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− | भारतीय जीवनदृष्टि
| + | कृपया [[Jeevan Ka Pratiman (जीवन का प्रतिमान)|यह]] लेख व [[Jeevan Ka Pratiman- Part 2 (जीवन का प्रतिमान- भाग 2)|यह]] लेख भी देखें। |
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| इस विश्व में अनेक राष्ट्र हैं और हर राष्ट्र का अपना | | इस विश्व में अनेक राष्ट्र हैं और हर राष्ट्र का अपना |
− | अपना स्वभाव होता है । स्वभाव के अनुसार उसका स्वधर्म | + | अपना स्वभाव होता है। स्वभाव के अनुसार उसका स्वधर्म |
| बनता है । स्वभाव और स्वधर्म के अनुसार हर राष्ट्र की | | बनता है । स्वभाव और स्वधर्म के अनुसार हर राष्ट्र की |
| जीवन और जगत को देखने की अपनी अपनी दृष्टि होती है । | | जीवन और जगत को देखने की अपनी अपनी दृष्टि होती है । |
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| भारतीय जीवनदृष्टि के प्रमुख आयाम इस प्रकार हैं | | भारतीय जीवनदृष्टि के प्रमुख आयाम इस प्रकार हैं |
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− | जीवन एक और अखण्ड है | + | == जीवन एक और अखण्ड है == |
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| भारत की दृष्टि हमेशा समग्रता की रही है । किसी भी | | भारत की दृष्टि हमेशा समग्रता की रही है । किसी भी |
| घटना या स्थिति के विषय में खण्ड खण्ड में विचार नहीं करना | | घटना या स्थिति के विषय में खण्ड खण्ड में विचार नहीं करना |
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| इसका अर्थ यह हुआ कि एक जन्म का परिणाम दूसरे | | इसका अर्थ यह हुआ कि एक जन्म का परिणाम दूसरे |
− | जन्म पर होता है । हमारा इस जन्म का जीवन पूर्वजन्मों का | + | जन्म पर होता है । हमारा इस जन्म का जीवन पूर्वजन्मों का परिणाम है और इस जन्म के परिणामस्वरूप अगला जन्म |
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− | परिणाम है और इस जन्म के परिणामस्वरूप अगला जन्म | |
| होने वाला है । इसमें से कर्म, कर्मफल और भाग्य का | | होने वाला है । इसमें से कर्म, कर्मफल और भाग्य का |
| कर्मसिद्धान्त बना है । यह सिद्धान्त कहता है कि हम जो | | कर्मसिद्धान्त बना है । यह सिद्धान्त कहता है कि हम जो |
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| को समझकर ही भारतीय जीवन की व्यवस्था हुई है । | | को समझकर ही भारतीय जीवन की व्यवस्था हुई है । |
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− | जगत परमात्मा का विश्वरूप है | + | == जगत परमात्मा का विश्वरूप है == |
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| जीवन के मूल तत्त्व को भारतीय चिन्तन में अनेक | | जीवन के मूल तत्त्व को भारतीय चिन्तन में अनेक |
| नामों से कहा गया है । कहीं ब्रह्म है, कहीं परब्रह्म है, कहीं | | नामों से कहा गया है । कहीं ब्रह्म है, कहीं परब्रह्म है, कहीं |
| आत्मा है, कहीं परमात्मा है, कहीं ईश्वर है, कहीं परमेश्वर है, | | आत्मा है, कहीं परमात्मा है, कहीं ईश्वर है, कहीं परमेश्वर है, |
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− | कहीं परम चैतन्य है, कहीं जगन्नियन्ता है, कहीं सीधा सादा... को भी मूल तत्त्व मानकर भारतीय
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− | भगवान है । जैसी जिसकी मति वैसा नाम उस मूल तत्त्व को... जीवन की व्यवस्था हुई है । जगत में जितने भी सम्बन्ध हैं
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− | मनीषियों ने दिया है । इसको लेकर ही ऋग्वेद कहता है, उनका आधारभूत तत्त्व प्रेम है, जितने भी सृजन और निर्माण
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− | “एकं सत विप्रा: बहुधा व्दन्ति' अर्थात् सत्य एक है, मनीषी हैं उनका आधारभूत तत्त्व सौन्दर्य है, जितने भी कार्य हैं
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− | उसे अलग अलग नाम देते हैं । यह मूल तत्त्व अव्यक्त, .. उनकी परिणति आनन्द है और जितने भी अनुभव हैं उनका
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− | अचिंत्य, अकल्प्य, अदृश्य, अस्पर्श्य, अजर, अमर होता... आधारभूत तत्त्व ज्ञान है । सर्वत्र इन तत्त्वों का अनुभव करना
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− | है । यह जगत या सृष्टि उस अव्यक्त तत्त्व का व्यक्त रूप है । ही जीवन को जानना है ।
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− | व्यक्त रूप वैविध्य से युक्त है । यहाँ रस, रूप, स्पर्श, गंध इसके उदाहरण हमें सर्वत्र दिखाई देते हैं । कला,
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− | आदि का अपरिमित वैविध्य है । सृष्टि का हर पदार्थ दूसरे... काव्य, साहित्य के सृजन में तो आनन्द आता ही है परन्तु
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− | पदार्थ से किसी न किसी रूप में भिन्न है । परन्तु दिखाई देने... रोज रोज की सफाई करना, मिट्टी के पात्र बनाना, रुगण की
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− | वाली भिन्नता में मूल तत्त्व का एकत्व है । मूल एकत्व और... परिचर्या करना, कपड़े सीना आदि कामों में भी वही आनन्द
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− | दिखाई देने वाली भिन्नता एक ही तत्त्व के दो रूप हैं । इस. का अनुभव रहता है । राजा प्रजा के, मालिक नौकर के,
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− | आधारभूत धारणा पर भारतीय जीवन की व्यवस्था हुई है।.. शिक्षक विद्यार्थी के सम्बन्ध में पितापुत्र के सम्बन्ध की
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− | इस सृष्टि के सारे पदार्थ एकात्म सम्बन्ध से एकदूसरे से. आत्त्मीयता रहती है । आत्मीयता ही प्रेम है । प्रेम के कारण
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− | जुड़े हुए हैं । एकात्मता का व्यावहारिक रूप चक्रीयता और .... सृष्टि में सौन्दर्य ही दिखाई देता है । आत्मीयता में ही विविध
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− | परस्पर पूरकता है । सारे पदार्थ गतिशील और परिवर्तनशील स्वरूप में एकत्व का बोध रहता है । यही ज्ञान है ।
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− | हैं। पदार्थों की गति वृत्तीय है । वे जहाँ से आए हैं वहीं यह आध्यात्मिक जीवनदृष्टि है। आत्मतत्त्त को
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− | वापस जाते हैं । इस प्रकार एक वृत्त पूर्ण होकर दूसरा वृत्त. अधिष्ठान के रूप में स्वीकार कर जो स्थित है वही
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− | शुरू होता है । सारे पदार्थ जिसमें से बने हैं उसीमें वापस... आध्यात्मिक है । भारत की पहचान भी विश्व में आध्यात्मिक
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− | विलीन होते हैं । गतिशीलता और परिवर्तनशीलता के साथ. देश की है |
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− | ही परस्परावलम्बन और परस्परपूरकता भी सृष्टि में दिखाई
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− | देती है । इन तत्त्वों के कारण सब एकदूसरे के पोषक बनते... मम जीवनदृष्टि
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− | हैं । सब एकदूसरे के सहायक और एकदूसरे पर आधारित यह जीवनदृष्टि व्यवहार में विभिन्न स्वरूप धारण करती
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− | हैं। इस तत्त्व को ध्यान में लेकर भारत के जीवन की... है। इस दृष्टि पर आधारित समाजव्यवस्था में गृहसंस्था
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− | व्यवस्था हुई है । केन्द्रवर्ती है । गृहसंस्था का आधार ही एकात्मता है । गृह में
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− | सृष्टि में दिखाई देने वाले या नहीं दिखाई देने वाले... प्रतिष्ठित एकात्मता का विस्तार वसुधैव कुट्म्बकम् तक होता
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− | अस्तित्वधारी सभी पदार्थों की स्वतन्त्र सत्ता है । उनका कोई... है। सबको अपना मानना क्योंकि सब एक हैं यह व्यवहार
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− | न कोई प्रयोजन है । इस तत्त्व को स्वीकार कर भारत की... और सम्बन्ध का मूल सूत्र बनता है । वेदों का महावाक्य
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− | जीवनशैली का विकास हुआ है । उनकी स्वतन्त्र सत्ता को... कहता है, सर्व खलु इद ब्रह्म अर्थात् यह सब वास्तव में ब्रह्म
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− | स्वीकार करना उनका आदर करना और उनकी स्वतन्त्रता की... ही है । इस वेदवाक्य की प्रतीति हमें सर्वत्र होती है ।
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− | रक्षा करना मनुष्य का कर्तव्य बताया गया है । इस सृष्टि में ज्ञान है तो अज्ञान भी है, सत्य है तो
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− | मूल अव्यक्त तत्त्व के भावात्मक रूप प्रेम, सौन्दर्य, असत्य भी है, जड़ है तो चेतन भी है, अच्छा है तो बुरा भी
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− | ज्ञान और आनन्द हैं । जिस प्रकार आत्मतत्त्व सृष्टि की... है, इष्ट है तो अनिष्ट भी है, प्रकाश है तो अंधकार भी है |
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− | विविधता के रूप में व्यक्त हुआ है उसी प्रकार ये सारे तत्व... अर्थात् सृष्टि का अव्यक्त रूप एक ही है परन्तु व्यक्त रूप
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− | भी सृष्टि में विविध रूप धारण करके व्यक्त हुए हैं । इन तत्वों... द्न्द्वात्मक है । ये दोनों पक्ष हमेशा एकदूसरे के साथ ही रहते
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| हैं। दोमें से एक भी पूर्ण नष्ट नहीं | | हैं। दोमें से एक भी पूर्ण नष्ट नहीं |
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| प्राणियों और पदार्थों का रक्षण और पोषण करना उसका | | प्राणियों और पदार्थों का रक्षण और पोषण करना उसका |
| कर्तव्य है । जीवन के सभी व्यवहारों में बड़प्पन के साथ | | कर्तव्य है । जीवन के सभी व्यवहारों में बड़प्पन के साथ |
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− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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| कर्तव्य और दायित्व तथा छोटेपन के साथ रक्षण का | | कर्तव्य और दायित्व तथा छोटेपन के साथ रक्षण का |
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| भी इस भावना के अनुसार ही बनी होती है । | | भी इस भावना के अनुसार ही बनी होती है । |
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− | संघर्ष नहीं सह अस्तित्व | + | == संघर्ष नहीं सह अस्तित्व == |
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| संघर्ष का मूल स्पर्धा है और परिणाम हिंसा और | | संघर्ष का मूल स्पर्धा है और परिणाम हिंसा और |
| उसके बाद विनाश है । भारत के सामाजिक आचरण का | | उसके बाद विनाश है । भारत के सामाजिक आचरण का |
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| शिक्षा का अधिष्ठान भी आध्यात्मिक होना चाहिए । | | शिक्षा का अधिष्ठान भी आध्यात्मिक होना चाहिए । |
| आध्यात्मिक अधिष्ठान से युक्त शिक्षा ही भारतीय शिक्षा है । | | आध्यात्मिक अधिष्ठान से युक्त शिक्षा ही भारतीय शिक्षा है । |
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| == References == | | == References == |
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| [[Category:भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप]] | | [[Category:भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप]] |