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| आज जब दान का संस्कार समाज में जीवित है तब दान को अनेक प्रकार के प्रदूषणों से मुक्त कर शुद्ध और पवित्र बनाने की आवश्यकता है। यह बात असम्भव भी नहीं है। पर इस विषय में शिक्षा संस्थानों द्वारा पहल अपेक्षित है। | | आज जब दान का संस्कार समाज में जीवित है तब दान को अनेक प्रकार के प्रदूषणों से मुक्त कर शुद्ध और पवित्र बनाने की आवश्यकता है। यह बात असम्भव भी नहीं है। पर इस विषय में शिक्षा संस्थानों द्वारा पहल अपेक्षित है। |
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− | इस दृष्टि से सर्वप्रथम शिक्षासंस्थानों को 'बाजार' बनने से बचना चाहिये । उद्योगगृहों, कार्यालयों एवं महालयों की पंक्ति से बाहर निकलकर 'विद्यालय' नामक विशिष्ट पंक्ति निर्माण करनी चाहिये । उत्तम विद्यालय के | + | इस दृष्टि से सर्वप्रथम शिक्षासंस्थानों को 'बाजार' बनने से बचना चाहिये । उद्योगगृहों, कार्यालयों एवं महालयों की पंक्ति से बाहर निकलकर 'विद्यालय' नामक विशिष्ट पंक्ति निर्माण करनी चाहिये । उत्तम विद्यालय के 'अर्थ' से संबंधित मापदंड नये सिरे से निर्माण करते हुए उसके अनुसार अपनी पहचान स्थापित करनी चाहिये? |
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| + | विद्याकेन्द्र यदि इस प्रकार की पहल करेंगे तो निश्चित रूप से समाज का सहयोग प्राप्त होगा इसमें कोई सन्देह नहीं |
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| + | ==== समीक्षा ==== |
| + | विद्याकेन्द्र के निर्वाह की इस व्यवस्था के कुछ संकेत हैं। |
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| + | यह एक ऐसी व्यवस्था का हिस्सा है जहाँ अपना काम अपनी ज़िम्मेदारी पर किया जाना स्वाभाविक माना जाता है । अध्ययन और अध्यापन से भले ही समाज की भलाई होती हो तो भी वह आचार्यों और छात्रों का अपना काम है। वे समाज पर उपकार करने की भावना से नहीं अपितु अपना कर्तव्य समझकर और सेवा के भाव से ही अध्ययन और अध्यापन करते हैं। इसलिये वह अपनी ही ज़िम्मेदारी से करना है, अनुदान या अन्यों से अपेक्षा करना उचित नहीं है। |
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| + | समाज आधारित शिक्षा का यह उत्तम उदाहरण है। भारतीय व्यवस्था में समाज के लिये उपयोगी कार्य हमेशा समाज की व्यवस्था से ही होते हैं, राज्य की व्यवस्था से नहीं। इसलिये राज्य का हिस्सा इसमें अपेक्षित नहीं है। |
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| + | जिस शिक्षा से समाज धर्माचरणी बनता है उस शिक्षा के और उन शिक्षकों और आचार्यों के प्रति समाज हमेशा कृतज्ञ रहता है और उनके योगक्षेम की चिन्ता स्वतः ही करता है । इसलिये विद्याकेन्द्र, शिक्षक और छात्र सम्पन्न समाज में कभी भी बेचारे और दरिद्र नहीं रहते । भारत में शिक्षक हमेशा निर्धन और बेचारे होते थे, ऐसा जब कहा जाता है तब वह अज्ञान, अल्पज्ञान और विपरीत ज्ञान के कारण ही कहा जाता है। |
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| + | अध्ययन और अध्यापन ज्ञानसाधना समझकर किया जाता है । वह एक पवित्र और उदात्त कार्य है । विद्या प्रीति इसकी प्रेरणा है । यह ज्ञान का आनन्द है । यह |
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| आहति देने योग्य पदार्थ ही अहम माना जाता था। किन्तु इसका लाक्षणिक अर्थ है, गुरु के लिये उपयोगी हो ऐसा कुछ न कछ लेकर जाना। क्या आज हर विद्यालय सशुल्क ही चलता है । इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होती । विद्यालय की शुल्कव्यवस्था इस प्रश्नावली के प्रश्न पुछकर कुछ लोगों से बातचीत हुई उनसे प्राप्त उत्तर इस प्रकार रहे - | | आहति देने योग्य पदार्थ ही अहम माना जाता था। किन्तु इसका लाक्षणिक अर्थ है, गुरु के लिये उपयोगी हो ऐसा कुछ न कछ लेकर जाना। क्या आज हर विद्यालय सशुल्क ही चलता है । इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होती । विद्यालय की शुल्कव्यवस्था इस प्रश्नावली के प्रश्न पुछकर कुछ लोगों से बातचीत हुई उनसे प्राप्त उत्तर इस प्रकार रहे - |