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# विचार, विवेक, कर्तृत्व एवं भोक्तृत्व तथा संस्कार क्रमश: मन, बुद्धि,अहंकार और चित्त के विषय हैं ।
# विचार, विवेक, कर्तृत्व एवं भोक्तृत्व तथा संस्कार क्रमश: मन, बुद्धि,अहंकार और चित्त के विषय हैं ।
# आयु की अवस्था के अनुसार ज्ञानार्जन के करण सक्रिय होते जाते हैं ।
# आयु की अवस्था के अनुसार ज्ञानार्जन के करण सक्रिय होते जाते हैं ।
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# गर्भावस्था और शिशुअवस्था में चित्त, बालअवस्था में इंद्रियाँ और मन का भावना पक्ष, किशोर अवस्था में मन का विचार पक्ष तथा बुद्धि का निरीक्षण और परीक्षण पक्ष, तरुण अवस्था में विवेक तथा
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# गर्भावस्था और शिशुअवस्था में चित्त, बालअवस्था में इंद्रियाँ और मन का भावना पक्ष, किशोर अवस्था में मन का विचार पक्ष तथा बुद्धि का निरीक्षण और परीक्षण पक्ष, तरुण अवस्था में विवेक तथा युवावस्था में अहंकार सक्रिय होता है।
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युवावस्था में अहंकार सक्रिय होता है ।
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# युवावस्था तक पहुँचने पर ज्ञानार्जन के सभी करण सक्रिय होते हैं ।
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# सोलह वर्ष की आयु तक ज्ञानार्जन के करणों के विकास की शिक्षा तथा सोलह वर्षों के बाद ज्ञानार्जन के करणों से शिक्षा होती है ।
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युवावस्था तक पहुँचने पर ज्ञानार्जन के सभी करण सक्रिय
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# करणों की क्षमता के अनुसार शिक्षा ग्रहण होती है ।
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# आहार, विहार, योगाभ्यास, श्रम, सेवा, सत्संग, स्वाध्याय आदि से करणों की क्षमता बढ़ती है ।
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होते हैं ।
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# सात्त्विक,पौष्टिक और स्वादिष्ट आहार सम्यक आहार होता है ।
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# दिनचर्या, कऋतुचर्या और जीवनचर्या विहार है ।
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सोलह वर्ष की आयु तक ज्ञानार्जन के करणों के विकास
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# यम नियम आदि अष्टांग योग का अभ्यास योगाभ्यास है।
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# शरीर की शक्ति का भरपूर प्रयोग हो ऐसा कोई भी कार्य श्रम है।
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की शिक्षा तथा सोलह वर्षों के बाद ज्ञानार्जन के करणों
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# निःस्वार्थभाव से किसी दूसरे के लिए किया गया कोई भी कार्य सेवा है।
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# सज्जनों का उपसेवन सत्संग है ।
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से शिक्षा होती है ।
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# सद्ग्रंथों का पठन और उनके ऊपर मनन, चिन्तन स्वाध्याय है।
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# ज्ञानार्जन के करणों का विकास करना व्यक्ति के विकास का एक आयाम है ।
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करणों की क्षमता के अनुसार शिक्षा ग्रहण होती है ।
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# व्यक्ति का समष्टि और सृष्टि के साथ समायोजन उसके विकास का दूसरा आयाम है ।
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# दोनों मिलकर समग्र विकास होता है ।
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आहार, विहार, योगाभ्यास, श्रम, सेवा, सत्संग,
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# अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय आत्मा का विकास ही करणों का विकास है ।
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# अन्नमयादि पंचात्मा ही पंचकोश हैं ।
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स्वाध्याय आदि से करणों की क्षमता बढ़ती है ।
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# व्यक्ति का समष्टि के साथ समायोजन कुटुंब, समुदाय, राष्ट्र और विश्व ऐसे चार स्तरों पर होता है|
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# अन्नमय आत्मा शरीर है । बल, आरोग्य, कौशल, तितिक्षा और लोच उसके विकास का स्वरूप है ।
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सात्त्विक,पौष्टिक और स्वादिष्ट आहार सम्यक आहार
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# आहार, निद्रा, श्रम, काम और
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# . ९८. चित्त की शुद्धि के अनुपात में ये गुण प्रकट होते हैं ।
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होता है ।
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दिनचर्या, कऋतुचर्या और जीवनचर्या विहार है ।
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यम नियम आदि अष्टांग योग का अभ्यास योगाभ्यास
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है।
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शरीर की शक्ति का भरपूर प्रयोग हो ऐसा कोई भी कार्य
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श्रम है ।
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निःस्वार्थभाव से किसी दूसरे के लिए किया गया कोई
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भी कार्य सेवा है ।
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सज्जनों का उपसेवन सत्संग है ।
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Aa Al पठन और उनके ऊपर मनन, चिन्तन
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स्वाध्याय है ।
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ज्ञानार्जन के करणों का विकास करना व्यक्ति के विकास
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का एक आयाम है ।
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.. व्यक्ति का समष्टि और सृष्टि के साथ समायोजन उसके
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विकास का दूसरा आयाम है ।
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दोनों मिलकर समग्र विकास होता है ।
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अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय
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आत्मा का विकास ही करणों का विकास है ।
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अन्नमयादि पंचात्मा ही पंचकोश हैं ।
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व्यक्ति का समष्टि के साथ समायोजन Hers, AAC,
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राष्ट्र और विश्व ऐसे चार स्तरों पर होता 2 |
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अन्नमय आत्मा शरीर है । बल, आरोग्य, कौशल,
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तितिक्षा और लोच उसके विकास का स्वरूप है ।
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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७६, आहार, निद्रा, श्रम, काम और. ९८. चित्त की शुद्धि के अनुपात में ये गुण प्रकट होते हैं ।
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मनःशान्ति से उसका विकास होता है । ९९, अन्न, प्राण, मन, विज्ञान और आनंदमय के परे
मनःशान्ति से उसका विकास होता है । ९९, अन्न, प्राण, मन, विज्ञान और आनंदमय के परे