजार, लिखा
−
तो “अ' ही जाता है। उँगली से लिखने में अ' का
−
अनुभव अधिक गहन होता है । शैक्षिक दृष्टि से वह अधिक
−
अच्छा है और आर्थिक दृष्टि से अधिक सुकर । फिर भी
−
आज संगणक का आकर्षण अधिक है । लोगों को लगता
−
है कि संगणक अधिक अच्छा है, पाटी पर या रेत पर
−
लिखना पिछड़ेपन का लक्षण है । यह मानसिक रुग्णावस्था
−
है जो जीवन के हर क्षेत्र में आज दिखाई देती है । संगणक
−
बनाने वाली कम्पनियाँ इस अवस्था का लाभ उठाती हैं
−
और विज्ञापनों के माध्यम से लोगों को और लालायित
−
करती हैं । सरकारें चुनावों में मत बटोरने के लिये लोगों को
−
संगणक का आमिष देते हैं और बड़े-बड़े उद्योगगृह ऊँचा
−
शुल्क वसूलने के लिये संगणक प्रस्तुत करते हैं । संगणक
−
का सम्यकू उपयोग सिखाने के स्थान पर अन्र-तन्र-सर्वश्र
−
संगणक के उपयोग का आवाहन किया जाता है । संगणक
−
तो एक उदाहरण है । ऐसी असंख्य बातें हैं जो जरा भी
−
उपयोगी नहीं हैं, अथवा अत्यन्त अल्प मात्रा में उपयोगी हैं,
−
परन्तु खर्च उनके लिये बहुत अधिक होता है । ऐसे खर्च के
−
लिये लोगों को अधिक पैसा कमाना पड़ता है, अधिक पैसा
−
कमाने के लिये अधिक कष्ट करना पड़ता है और अधिक
−
समय देना पड़ता है । इस प्रकार पैसे का एक दुष्ट चक्र शुरू
−
होता है, एक बार शुरू हुआ तो कैसे भी रुकता नहीं है
−
और फिर शान्ति से विचार करने का समय भी नहीं रहता
−
है।
−
−
२५३
−
−
−
−
अत: शिक्षा के विषय में
−
तत्त्वचिन्तन के साथ-साथ इन छोटी परन्तु दूरगामी परिणाम
−
करने वाली बातों को लेकर चिन्ता करने की आवश्यकता
−
है । ऐसी कोई कार्य योजना बननी चाहिये ताकि लोगों को
−
इन निर्र्थक और अनर्थक उलझनों से छुटकारा मिले ।
−
−
शिक्षा में और एक विषय में कुल मिलाकर व्यर्थ खर्च
−
होता है । ऐसे कितने ही लोग हैं जो पढ़ते तो हैं स्नातक
−
अथवा स्नातकोत्तर पदवी प्राप्त करने तक परन्तु काम करते
−
हैं बैंक में या सरकारी अथवा गैरसरकारी कार्यालय में
−
बाबूगिरी का । उन्होंने बाबूगिरी की कोई शिक्षा प्राप्त नहीं
−
की होती है, दूसरी ओर इतिहास, भाषा या संस्कृत पढ़ने
−
का बाबूगिरी में कोई उपयोग नहीं है । इंजीनियर की शिक्षा
−
प्राप्त करने पर वे काम इंजीनियरिंग का नहीं करते हैं ।
−
शिक्षा प्राप्त करते हैं आयुर्विज्ञान की परन्तु काम चिकित्सा
−
के क्षेत्र में नहीं करते हैं, कला या साहित्य के क्षेत्र में करते
−
हैं । कई महिलायें डॉक्टरी की पढ़ाई के बाद चिकित्सा नहीं
−
करती हैं । यह तो बाजार के नियम के विस्द्ध है । एक-एक
−
छात्र की शिक्षा के लिये उसके माता-पिता के तथा सरकार
−
के बहुत पैसे खर्च होते हैं । परन्तु छात्र पर उसकी भरपाई
−
करने का दायित्व नहीं दिया जाता है । इस सन्दर्भ में तर्क
−
दिया जाता है कि ज्ञान-ज्ञान है, उसे अथर्जिन के मापदण्ड
−
से नहीं नापा जाना चाहिये । परन्तु यह तो ज्ञानार्जन और
−
अथर्जिन के सन्दर्भों का घालमेल है । यदि ज्ञानार्जन ही
−
करना है तो पूर्ण रूप से ज्ञानार्जन के ही नियम लागू करने
−
चाहिये । अधथर्जिन करना है तो अधथर्जिन के नियम लागू
−
करने चाहिये । दोनों का मिश्रण करने से अन्ततोगत्वा व्यक्ति
−
और समाज की आर्थिक हानि ही होती है । आज समाज में
−
इस बात की इतनी अव्यवस्था छाई है कि उससे होने वाली
−
हानि का कोई हिसाब नहीं है ।
−
−
शिक्षा को बाजारीकरण से मुक्त करना
−
−
sat ven was, se, aes, विद्यालय में
−
पानी, पंखे, मेज-कुर्सी आदि अनेक बातें ऐसी हैं जिन्हें
−
लेकर बेसुमार खर्च होता है । ट्यूशन और कोचिंग भी भारी
−
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−
−
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
−
−
खर्च करवाते हैं । कई इण्टरनेशनल अपव्यय है । छात्रों को पढ़ाई के अलावा और किसी भी
−
स्कूलों का प्राथमिक विद्यालयों का शुल्क एक लाख रुपये. बात के लिये समय ही नहीं मिलता है । इसमें से और
−
के लगभग होता है । जो भी लोग इस खर्च के निमित्त बन... अनेक अनिष्टों का जन्म होता है ।
−
−
रहे हैं वे सब भगवती सरस्वती के और समाज के अपराधी संपूर्ण विषय का सारसंक्षेप यही है कि शिक्षा के
−
हैं। ज्ञान के क्षेत्र के ये बड़े कंटक हैं । इन कंटकों का... आर्थिक पक्ष की जो दुरवस्था है, वह लगता है उससे भी
−
उपाय करने की आवश्यकता है । भीषण है । हिमशिला की तरह दिखाई देने वाले हिस्से से न
−
−
एक बार शिक्षा का बाजारीकरण हुआ तो ये सारी. दिखाई देने वाला हिस्सा नौ गुना अधिक है । परन्तु यह
−
बातें अपने आप जन्म लेती हैं । बाजारीकरण से शिक्षा... केवल आर्थिक पक्ष का ही विचार करने से हल होने वाला
−
विकृत हो गई है । उसने अपना स्वाभाविक रूप ही खो... मामला नहीं है । शिक्षा की स्वायत्तता का मुद्दा भी इसीके
−
दिया है । परन्तु इन संकटों के साथ एक-एक कर लड़ने से... साथ जुड़ा हुआ है । अर्थशास्त्र की शिक्षा का विषय भी
−
समस्या हल नहीं होगी । किसी विषवृक्ष के पत्ते या फूलों. इसके साथ जुड़ा हुआ है । अर्थशास्त्र की शिक्षा के बारे में
−
को एक के बाद एक तोड़ने से या टहनियाँ काटने से... भी हमें इस सन्दर्भ को लेकर विचार करना होगा । लोकमत
−
विषवृक्ष नष्ट नहीं होता है । अभी हम जिन बातों की चर्चा... परिष्कार का क्षेत्र भी बहुत समय और शक्ति की अपेक्षा
−
कर रहे हैं, वे बाजारीकरण रूपी विषवृक्ष की टहनियाँ, फूल. करेगा । इस प्रकार इस विषय के अनेक पहलू हैं । हम
−
और पत्ते हैं । जिस प्रकार पत्ते आदि असंख्य होते हैं उसी. यथासमय, यथास्थान उनका विचार करने ही वाले हैं,
−
प्रकार ये उदाहरण भी असंख्य हैं । जिस प्रकार एक टहनी .. अधिक विस्तार से और अधिक विशदता से करने वाले हैं ।
−
काटो तो दूसरी निकल आती है, कई बार तो एक के स्थान... अत: शान्त और स्वस्थ मन से अपना स्वाध्याय करने में
−
पर एक से अधिक आती हैं उसी प्रकार आर्थिक अनाचार . आप सब प्रवृत्त हों, यही अपेक्षा है ।
−
का एक किस्सा निपटाओ तो और अनेक नये किस्से पैदा
−
होंगे । बाजारीकरण के वृक्ष का बीज है वही जड़वादी,
−
अनात्मवादी, कामकेन्द्री, अर्थाधिष्टित जीवनदृष्टि । यह वृक्ष मनुष्य की अनेक इच्छायें और आवश्यकतायें होती
−
जब फलता-फूलता है तब इसी प्रकार कहर ढाता है और हैं । शरीर की आवश्यकताओं को तो आवश्यकता ही कहते
−
उसे कैसे नष्ट करें, यह भी समझ से परे हो जाता है । यह. हैं । मन, बुद्धि आदि की आवश्यकताओं को इच्छा कहते
−
ऐसा वृक्ष है और ऐसे इसके फल और फूल हैं जो दिखने में. हैं । ये भौतिक और अभौतिक स्वरूप की होती हैं । अन्न,
−
और चखने में अच्छे लगते हैं परन्तु परिणाम हानि और वस्त्र, मकान आदि भौतिक आवश्यकतायें हैं । ज्ञान, प्रेम,
−
नाश ही होता है । श्रीमद् भगवद गीता ने इसे तामस सुख. मैत्री, यश आदि अभौतिक आवश्यकतायें हैं । आवश्यकतायें
−
−
अर्थपुरुषार्थ
−
−
कहा है । शरीर, मन, बुद्धि आदि सभी स्तरों की होती हैं । शरीर की
−
यदग्रे चानुबन्धे च सुखं मोहनमात्मन: । आवश्यकतायें सीमित स्वरूप की होती हैं । भूख सन्तुष्ट
−
निद्रालस्यप्रमादोत्थं तत्तामसमुदाह्हतम् ।। होने पर अन्न की आवश्यकता पूर्ण हो जाती है । वस्त्र एक
−
−
अत: इन उदाहरणों के सम्बन्ध में अधिक समय और समय में सीमित स्वरूप में ही पहने जाते हैं । जल की
−
शक्ति खर्च करने के स्थान पर और बातों पर विचार करना... आवश्यकता प्यास बुझने पर समाप्त हो जाती है । परन्तु मन
−
−
चाहिये, और पहलुओं पर ध्यान देना चाहिये । की इच्छायें असीमित होती हैं । वे कभी पूर्ण नहीं होती
−
फिजूलखर्ची का एक नमूना बढ़ती हुई ट्यूशनप्रथा हैं । इस सम्बन्ध में महाभारत में ययाति कहते हैं कहते हैं
−
−
और कोचिंग क्लास का प्रचलन भी है। यह खर्चीला नजातु काम: कामानाम् उपभोगेनशाम्यते ।
−
−
मामला तो है ही, साथ में यह समय और शक्ति का भी हविषाकृष्णवत्वैव भूयएवाशिवर्तते ।।
−
−
रण
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−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
इच्छायें और आवश्यकतायें मनुष्य जीवन का
−
अनिवार्य अंश है । इसलिये उसे काम पुरुषार्थ कहा है ।
−
इसका तिरस्कार नहीं किया गया है अपितु उसे धर्म की
−
मर्यादा दी गई है । श्री भगवान कहते हैं, धर्माविरुद्धों भूतेषु
−
कामोइस्मि भरतर्षभ' । इस काम की पूर्ति के लिये मनुष्य जो
−
करता है वह अर्थ पुरुषार्थ है । अर्थ को भी धर्म की मर्यादा
−
दी गई है ।
−
−
अर्थ का स्वरूप भौतिक है । धन अथवा द्रव्य उसका
−
साधन है । सीधा-सादा सिद्धान्त यह है कि जो अभौतिक
−
इच्छाएँ अथवा आवश्यकतायें हैं उनको अर्थ से नहीं नापा
−
जा सकता है । शिक्षा, ज्ञान के आदान-प्रदान हेतु की गई
−
व्यवस्था है । इसलिये शिक्षा को भी भारत में अर्थ निरपेक्ष
−
रखा गया है । अर्थात न पढ़ने के लिये किसीको पैसे देने
−
पड़ते हैं, न पढ़ाने के पैसे माँगे जाते हैं । वैसे तो अन्न और
−
चिकित्सा भी भारत में अर्थनिरपेक्ष ही माने गये हैं । मनुष्य
−
को जीवित रहने के लिये इन दोनों की अनिवार्य
−
आवश्यकता होती हैं । जीना हर मनुष्य का जन्मसिद्ध
−
अधिकार है, इसलिये इन दोनों बातों के लिये भारत में पैसे
−
के माध्यम से लेनदेन नहीं होता है । ये दान और सेवा के
−
क्षेत्र माने गये हैं ।
−
−
वर्तमान समय की बात करें तो यह सिद्धान्त
−
कल्पनातीत लगता है । छोटे बच्चों की शिशुवाटिका से
−
लेकर आयुर्विज्ञान, अभियान्त्रिकी, संगणक, वाणिज्य आदि
−
सभी क्षेत्रों की शिक्षा बहुत महँगी हो गई है । निर्धन या
−
कम पैसे वाले लोग शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते । शिक्षा के
−
लिये बैंकों से कर्जा अवश्य मिलता है परन्तु वह बहुत बड़ी
−
चिन्ता का कारण बनता है, यह भी अनेक भुक्तभोगियों का
−
अनुभव है । सरकार प्राथमिक शिक्षा निःशुल्क देने की
−
व्यवस्था करती है परन्तु उसका लाभ लेने वाले कम ही
−
लोग होते हैं। ऐसी स्थिति में अर्थ निरपेक्ष शिक्षा का
−
प्रचलन अवास्तविक और अव्यावहारिक लगना स्वाभाविक
−
है। परन्तु शिक्षा वैसी थी अवश्य । इसका सामाजिक
−
सन्दर्भ ही इस व्यवस्था के लिये अनुकूल था, इसलिये यह
−
समाज में स्वीकृत था ।
−
−
२५५
−
−
−
−
2८ ५
−
2 ५.
−
−
−
−
अर्थनिरपेक्ष शिक्षाव्यवस्था
−
−
अर्थनिरपेक्ष शिक्षा की व्यवस्था कैसी थी, इस बात
−
को ठीक से समझ लेना चाहिये । जैसा अभी कहा, शिक्षा
−
ज्ञान का क्षेत्र है और वह पैसे के क्षेत्र से परे है । इसलिये
−
उसे अर्थ से जोड़ना नहीं चाहिये यह पहली बात है ।
−
किसीको ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा है तो उसे पैसे के
−
अभाव में ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता, ऐसा नहीं होना
−
चाहिये । ज्ञान पैसे से इतना अधिक श्रेष्ठ है कि उसे पैसे के
−
बदले में नहीं देना चाहिये, ऐसी स्वाभाविक समझ है ।
−
व्यवहार में भी ज्ञान और पैसा दोनों एकदूसरे से नापे जाने
−
वाले पदार्थ नहीं हैं । ज्यादा पैसा देने से ज्यादा ज्ञान प्राप्त
−
होता है, ऐसा भी नहीं होता है । ज्यादा पैसा मिलने से
−
अधिक अच्छा पढ़ाया जा सकता है, ऐसा भी नहीं होता ।
−
पैसे वाले के या समाज में सत्ता के कारण से प्रतिष्ठित व्यक्ति
−
के पुत्र को सुगमता से, शीघ्रता से और अधिक मात्रा में ज्ञान
−
प्राप्त होता है ऐसा नहीं होता है । ज्ञान प्राप्त करने हेतु
−
योग्यता चाहिये । वह योग्यता धन या सत्ता से नहीं आती
−
है । ज्ञान प्राप्त करने की योग्यता क्या है इस सम्बन्ध में फिर
−
एक बार श्री भगवान क्या कहते हैं इसका स्मरण करें । श्री
−
भगवान कहते हैं ...
−
−
श्रद्धावान लभते ज्ञानम् तत्पर: संयतेन्द्रिय
−
−
और यह aft...
−
−
तदू विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया
−
−
अर्थात् ज्ञान प्राप्त करने के लिये जिज्ञासा चाहिये,
−
अन्त:करण में श्रद्धा चाहिये, तत्परता चाहिये, संयम चाहिये,
−
विनयशीलता चाहिये, सेवाभाव चाहिये और परिश्रम करने
−
की सिद्धता चाहिये । ये गुण हैं परन्तु पैसे नहीं हैं तो ज्ञान
−
के द्वार बन्द नहीं होने चाहिये । पैसे हैं परन्तु ये गुण नहीं हैं
−
तो ज्ञान के द्वार खुलने नहीं चाहिये । क्योंकि बिना योग्यता
−
के ज्ञान प्राप्त करने के प्रयास विफल ही होते हैं । ऐसा
−
वास्तविक और व्यावहारिक विचार कर हमारे देश में शिक्षा
−
के क्षेत्र को अर्थ निरपेक्ष बनाया गया था ।
−
−
अर्थ निरपेक्षता का व्यावहारिक पक्ष ठीक से समझ
−
लेना चाहिये । पढ़ाने के लिये पैसे नहीं माँगे जाते परन्तु
−
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−
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−
−
−
−
शिक्षकों का. योगक्षेम तो चलना
−
चाहिये । ऐसा तो नहीं है कि शिक्षक सब संन्यासी थे ।
−
शिक्षक वानप्रस्थी भी नहीं होते थे । ऐसा भी नहीं था कि
−
अधथर्जिन के लिये अन्य कोई व्यवसाय करने वाले अतिरिक्त
−
समय में पढ़ाने का कार्य करते थे । शिक्षक गृहस्थ होते थे
−
और पूर्ण समय ज्ञानदान का ही कार्य करते थे । अत:
−
अपनी जीविका चलाने के लिये उन्हें धन की आवश्यकता
−
होती ही थी । और एक बात भी ध्यान देने योग्य थी ।
−
शिक्षा व्यवस्था के जो केन्द्र थे, वे अधिकांश गुरुकुल होते
−
थे । गुरुकुल में छात्रों के लिये गुरु गृहबास अनिवार्य होता
−
था अर्थात गुरु के घर में रहकर ही अध्ययन करना होता
−
था । इस स्थिति में गुरु को स्वयं के परिवार के साथ-साथ
−
छात्रों के निर्वाह की भी चिन्ता करनी होती थी । गुरु और
−
छात्र मिलकर ही गुरुकुल परिवार होता था । अर्थात् वह
−
एक बहुत बड़ा परिवार होता था और गुरु उस परिवार का
−
मुखिया होता था । इस स्थिति में उसे धन की तो बहुत
−
आवश्यकता रहती ही थी । यह व्यवस्था कैसे होती थी
−
यही हमारे लिये जानने योग्य विषय है ।
−
−
गुरुकुल की अर्थव्यवस्था के प्रमुख आयाम इस प्रकार
−
थे...
−
−
समित्पाणि
−
−
समित्पाणि शब्द दो शब्दों से बना है । एक है समित,
−
और दूसरा है पाणि । समित का अर्थ है, समिधा और पाणि
−
का अर्थ है, हाथ । छात्र जब गुरुकुल में अध्ययन हेतु प्रथम
−
बार जाते थे, तब हाथ में समिधा लेकर जाते थे । समिधा
−
यज्ञ में होम करने हेतु उपयोग में ली जाने वाली लकड़ी को
−
कहते हैं । गुरुकुल में यज्ञ एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गतिविधि
−
होती थी और छात्रों को समिधा एकत्रित करनी होती oft |
−
अत: गुरु के समक्ष हाथ में समिधा लेकर ही उपस्थित होने
−
का प्रचलन था । यह समिधा शब्द सांकेतिक है । उसका
−
लाक्षणिक अर्थ है गुरुकुल वास हेतु उपयोगी सामग्री ।
−
गुरुकुल में अध्ययन हेतु जाते समय छात्र किसी न किसी
−
प्रकार की उपयोगी सामग्री लेकर ही जाते थे । यह एक
−
आवश्यक आचार माना जाता था । देव, गुरु, स्नेही, राजा
−
−
२५६
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
आदि आदरणीय व्यक्तियों के सम्मुख कभी भी खाली हाथ
−
नहीं जाना चाहिये, ऐसा आग्रह था । यह आग्रह हमारे
−
समाज जीवन में अभी भी देखने को मिलता है । हम मन्दिर
−
में जाते हैं तो द्रव्य और धान्य लेकर ही जाते हैं । किसीके
−
घर जाते हैं तो बच्चों के लिये कुछ न कुछ लेकर ही जाते
−
हैं । किसी विद्वान के पास जाते हैं तो भी खाली हाथ नहीं
−
जाते हैं । गाँवों में अभी भी बच्चे का विद्यालय में प्रवेश
−
होता है तब शिक्षक को भेंट स्वरूप कुछ न कुछ दिया
−
जाता है और छात्रों को भोजन या जलपान कराया जाता
−
है । यह एक बहुत व्यापक सामाजिक व्यवहार का हिस्सा
−
है, जहाँ अपने व्यक्तिगत अच्छे अवसर पर अधिकाधिक
−
लोगों को सहभागी बनाया जाता है और ख़ुशी से कुछ न
−
कुछ दिया जाता है । यह देकर, बाँटकर कर खुश होने की
−
संस्कृति का लक्षण है । तात्पर्य यह है कि विद्यालय प्रवेश
−
के समय पर छात्र ट्वारा गुरु और गुरुकुल को किसी न किसी
−
प्रकार की उपयोगी सामग्री देने की व्यवस्था थी ।
−
−
कौन कितनी और कैसी सामग्री देगा इसके कोई
−
नियम नहीं थे । निर्धन व्यक्ति केवल समिधा की दो
−
लकड़ियाँ देता था और धनवान व्यक्ति अपनी क्षमता के
−
अनुसार अधिक देता था । अपनी क्षमता के अनुसार कम
−
देने में लज्ञा का भाव नहीं था और अपनी क्षमता के
−
अनुसार अधिक देने में अहंकार का भाव नहीं था । हाँ,
−
अपनी क्षमता से कम देने में लज्ञजा का भाव अवश्य होता
−
था । अपनी क्षमता से कम देना विद्या और शिक्षक की
−
अवमानना मानी जाती थी और सज्जन इससे हमेशा बचते
−
थे । यह समित्पाणि व्यवस्था गुरुकुल के निर्वाह हेतु
−
उपयोगी थी ।
−
−
भिक्षा
−
−
यह बहुत प्रसिद्ध व्यवस्था है । भिक्षा आचार्यों और
−
छात्रों की दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा था । आज भिक्षा
−
को भीख कहकर हेय दृष्टि से देखा जाता है और कोई भी
−
भीख माँगने के लिये इच्छुक नहीं होता है । परन्तु जिस
−
समय गुरुकुल सुप्रतिष्ठित अवस्था में थे तब भिक्षा आचार्यों
−
और छात्रों के लिये मान्य व्यवहार था । जिस प्रकार स्नान-
−
�
−
−
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−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
ध्यान करना, स्वाध्याय करना, अध्ययन-अध्यापन करना
−
स्वाभाविक था उसी प्रकार भिक्षा माँगना भी स्वाभाविक
−
काम माना जाता था । उसमें किसी प्रकार का संकोच या
−
लज्जा का भाव नहीं था । आज हम भीख को सामाजिक
−
जीवन से बहिष्कृत करना चाहते हैं । बिना कोई उद्योग
−
किये,बिना अधिकार के मुफ्त में कुछ प्राप्त करने की वृत्ति
−
को हम भीख कहते हैं । भिखारी को समाज में प्रतिष्ठायुक्त
−
स्थान प्राप्त नहीं है । अमेरिका जैसे देशों में भीख माँगने
−
वालों को कारावास में डाला जाता है। परन्तु हमारे
−
सामाजिक सांस्कृतिक इतिहास में “भिक्षा' को हेय दृष्टि से
−
नहीं देखा गया है । उसे एक आवश्यक और उपयोगी
−
व्यवस्था के रूप में स्थापित किया गया । उदाहरण के लिये
−
संन्यासी भिक्षा माँगकर ही अपना निर्वाह करता है परन्तु वह
−
छोटे-बड़े सबके लिये आदरणीय ही होता है । साधु भिक्षा
−
माँगता है परन्तु साधु को भिक्षा के साथ-साथ आदर भी
−
मिलता है । तात्पर्य यह है कि भिक्षा कोई क्षुद्र क्रिया नहीं
−
है। इस बात को ध्यान में रखकर भारत में शिक्षा के साथ
−
भिक्षा व्यवस्था किस प्रकार जुड़ी हुई है यह देखें ।
−
−
सामान्य अर्थ में हम यही मानते हैं कि भिक्षा माँगना
−
याने भीख माँगना । भीख माँगने की क्रिया को हम
−
तिरस्कारयुक्त दृष्टि से देखते हैं । बिना कोई उद्यम किये,
−
बिना अधिकार के मुफ्त में कुछ प्राप्त करने की वृत्ति को हम
−
भिक्षा माँगना कहते हैं । भिखारी को समाज में प्रतिष्ठायुक्त
−
स्थान प्राप्त नहीं होता है ।
−
−
परन्तु हमारे सामाजिक सांस्कृतिक इतिहास में “भिक्षा'
−
शब्द को अथवा भिक्षा माँगने की क्रिया को हेय दृष्टि से
−
नहीं देखा गया है । उदाहरण के लिये संन्यासी भिक्षा
−
माँगकर ही अपना निर्वाह करता है । यह सर्वमान्य प्रथा है,
−
और संन्यासी छोटे बड़े सभी के लिये आदरणीय है । साधु
−
भिक्षा माँगता है परंतु साधु को भिक्षा के साथ साथ आदर
−
भी मिलता है । तात्पर्य यह है कि “भिक्षा' कोई क्षुद्र शब्द
−
at ag fa नहीं है । इस एक बात को ध्यान में रखकर
−
अब भारतीय शिक्षा व्यवस्था के साथ भिक्षा किस प्रकार से
−
जुड़ी हुई है यह समझने का प्रयास करेंगे ।
−
१, हम गुरुकुलों एवं आश्रमों के विषय में पढ़ते हैं कि
−
−
२५७
−
−
3.
−
−
4,
−
−
−
−
वहाँ विद्याध्ययन करने वाले छात्र
−
भिक्षा माँगने हेतु जाते थे । भिक्षा लाकर गुरु को
−
अर्पित करते थे । लाई हुई भिक्षा में से गुरु जो देते थे
−
वही लेते थे और सन्तुष्ट रहते थे ।
−
−
सामान्य रूप से अन्न ही भिक्षा में लिया जाता होगा
−
ऐसी हमारी धारणा बनती है परन्तु यह भी मान सकते
−
हैं कि वस्त्र, और यज्ञ करना है तो यज्ञ की सामग्री
−
की भी भिक्षा हो सकती है ।
−
−
निर्वाह के लिये अन्न और वस्त्र के अतिरिक्त अनेक
−
छोटी मोटी चीजों की आवश्यकता होती है, यथा
−
निवास, आसन, बिस्तर, पात्र आदि । इन विषयों में
−
अनेक प्रकार से संयम किया जाता था । यथा
−
अध्ययन हेतु बैठना है तो भूमि को साफ करना और
−
बैठना, पर्णों की शैय्या पर सोना, पर्णों से ही पत्तल
−
और दोना बना लेना, गोबर से भूमि लीपना आदि के
−
लिये न पैसा खर्च करना पड़ता है न किसी से माँगना
−
पडता है । कुटिया भी चाहिये तो स्वयं बना सकते
−
हैं ।
−
−
आश्रम अथवा गुरुकुल की सर्व प्रकार की व्यवस्था
−
करने का दायित्व गुरु का होता है । वे करते भी हैं ।
−
तो भी भोजन व्यवस्था के लिये समाज पर ही निर्भर
−
करना होता है । भिक्षा माँगकर लाने का कार्य शिष्यों
−
को ही करना होता है, गुरु को नहीं । शिष्य भिक्षा
−
माँगकर लायेंगे तो भी भिक्षा पर अधिकार गुरु का ही
−
होता है, शिष्यों का नहीं । लाई हुई भिक्षा की
−
व्यवस्था गुरु ही करते हैं । उदाहरण के लिये कोई
−
शिष्य मिष्टा्न लाता है और कोई सादी रोटी लाता
−
है । परन्तु मिष्टान्न लाने वाले को मिश्टान्न मिलेगा और
−
रोटी लाने वाले को रोटी ऐसा नहीं होगा । हो सकता
−
है कि मिष्टान्न लाने वाले को गुरु मिष्टान्न दें ही नहीं ।
−
ज्यादा भिक्षा लाने वाले को ज्यादा हिस्सा मिलेगा
−
ऐसा भी नहीं होगा ।
−
−
भिक्षा लाने वाला शिष्य आश्रम में लाने से पूर्व उसे
−
खा नहीं लेता है। ऐसा करना अपराध माना
−
जायेगा । उसका शिष्यत्व कम हो जायेगा |
−
�
−
−
............. page-274 .............
−
−
−
−
& अन्नसत्र या सदाब्रत में जाकर
−
भिक्षा नहीं लाई जाती, गृहस्थ के घर जाकर ही
−
fiat माँगी जाती है । भिक्षा माँगना ब्रह्मचारी का
−
कर्तव्य भी है और अधिकार भी है । ब्रह्मचारी को
−
भिक्षा देना गृहस्थाश्रमी का कर्तव्य है, दायित्व है ।
−
fier माँगते समय “यही चाहिये और “यह नहीं
−
चाहिये” ऐसा नहीं कहा जाता । गृहिणी जो देती है
−
और जितना देती है उतना ही लिया जाता है । जो
−
मिलता है उसके प्रति अरुचि, नाराजी, असन्तोष नहीं
−
दर्शाया जा सकता है । कोई पूर्वव्यवस्था भी नहीं की
−
जाती । जहाँ अच्छी भिक्षा मिलती है वहाँ प्रतिदिन
−
जाना भी मना है । अपने सगेसम्बन्धियों के घर जाना
−
भी मना है ।
−
−
शिक्षा की अर्थव्यवस्था के कुछ आयामों के साथ
−
भिक्षा की योजना को जोड़कर विचार करने पर कुछ
−
सूत्र समझ में आयेंगे ।
−
−
भोजन छात्रों के निर्वाहखर्च का एक बड़ा हिस्सा है ।
−
उस हिस्से को पूरा करने के दायित्व में समाज का
−
सीधा सहभाग भिक्षा के रूप में है । साथ ही अध्ययन
−
करने वाले शिष्यों का भी सीधा सहभाग है । इस
−
प्रकार अध्ययन के साथ-साथ दायित्व निभाने की
−
शिक्षा भी मिलती है ।
−
−
विद्यादान का शुल्क तो लिया नहीं जाता अतः शिष्य
−
शुल्क नहीं देंगे। शिक्षा संस्था चलाने के लिये
−
अनुदान भी नहीं लिया जाता क्यों कि अनुदान की
−
शर्तों के कारण स्वतंत्रता और स्वायत्तता का लोप
−
होता है । फिर भी समाज की सहभागिता तो होनी ही
−
चाहिये । अतः भिक्षा के रूप में समाज अपना
−
दायित्व निभाता है ।
−
−
भिक्षा माँगना अध्ययन करने वाले का नैतिक
−
अधिकार है, कानूनी नहीं । भिक्षा माँगने की पात्रता
−
सदूगुण, सदाचार, संयम, विनय, शील आदि से आती
−
@ | भिक्षा व्यवस्था में चरित्र की शिक्षा अपने आप
−
प्राप्त होती है । भिक्षा के निमित्त से घर घर जाना
−
पड़ता है और समाज से सम्पर्क बना रहता है । मानव
−
−
−
−
२५८
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
स्वभाव, समाज की स्थिति, व्यवहार की जटिलता
−
अपने आप सीखने को मिलते हैं । यह बहुत बड़ी
−
सामाजिक शिक्षा है ।
−
−
४... भिक्षा के माध्यम से समाज पर आधारित रहना पड़ता
−
है। अतः संपन्न परिवार से आने वाले छात्रों का
−
अहंकार नियंत्रित होता है और गरीब परिवार से आने
−
वाले छात्रों में हीनता भाव नहीं आता ।
−
−
५... समाज भी अध्ययन करने वाले छात्र और विद्यासंस्था
−
−
के प्रति अपना दायित्व समझता है । भिक्षा मिलती है
−
इसलिये विद्यासंस्था समाज की क्रणी रहती है और
−
अपना सामाजिक दायित्व निभाने के लिये तत्पर
−
बनती है । दूसरी ओर विद्यासंस्था समाज को शिक्षित
−
और संस्कारित नागरिक देती है यह समाज पर बहुत
−
बड़ा उपकार है इसका बोध समाज को भी होता है ।
−
इसलिये उस विद्यासंस्था का पोषण करने का अपना
−
दायित्व है इसका भी बोध बना रहता है ।
−
इस व्यवस्था में एक बात यह भी उभर कर आती है
−
कि भिक्षा जैसी व्यवस्था का आर्थिक उपयोजन होने पर भी
−
आर्थिक विचार ही प्रमुख तत्त्व नहीं है । आर्थिक पक्ष से
−
जुड़े हुए धन की चिन्ता या गिनती, उपकार से दबना या
−
हमेशा देने वाले के अधीन रहने की वृत्ति - ये सब अत्यन्त
−
गौण हैं । दोनों पक्षों का दायित्वबोध और चरित्रनिर्माण ही
−
प्रमुख अंग हैं ।
−
भिक्षाव्यवस्था को अक्षरशः: नहीं अपितु उसका
−
तात्पर्य समझकर शिक्षा की वर्तमान अर्थव्यवस्था में यदि हम
−
परिवर्तन कर सकते हैं तो आज भी हम शिक्षा को
−
कल्यणकारी बना सकते हैं ।
−
−
गुरुदक्षिणा
−
−
शिक्षा के और गुरुकुल के सन्दर्भ में यह एक ऐसी
−
व्यवस्था है जिसका नाम अत्यन्त आदर और गौरव के साथ
−
लिया जाता है । छात्र जब अपना अध्ययन पूर्ण करता है
−
और समावर्तन संस्कार के बाद गुरुकुल छोड़कर अपने घर
−
की ओर प्रस्थान करता है तब वह गुरुदक्षिणा देता है ।
−
−
गुरुदक्षिणा शब्द हमारे देश में अत्यधिक प्रचलित है।
−
�
−
−
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−
−
−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
−
−
इसे श्रद्धा के भाव से देखा जाता है। भाव एवं अर्थ (धन)
−
−
इन दोनों महत्त्वपूर्ण पक्षों का एक साथ विचार करके
−
गुरुदृक्षिणा से सम्बन्धित कुछ बिन््दुओं को स्पष्ट करने का
−
प्रयास यहाँ किया गया है -
−
−
श्,
−
−
विद्याध्ययन पूरा कर जब शिष्य अपने घर लौटता है
−
और गृहस्थाश्रम स्वीकार करता है, तब जाते समय
−
अथवा जाने के पश्चात् गुरु को दक्षिणा अर्पित करता
−
है। दक्षिणा अर्थात् ga, gear अर्थात् पैसा जो
−
मुख्यतया नकद राशि के स्वरूप में होता है। कभी
−
कभी नकद राशि के स्थान पर उसके विकल्प में
−
उसका स्थान ले सके ऐसी वस्तुएँ भी दक्षिणा में दी
−
जाती हैं।
−
−
गुरुदक्षिणा विद्याध्ययन पूर्ण होने के पश्चात् ही दी
−
जाती है, पहले नहीं।
−
−
गुरुदक्षिणा विद्याध्ययन आरम्भ करने से पहले निश्चित
−
नहीं की जाती। यह विद्याध्ययन का शुल्क नहीं है
−
और प्रवेश पूर्व की कोई निर्धारित शर्त भी नहीं है।
−
गुरु कभी गुरुदक्षिणा माँगते नहीं, इसका अनुपात भी
−
गुरु निश्चित नहीं करते ।
−
−
गुरुदक्षिणा अर्पित करना अथवा नहीं, यह शिष्य
−
निश्चित करता है। कितनी और कब अर्पित करना यह
−
भी शिष्य ही निश्चित करता है। इस प्रकार गुरुदक्षिणा
−
शिष्य के लिए एच्छिक है, अनिवार्य नहीं ।
−
गुरुदक्षिणा एच्छिक होते हुए भी कोई भी शिष्य
−
गुरुदक्षिणा अर्पित किये बिना नहीं रहता था।
−
अध्ययन पूर्ण करने के बाद भी गुरुदक्षिणा अर्पित
−
नहीं करना, यह शिष्य के लिए अपराध माना जाता
−
था । यह कानूनी अपराध नहीं, नैतिक और सामाजिक
−
अपराध माना जाता है।
−
−
गुरुदक्षिणा की गणना इस आधार पर नहीं होती थी
−
कि गुरु ने कितना और कैसा पढ़ाया है। शिष्य की
−
देने की क्षमता के अनुसार ही दी जाती है। कम
−
कमाने वाला व्यक्ति कम और अधिक कमाने वाला
−
अधिक देता है, यह स्वाभाविक है।
−
−
विशेष संयोग के समय शिष्य गुरु से उनकी अपेक्षा
−
−
BKB
−
−
Ro.
−
−
8.
−
−
RX.
−
−
−
−
war है, तब... गुरु
−
आवश्यकतानुसार अपेक्षा व्यक्त भी करता है। परन्तु
−
यह भी शिष्य की क्षमताओं का अनुमान लगाकर ही
−
बताई जाती है। शिष्य के ट्वारा स्वयं पूछने के बाद
−
और गुरु के ट्वारा अपेक्षा व्यक्त कर देने के पश्चात् यदि
−
शिष्य वह अपेक्षा पूर्ण नहीं करता तो यह शिष्य के
−
लिए मरण योग्य बात हो जाती है।
−
गुरुदक्षिणा अर्पित करने में गुरु के प्रति शिष्य की
−
कृतज्ञता व्यक्त होती है। गुरु इसे अपना अधिकार
−
नहीं मानते फिर भी शिष्य इसे अपना कर्तव्य मानते
−
हैं।
−
सामर्थ्य होते हुए भी गुरुदक्षिणा नहीं देना, जितना
−
सामर्थ्य है उससे कम देना इसकी कल्पना भी शिष्य
−
के मन में नहीं आती ।
−
अधिक गुरुदक्षिणा का गुरु के ऊपर प्रभाव पड़ेगा और
−
शिष्य गुरु से अपने हित की बात करवा सकेगा
−
अथवा गुरु इसके प्रति पक्षपात करेंगे यह भी कल्पना
−
से परे की बात है।
−
गुरुदक्षिणा की कल्पना कर गुरु धनवान शिष्यों को
−
खोजें अथवा वे ही पढ़ने आयें, इसकी इच्छा करें
−
ऐसा भी नहीं होता। धनवान हो चाहे निर्धन, गुरु
−
पढ़ने योग्य बौद्धिक एवं चारित्रिक पात्रता देखकर ही
−
प्रवेश देते हैं। गुरुदक्षिणा मिलेगी अथवा नहीं इसका
−
विचार किये बिना गुरु तो उन्हें उनकी पात्रता के
−
अनुसार ही पढ़ाते हैं।
−
−
गुरुदक्षिणा के सम्बन्ध में इतने तथ्यों को समझने
−
−
के पश्चात् इसके आर्थिक पक्ष से जुड़े कुछ निष्कर्ष भी
−
निकलते हैं, जो इस प्रकार हैं -
−
−
श्,
−
−
गुरुदक्षिणा से गुरु का जीवन निर्वाह होता है। परन्तु
−
यह मात्र गुरु का व्यक्तिगत निर्वाह नहीं होता । गुरु
−
का गुरुकुल होता है, सम्पूर्ण गुरुकुल का निर्वाह
−
इससे होता है।
−
−
तथापि गुरुदक्षिणा का नियमन और सूत्रसंचालन गुरु
−
के हाथ में नहीं होता । इसी प्रकार गुरु और शिष्य के
−
अतिरिक्त अन्य किसी तीसरे पक्ष के (आज की भाषा
−
�
−
−
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−
−
−
−
में कहना हो तो संचालक और सरकार)
−
हाथ में भी नहीं है। यह पूर्णरूप से शिष्य के ही हाथ
−
में है।
−
गुरुदक्षिणा विद्याध्ययन के बदले में ही दी जाती है,
−
और उससे ही गुरु का जीवन निर्वाह चलता है यह
−
वास्तविकता होते हुए भी इसमें जीवन निर्वाह की
−
और गुरु द्वारा अध्यापन करवाने की गणना करने के
−
स्थान पर कृतज्ञता एवं गुरुकण से उक्रण होने का
−
भाव ही मुख्य है। विद्या एवं धन की बराबरी नहीं हो
−
सकती। विद्या से धन श्रेष्ठ नहीं अपितु धन से विद्या
−
श्रेष्ठ है। हमारे यहाँ यही स्वीकार्य है।
−
गुरुदक्षिणा के बारे में कोई नियम, कोई कानून, कोई
−
अनिवार्यता या कोई शर्त न होते हुए भी, हमारे सामने
−
स्पष्ट है कि गुरु का जीवन निर्वाह इस पर ही निर्भर
−
है फिर भी गुरु इसके बारे में तनिक भी चिन्ता करते
−
नहीं । ऐसा होने पर भी गुरु का निर्वाह कभी रुकता
−
नहीं। यह दर्शाता है कि विश्वास, श्रद्धा, आदर,
−
कृतज्ञता और अपेक्षारहितता ये सब सामर्थ्य, कायदा-
−
कानून, नियम और शर्तों की अपेक्षा अधिक
−
मूल्यवान हैं ।
−
गुरुदक्षिणा की संकल्पना श्रेष्ठ एवं संस्कारित समाज में
−
ही सम्भव है। मनुष्य में निहित सद्वृत्ति के आधार
−
पर ही ऐसी व्यवस्थाएँ सम्भव होती हैं। स्वार्थ,
−
अप्रामाणिकता, कृतज्ञता का अभाव जैसी दुष्प्रवृत्तियाँ
−
जब प्रबल बनती हैं तब शर्तें, कायदा-कानून भंग
−
होते हैं, इसलिए दण्ड आदि सभी व्यवस्थाएँ करनी
−
पड़ती हैं ।
−
समाज आधारित शिक्षण का यह उत्तम नमूना है।
−
इसकी सम्पूर्ण व्यवस्था में शिक्षक और विद्यार्थी-गुरु
−
और शिष्य - के बीच में अथवा इन दोनों का
−
नियमन करने वाला कोई तत्त्व, कोई व्यवस्था नहीं
−
होती। फिर यह सरकारी अर्थात् राजकीय और
−
प्रशासनिक व्यवस्था भी नहीं है। यह सांस्कृतिक एवं
−
सामाजिक व्यवस्था है।
−
−
हमारा यह दृढ़ मत बना हुआ होता है कि आज के
−
−
२६०
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
−
−
समय में ऐसी व्यवस्था सम्भव ही नहीं हो सकती । किसी
−
भी प्रकार की अनिवार्यता न हो तो कोई पढ़ेगा नहीं,
−
अनिवार्यता न हो तो कोई फीस ही न देगा, पहले से वेतन
−
निश्चित नहीं होगा तो कोई पढ़ायेगा ही नहीं। परन्तु ऐसा
−
मानना अपने आपको ही कम आँकना है। आज भी यह
−
दुनियाँ जैसे भी चल रही है, वह कायदा-कानून, न्याय और
−
दण्ड के आधार पर नहीं प्रत्युत मनुष्य में बची हुई अच्छाई
−
के आधार पर ही चल रही है। ऐसी अच्छाई और
−
संस्कारिता के आधार पर होने वाली व्यवस्थाओं को
−
अधिक पारदर्शी बनाने के लिए और अधिक संस्कारित
−
समाज निर्माण करने की ओर गति बढ़ानी होगी ।
−
−
दान
−
−
जो माँगी जाती है, वह भिक्षा है परन्तु जो दिया जाता
−
है, वह दान है । किसीके माँगने पर जो दिया जाता है वह
−
दान नहीं है, वह तो भिक्षा ही है, परन्तु अपने सामाजिक
−
कर्तव्य की पूर्ति हेतु स्वयं प्रेरणा से जो दिया जाता है वही
−
दान है, उससे पुण्य सम्पादन होता है । वर्तमान समय में हम
−
भिक्षा को ही दान कहने लगे हैं, यह बात आपके ध्यान में
−
आई ही होगी । आजकल जिसे चेरिटी अर्थात् धर्मादा कहा
−
जाता है, वह भी दान नहीं है । चेरिटी भी वास्तव में दया
−
के भाव से की जाती है और उससे भी पुण्य सम्पादन का
−
भाव होता है । चेरिटी दया है जबकि दान कर्तव्य है । दान
−
देने वाले और लेने वाले का गौरव ही बढ़ाता है । दान देने
−
वाले को दान लेने वाला उपकृत करता है ।
−
−
समाज को यदि सुव्यवस्थित चलाना है तो सभी
−
व्यवस्थाओं का परस्पर सामंजस्य सुयोग्य पद्धति से होना
−
आवश्यक है। हमने देखा है कि उत्पादनतंत्र, उद्योगतंत्र,
−
व्यवसायतंत्र, शिक्षातंत्र, समाजतंत्र, राज्यतंत्र, धर्मतंत्र जैसी
−
भिन्न भिन्न व्यवस्थाएं समाज को सुव्यवस्थित रखती हैं ।
−
धर्मतंत्र इन सभी तंत्रों में सर्वोपरि है । धर्मतंत्र के प्रतिनिधि
−
के रूप में शिक्षातंत्र कार्यरत होता है। धर्मतंत्र और
−
शिक्षातंत्र समाजतंत्र को प्रेरित और निर्देशित करते हैं । और
−
अन्य सभी तंत्र समाजतंत्र को अनुकूल होते हुए कार्यरत
−
रहते हैं । इस प्रकार सभी तंत्र परस्पर संकलित रहते हैं।
−
�
−
−
............. page-277 .............
−
−
−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
−
−
शिक्षा को इस प्रकार अपना उचित स्थान मिलने के की सामग्री की न्यूनता नहीं है,
−
−
बाद ही उस तंत्र को चलाने के लिये उपयुक्त पद्धतियों का दूसरी ओर शिक्षासंस्थान वैभव, विलासिता, आराम,
−
समुचित विचार हो सकता है। संग्रहवृत्ति इत्यादि का स्वैच्छिक त्याग करते हुए
−
इस प्रकार के उचित स्थानप्राप्त शिक्षातंत्र की संयम, सादगी, अल्प आवश्यकताएँ, परिश्रम,
−
अर्थव्यवस्था के बारे में जो चर्चा की है। तदनुसार स्वावलंबन के आधार पर चल रहे हैं यह समाज के
−
समित्पाणि, गुरुदक्षिणा और भिक्षा इन तीन व्यवस्थाओं का लिये अत्यंत भूषणास्पद चित्र है। स्वाभाविक
−
हमने विचार किया । अब हम दान के बारे में विचार जीवनचर्या ऐसी ही होनी चाहिये । अध्ययन के लिये
−
करेंगे । शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक दृष्टि से भी यह
−
दान के संदर्भ में कुछ बिन्दु इस प्रकार हैं । आवश्यक है । उसमें हीनता के बोध का कोई स्थान
−
9. शिक्षातंत्र दान द्वारा पोषित हो यह बहुत प्राचीन, नहीं है ।
−
सर्वस्वीकृत और स्वाभाविक परंपरा है । एक आचार्य अर्थात् महालय और विद्यालय की श्रेष्ठता के
−
को, उपाध्याय को, गुरु को दान लेने का अधिकार है मापदंड भिन्न हैं । दोनों को स्वयं का विकास अपने
−
और दान देना गृहस्थ का कर्तव्य है । अपने मापदंडों के आधार पर करना है, अन्यों के
−
2. शिक्षासंस्था को दान देना यह पुण्यकार्य है । उससे मापदुंडों से नहीं । अर्थात् महालय के लिये वैभव
−
लेने वाला उपकृत नहीं होता है, देने वाले को पुण्य स्वाभाविक है, विद्यालय के लिये सादगी ।
−
लाभ होता है । & दान देने वाले का विद्यालय पर कोई अधिकार नहीं
−
३. शिक्षा व्यवस्था के लिये दान की याचना नहीं की होता है । शिक्षासंस्था के संचालन में उसका कोई
−
जाती । समाज अपना कर्तव्य मानकर आवश्यकता हस्तक्षेप नहीं होना चाहिये ।
−
समझ कर बिना याचना के स्वयं होकर देता है। शिक्षासंस्थानों को दान देने की प्रथा आज भी
−
उससे दान के, देने वाले के और लेने वाले के गौरव. पर्याप्त मात्रा में प्रचलित है यह वास्तव में अच्छी बात है ।
−
की रक्षा होती है । परंतु वह प्रथा कुछ मात्रा में प्रदूषित भी हुई है । प्रदूषण
−
−
४... जिस प्रकार नियमितरूप से मंदिर जाना और वहाँ... कुछ इस प्रकार के हैं -
−
किसी भी रूप में यथाशक्ति दान करना अनिवार्य है... १. कुछ संस्थानों में प्रवेश की शर्त के रूप में दान
−
−
उसी प्रकार शिक्षा संस्थानों में भी गृहस्थों को (Donation) लिया जाता है |
−
−
नियमपूर्वक दान करना चाहिये । 2. शिक्षकों की नियुक्ति के समय भी अनिवार्य रूप में
−
५... समाज में धर्म का स्थान सर्वोपरि है यह दूशनि के दान लिया जाता है ।
−
−
लिये गाँव में राजमहल सहित कोई भी भवन मंदिर से... ३... अन्यान्य निमित्त बना कर अनिवार्य रूप में दान लिया
−
−
ऊँचा नहीं बनाया जाता था उसी प्रकार शिक्षासंस्थानों जाता है ।
−
−
के अध्यापक, विद्यार्थी, एवं समग्र शिक्षा केन्द्र का... ४... संचालकों के द्वारा जबरन लिये जाने वाले इस दान
−
−
समाज के सर्वसामान्य वैभव की तुलना में कम वैभवी के साथ साथ दान देने वाला भी उसे अनेक प्रकार से
−
−
होना समाज के लिये लज्जा का विषय होना चाहिये । प्रदूषित करता है ।
−
−
ऐसा होने पर भी दान पर पोषित संस्थान को तो... ५. दान देने वाला संस्थान के संचालन में अपना
−
−
अपरिग्रही ही रहना चाहिये । शिक्षासंस्थानों में जीवन अधिकार मांगता है । उदाहरण के लिये संस्थान में
−
−
की मूलभूत आवश्यकताएँ योग्य रूप से पूर्ण हो रही ट्रस्टी अथवा संरक्षक के नाते नियुक्ति।
−
−
हैं, आवश्यक व्यवस्थाएं उत्तम हैं, किसी भी प्रकार... ६. शिक्षकों के चयन और विद्यार्थियों के प्रवेश के बारे में
−
−
REQ
−
�
−
−
............. page-278 .............
−
−
−
−
भी अधिकार चाहता है ।
−
−
9. भवन को नाम देना, अपने नामपट्ट लगाना इत्यादि
−
आग्रह भी सामान्य हैं ।
−
−
८... और कुछ नहीं तो दाता के नाते सम्मान, प्रतिष्ठा,
−
अग्रक्रम इत्यादि की अपेक्षा तो रखता ही है ।
−
−
Q. कई दाता अपनी बेहिसाबी संपत्ति से दान देते हैं ।
−
−
५१०, सरकार स्वयं भी दान देती है पर वह अनुदान के रूप
−
में होता है । याने उसका हिसाब रखना और सरकार
−
को पेश करना होता है । उसके खर्च के बिंदुओं पर
−
सरकार का नियंत्रण रहता है ।
−
−
११, शिक्षासंस्थानों की आवश्यकतानुसार प्राचीनकाल में
−
−
राजा और श्रेष्ठी दान देते थे और आज भी कई
−
संस्थान और सरकार दान देते हैं पर उसके लिये
−
संस्था को विस्तृत जानकारी देते हुए याचना करनी
−
होती है । यह वास्तव में निम्न कक्षा की भिक्षा कही
−
जा सकती है, इसे दान नहीं कहा जा सकता ।
−
शिक्षासंस्थान दान पर पोषित हों और समाज
−
उनका उत्तम प्रकार से पोषण करे यह उत्तम स्थिति
−
मानी जा सकती है । पर शिक्षासंस्थान दान प्राप्त
−
करने के लिये अनेक प्रकार के चित्र विचित्र उपक्रम
−
करें, अनेक प्रकार से याचना करें, दूसरी ओर दान देने
−
वाले लोग अपना अधिकार स्थापित करने का प्रयास
−
करें यह सब सुसंस्कृत समाज के लक्षण नहीं हैं ।
−
सुसंस्कृत समाज दानप्रवृत्ति को शुद्ध और प्रवाहित
−
रखता है तो दूसरी और दान देने की सुव्यवस्था से
−
शिक्षा और समाज दोनों सुसंस्कृत बनते हैं।
−
आज जब दान का संस्कार समाज में जीवित है तब
−
दान को अनेक प्रकार के प्रदूषणों से मुक्त कर शुद्ध और
−
पवित्र बनाने की आवश्यकता है । यह बात असम्भव भी
−
नहीं है। पर इस विषय में शिक्षा संस्थानों द्वारा पहल
−
अपेक्षित है ।
−
इस दृष्टि से सर्वप्रथम शिक्षासंस्थानों को “बाजार'
−
बनने से बचना चाहिये । उद्योगगृहों, कार्यालयों एवं
−
महालयों की पंक्ति से बाहर निकलकर “विद्यालय' नामक
−
विशिष्ट पंक्ति निर्माण करनी चाहिये । उत्तम विद्यालय के
−
−
RGR
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
−
−
“अर्थ से संबंधित मापदंड नये सिरे से निर्माण करते हुए
−
उसके अनुसार अपनी पहचान स्थापित करनी चाहिये ?।
−
−
विद्याकेन्द्र यदि इस प्रकार की पहल करेंगे तो निश्चित
−
रूप से समाज का सहयोग प्राप्त होगा इसमें कोई सन्देह नहीं
−
a |
−
−
समी क्षा
−
−
विद्याकेन्द्र के निर्वाह की इस व्यवस्था के कुछ संकेत
−
हैं ।
−
०. यह एक ऐसी व्यवस्था का हिस्सा है जहाँ अपना
−
काम अपनी ज़िम्मेदारी पर किया जाना स्वाभाविक
−
माना जाता है । अध्ययन और अध्यापन से भले ही
−
समाज की भलाई होती हो तो भी वह आचार्यों और
−
छात्रों का अपना काम है । वे समाज पर उपकार
−
करने की भावना से नहीं अपितु अपना कर्तव्य
−
समझकर और सेवा के भाव से ही अध्ययन और
−
अध्यापन करते हैं। इसलिये वह अपनी ही
−
ज़िम्मेदारी से करना है, अनुदान या अन्यों से अपेक्षा
−
करना उचित नहीं है ।
−
समाज आधारित शिक्षा का यह उत्तम उदाहरण है ।
−
भारतीय व्यवस्था में समाज के लिये उपयोगी कार्य
−
हमेशा समाज की व्यवस्था से ही होते हैं, राज्य की
−
व्यवस्था से नहीं । इसलिये राज्य का हिस्सा इसमें
−
अपेक्षित नहीं है ।
−
जिस शिक्षा से समाज धर्माचरणी बनता है उस शिक्षा
−
के और उन शिक्षकों और आचार्यों के प्रति समाज
−
हमेशा कृतज्ञ रहता है और उनके योगक्षेम की चिन्ता
−
स्वत: ही करता है । इसलिये विद्याकेन्द्र, शिक्षक और
−
छात्र सम्पन्न समाज में कभी ff Sar ath afte set
−
रहते । भारत में शिक्षक हमेशा निर्धन और बेचारे होते
−
थे, ऐसा जब कहा जाता है तब वह अज्ञान, अल्पज्ञान
−
और विपरीत ज्ञान के कारण ही कहा जाता है ।
−
अध्ययन और अध्यापन ज्ञानसाधना समझकर किया
−
जाता है । वह एक पवित्र और उदात्त कार्य है । विद्या
−
प्रीति इसकी प्रेरणा है । यह ज्ञान का आनन्द है । यह
−
�
−
−
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−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
इतना श्रेष्ठ होता है कि इसके सामने भौतिक पदार्थों के
−
आनन्द का कोई मूल्य नहीं रह जाता है । इसलिये
−
वख्रालंकार और मनोरंजन की सुविधाओं का आकर्षण
−
कोई मायने नहीं रखता है । इस मनोवैज्ञानिक तथ्य को
−
ध्यान में लेकर ही अध्ययन और अध्यापन करने वालों
−
के लिये वैभव का विधान नहीं किया गया है।
−
अध्ययन की साधना करने वाले ब्रह्मचारियों के लिये
−
सुविधाओं और उपभोग सामग्री का निषेध किया गया
−
−
−
−
है। अध्ययन और अध्यापन
−
करने वालों को इन सांसारिक बातों का आकर्षण भी
−
कम ही होता है । इसलिये उनकी आवश्यकतायें कम
−
ही होती हैं । गुरुकुल इन बातों में राजा के महलों और
−
श्रेष्ठियों की कोठियों से अलग ही होता है । परन्तु
−
सांसारिक अभावों के कारण ये लोग दुःखी नहीं होते
−
हैं, वे अपनी अवस्था के लिये गौरव का ही अनुभव
−
करते हैं ।
−
−
व्यर्थ का खर्च टालें
−
−
फालतू खर्चमत करो
−
−
मित्रो हमें अपने आस-पास की अनेक वस्तुएँ
−
चाहिए । कुछ प्राकृतिक वस्तुएँ तो कुछ मनुष्य निर्मित
−
वस्तुएँ । उदाहरण के लिए पान
−
ी, बिजली, कागज, कपड़ा
−
और पैसे आदि । ऐसी अनेक वस्तुओं का उपयोग करके
−
हम अपना काम पूरा करते हैं । प्रत्येक वस्तु उपयोगी होती
−
है।
−
−
तुम्हारी माँ तुम्हें कहती है, बाल्टी भर गई हो तो नल
−
बन्द कर दे, अन्यथा व्यर्थ में पानी बहेगा । तुम अपने
−
पिताजी से जब कोई वस्तु माँगते हो तो वे कहते हैं, फालतू
−
खर्च करने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं । कभी-कभी बड़े
−
भाई कहते हैं, अरे ! मौसम ठंडा है तो पंखा क्यों चला
−
रखा है ? क्यों बिजली बिगाड़ रहा है ?
−
−
इन सब बातों का अर्थ यही है कि जब आवश्यकता
−
न हो तो वस्तु का उपयोग नहीं करना चाहिए । अगर उस
−
समय वस्तु का उपयोग करेंगे तो वह व्यर्थ जायेगा ।
−
−
किसी वस्तु का व्यर्थ में उपयोग करना, यह
−
लापरवाही है । अतः किसी भी वस्तु का व्यर्थ में उपयोग
−
नहीं करना चाहिए |
−
−
इसलिए आज हम व्यर्थ के उपयोग को किस प्रकार
−
रोकना चाहिए, जानेंगे ।
−
−
व्यर्थ में पानी मत बहाओ
−
पानी को व्यर्थ न गँवाओ |
−
−
र्घडे
−
−
झरने का पानी कैसा “कलकल' बहता है ।
−
−
नदी का पानी भी कलकल - छलछल बहता है ।
−
−
समुद्र का पानी शान्त होता है ।
−
−
ये सभी आवाजें सबको अच्छी लगती है । वर्षा का
−
रिमझ्िम - रिमझिम गिरता पानी देखकर तो गीत गाने का
−
मन करता है.....। जरा सोचें, क्या हम पानी के बिना
−
जीवित रह सकते हैं, भला ? बिल्कुल नहीं ।
−
−
प्यास लगते ही पानी न मिले तो ऊपर-नीचे हो जाते
−
हैं। क्यों कि पानी ही जीवन है । इसलिए पानी का सोच
−
समझकर उपयोग करना चाहिए । पानी को व्यर्थ में नहीं
−
बहाना चाहिए । इसके लिए हमें क्या - क्या करना
−
चाहिए ?
−
−
१, पानी पीते समय जितना चाहिए उतना पानी ही लेना
−
चाहिए । पहले अधिक लेना और बाद में बचा हुआ
−
फेंक देना । अपने इस व्यवहार को बदलना चाहिए ।
−
−
२... कपड़े धोने, बर्तन साफ करने, नहाने और साफ-सफाई
−
के लिए पानी की आवश्यकता पड़ती है । इसलिए
−
आवश्यकता के अनुसार ही पानी का उपयोग करना
−
चाहिए । नल को खुला छोड़ कर हाथ-मुँह नहीं
−
धोना, बाल्टी और मग का उपयोग करना चाहिए ।
−
इसी प्रकार फव्वारे के नीचे खड़े खड़े नहाने से पता ही
−
नहीं चलता कि कितना पानी व्यर्थ में बह गया |
−
−
3. वर्षा का पानी हमारे घर की छत पर गिरता है और
−
नाली से होता हुआ बाहर गली में बह जाता है । हमें
−
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−
−
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−
−
−
−
इस पानी को घर के टेंक में इकट्ठा
−
करना चाहिए । इसके लिए बाहर खुलने वाली
−
नालियों के मुँह टेंक्सें जोड़ देने चाहिए ।
−
गर्मियों में पानी घटता है, कुँए सूख जाते हैं । अगर हमने
−
वर्षाका पानी जमीन में उतारा तो कुँए नहीं सूखेंगे । और
−
गर्मियों में भी पानी की कमी नहीं होगी ।
−
पानी का सदुपयोग करो । पानी को फालतू में
−
बहाओगे तो जीवन संकट में पड़ जायेगा ।
−
−
पानी रोको, पानी बचाओ और पानी को जमीन
−
में उतारो ।
−
−
बिजली जलाओ, सावधानी से
−
−
पानी से ही बिजली उत्पन्न होती है । बिजली का
−
महत्त्व भी खूब है । हम बिजली का उपयोग किस किस
−
काम में करते हैं ?
−
−
बल्ब, पंखा, फ्रिज, ईस्त्री, टी.वी. रेलगाड़ियाँ मशीनें
−
आदि अनेक वस्तुओं को चलाने के लिए बिजली का
−
उपयोग होता है ।
−
−
बिजली पानी में से पैदा होती है । बिजली कोयले से
−
भी बनाई जाती है । पानी कम होगा तो बिजली कम
−
बनेगी । कोयला कम होगा तब भी बिजली कम बनेगी |
−
इसलिए बिजली का उपयोग भी सावधानी पूर्वक करना
−
चाहिए । सबको बिजली चाहिए । ऐसी बिजली फालतू में
−
खर्च न हो, इसके लिए क्या करना चाहिए ?
−
−
कमरे से बाहर निकलते समय बल्ब, पंखा, एसी बन्द
−
करने चाहिए । ताला लगाने से पहले देख लेना चाहिए कि
−
सब खटके बन्द हैं या नहीं ।
−
−
जो काम बिजली के बिना हो सकते हैं, उन कामों को
−
हाथ से करना चाहिए । रसोई घर में बिजली की खपत अधिक
−
होती है । मिक्सर के बदले हाथ घोटनी काम में ली जा सकती
−
है । ऐसा करके हम माँ की सहायता भी कर सकेंगे ।
−
−
बिजली की ईस्त्री के स्थान पर कोयले की ईस््री काम
−
में ली जा सकती है ।
−
−
आजकल सूर्य की उष्मा से चलने वाले उपकरण
−
बनने लगे हैं, हमें सौर उर्जा से चलने वाले साधनों का
−
−
श्घ्ढ
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
−
−
उपयोग करना चाहिए ।
−
पूरे दिन टी.वी. देखना बन्द करना चाहिए । इससे
−
बिजली तो बचेगी ही हमारी आँखें भी खराब नहीं होंगी ।
−
इस प्रकार जितना सम्भव हो, उतना बिजली का
−
फिजूल खर्च टालना चाहिए ।
−
−
लकड़ी कुदरती सम्पत्ति है
−
−
हम लकड़ी का उपयोग किस किस में करते हैं ?
−
लकड़ी से घर में अनेक वस्तुएँ बनती हैं । जैसे कुर्सी-
−
टेबल, पलंग, अलमारी, खिड़की-दरवाजे आदि अनेक
−
वस्तुएँ बनती हैं ।
−
−
अनेक प्रदेशों में घर भी लकड़ी के ही बनते हैं ।
−
खेती तथा अन्य अनेक व्यवसायों में लकड़ी से बने साधन
−
काम आते हैं ।
−
−
लिखने के लिए कागज तथा वस्तुएँ रखने के डिब्बे
−
भी लकड़ी से ही बनते हैं ।
−
−
खिलौने भी लकड़ी के बनते हैं ।
−
−
इनमें कितनी ही वस्तुएँ आवश्यक होती हैं तो कितनी
−
ही केवल शोभा श्रृंगार के लिए होती हैं। हम घर की
−
सजावट इन्हीं लकड़ी की वस्तुओं से करते हैं ।
−
−
परन्तु लकड़ी का बढ़ता उपयोग हमारे लिए संकट
−
खड़ा कर सकता है, जैसे ?
−
−
लकड़ी कहाँ से मिलती है ? वृक्षों से, लकड़ी प्राप्त
−
करने के लिए वृक्ष काटने पड़ते हैं । आवश्यकता से अधिक
−
वृक्ष काटने से धीरे धीरे जंगल समाप्त हो जाते हैं ।
−
−
जब जंगल ही नहीं रहेंगे तो पानी बरसाने वाले
−
बादलों को कौन रोकेगा ? जब बादल नहीं रुकेंगे तो वर्षा
−
कैसे होगी ? वर्षा नहीं होगी तो नदियों व कुँओं में पानी
−
कहाँ से आयेगा ? पानी की कमी होगी तो पशु-पक्षी और
−
मनुष्यों का जीवन संकट में पड़ जायेगा । वृक्ष भी बिना
−
पानी सूख जायेंगे ।
−
−
अतः लकड़ी का उपयोग जितना आवश्यक है, उतना
−
ही करना चाहिए । हम अनावश्यक लकड़ी जलाकर उसका
−
बिगाड़ करते हैं । एक दूसरे की देखादेखी में भी व्यर्थ खर्च
−
करते हैं ।
−
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−
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−
−
−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
−
−
लकड़ी का इस तरह बिगाड़ करना, यह ना समझी... वाहन का उपयोग कीजिए । निकट में
−
है। वृक्ष उगाओ, वृक्षों का पालन करो और वृक्षों का... जाना है तो साइकिल का उपयोग कीजिए । यही सबके
−
रक्षण करो । लिए योग्य है ।
−
−
सादगी अपनाओ, ईंधन बचाओ ।
−
पेट्रोल - डीजल बचाओ
−
−
क्यों, बालमित्रों । गर्मी की छुट्टी में बड़ा मजा आता... शनं को बचाओ
−
−
है। पढ़ने की चिन्ता नहीं, खेलना और धूमना बस ! माँ ने नन्दिनी को भोजन करने के लिए बुलाया ।
−
आनन्द ही आनन्द । नन्दिनी ने कहा, हाथ धोकर आ रही हैँ ।
−
तुम्हें घूमने जाना पसन्द है, न ? नन्दिनी हाथ-पैर धोकर भोजन करने बैठी । at
−
−
हम रेल, बस, कार, विमान, जहाज द्वारा यात्रा करते... वाह ! आज तो सभी मन पसन्द वस्तुएँ बनी हैं । भूख भी
−
हैं। इन सभी वाहनों के लिए पेट्रोल, डीजल या बिजली... जोर की लगी है । उसने तो फटाफट खाना शुरु कर दिया ।
−
की आवश्यकता पड़ती है । गरमागरम मस्त दाल-भात बने हैं । वह तो मजे ले लेकर
−
−
तुम अपनी माँ के साथ नजदीक ही दुकान पर जाते... खाये जा रही है । इतने में उसकी माँ का ध्यान नन्दिनी की
−
हो । किस साधन से ? स्कूटर से । स्कूटर के लिए भी तो... ओर गया तो देखा कि फटाफट खाने से भोजन के कण नीचे
−
पेट्रोल या डीजल की जरूरत पड़ती है । इसलिए इतना... गिर रहे हैं ।
−
−
निकट जाने के लिए स्कूटर का उपयोग करना ठीक नहीं । माँ ने डाँटते हुए कहा, नन्दिनी ! अच्छी तरह भोजन
−
क्यों ? कर, बाहर मत गिरा ।
−
−
इन वाहनों को चलाने में लगने वाला पेट्रोल या नन्दिनी ने तो अपनी उसी मस्ती में जवाब दे दिया,
−
डीजल जमीन में से निकाला जाता है । हम वाहनों को जहाँ... थोड़ा गिर गया होगा । क्या फर्क पड़ता है, गिरने से ?
−
चाहें, वहाँ ले जायेंगे तो कुछ ही समय में पेट्रोल - डीजल माँ ने समझाया, देख बेटा ! इस तरह खाकर अन्न
−
−
समाप्त हो जायेंगे । ये लकड़ी की तरह तो है नहीं कि पेड़ को बिगाड़ मत । यह गिरा हुआ व्यर्थ जाता है । तुझे पता
−
काटा तो वह फिर से उग आयेगा । ये तो एकबार समाप्त... है, अन्न कितनी मुश्किल से उगाया जाता है ?
−
−
हुए हुए तो फिर नहीं बनते । इसके अतिरिक्त ये महँगे होने माँ ने बात को आगे बढ़ाया, ऐसे कितने ही लोग हैं
−
से पैसा भी बहुत खर्च होता है । जिन्हें एक समय भी भरपेट खाने को नहीं मिलता, उन्हें
−
−
लगातार वाहन पर चलने से, पैदल चलने की आदत भूखा ही सोना पड़ता है । हमें तो भरपेट खाने को मिलता
−
छूट जाती है । चलना स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त उपयोगी... है, इसलिए अन्न बिगाड़ना नहीं, व्यवस्थित ढंग से खाना
−
और आवश्यक है । पैदल चलने से पेट्रोल व डीजल की... चाहिए।
−
भी बचत होती है । इतने में ही नन्दिनी खड़ी हो गई । उसने थाली में
−
−
इन वाहनों के अधिक उपयोग से वायु प्रदूषण अधिक... बहुत सारी सामग्री छोड़ दी थी । माँ ने फिर कहा, बेटा !
−
होता है । इसका धूँआ सारी हवा में फैल जाता है । दूसरी. थाली में झूठा नहीं छोड़ते । अन्न बहुत मूल्यवान है । अन्न
−
और सारे वाहनों की चिल्ल-पौं से ध्वनि प्रदूषण भी होता... तो पुर्णब्रह्म है, झूठा छोड़कर उसका अपमान नहीं करना
−
है । ये सभी प्रदूषण पर्यावरण को हानि पहुँचाते हैं । चाहिए । उसे खाजा |
−
−
इसलिए यों ही चक्कर मारने के लिए बड़ों से वाहन अपनी आवश्यकता से थोड़ा कम ही लेना चाहिए ।
−
चलाने की जिद मत करना । इससे ईंधन की बचत होगी... आवश्यकता हो तो दुबारा ले लेना चाहिए, परन्तु बिगाड़ना
−
और पैसा भी बचेगा । काम से दूर दूर जाने के लिए ही... नहीं चाहिए ।
−
−
REQ
−
�
−
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−
−
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
−
−
अब जाकर नन्दिनी को सारी... चाहिए। बस्ते में चाहे जैसे दटूँस-दूँस कर नहीं भरना
−
बात समझ में आई उसने निश्चय किया कि आज से भोजन... चाहिए ।
−
−
करते समय कभी नीचे नहीं गिराउँगी और थाली में झूठा भी ऐसा करने से हमारी कोई भी वस्तु बेकार नहीं
−
नहीं छोडूँगी । और किसी भी तरह से अन्न का बिगाड़ नहीं... जायेगी । हम अधिक समय तक उनका उपयोग ले पायेंगे ।
−
करूँगी । नई पुस्तकें रखो सम्भाल ।
−
अब नन्दिनी समझदार हो गईं थी । देखो बुद्धि का कमाल ॥।
−
पुस्तकों व कॉपियों को सम्भालकर रखो कपड़ों को साफ रखो
−
मित्रों। कक्षा चल रही है, तुम्हारी कॉपी तुम्हारे भगवान ने हमें सुन्दर रूप दिया है । उसे हमें सजाना
−
सामने रखी है और तुम उसमें लिख रहे हो । चाहिए । सर्दी, गर्भी व वर्षा से उसकी रक्षा करने के लिए
−
लिखते समय भूल हो जाती है और तुम पूरा पन्ना ही... हमें मौसम के अनुकूल कपड़े भी पहनने चाहिए ।
−
फाड़ डालते हो । कभी-कभी कॉपी में से पन्ना फाड़कर हमें अपने कपड़े स्वच्छ व व्यवस्थित रखने चाहिए ।
−
−
उसकी हवाई जहाज बनाकर उड़ाते हो । ऐसा करने से... परन्तु हम क्या क्या करते हैं, यह जानते हो ? तुम्हें तुम्हारे
−
कॉपी का बन्धन ढ़ीला पड़ जाता है और कॉपी खराब हो... माता-पिता सुन्दर कपड़े खरीद कर देते हैं । कुछ ही दिन
−
जाती है । पहनने के बाद तुम उन कपडों से ऊब जाते हो और फिर से
−
कक्षा में पेंसिल से लिखते समय भार देकर लिखते... नये कपड़े लाने की जिद करते हो । इस तरह पुराने कपड़े
−
हो, जिससे उसकी नौंक टूट जाती है और उसे बार बार... बेकार हो जातें हैं ।
−
छीलना पड़ता है । बार-बार छीलने से पेंसिल जल्दी खत्म हमें ऐसा नहीं करना चाहिए । आवश्यकतानुसार ही
−
हो जाती है । हमें कपड़े लेने चाहिए । बहुत अधिक महेँगे कपड़े भी नहीं
−
पुस्तक पढ़ते समय हम उसे दोहरी मोड़ देते हैं, जिससे. लेने चाहिए । क्योंकि तुम्हारी उम्र बढ़ने के साथ साथ
−
पुस्तक खराब हो जाती है । पुस्तक पर पैन से या पेंसिल से... तुम्हारा शरीर भी बढ़ता है और कपड़े छोटे पड़ जाते हैं या
−
लकीरें बना डालते हैं, कुछ भी लिख देते हैं । ऐसी पुस्तकें. तंग हो जाते हैं । फिर वे काम नहीं आते ।
−
पढ़ने लायक नहीं रहती । पुस्तक को हम सम्भालकर नहीं तब फिर से नये कपड़े लेने पड़ते हैं । पुराने कपड़े
−
रखते, उसका मुखपृष्ठ फट जाता है । परीक्षा आने आने तक... छोड़ने पड़ते हैं । उन पर खर्च किये गये पैसे भी बेकार जाते
−
तो वह फटेहाल हो जाती है, इसलिए नई लानी पड़ती है। S|
−
पैन से लिखते समय भी सावधनी रखनी पड़ती है । तैयार कपड़े लेने के बदले अपने माप के अनुसार
−
बार बार स्याही नहीं छिटकनी चाहिए । भार देकर नहीं. कपड़े सिलाने चाहिए । वे अधिक टिकाऊ होते हैं । उन्हें
−
लिखना चाहिए अन्यथा निब या रीफिल खराब हो जाती... हर बार धोकर स्वच्छ रखना चाहिए । कहीं से थोड़ा फट
−
है । हम रीफिल खत्म होने से पहले ही फेंक देते हैं, पैन. जाय अथवा बटन टूट जाय तो तुर्त टाका लगाना चाहिए
−
−
बेकार हो जाता है । या बटन लगाना चाहिए । ऐसा करने से कपड़े अधिक समय
−
यह सब नहीं करना चाहिए । ऐसी छोटी-छोटी. तक चलते हैं ।
−
कितनी सारी वस्तुएँ हम बेकार करके फेंक देते हैं । घर पर जो कपड़े छोटे पड़ गये हैं या तंग हो गये हैं, उन्हें
−
−
सभी वस्तुओं को व्यवस्थित रखना चाहिए । कापियाँ व... जरूरतमंद लोगों को दे देना चाहिए । इस तरह वे बेकार पड़े
−
किताबें सही सलामत रखनी चाहिए । पुस्तकों व कॉपियों |= नहीं रहेंगे, उनका भी सदुपयोग हो जायेगा ।
−
पर पुट्ठे चढ़ाने चाहिए। उन्हें अच्छी तरह सम्भालना माँ पुराने कपड़ो से रुमाल, गमछा आदि बना देती
−
−
रद्द
−
�
−
−
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−
−
−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
है। उन्हें हमें उपयोग में लेना चाहिए । माँ के हाथों बने पैसा बहुत महत्त्व की वस्तु है ।
−
होने कारण वे अधिक प्रिय हो जाते हैं । हम प्रसन्नता से... पैसा देकर ही अन्य वस्तुएँ प्राप्त कर सकते हैं । इसलिए
−
उन्हें पहनते हैं । पैसा बहुत सोच-समझकर खर्च करना चाहिए । पैसा कमाने
−
−
ऐसा करोगे तो कुछ भी बेकार नहीं जायेगा । जबतक ... में बापुजी को बहुत मेहनत करनी पड़ती है । इसलिए किसी
−
कपड़ा फटेगा नहीं तब तक उसका पूरा पूरा उपयोग होगा । वस्तु को लेने के लिए जिद नहीं करनी चाहिए । वे जो
−
लाकर देते हैं, उनका आनन्दुपूर्वक उपयोग करना चाहिए ।
−
अब समझ में आया होगा कि पैसा कितना महत्त्वपूर्ण
−
मित्रों । तुम्हें बाजार में जाना अच्छा लगता है न !.. है। अगर आज तुम पैसे का उपयोग विचार पूर्वक करोगे
−
मन पसन्द वस्तुओं की दुकानें, रंग-बिरंगे खिलौने, स्वादिष्ट तो ही वह पैसा आपके अच्छे कामों में साथ देगा ।
−
खाने पीने की वस्तुएँ देखकर ही मुँह में पानी आ जाता... इसीलिए तो कहा जाता है, पैसा ही सबकुछ है ।
−
होगा । फिर तो तुम अपने अपने माँ-बापुजी से लेने की
−
जिद करते होंगे । समय का पालन करना सीखो
−
कोई अच्छी वस्तु तुम्हारे मित्र के पास हो तो तुम्हें बिजली, पानी, ईंधन, अन्न, शालोपयोगी वस्तुएँ
−
भी ऐसा लगता है कि यह वस्तु तो मेरे पास भी होनी... आदि। ये सभी वस्तुएँ हमारे लिए महत्त्वपूर्ण हैं । इसलिए
−
चाहिए । फिर तो तुरन्त खरीदकर लाने का आग्रह शुरु हो. इन्हें व्यर्थ में गँवाना नहीं चाहिए । यह आपकी समझ में
−
जाता है, और जब तक वह वस्तु हाथ में नहीं आ जाती... आया होगा ?
−
तब तक आग्रह चालू ही रहता है । मित्रों । अभी भी कितनी ही महत्त्वपूर्ण ऐसी वस्तुएँ हैं
−
परन्तु ऐसा करना ठीक नहीं है। हमारे लिये. जो हमें दिखाई तो नहीं देती परन्तु हमारे लिए बहुत
−
आवश्यक ऐसी सभी वस्तुएँ हमें हमारे माँ-बापुजी लाकर... आवश्यक होती हैं । 'समय' यह एक ऐसी ही महत्त्वपूर्ण
−
देते ही हैं । वस्तु है। गया हुआ समय फिर कभी भी लौट कर नहीं
−
टी.वी. पर तुम अनेक वस्तुओं का विज्ञापन देखते. आता । आप प्रतिदिन का समय पत्रक बनाते हैं न । समय
−
हो । तुम्हें विज्ञापन वाली वस्तु पसन्द आ जाती है । वह... पत्रक बनाने के बहुत लाभ हैं । किस समय कौनसा काम
−
वस्तु शीघ्र ही बापुजी लाकर मुझे दें, ऐसा तुम्हें लगता है ।... करना है, यह ध्यान में रहता है, इसलिए व्यर्थ में समय नहीं
−
तुम विज्ञापन देख-देखकर उसके शिकार हो जाते हो, .... जाता । पढ़ना, खेलना, भोजन करना, आराम करना, घर के
−
और धोखा खाते हो । विज्ञापन वाली वस्तुएँ बहुत अच्छी... कामों में सहयोग करना आदि सभी काम प्रतिदिन करने ही
−
होती हैं और जरूरी होती हैं, यह तुम्हारे मन में बैठ जाता... चाहिए।
−
है। परन्तु वे वस्तुएँ उतनी अच्छी नहीं होती, जितनी कभी-कभी हम सारा दिन खेलते ही रहते हैं, उस
−
दिखाई जाती है । माँ-बापुजी इस बात को जानते हैं, वे... समय तो भूख भी नहीं लगती | कभी पढ़ते ही रहते हैं तो
−
मना करते हैं । परन्तु तुम्हें लगता है कि वे दिलाना नहीं... कभी यों ही बैठे-बैठे बेकार में समय गाँवा देते हैं । कभी
−
चाहते । इसलिए तुम जिद कर लेते हो, वस्तु घर में आ.... दिनभर टी.वी. अथवा कम्प्यूटर के सामने अड्डा जमा लेते
−
जाती है, परन्तु बेकार होकर पड़ी रहती है । व्यर्थ में पैसा. हैं । अन्यथा पूरा दिन आलसी की तरह बिस्तर में पड़े रहते
−
खर्च होता है । हैं । यह तो समय बिगाड़ना है । हमें समय नहीं बिगाड़ना
−
ऐसा ही कपड़ों में होता है । दूसरे मित्रों की देखादेखी चाहिए, उसका पूरापूरा उपयोग करना चाहिए । क्योंकि
−
में तुम वह खरीद तो लेते हो, परन्तु व्यर्थ में पैसा खर्च होता... बीता हुआ समय फिर लौट कर नहीं आता ।
−
है, उसका क्या ? तुम्हें भी उनकी बात माननी चाहिए । प्रत्येक काम समय पर करो । एक पल भी खाली मत
−
−
पैसा सोच-समझकर खर्चकरो
−
−
२६७
−
�
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−
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
−
−
बैठो । तुम विद्यार्थी हो इसलिए अधिक. जमीन पर गिरा दिया । राम एक भी शब्द बोले बिना उठा
−
समय पढ़ाई में लगाओ । मन लगाकर पढ़ो । केवल पुस्तक... और अपने रास्ते जाने लगा ।
−
−
लेकर बैठने से पढ़ाई नहीं होती, उससे तो समय बिगड़ता परन्तु नन्दू और गणपत उसका बस्ता खींचने लगे ।
−
है, इसलिए समझकर पढ़ो । समझने में मन लगाओ, समय. तब भी राम कुछ नहीं बोला । चारोंने राम को खूब चिड़ाया
−
का पूरा पूरा सदुपयोग करो । और उस पर टूट पड़ने की तैयारी में ही थे कि इतने में
−
अवकाश के दिनों में आलसी मत बनो । खूब खेलो, शिक्षिका वहाँ आ पहुँची ।
−
खूब सीखो, सीखने के लिए बहुत सारा पड़ा है । खूब बहनने उन चारों को बहुत फटकारा, परन्तु रामने यही
−
पुस्तकें पढ़ो । इससे ज्ञान बढ़ता है, फिर पछताना नहीं. कहा, बहन हम तो खेल रहे थे । इन्हें फटकारो मत । बहन
−
पड़ता । राम के मुँह के सामने देखती ही रह गई ।
−
समय मत बिगाड़ो, समय का सदुपयोग करो । इतने में वहाँ एक दुर्घटना घटी । एक बूढ़ा व्यक्ति
−
−
अपने सिर पर बहुत भारी सामान रख कर ले जा रहा था ।
−
शक्ति का सदुपयोग करो उसे रस्ते में बना हुआ खडड़ा दिखाई नहीं दिया । और वह
−
विद्यालय की छुट्टी हुई । सभी बालक घर जाने के. उस खड्डे में गिर गया । उसका सारा सामान नीचे गिर गया
−
लिए निकले | राम पैदल ही घर जाता था । बंटी, नन््दू, .. और बिखर गया |
−
भोला और गणपत की टोली भी घर की तरफ जा रही थी । राम तुरन्त दौड़कर गया, उसने बूढ़े को सहारा देकर
−
जाते जाते ये चारों रास्ते में खड़े हो गये । उठाया । उसका बिखरा सामान इकट्ठा किया और बोला,
−
यह टोली कक्षामें खूब शरारतें करती थी । ये कभी. दादा चलो मैं आपको छोड़ आता हूँ। आपको कहाँ जाना
−
किसी की नहीं मानते थे । पढ़ने से तो ये कोसों QI! है ? दादाने कहा, बेटा ! रहने दे । मुझे तो उस ओर दूर की
−
आज तो शिक्षिका बहनने उन्हें राम की कॉपियाँ दिखाई. दुकान जाना है । उसके मना करने पर भी रामने बोझा उठा
−
और खूब डाँट लगाई । लिया । और उसके साथ-साथ चलने लगा ।
−
राम की कॉपियाँ बहुत व्यवस्थित थीं । राम सभी यह सारा दृश्य वह चौकड़ी भी देख रही थी ।
−
बातों में बहुत व्यवस्थित था । उसका लेख भी बहुत सुन्दर शिक्षिका बहनने उन्हें कहा, देखो । इसीलिए राम सबका
−
था । इसलिए वह सबका लाडला भी था । परन्तु यह... लाडला है । बंटी, राम तुझे भी मार सकता है । उसमें इतनी
−
चौकड़ी राम से नाराज रहती थी । शक्ति है, परन्तु उसमें वह समझ भी है कि अपनी शक्ति
−
आज तो कक्षा में राम के कारण ही शिक्षिका बहन ने. हमेशा अच्छे कामों में लगानी चाहिए । कभी भी गलत
−
उन चारों को डाँटा था । इसलिए उन्होंने राम को पाठ पढ़ाने. कामों में शक्ति खर्च नहीं करनी चाहिए । गलत कामों में
−
का निश्चय किया । इतने में उन्हें दूर से राम आता दिखाई. शक्ति खर्च करना, उसे खड्डे में डालने के समान है ।
−
दिया । अपनी शक्ति का सदुपयोग करो । उससे हमारा भी
−
बंटीने कहा, मैं राम को ऐसा फटकारूँगा कि वह आगे... भला होगा । हमेशा दूसरों के भले के लिए अपनी शक्ति का
−
से कभी हमारे सामने आने की हिम्मत ही नहीं करेगा ।. उपयोग करना चाहिए । शक्ति को चाहे जहाँ नष्ट नहीं करनी
−
विद्यालय से ही अपना नाम कटवा लेगा । चाहिए । अच्छे कामों में ही उसका उपयोग करना चाहिए ।
−
गणपतने कहा बंटी, मैं भी तुम्हारी मद्द में खड़ा
−
रहूँगा । बंटीने कहा, मैं तुम सबकी तुलना में अधिक मीठा बोलो, तोल कर बोलो
−
शक्तिशाली हूँ । मैं अकेला ही राम के लिए भारी पड़ुँगा । मित्रों, हम सदैव किसी न किसी के साथ बोलते ही
−
राम के पास में आते ही बंटीने उसे धक्का मार कर... रहते हैं । बोलते समय हम अनेक शब्द उपयोग में लाते हैं ।
−
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−
−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
−
−
उनमें कुछ शब्द तो आनन्द देने वाले होते हैं जबकि कुछ मीरा आई तो बहिनजीने उसे
−
शब्द दुःख पहुँचाते हैं । किसी शब्द के कारण क्रोध आता... बताया कि आज बुधवार है, आने वाले शनिवार को हमारे
−
−
है तो कोई शब्द रुलाने वाला होता है । विद्यालय में भाषण की प्रतियोगिता होगी । अपनी कक्षा में
−
किसी वाक्य को सुनकर दुःख होता है, क्योंकि वह... से मैंने तुम्हारा नाम लिखवाया है । इसलिए तू आजसे ही
−
वाक्य उद्दण्डता पूर्ण होता है । तैयारी शुरु कर दे ।
−
तुम्हें कोई पुस्तक चाहिए । तुम अपने मित्र से कहते प्रतियोगिता का विषय है, “मेरा प्रिय cater’
−
हो, “सुन ! तेरी गणित की पुस्तक दे ।' तो उसे गुस्सा तुमने आजतक कभी किसी प्रतियोगिता में भाग नहीं
−
आयेगा परन्तु उसके बदले तुम यह कहोगे, “कया तुम मुझे. लिया, इसलिए तुम्हारा नाम निश्चित किया है ।
−
अपनी गणित की पुस्तक दोगे ?' तो वह तुरन्त ही राजी- मीरा बोलने से घबराती थीं, इसलिए उसने बहिनजी
−
राजी अपनी गणित की पुस्तक दे देगा । को मना कर दिया । घर आकर वह रोने लगीं । माँ ने उसे
−
सामने वाले व्यक्ति के साथ बात करते समय... गोद में बिठाकर पूछा तो सारी बात ध्यान में आ गाई ।
−
नप्रतापूर्वक बोलना चाहिए । अगर हम फ्रोधित होकर बात माँ ने कहा, अरे ! तू रो किसलिए रही है ? इतना
−
करेंगे तो क्रोध में हमारे मुँह से कठोर शब्द ही निकलेंगे । अच्छा अवसर तुझे मिला है, घबरा मत । मेहनत कर, मैं
−
−
शब्द तीर के समान होते हैं । धनुष से छूटा हुआ तीर... तेरी मदद करूँगी । प्रयत्न करने से सबकुछ आता है । बहुत
−
जैसे लौटता नहीं, उसी प्रकार मुँह से निकला शब्द भी... अच्छी तरह याद कर । आये हुए अवसर को कभी जाने
−
वापस नहीं आता । इसलिए शब्दों का उपयोग सोच-.... नहीं देना चाहिए ।
−
−
समझकर करना चाहिए | ऐसे रोया मत कर, तुझे बड़ा होना है न ! तब फिर
−
लगातार बोलते नहीं रहना चाहिए । हमेशा अर्थपूर्ण . बिल्कुल घबरा मत और भाषण की तैयारी कर ।
−
बात ही करनी चाहिए । व्यर्थ की बकबक टालनी चाहिए । मीरा ने मन में निश्वय किया । खूब मेहनत की और
−
−
इसका अर्थ यह है कि फालतु शब्द नहीं निकालना... शनिवार को भाषण प्रतियोगिता में बहुत अच्छा भाषण
−
−
चाहिए । बहुत अधिक बोल-बोल करने से भी थकान होती. दिया । और उसे प्रथम पारितोषिक मिला ।
−
−
है। देखो ! अगर मीरा ने आया हुआ अवसर जाने दिया
−
भगवानने अच्छा बोलने के लिए हमें मुँह दिया है ।. होता तो वह भाषण से डरती ही रहती । उसे अपनी क्षमता
−
−
कभी भी गलत नहीं बोलना चाहिए । हम अच्छा बोलेंगे तो... ध्यान में नहीं आती ।
−
−
दूसरे लोग हमारे साथ भी अच्छा बोलेंगे । इसलिए प्रत्येक अवसर का लाभ उठाना चाहिए ।
−
किसी पर भी क्रोधित नहीं होना चाहिए । फ्रोधमें... कोई भी अवसर जाने मत दो । प्रयत्न करो, यश तो मिलता
−
−
गालियाँ नहीं बोलनी चाहिए। सार्थक ste, Pele ही है ।
−
−
बोलकर शब्द और शक्ति का दुरुपयोग नहीं करना । बोलने
−
−
से पहले इस सूत्र को याद करना... व्यर्थ मत गँवाओ
−
*मीठो मीठो बोल तोल तोल बोल ।' व्यर्थ मत गँवाओ, और खुशियाँ लाओ ।
−
पानी बिजली और अनाज,
−
योग्य अवसर का लाभ उठाओ इनसे चलता जीवन काज |
−
कक्षा चल रही थी । बहनजी ने कक्षा में प्रवेश किया पेट्रोल डीजल और लकड़ी,
−
तो सबने उन्हें नमस्ते किया । बहनजी ने उपस्थिति भरी ईंधन बिना गाड़ी अटकी
−
और मीरा को बुलाया । पुस्तक-कॉपी और कपड़े ।
−
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−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
−
−
हम बैठे हैं इनको पकड़े । मीठा बोलो शहद घोलो |
−
बिन पैसे के है सब आधा, अवसर कभी न जाने दो,
−
करो जतन पायो ज्यादा । जीवन में खुशियाँ आने दो ।
−
समय बना है मूल्यवान, ये हैं जीवन का आधार,
−
इसका रखो सदा ध्यान । इन्हें बचाओ बेड़ा पार ।
−
शब्द के तीर कभी मत छोडो,
−
−
स्वायत्तता और अर्थक्षेत्र का प्रबोधन
−
−
अर्थनिष्ट नहीं, धर्मनिष्ठ समाजव्यवस्था में दर्शन और प्रसाद भी पैसे से मिलते हैं और पूजा करने
−
अर्थनिष्ठ समाजव्यवस्था में अर्थ का स्थान सर्वोपरि .. की भाग्य भी पैसे से प्राप्त होता है । विद्यालयों में प्रवेश भी
−
−
होगा । यह तो बिना कहे समज में आनी चाहिये ऐसी बात. रे से मिलता है और अधिक पैसा कमाकर देने वाले
−
है । अर्थनिष्ठ समाजव्यवस्था केवल भौतिक समृद्धि की ही विषयों का शुल्क अधिक होता है |
−
−
प्रतिष्ठा करती है ऐसा नहीं है या समाज की भौतिक समृद्धि संक्षेप में अर्थनिष्ठ समाजव्यवस्था में बाजार का ही
−
में ही वृद्धि करती है ऐसा नहीं है । भौतिक समृद्धि में सही... साम्राज्य होता है ।
−
अर्थ में वृद्धि तो जब धर्म के अविरोधि अर्थक्षेत्र होता है तब अर्थ की इस प्रतिष्ठा को जब तक धराशायी नहीं करेंगे
−
−
होती है । अर्थनिष्ठ समाज व्यवस्था में व्यक्ति समृद्ध होते हैं और उसे धर्म के शरण में नहीं लायेंगे तब तक शिक्षा भी
−
और समाज दरिद्र होता है यह एक बात है परन्तु इससे भी... अर्थनिरपेक्ष नहीं बन सकती ।
−
अधिक अनिष्ट यह है कि सारी व्यवस्था बाजार बन जाती अर्थ की प्रतिष्ठा हो जाने के बाद उसे समझाना बहुत
−
है और सारी अच्छी बातें बिकाऊ बन जाती हैं। जिस. कठिन बात है । सुभाषित कहता है, “अर्थातुराणां न गुर्कर्न
−
प्रकार यान्त्रिक शिक्षाव्यवस्था में सबकुछ अंकों में. sey.’ अर्थात् जिसके मनमस्तिष्क पर अर्थ सवार हो गया
−
रूपान्तरित कर ही मूल्यांकन होता है उस प्रकार अर्थनिष्ठ . है वह उसके लिये न कोई गुरु है न कोई स्वजन फिर अर्थ
−
समाजन्यवस्था में सबकुछ सिक्कों में परिवर्तित हो जाता है ।... को वश में कैसे किया जा सकता है ? जीवननिर्वाह के
−
भारत में धर्मनिष्ठ समाज व्यवस्था थी तब भूमि धन लिये अर्थ तो चाहिये । उसके लिये बेचने के लिये बिना
−
थी, गाय धन थी, हाथी, अश्व आदि पशु भी धन थे, विद्या... विद्या के कुछ है ही नहीं तो क्या करेंगे ? बेचने के लिये
−
भी धन थी और सन्तोष भी धन ही था किसान के बेटे भी... बुद्धि ही है तो कया करेंगे ?
−
उसके लिये धन ही थे । परन्तु इनका मूल्य सिक्कों में नहीं
−
आँका जाता था । उस समय की अर्थव्यवस्था अलग
−
मानकों पर आधारित थी । आज समाजव्यवस्था अर्थनिष्ठ मनुष्य की व्यक्तिगत रूप से ईश्वरप्रदत्त सम्पत्ति कौनसी
−
बन जाने के कारण पुरस्कार भी पैसे में दिया जाता है और. है ? प्रथम तो शरीर है । फिर मन है, बुद्धि है, अहंकार है ।
−
नुकसान भरपाई भी पैसे से ही की जाती है । विवाहविच्छेद् ... ये सब किस प्रकार बिकाऊ होते हैं ।
−
की नुकसानभरपाई भी पैसे से होती है और दुर्घटना में मृत्यु शरीर से श्रम किया जाता है, श्रम कर अनेक वस्तुयें
−
की भी पैसे से । परीक्षा में प्रथम क्रमांक प्राप्त करने पर पैसे... बनाई जाती हैं । शरीर श्रम से ही कारीगरी की वस्तुओं का
−
अथवा पैसे से खरीदी जाने वाली वस्तु मिलती है और. उत्पादन होता है, खेती होती है । शरीर के बल से कुश्ती
−
अच्छा गाने वाले को भी पैसे से नवाजा जाता है । मन्दिर... लडी जाती है । विविध प्रकार के खेल होते हैं, व्यायाम
−
−
ईश्वरप्रदत्त सम्पत्ति का बिकाऊ होना
−
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२७०
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−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
होता है । सुन्दर शरीर से विज्ञापन किये जा सकते हैं, देह
−
बेचा जा सकता है । देह मजदूरी के लिये और कामपूर्ति के
−
लिये बेचा जा सकता है ।
−
−
मन किस प्रकार बेचा जा सकता है ? किसी का
−
गुलाम बनकर मन बेचा जा सकता है ।
−
−
बुद्धि से ज्ञान ग्रहण किया जाता है, कल्पना की जा
−
सकती है, कठिनाइयों से मार्ग निकाला जा सकता है,
−
व्यवस्थायें बनाई जा सकती हैं, शास्त्र रचे जा सकते हैं,
−
अनुसन्धान किया जा सकता है ।
−
−
सुसंस्कृत समाज में इनमें से कया बेचने की अनुमति
−
है ? इनमें से लगभग कुछ भी नहीं ।
−
−
आज केवल कामपूर्ति हेतु देह बेचने को अच्छा नहीं
−
माना जाता है, मनुष्य को बेचना कानून से ही निषिद्ध है,
−
शेष तो सब कुछ बेचा जाता है ।
−
−
बुद्धि को बेचना जरा भी अच्छा नहीं है परन्तु आज
−
तो वह बडी सहजता से बेची जाती है और बेचने वालों को
−
बुद्दिजीवी कहा जाता है । दो वर्ग हो गये हैं - श्रमजीवी
−
और बुद्धिजीवी । तीसरा एक वर्ग है जिसे भले ही न कहा
−
जाता हो तो भी वह देहजीवी है । इनमें सबसे कम अच्छा
−
श्रमजीवी को माना जाना चाहिये और सबसे घटिया
−
बुद्धिजीवी को । भारत में सुसंस्कृत समाज के जीवननिर्वाह
−
के लिये आवश्यक पदार्थों को प्राप्त करने की और करवाने
−
की पद्धतियाँ ही अलग थीं । मनुष्य, मनुष्य का अस्तित्व,
−
मनुष्य का गौरव, मनुष्य की सुरक्षा मनुष्य की स्वतन्त्रता सब
−
से अधिक मूल्यवान मानी जाती थी और इनको बनाये रखने
−
हेतु सारी व्यवस्थायें बनी थीं । समाज स्वतन्त्र था,
−
गौरवान्वित था, सुसंस्कृत था और समृद्ध था ।
−
−
आज अर्थनिष्ठा के कारण इन सभी मूल्यवान तत्त्वों
−
का नाश हो गया है ।
−
−
अर्थनिरपेक्ष कैसे बनना
−
−
इस स्थिति में अर्थनिरपेक्ष कैसे बना जा सकता है ?
−
कुछ इन बातों पर विचार किया जा सकता है...
−
बुद्धि नहीं बेचने का निश्चय कौन कर सकता है,
−
बेचने वाला कि खरीदनेवाला ?
−
−
२७१
−
−
−
−
देह को नहीं बेचने का निश्चय
−
जिसका देह है वही कर सकता है, देह को खरीदने
−
वाला नहीं ।
−
परन्तु बुद्धि और देह कौन सी मजबूरी में बेचे जाते हैं
−
इसका विचार भी तो करने की आवश्यकता है ।
−
बुद्धि और देह बेचने वालों को प्रतिष्ठा किसने प्रदान
−
की है ?
−
क्या समाज धुरीणों को यह मान्य है ? क्या धर्माचार्यों
−
को यह मान्य है ?
−
यदि मान्य नहीं तो इस प्रवृत्ति को रोकने के लिये हम
−
क्या कर रहे हैं ? क्या कर सकते हैं । इस विषय पर गम्भीर
−
विचार करना चाहिये ।
−
−
हमारे दूष्टा ऋषि इस तत्त्व को समझते थे इसलिये
−
उन्होंने मनुष्य की ईश्वर प्रदत्त सम्पत्ति को बाजारू पदार्थ
−
बनाने का निषेध कर दिया था । इस कारण से ही समाज
−
समृद्ध और सुसंस्कृत था ।
−
−
परिवर्तन के बिन्दु
−
−
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अर्थक्षेत्र को भारतीय
−
जीवनव्यवस्था के साथ अनुकूल बनाने हेतु जो परिवर्तन
−
करने पडेंगे इस के मुख्य बिन्दु इस प्रकार होंगे...
−
−
१, मनुष्य की आर्थिक स्वतन्त्रता की रक्षा करनी
−
चाहिये । सर्व प्रकार की स्वतन्त्रता मनुष्य का ही नहीं
−
तो सृष्टि के सभी पदार्थों का जन्मसिद्ध अधिकार है ।
−
सृष्टि के अनेक पदार्थ मनुष्य के लिये अनिवार्य हैं ।
−
उदाहरण के लिये भूमि, भूमि पर उगने वाले वृक्ष,
−
पंचमहाभूत आदि मनुष्य के जीवन के लिये अनिवार्य
−
हैं । इनका उपयोग तो करना ही पड़ेगा परन्तु उपयोग
−
करते समय उनके प्रति कृतज्ञ रहना और उनका
−
आवश्यकता से अधिक उपयोग नहीं करना मनुष्य के
−
लिये बाध्यता है । किसी भी पदार्थ का, प्राणी का या
−
मनुष्य का संसाधन के रूप में प्रयोग नहीं करना परन्तु
−
उसकी स्वतन्त्र सत्ता का सम्मान करना आवश्यक
−
है । इस नियम को लागू कर मनुष्य की अर्थव्यवस्था
−
बननी चाहिये ।
−
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−
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−
−
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
−
−
इस दृष्टि से हर व्यक्ति को अपने... ऐसा सब स्वीकार करेंगे परन्तु जिन्हें इन बातों को बेचकर
−
−
अधथर्जिन हेतु स्वतन्त्र व्यवसाय मिलना चाहिये । लाखों रूपये मिलते हैं वे उस राशि को छोडने के लिये या
−
२.. हर मनुष्य को चाहिये कि अपना स्वामित्व युक्त. उस व्यवस्था को बदलने के लिये कैसे तैयार होंगे ?
−
व्यवसाय समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करने अर्थ अनिष्टकारी है यह बात ठीक है लेकिन अर्थ की
−
−
हेतु होना चाहिये, आवश्यकता नहीं है ऐसी वस्तुयें.. आवश्यकता कम करने के लिये कौन तैयार होगा ?
−
विज्ञापन के माध्यम से लोगों को खरीदने हेतु बाध्य
−
करने हेतु नहीं ।
−
−
3. ऐसा करना है तो केन्द्रीकृत उत्पादन की व्यवस्था
−
बदलनी होगी । छोटे छोटे उद्योग बढाने होंगे ।
−
−
¥. यन्त्रों का, परिवहन का, अथर्जिन हेतु यात्रा का, उस
−
निमित्त से होने वाला वाहनों का प्रयोग कम करना
−
−
अर्थक्षेत्र को भारतीय बनाना
−
−
इसलिये शिक्षा में परिवर्तन करना और उसे भारतीय
−
बनाना तो सहमत होने की बात है परन्तु अर्थक्षेत्र को
−
भारतीय बनाने की बात जल्दी समझ में नहीं आती ।
−
−
इस दृष्टि से तीन क्षेत्रों के साथ संवाद करना होगा ।
−
१, aes, शिक्षा और संस्कृति के विद्रज्जनों का
−
−
होगा | संवाद |
−
ही नि, ee an स्थान की दूरी कम करते करते २... उद्योजकों, उत्पादकों, प्रबन्धन क्षेत्र के तत्त्वों के साथ
−
६... अध्ययन और अथर्जिन हेतुसे स्थानान्तरण करना aa | विद्याविभूषितों
−
३... नौकरी करने वाले उच्च विद्याविभूषितों के साथ
−
पडता है और परिवार का विघटन शुरू होता है संबाद ।
−
जिसका आगे का चरण समाज का विघटन है । यह लोगों पवाद अधिक ले
−
परोक्ष रूप से संस्कृति पर प्रहार है। इसके इन लोगों का संवाद अधिक समय ले सकता है।
−
इनके मध्य राजकीय क्षेत्र के लोग भी जुडेंगे ।
−
−
मनोवैज्ञानिक दुष्परिणाम भी होते हैं ।
−
−
(इस विषय का विस्तारपूर्वक विचार “गृहअर्थशास्त्र
−
नामक ग्रन्थ में किया गया है इसलिये यहाँ केवल सूत्र ही
−
दिये हैं ।)
−
−
ज्ञान, अन्न, पानी, हवा, न्याय, चिकित्सा आदि
−
आर्थिक लेनदेन से परे हैं । ये वाणिज्य के विषय नहीं हैं ।
−
नौकरी अर्थव्यवस्था का आधार नहीं हो सकती । नौकरी
−
को सेवा भी नहीं कहा जा सकता । सेवा बहुत ऊँची चीज
−
है, उसका अर्थ से कोई सम्बन्ध नहीं ।
−
−
आज उत्पादन और बाजार क्षेत्र में वैश्विक प्रवाहों का
−
असर भी बहुत बडा है । अमेरिका, विश्व व्यापार संगठन,
−
विश्वबैंक आदि अनेक संस्थाओं का प्रभाव भारत के
−
अर्थक्षेत्र पर है । इससे मुक्त होने के रास्ते Ht Gest होंगे ।
−
शिक्षाक्षेत्र एक दीर्घकालीन योजना बनाये यह
−
आवश्यक है । आज जो विद्यार्थी छोटी आयु के हैं उन्हें
−
भारतीय अर्थव्यवस्था के मूलसूत्रों के आधार पर शिक्षा देने
−
की योजना करनी चाहिये । वे जब गृहस्थ बनें और अपना
−
tia अधथर्जिन शुरू करें तब अध्ययन के दौरान प्राप्त शिक्षा के
−
ये तो सारे तत्त्व हैं । इन्हें यदि भारतीय व्यवस्था के अनुसार करें ऐसी इस योजना की परिणति होनी चाहिये |
−
मूल तत्त्व माने तो यह ध्यान में आयेगा कि आज हम
−
−
विपरीत दिशा में बहुत दूर निकल गये हैं । हमारे गृहीत ही शिक्षा क्षेत्र को अर्थनिरपेक्ष बनाना
−
−
सर्वथा बदल गये हैं । इसके बाद अब शिक्षाक्षेत्र को अर्थनिरपेक्ष बनाने का
−
इन गृहीतों को बदलने के कारण जिन्हें घाटा हुआ है... विचार करना चाहिये ।
−
−
वे तो इन्हें बदलने के लिये तैयार हो जायेंगे परन्तु जिन्हें. १. पहला चरण पढ़ने हेतु शुल्क नहीं देने की व्यवस्था
−
−
लाभ ही हुआ है वे कैसे तैयार होंगे ? का विचार करना चाहिये । बडे बडे संस्थान भी इस
−
देह और बुद्धि बेचना अच्छा नहीं है यह तो सही है व्यवस्था में आज भी चल रहे हैं । धर्माचार्यों के पीठों
−
−
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−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
में ऐसी व्यवस्था होती है । उदाहरण के लिये सरकार
−
प्राथमिक विद्यालय निःशुल्क चलाती है । अनेक मठों
−
और धार्मिक संस्थाओं में निःशुल्क शिक्षा की
−
व्यवस्था होती है। यदि उत्पादन केन्द्र अपने
−
उत्पादन के लिये आवश्यक व्यक्तियों की निःशुल्क
−
शिक्षा की व्यवस्था करते हैं तो बहुत बडी मात्रा में
−
निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था हो जायेगी । सरकार
−
को जैसे व्यक्ति चाहिये उनका प्रथम चयन हो और
−
बाद में उनकी शिक्षा की व्यवस्था सरकार स्वयं करे ।
−
जो इस व्यवस्था में अपने व्यवसाय निश्चित करना
−
चाहें वे स्वयं अपने बलबूते पर अपने लिये शिक्षा
−
की व्यवस्था कर सकते हैं । उन्हें आजीविका देने की
−
जिम्मेदारी किसी की नहीं रहेगी । इस व्यवस्था में
−
शिक्षा भी ठीक रहेगी और रोजगारी का क्षेत्र भी ठीक
−
हो जायेगा ।
−
−
मातापिता यदि शिक्षित हैं तो साक्षरता अभियान के
−
अन्तर्गत जिस शिक्षा को हम अनिवार्य मानते हैं वह
−
शिक्षा अपने बालकों को देने की जिम्मेदारी स्वयं लें
−
ऐसा उन्हें आग्रह करना । जो लोग ऐसा नहीं कर
−
सकते हैं ऐसे बच्चों को साक्षर करने का काम
−
सामाजिक संगठनों को करना चाहिये । परन्तु इसमें
−
−
−
−
आपसी समझौते से श्रेष्ठ शिक्षक
−
अधिक सेवा करें ऐसी व्यवस्था हो सकती है । दो
−
सोसायटी आपसी समायोजन भी कर सकती हैं ।
−
परिवार का अपना व्यवसाय होता है तब शिक्षा के
−
लिये बाहर जाने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी ।
−
संस्कारों की शिक्षा का काम मठ-मन्दिरों को करना
−
चाहिये । वह अनिवार्य रूप से निःशुल्क रहेगी ।
−
इनका नौकरी से कोई सम्बन्ध नहीं रहेगा । इन
−
विद्याकेन्द्रों में जाने हेतु नैतिक अनिवार्यता बनाना
−
मातापिता और धर्माचार्यों का काम होगा ।
−
−
शास्त्रीय अध्ययन के लिये, अनुसन्धान के लिये,
−
गुरुकुल होंगे ही । ये गुरुकुल व्यावसायिकों के लिये
−
नहीं अपितु जिज्ञासुओं, ज्ञान की सेवा करनेवालों
−
और समाज की सेवा करने वालों के लिये होंगे ।
−
इन्हें गुरुकुल के आचार्य और समाज दोनों मिलकर
−
चलायेंगे ।
−
−
राज्य को स्वयं को यदि गुरुकुलों की सहायता करने
−
की इच्छा हो तो वह अवश्य करे ।
−
−
धीरे धीरे दूसरी पीढी तैयार होगी तो गुरुदक्षिणा के
−
रूप में गुरुकुलों का पोषण करेंगी ।
−
−
यह सारा काम आज के आज नहीं हो सकता यह तो
−
−
अपने बच्चों को साक्षर होने के लिये भेजना शिक्षित... स्पष्ट है। यह लोकमानस को परिवर्तित करने की बात है ।
−
मातापिता के लिये ऐसा माना जाना चाहिये जैसे... वह धीरे धीरे ही होता है। अतः हमें दो पीढ़ियों तक
−
अच्छा अथर्जिन करने वाले सदाब्रत में भोजन करने... निरन्तर रूप से इसे करने की आवश्यकता रहेगी ।
−
के लिये जायें । भारतीय शिक्षा की पुर्ननचना करने में अर्थक्षेत्र की
−
3 हर सोसायटी हर कोलोनी अपने बच्चों के लिये. gate off act vet) sah fed som पर्यायी
−
विद्यालय का प्रावधान करे । एक सोसायटी के बच्चे... अर्थतन्त्र की संकल्पना, बाद में उसकी रचना और उसके
−
वहीं पढ़ें । सोसायटी के लोग ही उन्हें पढायें । अच्छे, «= साथ ही अर्थतन्त्र के वर्तमान मांधाताओं के साथ संवाद
−
कम अच्छे, बहुत अच्छे शिक्षक उनमें हो सकते हैं । करने की आवश्यकता रहेगी ।
−
−
सरकार की भूमिका
−
−
शिक्षा की स्थिरता एवं स्वायत्तता माँग कर रहे हैं कि शिक्षा सरकारी नियन्त्रण से मुक्त होनी
−
आये दिन शिक्षाशाख्री कहते हैं कि शिक्षा सरकार के .... चाहिये और स्वायत्त होनी चाहिये । ये सब कहते हैं कि
−
नियन्त्रण से मुक्त होनी चाहिये । देशभर के शैक्षिक संगठन... आज शिक्षा बिल्कुल मुक्त नहीं है, सबकुछ सरकार के
−
−
२७३
−
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−
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
−
−
नियन्त्रण में है । इनका तो आगे जाकर मुख्य रूप से दो बातें दिखाई देती हैं ।
−
कहना है कि सरकार राजकीय पक्षों की बनती है, राजकीय १, सरकार दावा करती है ऐसी स्वायत्तता नहीं है।
−
पक्ष विभिन्न विचारधाराओं वाले होते हैं इसलिये जैसे ही. कार्य करने का दायित्व और हस्ताक्षर करने का अधिकार
−
सरकार बनाने वाला पक्ष बदलता है शिक्षा के मार्गदर्शक भले ही उस संस्थान के निदेशक का हो तो भी सर्वोच्च
−
और नियामक तत्त्व भी बदलते हैं । नीतियाँ बदलती हैं, अधिकार सरकार के पास है । उदाहरण के लिये सभी
−
योजनायें बदलती हैं, व्यवस्थायें बदलती हैं, व्यक्ति भी... राज्यस्तरीय विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति राज्यपाल और
−
बदलते हैं । कभी तो उसी पक्ष की सरकार पुनः बने परन्तु = केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति राष्ट्रपति होते हैं ।
−
मन्त्री परिषद बदल जाय तब भी सीधा शिक्षा पर परिणाम... सभी कुलपतियों की नियुक्तियाँ मन्त्री परिषद की अनुशंसा से
−
होता है । ऐसे में स्थिरता कैसे बनेगी ? शिक्षा जैसे क्षेत्र में राज्यपाल अथवा राष्ट्रपति करते हैं । सभी शिक्षा बोर्डी के
−
यदि स्थिरता नहीं रही तो समाज भी कैसे स्थिर बनकर. अध्यक्ष, सचिव आदि सरकार के मन्त्री और सचिव होते
−
प्रगति कर सकता है ? हैं । सभी विश्वविद्यालयों के कार्यकारी मण्डल और सेनेट में
−
यह एक छोर है । दूसरे छोर पर स्थिति कैसी है ? चुनाव द्वारा आये हुए अथवा सरकार द्वारा नियुक्त लोग होते
−
सरकार का दावा है कि शिक्षा की सारी संस्थायें स्वायत्त. हैं । इसके बाद कोई भी संस्थान स्वायत्त कैसे हो सकता
−
हैं । युजीसी, उसके साथ सम्बन्धित मान्यता देनेवाली . है ? इन संस्थानों को स्वायत्त अवश्य कहा जाता है । यह
−
संस्थायें, सभी प्रबन्धन संस्थान, विज्ञान संस्थान, तन्त्रज्ञान .... स्वायत्तता केवल आन्तरिक होती है, सम्पूर्ण नहीं ।
−
के संस्थान, अनुसन्धान संस्थान स्वायत्त हैं। सारे दूसरा मुद्दा यह है कि पाठ्य पुस्तकें और पाठ्यक्रम
−
विश्वविद्यालय स्वायत्त हैं । सारे शिक्षा बोर्ड, परीक्षा बोर्ड, . निर्मिति में विश्वविद्यालयों के अभ्यास मण्डल और
−
पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तक बनाने वाले बोर्ड स्वायत्त S| | पाठ्यपुस्तक मण्डल जो कर सकते हैं वह भी वे करते नहीं
−
इन सभी संस्थानों, बोर्डीं, परिषदों एवं विश्वविद्यालयों की. है क्योंकि अध्ययन की परम्परा और उत्साह दोनों नष्ट हो
−
रचना के लिये कानून बन जाने के बाद उन्हें स्वायत्त बना... चुके हैं, इसलिये पढ़ाने की स्वतन्त्रता होने पर भी कोई
−
दिया जाता है । सरकार उनके काम में दखल नहीं करती ।.. पढाता नहीं है, बाध्यता होने पर भी पढ़ाता नहीं है।
−
उल्टे उन्हें पूर्ण आर्थिक सहायता करती है। और क्या... इसलिये शिक्षा को मुक्त करो यह बात तो ठीक है लेकिन
−
चाहिये । उनके द्वारा दिये जाने वाले प्रमाणपत्रों पर सरकार... मुक्त होकर शिक्षा क्या करेगी यह भी एक बडा प्रश्न है ।
−
−
के किसी भी अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं होते, कुलपति के कल्पना करें कि एक अच्छा मुहूर्त देखकर सरकारने
−
ही होते हैं । शिक्षा को मुक्त कर दिया और कह दिया कि जो करना है
−
−
कुछ बुद्धिमान और वास्तववादी लोग कहते हैं कि... सो करो, कोई आपको रोकेगा नहीं, टोकेगा नहीं । तो क्या
−
सरकारी नियन्त्रण यदि नहीं रहा तो अराजक फैल जायेगा ।.... स्थिति होगी ? सरकार पाठ्यपुस्तकें नहीं देगी, पाठ्यक्रम
−
हमारे देश में इतने अलग अलग प्रकार के समूह हैं, इतने. नहीं देगी । सरकार नियुक्ति नहीं करेगी, बढोतरी नहीं
−
विभिन्न सम्प्रदाय और विचारधारायें हैं, इतने अलग अलग. करेगी । सरकार मान्यता देने वाली सारी संस्थायें बन्द कर
−
निहित स्वार्थ हैं कि यदि नियन्त्रण नहीं रहा तो अपनी मर्जी . देगी क्योंकि अब किसी को सरकारी मान्यता की
−
के मालिक बन जायेंगे और शिक्षा का तो कोई स्तर ही नहीं... आवश्यकता नहीं रहेगी । सरकार अपनी सांविधानिक
−
−
रहेगा इसलिये नियन्त्रण तो चाहिये । बाध्यता के अनुसार प्राथमिक विद्यालय चलायेगी । एक
−
−
दिन संविधान में बदल कर इस बाध्यता को भी समाप्त कर
−
−
स्वायत्तता की वस्तुस्थिति देगी । सरकारी विद्यालय भी बन्द हो जायेंगे । फिर क्या
−
इतने विभिन्न दावों में वस्तुस्थिति कया है ? होगा ?
−
−
Rox
−
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−
−
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−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
और, सरकार वेतन भी बन्द कर देगी । तब क्या
−
होगा ? सरकार शिक्षा को मुक्त कर किसके हात में
−
सौंपेगी ? लेने के लिये कौन तैयार होगा ?
−
−
आज भी सरकार अपने माध्यमिक विद्यालय निजी
−
संस्थाओं को सौंपना चाहती है । परन्तु कुछ गिनीचुनी
−
संस्थायें ही लेने के लिये तैयार होती हैं, वे भी सरकार के
−
खर्च पर । निजी विश्वविद्यालय बनते हैं परन्तु वे उद्योगगृहों
−
के होते हैं जहाँ विश्वविद्यालय भी एक उद्योग है ।
−
−
तब समाज को विभिन्न विद्याशाखाओं में जो शिक्षक
−
चाहिये, जो विभिन्न कामों के लिये शिक्षित लोग चाहिये वे
−
कहाँ से मिलेंगे ?
−
−
फिर योजना क्या है ? यदि शिक्षाक्षेत्र से सरकार
−
निकल जाय तो इसे चलाने वाला कौन है ? इसका
−
दायित्व लेनेवाला कौन है ?
−
−
हम कहते हैं कि शिक्षा शिक्षक के अधीन होनी
−
चाहिये । आज शिक्षक कहाँ है जिसका आश्रय शिक्षा ले
−
सके ? आज विद्वान लोग पराकोटि की सुरक्षा के बिना
−
अध्ययन अनुसन्धान का एक भी काम नहीं करते । तो फिर
−
पाठ्यपुस्तकें कौन बनायेगा ? बिना वेतन के शिक्षक कैसे
−
पढायेंगे ?
−
−
आज स्वायत्तता की माँग करने वालों के पास भी
−
कोई योजना नहीं है। कोई स्पष्टता भी नहीं है । कोई
−
सिद्धता भी नहीं है ।
−
−
तो फिर क्या करना ? शिक्षा को स्वायत्त नहीं बनाना
−
चाहिये ? या बनाने का प्रयास करना चाहिये ?
−
−
मुद्दा यह है कि आज की स्थिति में शिक्षा स्वायत्त
−
होने की कोई सम्भावना नहीं है । किसी की भी इसके लिये
−
कोई वैचारिक या व्यावहारिक सिद्धता नहीं है ।
−
−
शिक्षा स्वायत्त कैसे हो सकती है
−
−
फिर भी शैक्षिक सिद्धान्त तो यही है कि शिक्षा
−
स्वायत्त होनी ही चाहिये । यह कैसे होगी इसकी योजना
−
करनी चाहिये ।
−
−
कुछ बातें इस प्रकार विचारणीय हैं...
−
१... वर्तमान स्थिति में अन्य बातों में परिवर्तन नहीं होता
−
−
२७५
−
−
8.
−
−
−
−
तब तक शिक्षा स्वायत्त नहीं हो
−
सकती । केवल इच्छा या अपेक्षा से शिक्षा स्वायत्त
−
नहीं होती ।
−
−
शिक्षा को स्वायत्त बनाने हेतु प्रथम एक वैचारिक
−
रूपरेखा शिक्षाशाख्रियों की सहायता से शैक्षिक
−
संगठनों को करनी चाहिये ।
−
−
स्वायत्तता के विषय में सरकार के साथ संवाद बनाना
−
चाहिये । सरकार की भी शिक्षा को स्वायत्त बनाने
−
की मानसिकता बननी चाहिये । रूपरेखा बनाने में
−
सरकार की भी भूमिका सहभागिता की बननी
−
चाहिये ।
−
−
सरकार से तात्पर्य है शासन और प्रशासन दोनों के
−
प्रतिनिधि । शासन अपने पक्ष की विचारधारा के
−
अनुसार चलता है, प्रशासन भारतीय संविधान की
−
धारा नियमों और कानूनों के अनुसार ।
−
−
शैक्षिक संगठनों को विट्रज्जन, कार्यकर्ता, अध्यापक
−
आदि का मिलकर एक गट बनाना चाहिये । देशभर
−
के अन्यान्य लोगों और वर्गों के साथ मिलकर इस
−
विषय पर जागृति निर्माण कर, उन्हें विचार करने हेतु
−
प्रेरित कर प्रारूप बनाने का प्रयास करना चाहिये ।
−
स्वायत्तता का प्रारूप भी सरकार के साथ संवाद
−
बनाये रखते हुए होना चाहिये ।
−
−
स्वायत्तता के मामले में सरकार की भूमिका सहायक
−
की, संरक्षक और समर्थक की होनी चाहिये नियंत्रक
−
की नहीं । समाज को, शिक्षाक्षेत्र को अपने बलबुते
−
पर ही खडा होना चाहिये । सरकार मार्ग में अवरोध
−
निर्माण न करे और अवरोध आयें तो उन्हें दूर करे
−
अथवा दूर करने में सहयोग करे इतनी होनी चाहिये ।
−
सरकार को शिक्षाक्षेत्र को स्वायत्त करना कुछ कठिन
−
हो सकता है क्योंकि शिक्षाक्षेत्र से उसे जो दूसरे लाभ
−
मिलते हैं वे मिलने बन्द हो जायेंगे । राजकीय पक्षों
−
का मानव संसाधन भी उन्हें खोना पड़ेगा । इस हानि
−
को सहने के लिये सरकार को राजी करना बहुत बडा
−
काम होगा ।
−
−
इससे भी बडा काम लोगों के लिये शिक्षा का प्रबन्ध
−
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−
−
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−
−
−
−
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−
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8.
−
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2.
−
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−
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−
−
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−
−
करने का है । विभिन्न शैक्षिक संगठनों ,
−
धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संगठनों को यह काम
−
करने के लिये सिद्ध करना होगा ।
−
−
इस योजना में पढे लोगों को नौकरी देने की
−
जिम्मेदारी भी सरकार की नहीं रहेगी । बाबूगीरी
−
एकदम कम हो जायेगी । शिक्षा के साथ नौकरी
−
वाला आर्थिक क्षेत्र भी स्वायत्त होना चाहिये ।
−
स्वायत्तता की यह योजना चरणों में होगी । नीचे की
−
कोई शिक्षा अनिवार्य नहीं होगी परन्तु स्वास्थ्य
−
सेवाओं, सैन्य सेवाओं तथा राजकीय सेवाओं का
−
क्षेत्र सरकार के पास रहेगा। इस दृष्टि से सभी
−
शाखाओं की प्रवेश परीक्षा होगी और जैसे चाहिये
−
वैसे लोग तैयार कर लेना उन उन क्षेत्रों की जिम्मेदारी
−
रहेगी ।
−
−
आर्थक्षेत्र स्वायत्त होना आवश्यक है । हर उद्योग ने
−
अपने उद्योग के लिये आवश्यक लोगों को शिक्षित
−
कर लेने की सिद्धता करनी होगी ।
−
−
शिक्षा संस्थानों को समाज से भिक्षा माँगनी पडेगी ।
−
प्राथमिक विद्यालय भी इसी तत्त्व पर चलेंगे ।
−
−
इस योजना में सबसे बडा विरोध शिक्षक करेंगे
−
क्योंकि उनकी सुरक्षा और वेतन समाप्त हो जायेंगे ।
−
शैक्षिक संगठनों को अपने बलबूते पर विद्यालय
−
चलाने वाले शिक्षक तैयार करने पड़ेंगे । संगठनों के
−
कार्यकर्ताओं को स्वयं विद्यालय शुरू करने होंगे ।
−
−
इस देश में स्वायत्त शिक्षा के प्रयोग नहीं चल रहे हैं
−
ऐसा तो नहीं है । परन्तु वे सरकारी तन्त्र के पूरक के
−
रूप में चल रहे हैं । वे स्वायत्त चलें ऐसा मन बनाना
−
चाहिये ।
−
−
यह कार्य किसी भी एक पक्ष से होने वाला नहीं है ।
−
केवल सरकार चाहेगी, या संगठन चाहेंगे या शिक्षक
−
चाहेंगे तो नहीं होगा । सरकार, शैक्षिक संगठन,
−
सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन, धर्माचार्य, विद्रज्जन
−
सब मिलकर यदि चाहेंगे तो होगा । इसलिये इन
−
सबमें प्रथम संवाद, मानसिकता और वैचारिक स्पष्टता
−
बनानी चाहिये । यह काम भी सरल नहीं है । ये सब
−
−
२७६
−
−
श७७,
−
−
RC.
−
−
88
−
−
२०,
−
−
२१.
−
−
२२.
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
समानान्तर काम करने वाले लोग हैं, एकदूसरे की
−
बात सुनने वाले कम हैं ।
−
−
इनमें शैक्षिक संगठनों का काम प्रारूप बनाने का और
−
उसे समझाने का है, धार्मिक-सामाजिक-सांस्कृतिक
−
संगठनों को अपने अनुयायियों को यह प्रयोग करने
−
हेतु सिद्ध करने का, धर्माचार्यों को समाज की
−
मानसिकता बनाने का, विट्रज्नों का पर्यायी
−
पाठ्यक्रम और पाठ्यसामग्री बनाने का और सरकार
−
को मार्ग के सारे अवरोध दूर करने का है ।
−
−
उद्योगगृहों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रहेगी । वह
−
होगी अर्थकरी शिक्षा का प्रबन्ध करने की । साथ ही
−
शिक्षा की स्वायत्तता का प्रश्न हल हो सके इस
−
अभियान में अर्थसहाय करने की जिम्मेदारी लेनी
−
होगी ।
−
−
इनके बाद भी यह रूपरेखा बने और क्रियान्वयन के
−
स्तर पर पहुँचे इस हेतु एक पीढ़ी का समय जायेगा ।
−
इतना धैर्य सबको रखना ही होगा ।
−
−
तब तक जो जहाँ है वहाँ अपने अपने अधिकार क्षेत्र
−
में अपनी अपनी क्षमता के अनुसार स्वायत्तता की
−
दिशा में कार्य करे यह आवश्यक है ।
−
−
एक बार यदि शिक्षा का प्रवाह मुक्त हुआ तो स्वयं
−
भी शुद्ध होगा और अपने साथ अनेक प्रकार का
−
कचरा भी बहा कर ले जायेगा ।
−
−
सम सम्बन्धित पक्षों को अपनी अपनी मानसिकता
−
भी ठीक करनी होगी...
−
−
उदाहरण के लिये शैक्षिक संगठन सोचेंगे कि सरकार
−
−
आर्थिक सहायता तो करे परन्तु शैक्षिक पक्ष और नियुक्तियाँ
−
हमें दे दे, तो यह सम्भव नहीं होगा, उचित भी नहीं होगा ।
−
−
यदि सरकार सोचे कि शिक्षा का बोझ भले ही
−
−
शिक्षक तथा अन्य संगठन वहन करे, कानून और नियम तो
−
हमारे ही रहेंगे तो वह भी न सम्भव है न उचित ।
−
−
धार्मिक-सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन यदि सोचे कि
−
−
हम खर्च भी करेंगे, व्यवस्था भी करेंगे, अपने अपने संगठन
−
की विचारधारा को पढायेंगे, सरकार और समाज केवल इनमें
−
पढ़े विद्यार्थियों को नौकरी दे तो वह भी न सम्भव है न
−
�
−
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−
−
पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
−
−
उचित । विट्रज्नजन यदि सोचें कि हमारी पुस्तकें लग जायेंगी,
−
हमारे अनुसन्धान के ग्रन्थ प्रकाशित होंगे और हमें सम्मान,
−
यश और धनप्राप्ति होगी तो यह भी उचित नहीं है, सम्भव भी
−
नहीं है ।
−
−
सामान्य जन यदि कहे कि यह सब दिवास्वप्न है,
−
इसमें से कुछ भी होने वाला नहीं है, तो यह भी न उचित
−
है, न सम्भव । सबने मिलकर सामान्यजन को विश्वास
−
दिलाना होगा कि यह सम्भव है और उचित है । तो यह
−
सम्भव है क्योंकि इसका प्रथम लाभार्थी सामान्य जन है ।
−
व्यावहारिकता के क्षेत्र में यह सबसे मूल का और
−
−
−
−
सबसे कठिन प्रश्न है । इसे सुलझाने में
−
अनेक अन्य छोटे मोटे प्रश्न भी सुलझाने की आवश्यकता
−
होगी । परन्तु इसके सुलझने के बाद अनेक बडे बडे प्रश्न भी
−
सुलझ जायेंगे ।
−
−
एक अत्यन्त प्रभावी परन्तु अत्यन्त साहसी निर्णय यदि
−
सरकार करती है तो यह प्रश्न कदाचित जल्दी हल होगा । एक
−
अच्छा दिन देखकर लाल किले से घोषणा करना कि कल से
−
देश की समस्त शिक्षा संस्थायें बन्द हो जायेंगी । इसके बाद
−
धीरे धीरे जो शैक्षिक वातावरण बनता जायेगा वह न केवल
−
स्वायत्त होगा अपितु भारतीय भी होगा ।
−
−
अर्थ शिक्षाक्षेत्र को भी ग्रसित करता है
−
−
अथर्जिन हेतु शिक्षा प्रमुख शिक्षा है । अर्थव्यवस्था से
−
परिवार विभक्त हो रहे हैं, दो पीढ़ियाँ साथ साथ नहीं रह
−
पाती, कहीं कहीं तो पतिपत्नी भी विभक्त हो रहे हैं ।
−
−
अर्थक्षेत्र के नियमन और निर्देशन के सूत्र
−
−
यह बडा सांस्कृतिक संकट है । इसलिये सर्वप्रथम
−
शिक्षा के अर्थक्षेत्र को ही व्यवस्थित करना होगा ।
−
−
शिक्षा को भारतीय बनाने हेतु स्थापित विश्वविद्यालयों
−
ने समाज के अर्थक्षेत्र के नियमन और निर्देशन का प्रथम
−
विचार करना चाहिये । इस दृष्टि से कुछ सूत्र इस प्रकार
−
होंगे...
−
१... समाज के प्रत्येक सक्षम व्यक्तिको sabia करना ही
−
चाहिये और उसे अथर्जिन का अवसर भी मिलना
−
चाहिये ।
−
पढने वाले विद्यार्थी, पढानेवाले शिक्षक, वानप्रस्थी,
−
संन्यासी, रोगी, धर्माचार्य, अपंग आदि लोगों को
−
अथर्जिन करने की बाध्यता नहीं होनी चाहिये ।
−
उनके पोषण का दायित्व सरकार का नहीं अपितु
−
परिवारजनों का होना चाहिये ।
−
अथर्जिन करने वाले सभी लोगों की आर्थिक
−
स्वतन्त्रता की रक्षा होनी चाहिये । इसका तात्पर्य यह
−
है कि अथर्जिन हेतु कोई किसी का नौकर नहीं होना
−
−
२७७
−
−
चाहिये । किसी को नौकरी में रखना पड़े इतना बडा
−
उद्योग ही नहीं होना चाहिये । उद्योग बढाना है तो
−
अपना परिवार बढ़ाना चाहिये । छोटा परिवार सुखी
−
परिवार नहीं, बडा परिवार सुखी परिवार यह सही सूत्र
−
है । उसी प्रकार बडा उद्योग अच्छा उद्योग नहीं,
−
छोटा उद्योग अच्छा उद्योग यह सही सूत्र है । केवल
−
कुछ खास काम ही ऐसे हैं जो बेतनभोगी कर्मचारियों
−
की अपेक्षा करते हैं ।
−
−
अथर्जिन या उद्योग उत्पादन केन्द्री होना चाहिये,
−
सेवाकेन्द्री नहीं । 'सेवा' शब्द अथार्जिन के क्षेत्र का है
−
ही नहीं । उसका प्रयोग वहाँ करना ही नहीं चाहिये ।
−
उदाहरण के लिये शिक्षा उद्योग नहीं हो सकती,
−
मैनेजमेण्ट सेवा नहीं हो सकता, चिकित्सा व्यवसाय
−
नहीं हो सकता । यह धर्म के विरोधी है इसलिये
−
मान्य नहीं है । भौतिक वस्तुओं के उत्पादन को ही
−
अर्थक्षेत्र में केन्द्रवर्ती स्थान देना चाहिये ।
−
−
भौतिक वस्तुओं के उत्पादक और उपभोक्ता के बीच
−
कम से कम दूरी और कम से कम व्यवस्थायें होनी
−
चाहिये । पैकिंग, संग्रह और सुरक्षा की व्यवस्था,
−
परिवहन, बिचौलिये, वितरण की युक्ति प्रयुक्ति,
−
विज्ञापन ये सब अनुत्पादक व्यवस्थायें हैं जो वस्तुओं
−
की कीमतों में बिना गुणवत्ता बढ़े वृद्धि करती है और
−
�
−
−
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−
−
−
−
बिना श्रम किये, बिना निवेश के
−
अथर्जिन के अवसर निर्माण करती है । इससे एक
−
आभासी अर्थव्यवस्था पैदा होती है जो समृद्धि नहीं,
−
समृद्धि का आभास उत्पन्न करती है । आभासी समृद्धि
−
से दारिद्य बढ़ता है ।
−
−
६. भौतिक वस्तुओं का उत्पादन करने वालों को
−
अर्थक्षेत्र में सबसे अधिक सम्मान और सुरक्षा प्राप्त
−
होनी चाहिये । उत्पादन में गुणवत्ता और उत्कृष्टता
−
प्रतिष्ठा का विषय बनना चाहिये ।
−
−
७. ज्ञानदान, आरोग्यदान और धर्मज्ञान अर्थक्षेत्र से परे
−
होना चाहिये । अन्न और जल, व्यावहारिक जीवन
−
का मार्गदर्शन निःशुल्क होना चाहिये । ज्ञान, आरोग्य
−
और धर्म का ज्ञान देनेवालों की सर्व प्रकार की
−
आवश्यकताओं की पूर्ति ससम्मान उत्पादकों द्वारा
−
होनी चाहिये ।
−
−
८... राज्य को इस अर्थतन्त्र की सुरक्षा करनी चाहिये । स्वयं
−
उत्पादन या व्यापार नहीं करना चाहिये परन्तु यह
−
व्यवस्था सम्यक्ू रूप में बनी रहे यह देखना चाहिये ।
−
−
९. af, wa की. अर्थनीति, प्रजा के
−
अर्थविनियोग के सूत्र विश्वविद्यालयों में निश्चित होने
−
चाहिये संसद में नहीं, और राज्यकर्ता तथा उत्पादकों
−
के महाजनों को इस विषय में परामर्श तथा प्रशिक्षण
−
भी विश्वविद्यालयों से मिलना चाहिये ।
−
−
१०, अर्थक्षेत्र की शिक्षा दो विभागों में बँटेगी । प्रत्यक्ष
−
उत्पादन की तो सामान्य से लेकर प्रगत शिक्षा
−
उत्पादन केन्द्रों पर ही प्राप्त होगी । उसके साथ जो
−
धर्मपक्ष है उसकी शिक्षा जहाँ तक सम्भव है उत्पादन
−
केन्द्रों पर, नहीं तो विश्वविद्यालयों में प्राप्त होगी ।
−
−
मूलसूत्रों की शिक्षा विश्वविद्यालय दे
−
−
यह तो हुए समाज की अर्थव्यवस्था के मूल सूत्र ।
−
इनकी शिक्षा देने का काम विश्वविद्यालय को करना है।
−
इसके मूल सूत्र हैं...
−
१, अर्थ पुरुषार्थ काम पुरुषार्थ का अनुसरण करता है
−
इसलिये अर्थपुरुषार्थ को ठीक करना है। तो काम
−
−
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
−
−
पुरुषार्थ को प्रथम ठीक करना होगा ।
−
−
२... अर्थ और काम दोनों धर्म के अविरोधी है । इसकी
−
शिक्षा देना ।
−
−
३... श्रमसंस्कृति का विकास करना
−
−
... मनुष्य के मूल्यांकन का निकष चरित्र है, अर्थ नहीं ।
−
−
५... अर्थ के बिनियोग में संयम, सादगी, दान, धर्मादाय
−
आदि को महत्त्व देना ।
−
−
६. समाज में कोई भी अभावग्रस्त न रहे ऐसी व्यवस्था
−
करना |
७. सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करना
७. सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करना
−
(२) अर्थक्षेत्र की व्यवस्था करने के बाद दूसरा काम
−
−
है विश्वविद्यालय की अर्थव्यवस्था का विचार । इसके कुछ
−
−
प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं
−
१, सर्व प्रथम तो विश्वविद्यालय की सर्व प्रकार की
−
शैक्षिक गतिविधियाँ निःशुल्क होनी चाहिये ।
−
−
२.. इन विश्वविद्यालयों के अध्यापकों को अन्य
−
राज्यसंचालित या राज्यपोषित विश्वविद्यालयों के
−
अध्यापकों जितना ऊँचा वेतन नहीं मिलेगा, न
−
मिलना चाहिये । इन्होंने इसके लिये मानसिक रूप से
−
तैयार रहना होगा । समाज से इनके पोषण की
−
व्यवस्था स्वयं विश्वविद्यालय को ही बिठानी होगी ।
−
३... न्यूनतम सुविधाओं से विद्याक्षेत्र कैसे चलता है इसका
+
(२) अर्थक्षेत्र की व्यवस्था करने के बाद दूसरा काम है विश्वविद्यालय की अर्थव्यवस्था का विचार । इसके कुछ प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं...
−
आदर्श इन विश्वविद्यालयों को समाज के समक्ष रखना
−
चाहिये ।
−
¥. जब तक केवल अनुसन्धान का कार्य चलता है तब
+
१. सर्व प्रथम तो विश्वविद्यालय की सर्व प्रकार की शैक्षिक गतिविधियाँ निःशुल्क होनी चाहिये ।
−
तक अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में कुछ कठिनाई हो
−
सकती है । परन्तु जब छात्रों की शिक्षा शुरू होती है
−
तब वे भी इस कार्य में सहभागी बन सकते हैं ।
−
तक्षशिला विद्यापीठ में देशविदेश से आये हजारों छात्र
−
पढते थे । यह विद्यापीठ ग्यारह सौ वर्ष तक श्रेष्ठ विद्यापीठ
+
२. इन विश्वविद्यालयों के अध्यापकों को अन्य राज्यसंचालित या राज्यपोषित विश्वविद्यालयों के अध्यापकों जितना ऊँचा वेतन नहीं मिलेगा, न मिलना चाहिये । इन्होंने इसके लिये मानसिक रूप से तैयार रहना होगा। समाज से इनके पोषण की व्यवस्था स्वयं विश्वविद्यालय को ही बिठानी होगी।
−
के नाते प्रतिष्ठित रहा । इसकी अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में
+
३. न्यूनतम सुविधाओं से विद्याक्षेत्र कैसे चलता है इसका आदर्श इन विश्वविद्यालयों को समाज के समक्ष रखना चाहिये।
−
अनुसन्धान करने की आवश्यकता है ।
−
६, आगे चलकर समित्पाणि, भिक्षा, दान, गुरुदक्षिणा
+
४. जब तक केवल अनुसन्धान का कार्य चलता है तब तक अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में कुछ कठिनाई हो सकती है । परन्तु जब छात्रों की शिक्षा शुरू होती है तब वे भी इस कार्य में सहभागी बन सकते हैं। तक्षशिला विद्यापीठ में देशविदेश से आये हजारों छात्र पढते थे। यह विद्यापीठ ग्यारह सौ वर्ष तक श्रेष्ठ विद्यापीठ के नाते प्रतिष्ठित रहा । इसकी अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में अनुसन्धान करने की आवश्यकता है।
−
आदि विश्वविद्यालय की अर्थव्यवस्था के अंग बनेंगे । तब
−
यह कोई विकट प्रश्न नहीं रहेगा ।
−
�
−
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+
६. आगे चलकर समित्पाणि, भिक्षा, दान, गुरुदक्षिणा आदि विश्वविद्यालय की अर्थव्यवस्था के अंग बनेंगे। तब यह कोई विकट प्रश्न नहीं रहेगा।