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यह आत्महत्या की मानसिकता प्रत्यक्ष आत्महत्या से अनेक गुना अधिक है ।
 
यह आत्महत्या की मानसिकता प्रत्यक्ष आत्महत्या से अनेक गुना अधिक है ।
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पूर्व प्राथमिक और प्राथमिक की छोटी कक्षाओं के बच्चे भयभीत हैं । गृहकार्य नहीं किया इसलिये शिक्षक डाटेंगे इसका भय, बस में साथ वाले विद्यार्थी चिढ़ायेंगे इसका भय, नास्ते में केक नहीं ले गया इसलिये सब मजाक उडायेंगे इसका भय, प्रश्न का उत्तर नहीं आया इसका भय । बडी कक्षाओं में मित्र हँसेंगे इसका भय, परीक्षा में अच्छे अंक नहीं मिलेंगे तो मातापिता नाराज होंगे इसका भय, मेडिकल में प्रवेश नहीं मिलेगा इसका भय, मनपसन्द लडकी होटेल में साथ नहीं आयेगी इसका भय । चारों ओर भय का.साम्राज्य है । यह सर्वव्यापी भय अनेक रूप धारण करता है।  
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पूर्व प्राथमिक और प्राथमिक की छोटी कक्षाओं के बच्चे भयभीत हैं । गृहकार्य नहीं किया इसलिये शिक्षक डाटेंगे इसका भय, बस में साथ वाले विद्यार्थी चिढ़ायेंगे इसका भय, नास्ते में केक नहीं ले गया इसलिये सब मजाक उडायेंगे इसका भय, प्रश्न का उत्तर नहीं आया इसका भय । बडी कक्षाओं में मित्र हँसेंगे इसका भय, परीक्षा में अच्छे अंक नहीं मिलेंगे तो मातापिता नाराज होंगे इसका भय, मेडिकल में प्रवेश नहीं मिलेगा इसका भय, मनपसन्द लडकी होटेल में साथ नहीं आयेगी इसका भय । चारों ओर भय का.साम्राज्य है । यह सर्वव्यापी भय अनेक रूप धारण करता है। तनाव, निराशा, हताशा, आत्मग्लानि, हीनताग्रंथि, सरदर्द, चक्कर आना, चश्मा लगाना, पेटदर्द, कब्ज़ आदि सब  इस भय के ही विकार हैं । पढा हुआ याद नहीं होना, सिखाया जानेवाला नहीं समझना, सरल बातें भी कठिन लगना इसका परिणाम है । कुछ भी अच्छा नहीं लगता । सदा उत्तेजना, उदासी अथवा थके माँदे रहना उसके लक्षण हैं । महत्त्वाकांक्षा समाप्त हो जाना इसका परिणाम है। यह सब सह नहीं सकने के कारण या तो व्यसनाधीनता या तो आत्महत्या ही एकमेव मार्ग बचता है।  
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हैं । महत्त्वाकांक्षा समाप्त हो जाना इसका परिणाम है यह
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दूसरी ओर शास्त्रों की, बडे बुजुर्गों की, अच्छी पुस्तकों की सीख होती है कि मनोबल इतना होना चाहिये कि मुसीबतों के पहाड टूट पडें तो भी हिम्मत नहीं हारना, कठिन से कठिन परिस्थिति में भी धैर्य नहीं खोना, कितना भी नुकसान हो जाय, पलायन नहीं करना, सामना करना और जीतकर दिखाना ।  
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.. सब सह नहीं सकने के कारण या तो व्यसनाधीनता या तो
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आज सर्वत्र विपरीत वातावरण दिखाई देता है । धैर्य, मनोबल, डटे रहने का साहस युवाओं में भी नहीं दिखाई देता । पलायन करना, समझौते कर लेना, अल्पतामें ही सन्तोष मानना सामान्य बात हो गई है । यह अत्यन्त घातक लक्षण है। जिसमें मन की शक्ति नहीं है वह कभी भी अपना विकास नहीं कर सकता ।  
 
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... आत्महत्या ही एकमेव मार्ग बचता है ।
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दूसरी ओर शास्त्रों की, बडे बुजुर्गों की, अच्छी
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पुस्तकों की सीख होती है कि मनोबल इतना होना चाहिये
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.... कि मुसीबतों के पहाड टूट पडें तो भी हिम्मत नहीं हारना,
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भी नुकसान हो जाय, पलायन नहीं करना, सामना करना
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परिस्थितियों के दास बनकर नहीं, परिस्थितियों के
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... स्वामी बनकर जीना चाहिये ।
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... मनोबल, डटे रहने का साहस युवाओं में भी नहीं दिखाई
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.. लक्षण है। जिसमें मन की शक्ति नहीं है वह कभी भी
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... अपना विकास नहीं कर सकता ।
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==== नई पीढ़ी का मनोबल बढ़ाना ====
 
==== नई पीढ़ी का मनोबल बढ़ाना ====
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