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गरीब होने पर किसीसे माँगकर जूते, वस्त्र, अलंकार आदि पहनना, मिष्टात्र खाने की लालसा से किसी के घर महेमान बनकर जाना, किसी के पुराने कपडे पहनना, नकली आभूषण पहनना आदि नहीं करना चाहिये । इसमें लज्जा का अनुभव होना चाहिये ।
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गरीब होने पर किसीसे माँगकर जूते, वस्त्र, अलंकार आदि पहनना, मिष्टात्र खाने की लालसा से किसी के घर महेमान बनकर जाना, किसी के पुराने कपड़े पहनना, नकली आभूषण पहनना आदि नहीं करना चाहिये । इसमें लज्जा का अनुभव होना चाहिये ।
    
७५. घर में श्रमप्रतिष्ठा, उद्यमशीलता, सेवापरायणता का वातावरण बनना. चाहिये ।. प्रसन्नता, उत्साह, सृजनशीलता का वातावरण बनना. चाहिये । हास्यविनोद, वार्तालाप, एकदूसरे के कार्यों में रुचि, सहयोग और सहभागिता आदि भी होना चाहिये ।
 
७५. घर में श्रमप्रतिष्ठा, उद्यमशीलता, सेवापरायणता का वातावरण बनना. चाहिये ।. प्रसन्नता, उत्साह, सृजनशीलता का वातावरण बनना. चाहिये । हास्यविनोद, वार्तालाप, एकदूसरे के कार्यों में रुचि, सहयोग और सहभागिता आदि भी होना चाहिये ।
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८३. अतिथिसत्कार कैसे करना यह भी विधिपूर्वक सिखाने की बात है । विनयपूर्वक मधुर सम्भाषण, परिचर्या, उनकी आवश्यकताओं की जानकारी, उनकी रुचि अरुचि की जानकारी प्राप्त करना आदि का कौशल सिखाने की बात है ।
 
८३. अतिथिसत्कार कैसे करना यह भी विधिपूर्वक सिखाने की बात है । विनयपूर्वक मधुर सम्भाषण, परिचर्या, उनकी आवश्यकताओं की जानकारी, उनकी रुचि अरुचि की जानकारी प्राप्त करना आदि का कौशल सिखाने की बात है ।
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८४. अर्थात्‌ मातापिता ने मिल कर अपनी सन्तानों को घर की स्वच्छता करना, कपडे-बर्तन, अन्य सामग्री की स्वच्छता करना, भोजन बनाना, करना, करवाना, बिस्तर लगाना, समेटना, घर के आवश्यक सामान की खरीदी करना, घर में सारा सामान व्यवस्थित रखना, घर सजाना आदि अनेक छोटे बडे काम सिखानें चाहिये । जिस परिवार में सभी सदस्यों को ये सारे काम अच्छी तरह करना आता है वही परिवार स्वावलम्बी होता है ।
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८४. अर्थात्‌ मातापिता ने मिल कर अपनी सन्तानों को घर की स्वच्छता करना, कपड़े-बर्तन, अन्य सामग्री की स्वच्छता करना, भोजन बनाना, करना, करवाना, बिस्तर लगाना, समेटना, घर के आवश्यक सामान की खरीदी करना, घर में सारा सामान व्यवस्थित रखना, घर सजाना आदि अनेक छोटे बडे काम सिखानें चाहिये । जिस परिवार में सभी सदस्यों को ये सारे काम अच्छी तरह करना आता है वही परिवार स्वावलम्बी होता है ।
    
८५. अर्थात्‌ भोजन के लिये पैसा कमाना इतना आवश्यक नहीं है जितना भोजन बनाने का कौशल प्राप्त करना और भोजन के शास्त्र को जानना । भोजन बनाना ही नहीं तो करना और करवाना भी आना चाहिये । साथ ही अन्य दैनन्दिन जीवन की अन्यान्य गतिविधियों से सम्बन्धित कामों को सीखने की व्यवस्था भी परिवार
 
८५. अर्थात्‌ भोजन के लिये पैसा कमाना इतना आवश्यक नहीं है जितना भोजन बनाने का कौशल प्राप्त करना और भोजन के शास्त्र को जानना । भोजन बनाना ही नहीं तो करना और करवाना भी आना चाहिये । साथ ही अन्य दैनन्दिन जीवन की अन्यान्य गतिविधियों से सम्बन्धित कामों को सीखने की व्यवस्था भी परिवार

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