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जिस शिक्षा से समाज धर्माचरणी बनता है उस शिक्षा के और उन शिक्षकों और आचार्यों के प्रति समाज हमेशा कृतज्ञ रहता है और उनके योगक्षेम की चिन्ता स्वतः ही करता है । इसलिये विद्याकेन्द्र, शिक्षक और छात्र सम्पन्न समाज में कभी भी बेचारे और दरिद्र नहीं रहते । भारत में शिक्षक हमेशा निर्धन और बेचारे होते थे, ऐसा जब कहा जाता है तब वह अज्ञान, अल्पज्ञान और विपरीत ज्ञान के कारण ही कहा जाता है।  
 
जिस शिक्षा से समाज धर्माचरणी बनता है उस शिक्षा के और उन शिक्षकों और आचार्यों के प्रति समाज हमेशा कृतज्ञ रहता है और उनके योगक्षेम की चिन्ता स्वतः ही करता है । इसलिये विद्याकेन्द्र, शिक्षक और छात्र सम्पन्न समाज में कभी भी बेचारे और दरिद्र नहीं रहते । भारत में शिक्षक हमेशा निर्धन और बेचारे होते थे, ऐसा जब कहा जाता है तब वह अज्ञान, अल्पज्ञान और विपरीत ज्ञान के कारण ही कहा जाता है।  
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अध्ययन और अध्यापन ज्ञानसाधना समझकर किया जाता है । वह एक पवित्र और उदात्त कार्य है । विद्या प्रीति इसकी प्रेरणा है । यह ज्ञान का आनन्द है । यह
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अध्ययन और अध्यापन ज्ञानसाधना समझकर किया जाता है । वह एक पवित्र और उदात्त कार्य है । विद्या प्रीति इसकी प्रेरणा है । यह ज्ञान का आनन्द है । यह इतना श्रेष्ठ होता है कि इसके सामने भौतिक पदार्थों के आनन्द का कोई मूल्य नहीं रह जाता है। इसलिये वस्त्रालंकार और मनोरंजन की सविधाओं का आकर्षण कोई मायने नहीं रखता है । इस मनोवैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में लेकर ही अध्ययन और अध्यापन करने वालों के लिये वैभव का विधान नहीं किया गया है। अध्ययन की साधना करने वाले ब्रह्मचारियों के लिये सुविधाओं और उपभोग सामग्री का निषेध किया गया है। अध्ययन और अध्यापन करने वालों को इन सांसारिक बातों का आकर्षण भी कम ही होता है। इसलिये उनकी आवश्यकतायें कम ही होती हैं । गुरुकुल इन बातों में राजा के महलों और श्रेष्ठियों की कोठियों से अलग ही होता है। परन्तु सांसारिक अभावों के कारण ये लोग दुःखी नहीं होते हैं, वे अपनी अवस्था के लिये गौरव का ही अनुभव करते हैं।
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==== व्यर्थ का खर्च टाले ====
 
आहति देने योग्य पदार्थ ही अहम माना जाता था। किन्तु इसका लाक्षणिक अर्थ है, गुरु के लिये उपयोगी हो ऐसा कुछ न कछ लेकर जाना। क्या आज हर विद्यालय सशुल्क ही चलता है । इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होती । विद्यालय की शुल्कव्यवस्था इस प्रश्नावली के प्रश्न पुछकर कुछ लोगों से बातचीत हुई उनसे प्राप्त उत्तर इस प्रकार रहे -
 
आहति देने योग्य पदार्थ ही अहम माना जाता था। किन्तु इसका लाक्षणिक अर्थ है, गुरु के लिये उपयोगी हो ऐसा कुछ न कछ लेकर जाना। क्या आज हर विद्यालय सशुल्क ही चलता है । इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होती । विद्यालय की शुल्कव्यवस्था इस प्रश्नावली के प्रश्न पुछकर कुछ लोगों से बातचीत हुई उनसे प्राप्त उत्तर इस प्रकार रहे -
  
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