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== भारतीय शास्त्रों की विशेषता और मानसशास्त्र ==
 
== भारतीय शास्त्रों की विशेषता और मानसशास्त्र ==
किसी भी विषय में सोचते समय समग्रता से सोचने की भारतीय पद्धति है। इसमें समस्या का केवल वर्णन (डिस्क्रिप्शन) पर्याप्त नहीं होता। समस्या के हल (सॉल्यूशन) के बिना विषय का विचार अधूरा माना जाता है। विचार केवल वर्णनात्मक होना पर्याप्त नहीं है। वर्णन के साथ ही उपाय योजना भी बतानेवाला होना चाहिए। श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन मन के विषय में प्रश्न पूछते हैं -  
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किसी भी विषय में सोचते समय समग्रता से सोचने की भारतीय पद्धति है। इसमें समस्या का केवल वर्णन (डिस्क्रिप्शन) पर्याप्त नहीं होता। समस्या के हल (सॉल्यूशन) के बिना विषय का विचार अधूरा माना जाता है। विचार केवल वर्णनात्मक होना पर्याप्त नहीं है। वर्णन के साथ ही उपाय योजना भी बतानेवाला होना चाहिए। श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन मन के विषय में प्रश्न पूछते हैं - <blockquote>चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।</blockquote><blockquote>तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।6.34।।</blockquote><blockquote>अर्थ : हे श्रीकृष्ण ! यह मन बड़ा चंचल, क्षोभ निर्माण करनेवाला, बलवान और दृढ़ है। मुठ्ठी में वायु को रोकने जैसा ही यह अत्यंत कठिन कार्य है। </blockquote>उपर्युक्त प्रश्न का उत्तर भगवान देते हैं <blockquote>श्री भगवानुवाच</blockquote><blockquote>असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं।</blockquote><blockquote>अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।6.35।।</blockquote><blockquote>अर्थ : हे महाबाहो ! मन चंचल और इसे संयम में रखना वास्तव में कठिन काम है। लेकिन हे कुन्तीपुत्र अर्जुन ! उसे अभ्यास और वैराग्य से वश में लाया जा सकता है।</blockquote>
चंचलं ही मन: कृष्ण प्रमाथी बलवद् दृढम् ।  तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्  ।। ( ६ -३४)
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अर्थ : हे श्रीकृष्ण ! यह मन बड़ा चंचल, क्षोभ निर्माण करनेवाला, बलवान और दृढ़ है। मुठ्ठी में वायु को रोकने जैसा ही यह अत्यंत कठिन कार्य है।  
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उपर्युक्त प्रश्न का उत्तर भगवान देते हैं
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असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्  ।  अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते  ।।    (६ – ३५)
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अर्थ : हे महाबाहो ! मन चंचल और इसे संयम में रखना वास्तव में कठिन काम है। लेकिन हे कुन्तीपुत्र अर्जुन ! उसे अभ्यास और वैराग्य से वश में लाया जा सकता है।  
      
== योगशास्त्र में उपाय ==
 
== योगशास्त्र में उपाय ==
गतिमानता तो जगत का नियम है। गति करता है इसीलिये विश्व को जगत कहा जाता है। किन्तु वर्तमान में मानव जीवन ने जो गति प्राप्त की है वह उसे तेजी से आत्मनाश की ओर ले जा रही है। ऐसी स्थिति में संयम की पहले कभी भी नहीं थी इतनी आवश्यकता निर्माण हो गई है।
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गतिमानता तो जगत का नियम है। गति करता है इसीलिये विश्व को जगत कहा जाता है। किन्तु वर्तमान में मानव जीवन ने जो गति प्राप्त की है वह उसे तेजी से आत्मनाश की ओर ले जा रही है। ऐसी स्थिति में संयम की पहले कभी भी नहीं थी इतनी आवश्यकता निर्माण हो गई है। संयम का अर्थ है इंद्रीय निग्रह। वासनाओं पर नियंत्रण। वासनाओं को दबाना भिन्न बात है। मन पर संयम निर्माण करने के लिये पतंजली मुनि ने भारतीय चिंतन से 'अष्टांग योग' नामक एक अपूर्व भेंट जगत को दी है। भारतीय दर्शनशास्त्रों में से यह एक दर्शन है। इसे योगदर्शन भी कहा जाता है। वैसे तो योग का यह ज्ञान वेदों से भी पूर्व काल से भारत में था। उसकी सुसूत्र प्रस्तुति महर्षि पतंजलि ने की है। योग भी अपने आप में सदाचार से जीने के लिये मार्गदर्शन करनेवाला एक संपूर्ण जीवनदर्शन है।
संयम का अर्थ है इंद्रीय निग्रह। वासनाओंपर नियंत्रण। वासनाओं को दबाना भिन्न बात है। मनपर संयम निर्माण करने के लिये अपने पूर्वज पतंजली मुनी ने भारतीय चिंतन से 'अष्टांग योग' नामक एक अपूर्व ऐसी भेंट जगत को दी है। भारतीय दर्शनशास्त्रों में से यह एक दर्शन है। इसे योगदर्शन भी कहा जाता है। वैसे तो योग का यह ज्ञान वेदों से भी पूर्व काल से भारत में था। उसकी सुसूत्र प्रस्तुति महर्षि पतंजलि ने की है।  
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योग भी अपने आप में सदाचार से जीने के लिये मार्गदर्शन करनेवाला एक संपूर्ण जीवनदर्शन है।  
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भारतीय मान्यता के अनुसार मोक्ष की प्राप्ति के चार प्रमुख मार्ग हैं। ज्ञानमार्ग, निष्काम कर्म मार्ग, भक्तिमार्ग और अष्टांग योग मार्ग। इन में योगमार्ग कठिन लेकिन शीघ्रता से मोक्षगामी बनानेवाला मार्ग है। पूर्व कर्मों के फलों को नष्ट करने की सम्भावनाएँ अन्य तीन मार्गों में नहीं है। किन्तु इस का लाभ केवल मोक्षप्राप्ति के इच्छुक मुमुक्षु को ही होता है ऐसा नहीं है। बहिरंग योग का लाभ तो समाज के हर घटक को हर अवस्था में मिल सकता है। योगिक साधना से ज्ञानार्जन के करण और अंत:करण के घटकों का विकास किया जा सकता है। इसीलिये योग विषय का शिक्षा की दृष्टि से भी अनन्य साधारण महत्व है।  
भारतीय मान्यता के अनुसार मोक्ष की प्राप्ति के चार प्रमुख मार्ग हैं। ज्ञानमार्ग, निष्काम कर्म मार्ग, भक्तिमार्ग और अष्टांग योग मार्ग। इन में योगमार्ग कठिन लेकिन शीघ्रता से मोक्षगामी बनानेवाला मार्ग है। पूर्व कर्मों के फलों को नष्ट करने की सम्भावनाएँ अन्य तीन मार्गों में नहीं है। किन्तु इस का लाभ केवल मोक्षप्राप्ति के इच्छुक मुमुक्षु को ही होता है ऐसा नहीं है। बहिरंग योग का लाभ तो समाज के हर घटक को हर अवस्था में मिल सकता है। योगिक साधना से ज्ञानार्जन के करण और अंत:करण के घटकों का विकास किया जा सकता है। इसीलिये योग विषय का शिक्षा की दृष्टि से भी अनन्य साधारण महत्व है।
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पतंजली का अष्टांग योग का अध्ययन इस दृष्टी से उपयुक्त है। अष्टांग योग के आठ अंग होते हैं।  
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पतंजली का अष्टांग योग का अध्ययन इस दृष्टि से उपयुक्त है। अष्टांग योग के आठ अंग होते हैं।  
अन्तरंग योग के अंग : १. यम, २. नियम ३. आसन ४. प्राणायाम ५. प्रत्याहार  
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बहिरंग योग के अंग : ६. धारणा ७. ध्यान और ८. समाधि  
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अन्तरंग योग के अंग :  
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# यम  
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# नियम  
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# प्राणायाम  
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# प्रत्याहार  
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# बहिरंग योग के अंग : धारणा  
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# ध्यान  
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# समाधि  
 
बहिरंग योग में बाहर से याने अन्य किसी के द्वारा मार्गदर्शन किया जा सकता है। लेकिन अन्तरंग योग में सामान्यत: स्वत: ही अपने प्रयासों से आगे बढ़ना होता है। अन्तरंग योग में बाहर से मार्गदर्शन केवल जिसे आत्मानुभूति हुई है ऐसा सद्गुरू ही कर सकता है। जैसे स्वामी विवेकानंद को रामकृष्ण परमहंसजीने किया था। अष्टांग योग के भी दो प्रकार है। पहला है सहजयोग या राजयोग दूसरा है हठयोग। हठयोग में साँसपर बलपूर्वक नियंत्रण किया जाता है। इसलिये हठयोग में यम नियम छोड़कर अन्य छ: अंगों की शिक्षा को अरुणावस्थातक वर्जित माना जाता है। विशेषत: हठयोग की शुध्दिक्रियाएं, आसन और प्राणायाम के प्रकार। सामान्यत: योग कहने से तात्पर्य होता है अष्टांग योग से और वह भी सहजयोग या राजयोग से ही।
 
बहिरंग योग में बाहर से याने अन्य किसी के द्वारा मार्गदर्शन किया जा सकता है। लेकिन अन्तरंग योग में सामान्यत: स्वत: ही अपने प्रयासों से आगे बढ़ना होता है। अन्तरंग योग में बाहर से मार्गदर्शन केवल जिसे आत्मानुभूति हुई है ऐसा सद्गुरू ही कर सकता है। जैसे स्वामी विवेकानंद को रामकृष्ण परमहंसजीने किया था। अष्टांग योग के भी दो प्रकार है। पहला है सहजयोग या राजयोग दूसरा है हठयोग। हठयोग में साँसपर बलपूर्वक नियंत्रण किया जाता है। इसलिये हठयोग में यम नियम छोड़कर अन्य छ: अंगों की शिक्षा को अरुणावस्थातक वर्जित माना जाता है। विशेषत: हठयोग की शुध्दिक्रियाएं, आसन और प्राणायाम के प्रकार। सामान्यत: योग कहने से तात्पर्य होता है अष्टांग योग से और वह भी सहजयोग या राजयोग से ही।
अष्टांग योग के अनुपालन से मन पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। इनमें मन के नियंत्रण की दृष्टी से यम और नियम इन अंगों का महत्त्व अनन्य साधारण है। यदि ऐसा कहें कि यम और नियमों के बिना योग मनुष्य को आसुरी बना सकता है तो इसमें थोड़ी सी भी अतिशयोक्ति नहीं है।  
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अष्टांग योग के अनुपालन से मन पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। इनमें मन के नियंत्रण की दृष्टि से यम और नियम इन अंगों का महत्त्व अनन्य साधारण है। यदि ऐसा कहें कि यम और नियमों के बिना योग मनुष्य को आसुरी बना सकता है तो इसमें थोड़ी सी भी अतिशयोक्ति नहीं है।  
    
== यम ==
 
== यम ==
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