बहिरंग योग में बाहर से याने अन्य किसी के द्वारा मार्गदर्शन किया जा सकता है। लेकिन अन्तरंग योग में सामान्यत: स्वत: ही अपने प्रयासों से आगे बढ़ना होता है। अन्तरंग योग में बाहर से मार्गदर्शन केवल जिसे आत्मानुभूति हुई है ऐसा सद्गुरू ही कर सकता है। जैसे स्वामी विवेकानंद को रामकृष्ण परमहंसजीने किया था। अष्टांग योग के भी दो प्रकार है। पहला है सहजयोग या राजयोग दूसरा है हठयोग। हठयोग में साँसपर बलपूर्वक नियंत्रण किया जाता है। इसलिये हठयोग में यम नियम छोड़कर अन्य छ: अंगों की शिक्षा को अरुणावस्थातक वर्जित माना जाता है। विशेषत: हठयोग की शुध्दिक्रियाएं, आसन और प्राणायाम के प्रकार। सामान्यत: योग कहने से तात्पर्य होता है अष्टांग योग से और वह भी सहजयोग या राजयोग से ही। | बहिरंग योग में बाहर से याने अन्य किसी के द्वारा मार्गदर्शन किया जा सकता है। लेकिन अन्तरंग योग में सामान्यत: स्वत: ही अपने प्रयासों से आगे बढ़ना होता है। अन्तरंग योग में बाहर से मार्गदर्शन केवल जिसे आत्मानुभूति हुई है ऐसा सद्गुरू ही कर सकता है। जैसे स्वामी विवेकानंद को रामकृष्ण परमहंसजीने किया था। अष्टांग योग के भी दो प्रकार है। पहला है सहजयोग या राजयोग दूसरा है हठयोग। हठयोग में साँसपर बलपूर्वक नियंत्रण किया जाता है। इसलिये हठयोग में यम नियम छोड़कर अन्य छ: अंगों की शिक्षा को अरुणावस्थातक वर्जित माना जाता है। विशेषत: हठयोग की शुध्दिक्रियाएं, आसन और प्राणायाम के प्रकार। सामान्यत: योग कहने से तात्पर्य होता है अष्टांग योग से और वह भी सहजयोग या राजयोग से ही। |