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| # शिक्षक के कार्य को अध्यापन और विद्यार्थी के कार्य को अध्ययन कहा जाता है । दोनों मिलकर शिक्षा है । | | # शिक्षक के कार्य को अध्यापन और विद्यार्थी के कार्य को अध्ययन कहा जाता है । दोनों मिलकर शिक्षा है । |
| # आचार्य पूर्वरूप है, अंतेवासी उत्तररूप है, दोनों में प्रवचन से सन्धान होता है और इससे विद्या निष्पन्न होती. है ऐसा उपनिषद कहते हैं{{Citation needed}}। | | # आचार्य पूर्वरूप है, अंतेवासी उत्तररूप है, दोनों में प्रवचन से सन्धान होता है और इससे विद्या निष्पन्न होती. है ऐसा उपनिषद कहते हैं{{Citation needed}}। |
− | शिक्षक और विद्यार्थी का संबंध मानस पिता और पुत्र | + | # शिक्षक और विद्यार्थी का संबंध मानस पिता और पुत्र का होता है । |
− | | + | # शिक्षा एक जीवन्त प्रक्रिया है, यान्त्रिक नहीं । |
− | का होता है । | + | # शिक्षक अध्यापन करता है और विद्यार्थी अध्ययन । |
− | | + | # अध्यापन और अध्ययन एक ही क्रिया के दो पहलू हैं । |
− | शिक्षा एक जीवन्त प्रक्रिया है, यान्त्रिक नहीं । | + | # अध्ययन मूल क्रिया है और अध्यापन प्रेरक । |
− | | + | # अध्ययन जिन करणों की सहायता से होता है उन्हें ज्ञानार्जन के करण कहते हैं । |
− | शिक्षक अध्यापन करता है और विद्यार्थी अध्ययन । | + | # करण दो प्रकार के होते हैं, बहि:करण और अन्त:करण । |
− | | + | # कर्मन्द्रियाँ और ज्ञानेन्द्रियां बहि:करण हैं । |
− | अध्यापन और अध्ययन एक ही क्रिया के दो पहलू हैं । | + | # मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त अन्तःकरण हैं । |
− | | + | # क्रिया और संवेदन बहि:करणों के विषय हैं । |
− | अध्ययन मूल क्रिया है और अध्यापन प्रेरक । | + | # विचार, विवेक, कर्तृत्व एवं भोक्तृत्व तथा संस्कार क्रमश: मन, बुद्धि,अहंकार और चित्त के विषय हैं । |
− | | + | # आयु की अवस्था के अनुसार ज्ञानार्जन के करण सक्रिय होते जाते हैं । |
− | ज्ञानार्जन के करण कहते हैं । | + | # गर्भावस्था और शिशुअवस्था में चित्त, बालअवस्था में इंद्रियाँ और मन का भावना पक्ष, किशोर अवस्था में मन का विचार पक्ष तथा बुद्धि का निरीक्षण और परीक्षण पक्ष, तरुण अवस्था में विवेक तथा |
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− | करण दो प्रकार के होते हैं, बहि:करण और अन्त:करण । | |
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− | कर्मन्द्रियाँ और ज्ञानेन्द्रियां बहि:करण हैं । | |
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− | मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त अन्तःकरण हैं । | |
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− | क्रिया और संवेदन बहि:करणों के विषय हैं । | |
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− | विचार, विवेक, कर्तृत्व एवं भोक्तृत्व तथा संस्कार | |
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− | क्रमश: मन, बुद्धि,अहंकार और चित्त के विषय हैं । | |
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− | आयु की अवस्था के अनुसार ज्ञानार्जन के करण सक्रिय | |
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− | होते जाते हैं । | |
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− | गर्भावस्था और शिशुअवस्था में चित्त, बालअवस्था में | |
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− | इंद्रियाँ और मन का भावना पक्ष, किशोर अवस्था में | |
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− | मन का विचार पक्ष तथा बुद्धि का निरीक्षण और परीक्षण | |
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− | पक्ष, तरुण अवस्था में विवेक तथा | |
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| युवावस्था में अहंकार सक्रिय होता है । | | युवावस्था में अहंकार सक्रिय होता है । |
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