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| == In Puranas and Itihasa == | | == In Puranas and Itihasa == |
− | Vishnu Purana lists the Saptarshis as follows <blockquote>वशिष्ठः काश्यपोथात्रिर्जमदग्निः सगौतमः । विश्वामित्रभरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयोऽभवन् ॥ ३,१.३२ ॥ (Vish. Pura. 3.1.32)<ref>Vishnu Purana ([https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%A4%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%83/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A7 Amsha 3 Adhyaya 32])</ref></blockquote><blockquote>वशिष्ठः काश्यपोऽथात्रिर्जमदग्निः सगोतमः । विश्वामित्रभरद्वाजौ मुनयः सप्त साम्प्रतं ॥१५०.००९ (Agni. Pura. 150.9)<ref>Agni Purana ([https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A7%E0%A5%AB%E0%A5%A6 Adhyaya 150])</ref></blockquote>Vasishta, Kashyapa, Atri, Jamadagni along with Gautama, Vishvamitra and Bharadvaja became the sapta rshi's. | + | '''Vishnu And Agni Purana''' lists the Saptarshis as follows <blockquote>वशिष्ठः काश्यपोथात्रिर्जमदग्निः सगौतमः । विश्वामित्रभरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयोऽभवन् ॥ ३,१.३२ ॥ (Vish. Pura. 3.1.32)<ref>Vishnu Purana ([https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%A4%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%83/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A7 Amsha 3 Adhyaya 32])</ref></blockquote><blockquote>वशिष्ठः काश्यपोऽथात्रिर्जमदग्निः सगोतमः । विश्वामित्रभरद्वाजौ मुनयः सप्त साम्प्रतं ॥१५०.००९ (Agni. Pura. 150.9)<ref>Agni Purana ([https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A7%E0%A5%AB%E0%A5%A6 Adhyaya 150])</ref></blockquote>Vasishta, Kashyapa, Atri, Jamadagni along with Gautama, Vishvamitra and Bharadvaja became the sapta rshi's. |
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− | The Mahabharata presents them as Marichi, Atri, Angiras, Pulaha, Kratu, Pulastya and Vasishta. <blockquote>कश्यपोऽत्रिर्वसिष्ठश्च भरद्वाजोऽथ गौतमः। विश्वामित्रो जमदग्निः साध्वी चैवाप्यरुन्धती॥ (Maha. 13.93.21)</blockquote>
| + | '''Mahabharata''' presents the Saptarishis as follows <blockquote>कश्यपोऽत्रिर्वसिष्ठश्च भरद्वाजोऽथ गौतमः। विश्वामित्रो जमदग्निः साध्वी चैवाप्यरुन्धती॥ (Maha. 13.93.21)</blockquote>Marichi, Atri, Angiras, Pulaha, Kratu, Pulastya and Vasishta. |
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| == In Astronomy == | | == In Astronomy == |
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| * Kratu | | * Kratu |
| {| class="wikitable" | | {| class="wikitable" |
− | |+Manvantaras and Saptarshis | + | |+Manvantaras and Saptarshis as given in Shabdakalpadhruma (Markandeya Purana)<ref>Shabdakalpadhruma ([https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%83/%E0%A4%8B See Under Word ऋषिः])</ref> |
| !Number | | !Number |
| !Name of Manvantara | | !Name of Manvantara |
| + | ! |
| !Saptarshi List | | !Saptarshi List |
| |- | | |- |
| |1 | | |1 |
| |Svayambhuva manu | | |Svayambhuva manu |
| + | | |
| + | : स्वायम्भुवमन्वन्तरे मरीचिः । अत्रिः । अ- |
| + | : ङ्गिराः । पुलस्त्यः । पुलहः । क्रतुः । वशिष्ठः । |
| + | : (यथा हरिवंशे । ७ । ८ । |
| + | : “मरीचिरत्रिर्भगवानङ्गिराः पलहः क्रतुः । |
| + | : पुलस्त्यश्च वशिष्ठश्च सप्तैते ब्रह्मणः सुताः” ॥) |
| + | |
| + | : |
| |Marichi, Atri, Angiras, Pulaha, Kratu, Pulastya, and Vashishtha. | | |Marichi, Atri, Angiras, Pulaha, Kratu, Pulastya, and Vashishtha. |
| |- | | |- |
| |2 | | |2 |
| |Svarochisha Manu | | |Svarochisha Manu |
| + | | |
| + | : स्वारोचिषे उर्जस्तम्भादयः । (यथा, मार्कण्डेये ६७ । ४ । |
| + | : “उर्जस्तम्भस्तथा प्राणो दत्तोलिरृषभस्तथा । |
| + | : निश्चरश्चार्ववीराश्च तत्र सप्तर्षयोऽभवन्” ॥) |
| |Urja, Stambha, Prańa, Dattoli, Rishabha, Nischara, and Arvarívat. | | |Urja, Stambha, Prańa, Dattoli, Rishabha, Nischara, and Arvarívat. |
| |- | | |- |
| |3 | | |3 |
| |Auttami Manu | | |Auttami Manu |
| + | | |
| + | : उत्तमे वशिष्ठसुताः प्रमदादयः । |
| + | : (यथा, मार्कण्डेये ७३ । १३ । |
| + | : “स्वतेजसा हि तपसो वशिष्ठस्य महात्मनः । |
| + | : तनयश्चान्तरे तस्मिन् सप्त सप्तर्षयोऽभवन्” ॥) |
| |Sons of Vashishtha: Kaukundihi, Kurundi, Dalaya, Śankha, Praváhita, Mita, and Sammita. | | |Sons of Vashishtha: Kaukundihi, Kurundi, Dalaya, Śankha, Praváhita, Mita, and Sammita. |
| |- | | |- |
| |4 | | |4 |
| |Tamasa Manu | | |Tamasa Manu |
| + | | |
| + | : तामसे ज्योतिर्धामादयः । |
| + | : (यथा मार्कण्डेये ७४ । ५९ । |
| + | : “ज्योतिर्धामा पृथुः काव्यश्चैत्रोऽग्निर्बलकस्तथा । |
| + | : पीवरश्च तथा ब्रह्मन् सप्त सप्तर्षयोऽभवन्” ॥) |
| |Jyotirdhama, Prithu, Kavya, Chaitra, Agni, Vanaka, and Pivara. | | |Jyotirdhama, Prithu, Kavya, Chaitra, Agni, Vanaka, and Pivara. |
| |- | | |- |
| |5 | | |5 |
| |Raivata Manu | | |Raivata Manu |
| + | | |
| + | : रैवते हिरण्यरोमा वेदशिरा ऊर्द्ध्वबाहु- |
| + | : रित्यादयः । (यथा मार्कण्डेये ७५ । ७३-७४ । |
| + | : “हिरण्यरोमा वेदश्रीरूर्द्ध्वबाहुस्तथापरः । |
| + | : वेदबाहुः सुधामा च पर्जन्यश्च महामुनिः ॥ |
| + | : वशिष्ठश्च महाभागो वेदवेदान्तपारगः । |
| + | : एते सप्तर्षयश्चासन् रैवतस्यान्तरे मनोः” ॥) |
| |Hirannyaroma, Vedasrí, Urddhabahu, Vedabahu, Sudhaman, Parjanya, and Mahámuni. | | |Hirannyaroma, Vedasrí, Urddhabahu, Vedabahu, Sudhaman, Parjanya, and Mahámuni. |
| |- | | |- |
| |6 | | |6 |
| |Chakshusha Manu | | |Chakshusha Manu |
| + | | |
| + | : चाक्षषे हर्य्यश्मद्वीरकादयः । |
| + | : (मार्कण्डेयमतानुयायिन उच्यन्ते तत्रैव । ७६ । ५४ । |
| + | : “सुमेधा विरजाश्चैव हविष्मानुन्नतो मधुः । |
| + | : अतिनामा सहिष्णुश्च सप्तासन्निति चर्षयः” ॥) |
| |Sumedhas, Virajas, Havishmat, Uttama, Madhu, Abhináman, and Sahishnnu. | | |Sumedhas, Virajas, Havishmat, Uttama, Madhu, Abhináman, and Sahishnnu. |
| |- | | |- |
| |7 | | |7 |
| |Vaivasvata Manu | | |Vaivasvata Manu |
| + | | |
| + | : ७ । वैवस्वताख्यवर्त्तमानमन्वन्तरे कश्यपः । |
| + | : अत्रिः । वशिष्ठः । विश्वामित्रः । गौतमः । जम- |
| + | : दग्निः । भरद्वाजः ॥ (यथा मार्कण्डेये ७९ । ९-१० । |
| + | : “अत्रिश्चैव वशिष्ठश्च काश्यपश्च महानृषिः । |
| + | : गौतमश्च भरद्वालो विश्वामित्रोऽथ कौशिकः ॥ |
| + | : तथैव पत्त्रो भगवानृचीकस्य महात्मनः । |
| + | : जमदग्निस्तु सप्तैते मुनयोऽत्र तथान्तरे” ॥) |
| |Kashyapa, Atri, Vashishtha, Vishvamitra, Gautama, Jamadagni, Bharadvaja. | | |Kashyapa, Atri, Vashishtha, Vishvamitra, Gautama, Jamadagni, Bharadvaja. |
| + | |- |
| + | |8 |
| + | |Savarni Manu |
| + | | |
| + | : सावर्णिके गालवः । दीप्तिमान् । परशु- |
| + | : रामः । अश्वत्थामा । कृपः । ऋष्यशृङ्गः । व्यासः । |
| + | : यथा, मार्कण्डये ८० । ४ । |
| + | : “रामो व्यासो गालवश्च दीप्तिमान् कृपएव च । |
| + | : ऋष्यशृग्ङ्गस्तथा द्रोणिस्तत्र सप्तर्षयोऽभवन्” ॥ |
| + | : रामः परशुरामः । द्रोणिरश्वत्थामा ॥) |
| + | | |
| + | |- |
| + | |9 |
| + | |Daksha Savarni Manu |
| + | | |
| + | : दक्षसावर्णिके द्युतिमदाद्याः । |
| + | : (यथा मार्कण्डेये ९४ । ८ । |
| + | : “मेधातिथिर्व्वसुः सत्यो ज्योतिष्मान् द्युतिमांस्तथा । |
| + | : सप्तर्षयोऽन्यः सबलस्तथान्यो हव्यवाहनः” ॥) |
| + | | |
| + | |- |
| + | |10 |
| + | |Brahma Savarni Manu |
| + | | |
| + | : ब्रह्मसावर्णिके हविष्मत्सुकृतसत्यजयमू- |
| + | : र्त्त्याद्याः । (यथा मार्कण्डेये ९४ । १०, १३, १४ । |
| + | : “मनोस्तु दशमस्यान्यच्छृणु मन्वन्तरं द्विज ! ॥ |
| + | : सप्तर्षींस्तान् निबोध त्वं ये भविष्यन्ति वै तदा । |
| + | : आपो भूतिर्हविष्मांश्च सुकृती सत्यएव च । |
| + | : नाभागोऽप्रतिमश्चैव वाशिष्ठश्चैव सप्तमः” ॥) |
| + | | |
| + | |- |
| + | |11 |
| + | |Dharma Savarni Manu |
| + | | |
| + | : धर्म्मसावर्णिके अरुणादयः । |
| + | : (यथा मार्कण्डेये ९४ । १९-२० । |
| + | : “हविष्मांश्च वरिष्ठश्च ऋष्टिरन्यस्तथारुणिः । |
| + | : निश्चरश्चानघश्चैव विष्टिश्चान्यो महामुनिः ॥ |
| + | : सप्तर्षयोऽन्तरे तस्मिन्नग्निदेवश्च सप्तमः” ॥) |
| + | | |
| + | |- |
| + | |12 |
| + | |Rudra Savarni Manu |
| + | | |
| + | : रुद्रसावर्णिके तपोमूर्त्त्यादयः । |
| + | : (यथा मार्कण्डेये ९४ । २५ । |
| + | : “द्युतिस्तपस्वी सुतपास्तपोमूर्त्तिस्तपोनिधिः । |
| + | : तपोरतिस्तथैवान्यः सप्तमस्तु तपोधृतिः” ॥) |
| + | | |
| + | |- |
| + | |13 |
| + | |Deva Savarni Manu (Rouchya) |
| + | | |
| + | : देवसावर्णिके निर्म्मोहतत्त्वदर्श्याद्याः । (मार्क- |
| + | : ण्डेयपुराणमते अयं त्रयोदशमनुः रौच्याख्ययाभि- |
| + | : हितः । यथा, तत्रैव ९४ । २७-३० । |
| + | : “त्रयोदशस्य पर्य्याये रौच्याख्यस्य मनोः सुतान् । |
| + | : सप्तर्षीं श्च नृपांश्चैव गदतो मे निशामय ॥ |
| + | : सुधर्म्माणः सुरास्तत्र सुकर्म्माणस्तथापरे । |
| + | : सुशर्म्माणः सुरा ह्येते समस्ता मुनिसत्तम ! ॥ |
| + | : महाबलो महावीर्य्यस्तेषामिन्द्रो दिवस्पतिः । |
| + | : भविष्यानथ सप्तर्षीन् गदतो मे निशामय ॥ |
| + | : धृतिमानव्ययश्चैव तत्त्वदर्शी निरुत्मुकः । |
| + | : निर्म्मोहः सुतपाश्चान्यो निष्प्रकम्पश्च सप्तमः” ॥) |
| + | | |
| + | |- |
| + | |14 |
| + | |Indra Savarni |
| + | | |
| + | : इन्द्रसावर्णिके अग्निबाहुशुचिशुद्धमागधाद्याः |
| + | : सप्तर्षयः । (मार्कण्डेयपुराणमतेऽयं भौत्याख्यया- |
| + | : भिहितः । यथा तत्रैव ९९ । १ । |
| + | : “ततः परन्तु भौत्यस्य समुत्पत्तिं निशामय । |
| + | : देवानृषींस्तथा पुत्त्रांस्तथैव वसुधाधिपान्” ॥ |
| + | : ततः परं त्रयोदशमन्वन्तरानन्तरम् ॥ अस्मिन् |
| + | : मन्वन्तरे सप्तर्षिनामान्याह तत्रैव १०० । ३१ । |
| + | : “अग्नीध्रश्चाग्निबाहुश्च शुचिर्मुक्तोऽथ माधवः । |
| + | : शुक्रोऽजितश्च सप्तैते तदा सप्तर्षयः स्मृताः” ॥ |
| + | | |
| |} | | |} |
| | | |