Difference between revisions of "Temples mentioned in Kashikhand (काशी खण्डोक्त देवालय)"

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काशी में केदार, विश्वेश्वर और ओंकार ये तीन खण्ड हैं। त्रिशूल के जो तीन नोंक हैं वही काशी के तीन खण्ड हैं।
 
 
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1. केदार खण्ड ( श्री गौरी केदारेश्वर) केदारनाथ।( उत्तराखंड के प्रतिनिधि)
 
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== श्रीविश्वेश्वरस्वरूपात्मकअङ्गयात्रा ==
 
== श्रीविश्वेश्वरस्वरूपात्मकअङ्गयात्रा ==
<blockquote>सर्वेषामपि लिङ्गानां मौलित्वं कृत्तिवाससम् । ओंकारेशः शिखा ज्ञेया लोचनानि त्रिलोचनः॥
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<blockquote>[[File:Shiva Anga Yatra.jpeg|thumb]]सर्वेषामपि लिङ्गानां मौलित्वं कृत्तिवाससम् । ओंकारेशः शिखा ज्ञेया लोचनानि त्रिलोचनः॥
  
 
गोकर्ण भारभुतेशौ  तत्कर्णौ  परिकिर्तितौ। विश्वेश्वरा अविमुक्तौ च द्वावैतौ दक्षिणौकरौ॥
 
गोकर्ण भारभुतेशौ  तत्कर्णौ  परिकिर्तितौ। विश्वेश्वरा अविमुक्तौ च द्वावैतौ दक्षिणौकरौ॥

Revision as of 15:31, 31 December 2021

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काशी में केदार, विश्वेश्वर और ओंकार ये तीन खण्ड हैं। त्रिशूल के जो तीन नोंक हैं वही काशी के तीन खण्ड हैं।

1. केदार खण्ड ( श्री गौरी केदारेश्वर) केदारनाथ।( उत्तराखंड के प्रतिनिधि)

2 विश्वेश्वर        ( श्री काशी विश्वनाथ)।( काशी के प्रतिनिधि)

3 ओमकार।      ( श्री ओम्कारेश्वर )।(  ओम्कारेश्वर मध्यप्रदेश के प्रतिनिधि)

विश्वेश्वर खण्ड के प्रधान लिंग श्री काशी विश्वनाथ (ज्योतिर्लिंग) के दर्शन एवं स्पर्श मात्र से जन्म जन्मांतर के पाप नष्ट ऐसे नष्ट  हो जाते है जैसे सूर्योदय के बाद अंधकार। ये पूरे विश्व के नाथ है , और इनका गढ़ काशी है , इसीलिए (त्रिशूल पर टिकी )काशी का कभी विनाश नही होता ।

श्रीशिवअंगयात्रा

श्रीविश्वेश्वरस्वरूपात्मकअङ्गयात्रा

Shiva Anga Yatra.jpeg

सर्वेषामपि लिङ्गानां मौलित्वं कृत्तिवाससम् । ओंकारेशः शिखा ज्ञेया लोचनानि त्रिलोचनः॥

गोकर्ण भारभुतेशौ  तत्कर्णौ  परिकिर्तितौ। विश्वेश्वरा अविमुक्तौ च द्वावैतौ दक्षिणौकरौ॥

धर्मेश मणिकर्निकेशौ  द्वौकरौदक्षिणौ करौ। कालेश्वर कर्पर्दीशौ    चरणवति   निर्मलौ॥

जयेष्ठेश्वरो नितम्बश्च   नाभिर्वौ मध्यमेश्वरः। कपर्दोह्स्य महादेवः  शिरो भूषा श्रुतिश्वरः॥

चन्द्रेशो हृदयं तस्य आत्मा विरेश्वरः परः। लिङ्ग तस्य तु केदारः शुकः शुक्रेश्वरं विदुः॥ (स्कन्द पु० काशीखण्ड्)

भावार्थ-1. सम्पूर्ण लिंगो का शिर= कृतिवासेश्वर महादेव। (मृत्युंजय मंदिर से पहले रत्नेश्वर महादेव के पास k46/26 दारा नगर , वाराणसी)

2 .  शिखा= ओम्कारेश्वर महादेव। (छित्तनपुरा , पठानी टोला ,a 33/ 23 विशेसर गंज वाराणसी )

3. दोनों नेत्र= त्रिलोचन महादेव। (त्रिलोचन घाट के ऊपर a 2 /80 मछोदरी , वाराणसी)

4. दोनों कान= भारभूतेश्वर महादेव। (गोविंदपुरा ck 54/ 44 चौक)और #गोकर्ण (कोदई की चौकी , दैलु की गली d 50/33)

5. दोनों दाहिने हाथ= विश्वनाथ और अविमुक्तेश्वर महादेव। (विश्वनाथ मंदिर परिषर)

6. दोनों बायाँ हाथ= धर्मेश्वर और मणिकर्णिकेश्वर महादेव। (मीरघाट  d 2/21 दशस्वमेध के पास) और (गोमठ काका राम की गली ck 8/12 अभय सन्यास आश्रम , मणिकर्णिका घाट , चौक , वाराणसी)।

7. दोनों चरण=कालेश्वर और कपरदीश्वर महादेव। (मृत्युंजय मंदिर परिषर k 52/ 39) और( पिशाच मोचन c 21/ 40 विमल कुंड, वाराणसी)।

8. नितंब (पीछे का हिस्सा)=ज्येष्ठेश्वर महादेव। (काशी पूरा , काशी देवी मंदिर के पास 62/144 सप्तसागर , वाराणसी)।

9. नाभि = मध्यमेश्वर महादेव। ( दारा नगर , मैदागिन, मध्यमेश्वर मोहल्ला , k 53/63 वाराणसी)।

10. कपाल और शिरो भूषण= आदि महादेव और श्रुतिश्वर महादेव। (रत्नेश्वर मंदिर के पास , k 53/40 मृत्युंजय मंदिर मार्ग , वाराणसी)।

11. हृदय= चन्द्रेश्वर महादेव। (सिद्धेश्वरी गली , ck 7/ 124 चौक वाराणसी)

12. शरीर की आत्मा= आत्मविरेश्वर महादेव। ( सिंधिया घाट ck 7/ 158 चौक वाराणसी)।

13. लिंग= श्रीगौरीकेदारेश्वर महादेव। (केदार घाट b 6/102 वाराणसी)।

14. शुक्रभाग= शुक्रेश्वर महादेव। (कालिका गली विश्वनाथ गली में d 9/ 30 वाराणसी)।इस प्रकार के शिव यात्रा के अन्तर्गत शिव अंग सम्पूर्ण होते है।

इस पुनीत यात्रा को करने से व्यक्ति का शिव अंग से सम्बंधित अंग कभी दुर्घटना ग्रस्त हो कर भी कभी खराब नही होता और निरोगी काया प्राप्त होती है ,  ऐसी मान्यता प्राचीन काल से चली आ रही है। जो भी व्यक्ति इस यात्रा को विधिवत तरीके से करता है उसको मोक्ष की प्राप्ति होती है।

शिव अंग यात्रा को स्कन्दपुराण के काशी खण्ड से प्राप्त किया गया है। शिव अंगात्मक लिंग सिर्फ काशी में ही पूर्ण रूप से विद्यमान है, इसीलिए प्रयत्न पूर्वक काशी में आकर रहकर यहां की यात्राएं अवश्य करनी चाहिए यह भाग्य प्रद और मोक्षप्रद होती है।